सोमवार, 22 नवंबर 2021

तरक्की पर है भ्रष्टाचार कि जनता सिसक रही है

तरक्की पर है भ्रष्टाचार लुटेरी हो गई हर सरकार लोकतंत्र हो गया है लाचार कि जनता सिसक रही है। होना था जहाँ पर इंसाफ होता है वहां सात खून माफ़ रक्षक बन गए भक्षक हर ऑफिस में है लूट-मार हैं फूल भी अब अंगार हफ्ता मांगे थानेदार कि जनता सिसक रही है. बिल्ली का है दूध पे पहरा ऐसा क्यूं है राज है गहरा कुछ अखबार मालिक हैं बाजारी है जिनकी कलम भी लालच की मारी जो हैं खबरों के व्यापारी सच्चे पत्रकार झेलें बेकारी न छीनो जीने का अधिकार खून से मत छापो अखबार कि जनता सिसक रही है. चमका है मजहब का धंधा कुछ आतंकी कर रहे काम गन्दा करते हैं सियासत मौलाना गातें है पाकिस्तान का गाना गुंडे तो गुंडे नेता भी हुए खूंखार पूर्वजों ने जो दिया हर बार हुआ उनका बलिदान बेकार कि जनता सिसक रही है.

बुधवार, 17 नवंबर 2021

दुर्योधन, अर्जुन और नई श्रीमदभगवदगीता

मित्रों, एक बार एक पिता जी अपने महाधर्मनिरपेक्ष बेटे को कुछ समझाते हुए महाभारत का उदाहरण दे रहे थे. बेटा! संघर्ष को जहाँ तक हो सके, रोकना चाहिए. महाभारत से पहले कृष्ण भी गए थे दुर्योधन के दरबार में यह प्रस्ताव लेकर कि हम युद्ध नहीं चाहते. तुम पूरा राज्य रखो. पाँडवों को सिर्फ पाँच गाँव दे दो. वे चैन से रह लेंगे, तुम्हें कुछ नहीं कहेंगे. बेटे ने पूछा पर इतना अव्यवहारिक प्रस्ताव लेकर कृष्ण गए ही क्यों थे? अगर दुर्योधन प्रस्ताव को मान लेता तो? मित्रों, पिता ने कहा कि नहीं मानता और हरगिज नहीं मानता. कृष्ण को पता था कि वह प्रस्ताव स्वीकार नहीं करेगा क्योंकि यह उसके मूल चरित्र के विरुद्ध होता. बेटे की उत्सुकता बढती जा रही थी. उसने पूछा फिर कृष्ण ऐसा प्रोपोजल लेकर गए ही क्यों थे? पिता ने बताया वे तो सिर्फ यह सिद्ध करने गए थे कि दुर्योधन कितना धूर्त, कितना अन्यायी था. वे पाँडवों को सिर्फ यह दिखाने गए थे कि देख लो बेटा.युद्ध तो तुमको लड़ना ही होगा हर हाल में.अब भी कोई शंका है तो निकाल दो मन से. तुम कितना भी संतोषी हो जाओ. कितना भी चाहो कि घर में चैन से बैठूँ. दुर्योधन तुमसे हर हाल में लड़ेगा ही. लड़ना या न लड़ना तुम्हारा विकल्प नहीं है. बेटा फिर भी बेचारे अर्जुन को आखिर तक शंका रही. सब अपने ही तो बंधु बांधव हैं. मित्रों, फिर पिताजी ने आगे बताया कि कृष्ण ने अठारह अध्याय तक फंडा दिया. फिर भी शंका थी. ज्यादा अक्ल वालों को ही ज्यादा शंका होती है ना! दुर्योधन को कभी शंका नहीं थी.