बुधवार, 26 अगस्त 2020

मौत की ओर बढती कांग्रेस

 


मित्रों, वर्ष २०१४ का वाकया है. तब कांग्रेस जवाहरलाल नेहरु की १२५ जयंती मना रही थी. तब कांग्रेस बार-बार यह कह रही थी कि कांग्रेस का गौरवपूर्ण इतिहास है. तब मैंने कांग्रेस पार्टी को नसीहत देते हुए लिखा था कि कांग्रेस का इतिहास है इसलिए कांग्रेस अब इतिहास है  तब मुझे लगा था कि कांग्रेस मेरी सलाह पर कान देगी और खुद को बदलेगी. लेकिन दुर्भाग्यवश ऐसा हुआ नहीं. यह कांग्रेस का दुर्भाग्य है कि उनके शीर्ष नेताओं का अहंकार उन्हें हम जैसे छोटे पत्रकारों की बातों पर ध्यान देने से रोकता है. 

मित्रों, यह बड़े ही प्रसन्नता का विषय है कि पहले कांग्रेस के बारे में जो सवाल हम पत्रकार उठाते थे अब वही सवाल उसके भीतर से भी उठने लगे हैं. कांग्रेस पार्टी के २३ बड़े नेताओं ने कांग्रेस नेतृत्व से नेतृत्व छोड़ने की मांग की है जिससे पार्टी के भीतर वास्तविक लोकतंत्र की स्थापना हो सके. यह अलग बात है कि उनकी मांग को फ़िलहाल कांग्रेस नेतृत्व ने  नकार दिया है लेकिन इस तरह की मांग का उठना भी बड़ी बात है. 

मित्रों, आज की कांग्रेस पार्टी है क्या? यह दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की विडंबना है कि आज कांग्रेस पार्टी नेहरु परिवार की पैतृक या पारिवारिक संपत्ति बनकर रह गई है. उसमें वही होता है जो सोनिया गाँधी और उनके बच्चे चाहते हैं. कोई दूसरा प्रधानमंत्री तो बन सकता है लेकिन पार्टी अध्यक्ष नहीं बन सकता है. १९९९ से लेकर अब तक के २१ सालों में कांग्रेस के बस दो ही अध्यक्ष हुए हैं-माता सोनिया और पुत्र राहुल जबकि इस बीच भाजपा में ९ अध्यक्ष हो चुके हैं. कांग्रेस को देखकर ऐसा लगता ही नहीं कि हम किसी लोकतान्त्रिक देश में रहते हैं. बल्कि ऐसा लगता है जैसे कांग्रेस पार्टी में राजतन्त्र चल रहा है जहाँ सिर्फ रानी और उसके बेटे-बेटियों को ही पार्टी-अध्यक्ष बनने का अधिकार है और वो भी जन्मसिद्ध. बांकी लोग सिर्फ आदेश बजाने के लिए हैं, गुलामी करने के लिए हैं. सोनिया परिवार ऑंखें मूंदे पार्टी के नेताओं के बीच रेवड़ी बाँट रहा है जिसके हाथ जो लग जाए. 

मित्रों, वैसे तो खिलाफत आन्दोलन के समय से ही कांग्रेस पार्टी की नीतियाँ हिन्दू विरोधी रही हैं लेकिन जबसे सोनिया गाँधी एंड फैमिली ने कांग्रेस का राजपाट संभाला है तबसे कांग्रेस पार्टी के हिन्दू विरोधी और देशविरोधी रवैये में लगातार आक्रामकता आई है. जब पार्टी सत्ता में थी तब उसने भगवान राम जो भारत के और भारतियों के ह्रदय में बसते हैं को ही उसने काल्पनिक बता दिया था. इतना ही नहीं पार्टी तब चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ समझौता कर रही थी और चंदा प्राप्त कर रही थी. कहना न होगा बदले में भारत की पूरी अर्थव्यवस्था को उसने चीन के हवाले कर दिया. अभी जब भारत का चीन के साथ तनाव चल रहा है तब कांग्रेस पार्टी भारत सरकार और भारतीय सेना के खिलाफ ही शाब्दिक युद्ध छेड़े हुए है. इतना ही नहीं कश्मीर में वो फिर से धारा ३७० लागू करने की मांग कर रही है और ऐसे करते हुए वो भारत की नहीं बल्कि पाकिस्तान की राजनैतिक पार्टी दिख रही है. 

