शुक्रवार, 20 दिसंबर 2019

दुष्प्रचार की शिकार है नागरिकता संशोधन कानून

 
मित्रों, यकीन मानिए वर्ष १९९१ तक मुझे पता ही नहीं था कि शुक्रवार को जुमा भी कहा जाता है. जब अमिताभ बच्चन साहब ने १९९१ में हम फिल्म में किमी काटकर से यह याद दिलाते हुए चुम्मा माँगा कि पिछले जुमे को उसने चुम्मे का वादा किया था तब हमने जाना कि शुक्रवार को जुमा भी कहा जाता है. बाद में जब जगन्नाथपुर से महनार आया तब यह भी जाना कि हर शुक्रवार को मुसलमान मस्जिद में जमा होते हैं. साथ में नमाज पढ़ते हैं और मौलाना की तकरीर सुनते हैं. तब मेरा अड्डा महनार चौक के पास स्थित मस्जिद के ठीक सामने मोहन सिंह की किताब की दुकान हुआ करती थी. मुझे तब बहुत अच्छा लगता था कि लोग इकठ्ठे होकर भगवान की इबादत कर रहे हैं.
मित्रों, लेकिन अब ऐसा नहीं है. अब जब भी शुक्रवार का दिन आता है मैं डर जाता हूँ कि न जाने कहाँ से दंगों, लूटपाट और आगजनी की खबर आ जाए. दरअसल इन दिनों मस्जिदों में नफरत भरी तकरीर सुनने के बाद मुसलमान अलग ही मूड में होते हैं खासकर मुस्लिमबहुल इलाकों में. उस पर अगर उनकी पीठ पर विपक्षी दलों का हाथ हो तब तो कहना ही क्या. अब आज की तारीख को ही ले लीजिए. हाँ, भई आज भी जुमा है और मोदी विरोधियों के कुप्रचार के चलते इन दिनों नागरिकता संशोधन कानून का मुद्दा भी गरमाया हुआ है. पिछले कई दिनों से इसको लेकर न जाने क्यों चिल्ल-पों मचा हुआ है जबकि सच्चाई तो यह है कि यह कानून भारत के किसी नागरिक के बारे में है ही नहीं. लेकिन विरोध करना है तो करना है और मुसलमान ठहरे मोदी और भाजपा के स्वाभाविक विरोधी इसलिए बिना बात के भी विरोध करते रहते हैं. ऐसे माहौल में माहौल को और भी ख़राब करने के ख्याल से विपक्षी दलों और मुस्लिम नेताओं ने देशभर के मुसलमानों से आह्वान किया है कि आज जुमे की नमाज के बाद सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करें. अब अगर प्रदर्शन होगा तो पुलिस पर पत्थर भी फेंके जाएंगे और जवाब में पुलिस गोली भी चलाएगी. तब मरेगा कौन? जैसे अगलगी में कुत्ता नहीं जलता वैसे ही नेता तो कभी नहीं मरेगा और न ही नेता के बच्चे मरेंगे क्योंकि वे अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया में पढ़ रहे होंगे. इसलिए कृपया सोंच-समझकर ही प्रदर्शनों में भाग लें. क्योंकि नेता आपको गुमराह कर रहे हैं, आपको अपने हाथों की कठपुतली समझ रहे हैं. आप ही बताईए जब नागरिकता संशोधन कानून भारत के नागरिकों के लिए है ही नहीं तो फिर इससे आपकी नागरिकता को कैसे खतरा हो सकता है? आपको डराया जा रहा है कि CAA ही NRC है जबकि ऐसा बिलकुल भी नहीं है. दोनों दो चीजें हैं. NRC आई है मगर सिर्फ असम में और उसमें भी इतनी त्रुटियाँ हैं कि वहां की सरकार ने भी इसे लागू करने से मना कर दिया है.
मित्रों, हर चीज का दो तरह से इस्तेमाल हो सकता है, अच्छा और बुरा और जनसमर्थन भी इसका अपवाद नहीं है. जनता को नेता भेड-बकरी समझते हैं, जिधर हांक दिया चल देंगे. लेकिन क्या हम सिर्फ भीड़ का हिस्सा हैं? क्या हमारे पास खुद का विवेक नहीं है? अगर है तो हमें पहले नागरिकता संशोधन विधेयक का विस्तृत अध्ययन करना चाहिए फिर सोंचना चाहिए कि क्या हमें इसका विरोध करना चाहिए. लेकिन ऐसा हम तभी कर पाएँगे जब हम सारे पूर्वाग्रहों से मुक्त होंगे और अपने जेहन को नेताओं के पास बंधक नहीं छोड़ा होगा, जब हमारी एक अदद इन्सान के तौर पर पहचान होगी. अगर ऐसा नहीं होगा तो हममें और एक रोबोट में कोई अंतर नहीं है. हमने बेकार में एक इन्सान के तौर पर जन्म लिया.
मित्रों, करुनायतन भगवान बुद्ध ने कहा था कि अप्पो दीपो भव अर्थात खुद ही दीपक बनो और खुद ही अपना गुरु बनो. वास्तविकता भी यही है कि इन्सान के खुद के जेहन से बड़ा कोई गुरु हो ही नहीं सकता. कोई दूसरा व्यक्ति या कोई किताब जो कहेगी उसे कोई इन्सान अगर बिना अपने विवेक की कसौटी पर कसे आँखें मूँदकर मान लेता है तो फिर वो इन्सान हो ही नहीं सकता, जानवर है. लेकिन आज के भारत में हो क्या रहा है? एक तरफ अंधसमर्थक हैं तो दूसरी तरफ अंधविरोधी. यह पूरा युग ही जैसे अंधयुग है. इसलिए जरूरत इस बात की है कि हम जागें और दूसरों को भी जगाएँ अन्यथा कोई भी आपका इस्तेमाल कर सकता है और मतलब निकल जाने पर दूध में पड़ी मक्खी की तरह फेंक सकता है. इस बीच केंद्र सरकार की ओर से कुल 13 सवालों के जवाब दिया गया है, जो आम लोगों को CAA के बारे में मुकम्मल जानकारी देते हैं. इन सवालों के अलावा मोदी सरकार की ओर से सभी अखबारों में CAA से जुड़ी जानकारी का विज्ञापन दिया गया है.





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