उसे हमेशा पता था कि उसे युद्ध करना ही है. उसने गणित लगा रखा था. मित्रों, यह तो आपलोग समझ ही गए होंगे कि इस कथा के दोनों पात्र बाप-बेटे हिन्दू थे क्योंकि धर्मनिरपेक्ष सिर्फ हिन्दू होते हैं. दूसरे मजहब वाले तो सिर्फ शर्मनिरपेक्ष होते हैं. पिताजी ने आगे बेटे को समझाया कि बेटे हम हिन्दुओं को भी समझ लेना होगा कि संघर्ष होगा या नहीं, यह विकल्प आपके पास नहीं है. आपने तो पाँच गाँव का प्रस्ताव भी देकर देख लिया. देश के दो टुकड़े मंजूर कर लिए. उसमें भी हिंदू ही खदेड़ा गया अपनी जमीन जायदाद ज्यों की त्यों छोड़कर. फिर हर बात पर विशेषाधिकार देकर भी देख लिया. हज के लिए सब्सिडी देकर देख ली, उनके लिए अलग नियम कानून (धारा 370) बनवा कर देख लिए, अलग पर्सनल लॉ देकर भी देख लिया. आप चाहे जो कर लीजिए, उनकी माँगें नहीं रुकने वाली. उन्हें सबसे स्वादिष्ट उसी गौमाता का माँस लगेगा जो आपके लिए पवित्र है. इसके बिना उन्हें भयानक कुपोषण हो रहा है. उन्हें सबसे प्यारी वही मस्जिदें हैं, जो हजारों साल पुराने आपके ऐतिहासिक मंदिरों को तोड़ कर बनी हैं. उन्हें सबसे ज्यादा परेशानी उसी आवाज से है जो मंदिरों की घंटियों और पूजा-पंडालों से आती हैं. ये माँगें गाय को काटने तक नहीं रुकेंगी. यह समस्या मंदिरों तक नहीं रहने वाली. धीरे-धीरे यह हमारे घर तक आने वाली है. हमारी बहू-बेटियों तक आने वाली है. अब का नया तर्क है कि तुम्हें गाय इतनी प्यारी है तो सड़कों पर क्यों घूम रही है ? हम तो काट कर खाएँगे. हमारे मजहब में लिखा है. कल कहेंगे कि तुम्हारी बेटी की इतनी इज्जत है तो वह अपना खूबसूरत चेहरा ढके बिना घर से निकलती ही क्यों है? हम तो उठा कर ले जाएँगे. मित्रों, अनुभवी पिता ने अनुभवहीन पुत्र से कहा कि उन्हें समस्या गाय से नहीं है, हमारे अस्तित्व से है. तुम जब तक हो उन्हें तुमसे कुछ ना कुछ समस्या रहेगी. इसलिए हे अर्जुन!! और कोई शंका मत पालो. कृष्ण घंटे भर की क्लास बार-बार नहीं लगाते. 25 साल पहले कश्मीरी हिन्दुओं का सब कुछ छिन गया. वे शरणार्थी कैंपों में रहे पर फिर भी वे आतंकवादी नहीं बने. जबकि कश्मीरी मुस्लिमों को सब कुछ दिया गया. वे फिर भी आतंकवादी बन कर जन्नत को जहन्नुम बना रहे हैं। पिछले सालों की बाढ़ में सेना के जवानों ने जिनकी जानें बचाई वो उन्हीं जवानों को पत्थरों से कुचल डालने पर आमादा हैं. पुत्र इसे ही कहते हैं संस्कार. ये अंतर है धर्म और मजहब में. एक जमाना था जब लोग मामूली चोर के जनाजे में शामिल होना भी शर्मिंदगी समझते थे. और एक ये गद्दार और देशद्रोही लोग हैं जो खुलेआम पूरी बेशर्मी से एक आतंकवादी के जनाजे में शामिल होते हैं. सन्देश साफ़ है कि एक कौम देश और दुनिया की तमाम दूसरी कौमों के खिलाफ युद्ध छेड़ चुकी है. अब भी अगर आपको नहीं दिखता है तो. यकीनन आप अंधे हैं या फिर शत-प्रतिशत देशद्रोही. आज तक हिंदुओं ने किसी को हज पर जाने से नहीं रोका. लेकिन हमारी अमरनाथ यात्रा हर साल बाधित होती है. फिर भी हम ही असहिष्णु हैं!? ये तो कमाल की धर्मनिरपेक्षता है! इसलिए हे अर्जुन, संगठित होओ, सावधान रहो तभी जीवित और सुरक्षित रहोगे.