मित्रों, इसके बावजूद कुछ पत्रकार और बुद्धिजीवी बन्धु भारत सरकार और नरेन्द्र मोदी जी पर आरोप लगा रहे हैं कि वो कांग्रेस को पूरी तरह से समाप्त कर देना चाहते हैं. कांग्रेस अगर अपनी स्वाभाविक मृत्यु की ओर अग्रसर है तो उसके लिए भाजपा या प्रधानमंत्री कैसे जिम्मेदार हो गए? क्या कांग्रेस को मजबूत करना कांग्रेसियों के बदले भाजपा की जिम्मेदारी है? क्या चुनाव लड़नेवाला कोई उम्मीदवार जनता से यह कहेगा कि मुझे नहीं मेरे निकटतम प्रतिद्वंद्वी को वोट दीजिए और क्या उसका ऐसा करना ठीक होगा? नाच न जाने आँगन टेढ़ा. सारी नीतियाँ बहुसंख्यक विरोधी. कोई सलाह दे तो सुनना भी नहीं है और दोष विपक्षी का हो गया. अभी तो फिर भी ५० सीटें लोकसभा में आ रही हैं ऐसा ही चलता रहा और ऐसे ही चलते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब कांग्रेस बसपा और राजद जैसी पारिवारिक पार्टी की तरह शून्य सीटें प्राप्त करेगी और हमें भी उस दिन का बेसब्री से इंतजार होगा. वैसे मेरा बेटा मुझसे पूछ रहा है कि पापा कांग्रेस मरेगी तो भोज भी होगा क्या.

शनिवार, 8 अगस्त 2020

शम्बूक वध और सीता परित्याग की सत्यता

मित्रों, माता काली के महानतम भक्त रामकृष्ण परमहंस कहा करते थे कि सारे ग्रन्थ जूठे और झूठे हैं. सबमें मनमाफिक संशोधन किए गए हैं. अब अगर रामकृष्ण कह रहे हैं तो वो सत्य तो होगा ही. वास्तव में हुआ भी यही है. हम जानते हैं कि पहले ग्रंथों को लिखने की सुविधा नहीं थी. तब पीढ़ी-दर-पीढ़ी ग्रंथों को कंठस्थ किया-कराया जाता था. ऐसे में गलतियों और भिन्नताओं की सम्भावना भी पूरी-पूरी रहती थी. बाद में जब ग्रन्थ लिखे जाने लगे तो इस कारण उनकी कई-कई प्रतियाँ हो गईं और विद्वानों के बीच समस्या उत्पन्न हो गई कि किस प्रति को प्रामाणिक माना जाए. यह अब सर्वमान्य तथ्य है कि पूर्व मध्य काल में भारतीय धर्म और राजनीति के इतिहास के साथ छेड़खानी की गई जिसके परिणामस्वरूप काफी भ्रम फैल गया। यह वही समय था जब उत्तर भारत में बौद्ध और जैन धर्म का बोलबाला था. बौद्धों और जैनों ने क्षत्रियों को चारों वर्णों में सबसे ऊपर कर दिया क्योंकि भगवान बुद्ध और महावीर क्षत्रिय थे जबकि हम जानते हैं कि वर्ण-व्यवस्था में क्षत्रिय ब्राह्मणों के बाद दूसरे स्थान पर आते हैं . जिस बुद्ध का पुनर्जन्म में विश्वास नहीं था उनके पूर्व जन्मों को लेकर जातक कथाओं की झड़ी लगा दी गयी.  जो बुद्ध और महावीर मूर्ति पूजा के घोर विरोधी थे उनकी जमकर मूर्ति पूजा होने लगी. इस काल में लगभग सारे हिन्दू ग्रंथों में जमकर छेड़छाड़ की गई. यहाँ हम आपको बता दें कि पहले रामायण 6 कांडों का होता था, उसमें उत्तरकांड नहीं होता था। बौद्धकाल में उसमें राम और सीता के बारे में झूठ लिखकर उत्तरकांड जोड़ दिया गया। उस काल में भी इस कांड पर विद्वानों ने घोर विरोध जताया था, लेकिन कालांतर में उत्तरकांड के चलते साहित्यकारों, कवियों और उपन्यासकारों को लिखने के लिए एक नया मसाला मिल गया और इस तरह राम को धीरे-धीरे बदनाम कर दिया गया। इसी बौद्ध काल में रामायण में शम्बूक-वध प्रकरण जोड़कर राम को न्यायी से अन्यायी राजा बना दिया गया.

