गुरुवार, 26 दिसंबर 2019

मुसलमानों के कन्धों पर कांग्रेस की बन्दूक

मित्रों, जैसा कि हम जानते हैं कि कांग्रेस भारत की सबसे पुरानी राजनैतिक पार्टी है. जाहिर है कि उसे राजनीति के सारे दांव-पेंच भी आते हैं. इसके साथ ही उसके लिए अनैतिक भी कुछ भी नहीं है. कन्धा किसी का भी हो वो उसके ऊपर अपना बन्दूक रखकर गोलियां दागने से हिचकती नहीं है. फिर चाहे वह कन्धा दलितों का हो या फिर पाकिस्तान-चीन का ही क्यों न हो. इन दिनों कांग्रेस ने एक और कंधे का जुगाड़ कर लिया है और वो कन्धा है मुसलमानों का. चूंकि यह पंथ पहले से ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लेकर पूर्वाग्रह और दुराग्रह से ग्रस्त है इसलिए बारूद को बस एक चिंगारी दिखाने की आवश्यकता थी जो इन दिनों कांग्रेस दिखा रही है.
मित्रों, इससे पहले भी कांग्रेस पार्टी के नेता कई बार नरेन्द्र मोदी जी का पुतला जलाने के प्रयास में अपने हाथ जला चुके हैं. लेकिन अब कांग्रेस ने कुछ बड़ा करने की सोंची है. पुतले फूंकते-फूंकते अब वो उब चुकी है और अब वो देश को जलाना चाहती है. कुछ ऐसा ही १९४६ में भी मुसलमानों ने किया था. तब मुस्लिम लीग उनकी सरपरस्ती कर रही थी और कांग्रेस उसके खिलाफ थी लेकिन अब कांग्रेस ही मुस्लिम लीग बन गयी है और मुसलमानों के मन में भय और अलगाव के बीज डालकर ठीक उसी तरह अपना उल्लू सीधा करना चाहती है जैसे १९४६ में मुस्लिम लीग ने किया था.
मित्रों, ऐसा करते समय कांग्रेस यह भूल गयी है कि यह १९४६ वाला भारत नहीं है. आज भारत गुलाम नहीं है और न ही यहाँ के बहुसंख्यक हिन्दू सोये हुए हैं कि कांग्रेस उनको १९४६-४७ की तरह बरगला लेगी. कितने आश्चर्य की बात है कि जिस एनआरसी को राजीव गाँधी ने प्रधानमंत्री रहते हुए असम समझौते के द्वारा १९८५  में मंजूरी दी थी आज वो बदले हुए परिप्रेक्ष्य में उसी की मुखालफत कर रही है. वो समझती है कि मुसलमानों के पूरे वोट बैंक पर कब्ज़ा करने बाद हिन्दुओं को ख़राब अर्थव्यवस्था के नाम पर भड़काकर वो आसानी से चुनाव जीत जाएगी. दरअसल उसे पता है कि जबकि हिन्दुओं को भावनात्मक मुद्दों पर एकजुट नहीं किया जा सकता लेकिन मुसलमानों को आसानी से किया जा सकता है. उसे पता है कि दोनों कौम के सोंचने का तरीका अलग-अलग है इसलिए वो एक साथ दोनों दांव चल रही है और सफल भी हो रही है. ऐसा करके ही उसने अभी झारखण्ड का चुनाव जीता है.
मित्रों, लगता है कि इतनी-सी बात भाजपा समझने को तैयार नहीं है कि मुसलमान उसको कभी वोट नहीं देंगे चाहे वो कितने भी हज हाउस क्यों न बनवा दे. आचार्य चाणक्य का एक श्लोक है-*यो ध्रुवाणि परित्यज्य अध्रुवाणि निषेवते।* *ध्रुवाणि तस्य नश्यन्ति अध्रुवाणि नष्टमेव हि॥* अर्थात जो निश्चित को छोड़कर अनिश्चित का अनुसरण करते हैं, उनका निश्चित भी नष्ट हो जाता है और अनिश्चित तो नष्ट के समान ही है। इसलिए भाजपा को चाहिए कि वो पहले अपने वर्तमान वोट बैंक को सुदृढ़ करे. ऐसा न कर सकने के कारण ही उसे झारखण्ड से पहले राजस्थान और मध्य प्रदेश में हार का सामना करना पड़ा. दूसरी तरफ मैं मुसलमानों को सचेत करना चाहूँगा कि वो कांग्रेस की बन्दूक का कन्धा न बनें. क्योंकि जब उनकी क्रिया की प्रतिक्रिया आनी शुरू होगी तब कांग्रेस का कुछ नहीं बिगड़ेगा और उनके सारे नेता मजे में विदेश-भ्रमण पर होंगे. इसलिए वे ऐसा कोई भी काम न करें जो देश के बहुसंख्यक वर्ग को उकसाने वाला हो. अगर वे वास्तव में ऐसा समझते हैं कि यह देश उनका भी उतना ही है जितना हिन्दुओं का है तो वे भी इस देश से उतना ही प्यार करना शुरू कर दें जितना हिन्दू करते हैं और जब भी राष्ट्र गान बजे तो सम्मान में खड़े हो जाएँ क्योंकि राष्ट्रगान और राष्ट्रीय झंडे का सम्मान राष्ट्र का सम्मान होता है और इनका अपमान राष्ट्र का अपमान होता है. जब देशवासी ही अपने देश के राष्ट्रगान और राष्ट्रीय झंडे का सम्मान नहीं करेंगे तो हम विदेशियों से इनके सम्मान और अपने सम्मान की उम्मीद कैसे कर सकते हैं. कांग्रेस को समझाना तो बेकार है क्योंकि वो अगर विलेन की भूमिका में है तो सब कुछ जानते-बूझते हुए है. भाजपा को अवश्य समझाया जा सकता है कि वो सुब्रमण्यम स्वामी की अर्थव्यवस्था से सम्बंधित चेतावनियों को हल्के में कतई न ले क्योंकि वे फालतू में कुछ भी नहीं बोलते. अन्यथा राम मंदिर बनवाने से जो राजनैतिक लाभ मिल सकता था नहीं मिल पाएगा और ऐसा झारखण्ड में हो भी चुका है. साथ ही भाजपा हिन्दुओं और मुसलमानों को एक ही तराजू पर तौलने की कोशिश कतई न करे क्योंकि हिन्दू पढ़े-लिखे और समझदार हैं जाहिल नहीं हैं.

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