शनिवार, 13 नवंबर 2021

भारत आंशिक रूप से मुस्लिम राष्ट्र है

मित्रों, क्या आप किसी देश में वैसा होने की सोंच भी सकते हैं जैसा कि भारत में हुआ. जिस देश का बंटवारा धर्म के नाम पर हुआ उस देश में उन्हीं बहुसंख्यकों को संवैधानिक तौर पर दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया गया जिनकी पाकिस्तान के नाम पर न सिर्फ लाखों वर्ग किमी जमीन छीन ली गयी बल्कि लाखों की संख्या में कत्लेआम हुआ. और यह सब हुआ उस आदमी के नाम पर जो बस नाम का हिन्दू था. उसका नाम था मोहन दास करमचंद गाँधी. और हुआ भी उस आदमी की हाथों जो खुद को शिक्षा से ईसाई, संस्कृति से मुस्लिम और दुर्भाग्य से हिन्दू कहता था. यानि कथित पंडित जवाहर लाल नेहरु. मित्रों,अब जब गुरु-चेले दोनों हिन्दुओं से वैरभाव रखते हों तो विचित्र संविधान का निर्माण तो होना ही था. मैं दावे के साथ कहता हूँ कि ऐसा किसी देश के संविधान में नहीं लिखा गया है कि बहुसंख्यक अपने स्कूलों में अपने धर्मग्रंथों का पठन-पाठन नहीं कर सकते लेकिन अल्पसंख्यक ऐसा कर सकते हैं. इतना ही नहीं कानून बनाकर मुसलमानों को जमकर बच्चे पैदा करने की छूट दी गयी जबकि हिदुओं के दूसरा विवाह करने पर रोक लगा दी गई. मुसलमानों को इस बात की भी छूट दी गई कि वे शरीयत का पालन करते रहें. हिन्दुओं के लिए अलग विधान और मुसलमानों के लिए अलग विधान वाह रे संविधान. मित्रों, १९८६ में जब सर्वोच्च न्यायालय ने शरीयत के खिलाफ फैसला दिया तो उसी नेहरु के नाती जिसने भारत के हिन्दुओं को धोखा देने के लिए अपना नाम हिन्दुओं वाला रखा हुआ था मगर शादी ईसाई लड़की से और ईसाई विधि से की थी ने संसद से कानून बनाकर भारत में फिर से शरीयत को सुनिश्चित कर दिया. मित्रों, बाद में सोनिया-मनमोहन की सरकार ने लाल किले से घोषणा ही कर दी कि भारत के संसाधनों पर पहला हक़ अल्पसंख्यकों का है? फिर कहने की कुछ बचा ही कहाँ. सीधे-सीधे हिन्दुओं को दोयम दर्जे का नागरिक कह दिया गया जबकि उनको दोयम दर्जे का नागरिक २६ जनवरी १९५० को ही बना दिया गया था, बस घोषणा २००४ में १५ अगस्त को की गई. मित्रो, यह कितने आश्चर्य की बात है कि हिन्दू मंदिरों पर सरकार का हक़ है फिर भी हिन्दू पुजारी भूखों मर रहे हैं और अगर दक्षिणा में से १०-बीस रूपये जेब में रख लेते हैं तो उनके खिलाफ मुकदमा हो जाता है जबकि मस्जिदों पर सरकार का कोई अधिकार नहीं फिर भी ईमामों को प्रति माह हजारों रूपये का वेतन खुद सरकार देती है. मैं दावे के साथ कहता हूँ कि पूरे भारत में कहीं भी मुसलमानों को हज के लिए सब्सिडी नहीं दी जाती. पैसा मंदिरों का, हिन्दुओं का और हवाई यात्रा मुसलमान कर रहे. मित्रों, इतना ही नहीं पिछले दिनों कांग्रेस पार्टी के नेताओं के उसी प्रकार से पंख निकल आए हैं जैसे कि मौत आने पर चींटियों के निकल आते हैं. पहले सलमान खुर्शीद, फिर राशिद अल्वी, फिर दिग्विजय सिंह और अंत में राहुल गाँधी. कांग्रेस के इन सारे दिग्गज नेता एक के बाद एक हिन्दुओं और हिन्दू संस्कृति को गालियाँ देने में लगे हैं. कोई हिन्दुओं की तुलना दुनिया के सबसे बड़े राक्षस जेहादियों के साथ कर रहा है तो कोई रामभक्तों को ही राक्षस बता रहा है तो कोई हिन्दू धर्म और उसकी आत्मा हिंदुत्व को ही अलग बता रहा है. मित्रों, अभी आजकल में छत्रपति शिवाजी के राज्य महाराष्ट्र में शांति मार्च निकालने के नाम पर जिस प्रकार हिन्दुओं की दुकानों और सम्पत्त्तियों को मुसलमानों ने नुकसान पहुँचाया है और जिस तरह पुलिस मूकदर्शक बनी खुद वीडियो बनाती देखी गयी उससे तो यही साबित होता है कि भारत भी अब पाकिस्तान बन चुका है. शिवसेना को तो अब अपना नाम अली सेना कर लेना चाहिए. मित्रों, भारत को जो आंशिक रूप से २६ जनवरी १९५० से ही मुस्लिम राष्ट्र है अगर पूर्ण रूप से मुस्लिम राष्ट्र बनने से रोकना है तो सबसे पहले अल्पसंख्यक मंत्रालय को समाप्त करना चाहिए और सबके साथ एक समान नीति अपनायी जानी चाहिए, समान नागरिक संहिता लागू करना चाहिए. हमें मोदी जी से इस मामले में इसलिए भी उम्मीद है क्योंकि उन्होंने २०१४ में वादा किया था कि अब तक देश में जो चलता आ रहा है वो नहीं चलेगा.