मित्रों, आज राम को इन्हीं दो बातों के लिए बदनाम किया जाता है. पहला उन्होंने सीता का परित्याग कर दिया था. और दूसरा उन्होंने शम्बूक नामक शूद्र तपस्वी की हत्या कर दी थी. हद हो गई मिथ्यालाप की. राम ने सीता का परित्याग कर दिया था? इससे पहले यह प्रसंग भी जोड़ दिया गया कि राम ने सीता की अग्नि परीक्षा ली थी. डाल दो किसी स्त्री को आग में. क्या वो जीवित बचेगी? फिर ऐसा कैसे हो सकता है कि सीता जी जीवित बच गईं? तात्पर्य यह कि पूरा प्रसंग ही असत्य और मनगढ़ंत है.  वाल्मीकि रामायण, जो निश्‍चित रूप से बौद्ध धर्म के अभ्युदय के पूर्व लिखी गई थी, समस्त विकृतियों से अछूती है। इसमें सीता परित्याग, शम्बूक वध, अग्नि परीक्षा आदि कुछ भी नहीं था। यह रामायण युद्धकांड (लंकाकांड) में समाप्त होकर केवल 6 कांडों का था। इसमें उत्तरकांड बाद में जोड़ा गया। शोधकर्ता कहते हैं कि हमारे इतिहास की यह सबसे बड़ी भूल थी कि बौद्धकाल में उत्तरकांड लिखा गया और इसे वाल्मीकि रामायण का हिस्सा बना दिया गया। हो सकता है कि यह उस काल की सामाजिक मजबूरियां रही हों लेकिन सच को इस तरह बिगाड़ना कहां तक उचित है? सीता ने न तो अग्निपरीक्षा दी और न ही पुरुषोत्तम राम ने उनका कभी परित्याग किया।

मित्रों, सवाल उठता है कि जिस सीता के बिना राम एक पल भी रह नहीं सकते और जिसके लिए उन्होंने विश्व के सबसे शक्तिशाली राजा से युद्ध लड़ा उसे वे किसी व्यक्ति और समाज के कहने पर छोड़ सकते हैं? राम को महान आदर्श चरित और भगवान माना जाता है। वे किसी ऐसे समाज के लिए सीता को कभी नहीं छोड़ सकते, जो दकियानूसी सोच में जी रहा हो? इसके लिए उन्हें फिर से राजपाट छोड़कर वन में जाना होता तो वे चले जाते। शोधकर्ता मानते हैं कि रामायण का उत्तरकांड कभी वाल्मीकिजी ने लिखा ही नहीं जिसमें सीता परित्याग की बात कही गई है। रामकथा पर सबसे प्रामाणिक शोध करने वाले फादर कामिल बुल्के का स्पष्ट मत है कि 'वाल्मीकि रामायण का 'उत्तरकांड' मूल रामायण के बहुत बाद की पूर्णत: प्रक्षिप्त रचना है।' (रामकथा उत्पत्ति विकास- हिन्दी परिषद, हिन्दी विभाग प्रयाग विश्वविद्यालय, प्रथम संस्करण 1950) लेखक के शोधानुसार 'वाल्मीकि रामायण' ही राम पर लिखा गया पहला ग्रंथ है, जो निश्चित रूप से बौद्ध धर्म के अभ्युदय के पूर्व लिखा गया था अत: यह समस्त विकृतियों से अछूता था। यह रामायण युद्धकांड के बाद समाप्त हो जाती है। इसमें केवल 6 ही कांड थे, लेकिन बाद में मूल रामायण के साथ बौद्ध काल में छेड़खानी की गई और कई श्लोकों के पाठों में भेद किया गया और बाद में रामायण को नए स्वरूप में उत्तरकांड को जोड़कर प्रस्तुत किया गया। बौद्ध और जैन धर्म के अभ्युदय काल में नए धर्मों की प्रतिष्ठा और श्रेष्ठता को प्रतिपा‍दित करने के लिए हिन्दुओं के कई धर्मग्रंथों के साथ इसी तरह का हेर-फेर किया गया। इसी के चलते रामायण में भी कई विसंगतियां जोड़ दी गईं। बाद में इन विसंगतियों का ही अनुसरण किया गया। कालिदास, भवभूति जैसे कवि सहित अनेक भाषाओं के रचनाकारों सहित 'रामचरित मानस' के रचयिता ने भी भ्रमित होकर उत्तरकांड को लव-कुश कांड के नाम से लिखा। इस तरह राम की बदनामी का विस्तार हुआ।

मित्रों, हिन्दू धर्म के आलोचक खासकर 'राम' की जरूर आलोचना करते हैं, क्योंकि उन्हें मालूम है कि 'राम' हिन्दू धर्म का सबसे मजबूत आधार स्तंभ है। इस स्तंभ को गिरा दिया गया तो हिन्दुओं को धर्मांतरित करना और आसान हो जाएगा। इसी नी‍ति के चलते तथाकथित धर्मनिरपेक्ष ताकतों के साथ मिलकर वे राम के विरुद्ध असत्य का अभियान चलाते रहते हैं. अब हम बात करेंगे शम्बूक प्रकरण की.  यह सर्वविदित है कि चौदह वर्षों के वनवास में अंतिम दो सालों को छोड़कर राम के बारह वर्ष आदिवासियों और दलितों के बीच बीते। शुरुआत होती है बालसखा व विद्यालय के मित्र रहे निषादराज गुह से मिलन से. फिर केवट प्रसंग आता है। इसके बाद चित्रकूट में रहकर उन्होंने धर्म और कर्म की शिक्षा ली। यहीं पर वाल्मीकि आश्रम और मांडव्य आश्रम था। चित्रकूट के पास ही सतना में अत्रि ऋषि का आश्रम था। इनमें से वाल्मीकि के बारे में माना जाता है कि वे मुसहर जाति से थे. राम उनके चरण-स्पर्श करते हैं और उनसे आशीर्वाद लेते हैं. बाद में वही वाल्मीकि रामायण की रचना करते हैं.

मित्रों, फिर सीता-हरण के बाद उनकी शबरी से भेंट होती है जो भील जाति की है. राम शबरी की जूठन भी बड़े ही प्रेम से खाते हैं. राम ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने धार्मिक आधार पर संपूर्ण अखंड भारत के दलित और आदिवासियों को मुख्यधारा में ला दिया था। इस संपूर्ण क्षेत्र के आदिवासियों में जहाँ राम ने अपना वनवास बिताया था, आज भी राम और हनुमान को सबसे ज्यादा पूजनीय माना जाता है। लेकिन अंग्रेज काल में ईसाइयों ने भारत के इसी हिस्से में धर्मांतरण का कुचक्र चलाया और राम को दलितों-आदिवासियों से काटने के लिए सभी तरह की साजिश की, जो आज भी जारी है।

मित्रों, इसी प्रकार तुलसीदासजी ने रामचरित मानस में समुद्र के मुख से कहलवाया है कि- 'ढोल गवार शुद्र पशु नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी।' ऐसा श्रीराम ने अपने मुंह से कभी नहीं कहा। हो सकता है आज कोई लेखक अपनी किसी रचना में ऐसा राम से ही कहलवा दे. तुलसीदास द्वारा लिखे गए इस एक वाक्य के कारण राम की बहुत बदनामी हुई। कोई यह नहीं सोचता कि जब कोई लेखक अपने तरीके से रामायण लिखता है तो उस समय उस पर उस काल की परिस्थिति और अपने विचार ही हावी रहते हैं। फिर ऐसा समुद्र ने विनय भाव से कहा है. ठीक वैसे ही जैसे तुलसी अपने बारे में विनय भाव से कहते है-मो सम कौन कुटिल, खल, कामी? तो क्या तुलसी सचमुच महापतित थे या हो गए?

मित्रों, अब आप ही बताईये कि जो राम वनवास के चौदह में से बारह सालों तक दलितों-आदिवासियों के मध्य रहे और उनकी रक्षा की, जिस राम ने वाल्मीकि के चरण-रज माथे से लगाकर आशीर्वाद लिया, जिस राम ने शबरी के जूठन को भी निज माता का प्रसाद समझकर ग्रहण किया वही राम एक निर्दोष व्यक्ति को सिर्फ इसलिए मार डालेगे कि वो वेद पाठ कर रहा है जबकि वेदों की रचना में भी अनगिनत शूद्रों ने अपना योगदान दिया है. अथर्ववेद के रचनाकार महर्षि अथर्वा कौन थे? शूद्र ही तो थे. हद हो गई झूठ बोलने की और राम को बदनाम करने की. 