शनिवार, 6 नवंबर 2021

महंगाई, मोदी और विपक्ष

मित्रों, इस बात में कोई संदेह नहीं कि पिछले कुछ महीनों में भारत की जनता महंगाई से परेशान है और इसमें सबसे ज्यादा योगदान बेशक पेट्रोलियम पदार्थों का रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि सामान की ढुलाई डीजल गाड़ियों से ही होती है. फिर अतिवृष्टि ने भी बेडा गर्क कर रखा है. किसानों को तो इससे भारी क्षति हुई ही है ग्राहकों को भी इन दिनों सब्जी खरीदना काफी महंगा पड रहा है. मेरे जिले के केला किसान तो पूरी तरह से बर्बाद ही हो गए हैं और दुर्भाग्य देखिए कि बिहार में केले की खेती का बीमा भी नहीं होता.उनका दुर्भाग्य तो यह भी है कि २०१४ में हाजीपुर की चुनावी सभा में मोदी जी उनसे उनके सारे दुःख दूर करने का वादा करके भूल गए हैं. मित्रों, खैर सब्जी की महंगाई तो तात्कालिक और मौसमी है लेकिन बांकी वस्तुओं के मूल्य में भी भारी उछाल देखने को मिल रहा है. खासकर सरसों तेल उपभोक्ताओं का तेल निकाल रहा है. इस बीच चाहे कारण जो भी हो दिवाली से ठीक एक दिन पहले केंद्र सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क घटाने का ऐलान किया है। इसके बाद अब तक देश के 22 राज्यों ने मूल्य वर्धित कर (वैट) में कटौती कर दी है। इनमें से अधिकतर बीजेपी शासित राज्य या केंद्र शासित प्रदेश हैं। वहीं, कांग्रेस शासित राज्यों में अब भी वैट की कटौती नहीं की गई है। कुल 14 राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में अब तक वैट नहीं कम किए गए हैं। ऐसे में इन राज्यों में सिर्फ केंद्र की ओर से दी गई राहत ही प्रभावी है। जिन राज्यों ने वैट पर राहत नहीं दी है, उनमें अधिकतर कांग्रेस शासित प्रदेश हैं। ये राज्य महाराष्ट्र, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, केरल, मेघालय, अंडमान और निकोबार, झारखंड, छत्तीसगढ़, पंजाब और राजस्थान हैं। मित्रों, वैट में कटौती नहीं करने पर भाजपा की ओर से विपक्षी दलों की आलोचना की गई है। दिल्ली में तो धरना-प्रदर्शन की भी तैयारी हो रही है. बीजेपी ने कहा है कि विपक्ष पेट्रोल और डीजल की ऊंची कीमतों को लेकर केंद्र पर हमले कर रहा है, लेकिन जब केंद्र सरकार ने उत्पाद शुल्क घटाया तब उन्होंने अपने-अपने शासन वाले राज्यों में वैट क्यों नहीं घटाया? बीजेपी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस शासित राज्य निर्मम और अक्षम हैं। मित्रों, हमारे बिहार में एक कहावत है कि रास्ता दिखाओ तो आगे चलो अन्यथा चुपचाप रहो. यह घोर आश्चर्य की बात है कि जो विपक्ष पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस के मूल्यों को लेकर आसमान सर पे उठाए था को केंद्र सरकार के कदम के बाद सांप सूंघ गया है. शायद उसने केंद्र से ऐसी अपेक्षा ही नहीं की थी या फिर यह भी हो सकता है कि उसे महंगाई में मजा आ रहा हो और वो झूठ-मूठ का घडियाली आंसू बहा रहा हो. विपक्ष के सबसे बड़े नेता राहुल गाँधी स्वयं राजनीति और देश की जनता के दुख-दर्द को गंभीरता से नहीं लेते. जब-तब विदेश के लिए निकल जाते हैं. पता नहीं बेचारे इसके लिए पैसा कहाँ से लाते हैं. बेचारे की जेब तो नोटबंदी के समय से ही फटी पड़ी है. लेकिन हम सिर्फ राहुल जी को ही क्यों दोष दें? एक ओडिशा को छोड़कर सारे विपक्ष शासित प्रदेश अभी भी अपना खजाना भरने में लगे हैं. पहले भरेंगे और फिर खाली कर देंगे. देश-प्रदेश के हित से कोई मतलब तो है नहीं. मित्रों, रही बात केंद्र सरकार की तो उसे सबसे पहले चीन-पाकिस्तान से ईकट्ठे निबटने की तैयारी करनी चाहिए और वो ऐसा कर भी रही है. कोरोना पहले ही काबू में आ चुका है इसलिए अब उसको लेकर चिंता की कोई बात नहीं. निकट-भविष्य में भारत में विदेशी निवेश काफी तेजी से बढेगा. मगर उसका लाभ देश और देश की जनता तो तभी होगा जब सर्वत्र व्याप्त भ्रष्टाचार और अत्यंत सुस्त न्याय प्रणाली को दुरुस्त किया जाएगा. अन्यथा भारत हमेशा मानव विकास सूचकांक के मामले में सबसे निचले पायदान पर बना रहेगा.