मित्रों, इसी प्रकार एक राम विरोधी कन्नड़ गायक तम्बूरी दासय्या जो कथा गाते हैं उसमें सीता को रावण की बेटी बताया गया है. हंसिये मत और हंसी को बचाकर रखिए. इस कथा में रावण जोर से छींकता है और उसकी छींक से सीताजी का जन्म होता है. इन्होने तो नया मेडिकल साईंस ही रच दिया. छींकने से बच्चा पैदा हो गया और वो भी एक पुरुष के. आगे से आप भी जब भी छींकें तो सचेत रहें. खासकर पुरुष. इसी प्रकार अगर कोई भर्ता को भ्राता पढ़-सुन ले और यह कहना शुरू कर दे कि राम और सीता तो भाई-बहन थे तो इसमें रामायणकार का क्या दोष?

मित्रों, अंत में मैं यह बताना चाहूँगा कि इतिहास की घटनाओं की सत्यता को प्रमाणित करना लगभग असंभव होता है. क्या हम जानते हैं कि सुभाष बाबू विमान-दुर्घटना में मरे थे या बच गए थे? क्या कोई बता सकता है कि शास्त्री जी की मृत्यु का क्या कारण था? इन घटनाओं की छोडिये इसी साल १४ जून को सुशांत सिंह राजपूत की मौत कैसे हुई क्या कोई बता सकता है? करनेवाले इतिहासकार भारत के बंटवारे की भी मनमानी व्याख्या कर रहे हैं और कह रहे हैं कि हिन्दुओं ने भारत का बंटवारा करवाया। मुसलमानों ने नहीं हिन्दुओं ने अलग देश की मांग की थी. हद हो गई उल्टा इतिहास लिखा जा रहा है. विकीपीडिया कहता है कि २०२० के दिल्ली के दंगे हिन्दुओं की सोंची-समझी रणनीति के तहत हुए.  ताहिर हुसैन दंगाई नहीं है पीड़ित है. शिक्षाविद मधु किश्वर विकिपीडिया पर अपनी जीवनी को बदलना चाहती हैं क्योंकि उनके बारे गलत-सलत लिखा हुआ है लेकिन बदल नहीं सकती क्योंकि विकिपीडिया को प्रमाण चाहिए। ये तो वही बात हो गई कि डॉक्टर ने मरीज को मरा हुआ बता दिया. मरीज उठ बैठा और चिल्लाया कि वो जीवित है. तब उसकी पत्नी ने उसे डांट लगाई चुप रहो तुम डॉक्टर से ज्यादा जानते हो क्या? अब आप ही बताईइ किसका सच सच है? पूर्णिमा जी का या विकिपीडिया का? पालघर की अफवाह सही थी या संत सही थे? कल कोई विकिपीडिया पर लिख दे कि बगदादी जैनी था इसलिए अहिंसा का पुजारी था, ओसामा बिन लादेन कृष्ण भगवान का भक्त और परम भगवत था जिसने गौ रक्षा के लिए हथियार उठाया था तो करोड़ों साल बाद लोग कदाचित इसे ही सच मानेंगे. 

मित्रों, कहने का मतलब यह कि राम ने सीता परित्याग और शम्बूक-हत्या (मैं इसे हत्या ही नहीं जघन्य हत्या मानता हूँ बशर्ते यह सत्य हो) सत्य है या नहीं इसका पता लगाना आज सम्भव नहीं है क्योंकि राम को हुए करोड़ों साल हो चुके हैं. ऐसे में एक ही रास्ता हमारे समक्ष बचता है कि जो-जो कर्म राम के स्वाभाव से मेल नहीं खाते उनको असत्य और चरित्र-हनन का निंदनीय प्रयास मान लिया जाए.

बुधवार, 5 अगस्त 2020

मंदिर निर्माण से राष्ट्र निर्माण की ओर प्रयाण


मित्रों, ब्रह्माण्ड नायक मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के मंदिर निर्माण के महती कार्य की आज भारत के प्रधानमंत्री परम आदरणीय नरेन्द्र मोदी के कर कमलों से शुरुआत हो चुकी है. इस पूरे कार्यक्रम के दौरान सबसे अच्छी बात यह रही कि सारे वक्ताओं ने जिनमें प्रधानमंत्री मोदी और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत भी शामिल थे, इस बात पर जोर दिया कि मंदिर निर्माण से भारत निर्माण की तरफ प्रयाण किया जाए. इसी दृष्टि को दृष्टिगत रखते हुए की दूसरे धर्मों को मानने वालों को भी समारोह में निमंत्रित किया गया था।

मित्रों, प्रधानमंत्री मोदी ने अपने प्रसिद्ध नारे सबका साथ सबका विकास समाहित करते हुए अपने मंत्रमुग्ध कर देनेवाले संबोधन में कहा कि राम सबके है और राम सबमें हैं. हिन्दू मन तो हमेशा से यही मानता रहा है कि संसार के सारे धर्मों और पंथों को माननेवालों का लक्ष्य एक ही ईश्वर है-तात्पर्य यह कि रुचिनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम् । नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव ।। जैसे विभिन्न नदियाँ भिन्न भिन्न स्रोतों से निकलकर समुद्र में मिल जाती हैं, उसी प्रकार हे प्रभो! भिन्न भिन्न रुचि के अनुसार विभिन्न टेढ़े-मेढ़े अथवा सीधे रास्ते से जानेवाले लोग अन्त में तुझमें ही आकर मिल जाते हैं। (श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय ११, श्लोक-२८)

मित्रों, कहने का तात्पर्य यह है कि भारत अनंत काल से ईश्वर की एकत्वता का प्रतिपादक रहा है. भले ही दूसरे धर्मवाले ऐसा मानें कि उसका ईश्वर अलग और सर्वश्रेष्ठ है हिन्दूं धर्म के अनुयायियों ने कभी उनके प्रति विद्वेष की भावना अपने मन में नहीं रखी और सदा-सर्वदा उनका तू वसुधैव कुटुम्बकम् में अटूट विश्वास बना रहा. न जाने कितने हूण, शक, कुषाण, यूनानी, ईरानी प्राचीन काल में भारत आए और भारतीय सनातन समाज ने उनको इस तरह अपने भीतर प्रेमपूर्वक समाहित कर लिया कि आज कोई नहीं बता सकता कि उनका मूल क्या था.

मित्रों, मोदी जी ने अपने भाषण में आगे कहा कि जहाँ तक राम का प्रश्न है तो राम भारत के कण-कण में हैं, हर मन में हैं और न सिर्फ भारत बल्कि इण्डोनेशिया, कम्बोडिया, लाओस, मलेशिया, ईरान में भी पूजित हैं. राम भारत की एकता का सबसे सशक्त साधन हैं, कारण हैं. वहीं आरएसएस के सरसंघचालक मोहनराव भागवत ने अपने भाषण में कहा कि हमें अपने मन में भी राम का एक मंदिर बनाना है और उसमें राम के महान आदर्शों की स्थापना करनी है।
मित्रों, निश्चित रूप से आज भारत के इतिहास में नए अध्याय की शुरुआत हुई है. आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने हिंदी साहित्य के इतिहास में भक्तिकाल की व्याख्या करते हुए कहा था कि अपने पौरुष से हताश जाति के लिए भगवान की शक्ति और करुणा की ओर ध्यान ले जाने के अतिरिक्त दूसरा मार्ग ही क्या था? आज उसी हताश जाति के मनोबल और आत्मसम्मान की पुनर्स्थापना का दिन है. लेकिन जैसा कि मैंने ऊपर कहा कि हिन्दू कभी किसी को पराया नहीं मानता और न ही किसी का बुरा चाहता है बल्कि वो  तो भगवान से हमेशा प्रार्थना करता है कि सर्वे भवन्तु सुखिनः मोदी जी का आज का आह्वान इसी जीवन-सूत्र की पुष्टि करता है.  

मित्रों, कहने का आशय यह है कि मंदिर-निर्माण के साथ-साथ मोदी जी ने राष्ट्र-निर्माण का भी महान संकल्प लिया है. इस महान कार्य को वे अकेले नहीं कर सकते इसलिए हम सारे भारतवासियों को भी इसके लिए अनथक परिश्रम करना होगा. उनके हाथ मजबूत करने होंगे। इस समय भारत चारों तरफ से संकटों और चुनौतियों से घिरा हुआ है. कोरोना के कारण हमारी अर्थव्यवस्था बर्बाद हो चुकी है. रामजी के आशीर्वाद से उसे पटरी पर लाना  है और इस तरह से पटरी पर लाना है जिससे भारत एक बार फिर से दुनिया की सबसे बड़ी जीडीपी वाला विकसित राष्ट्र बन जाए. इसके साथ ही चीन को भी धूल चटाना है जिसकी सेनाएं इस समय हमारी सीमाओं पर खड़ी हैं. जय सियाराम, जय जय राम।

रविवार, 2 अगस्त 2020

५ अगस्त को समाप्त होगा मेरे राम का वनवास


मित्रों, यह बड़े ही हर्ष का विषय है कि ५ अगस्त से अयोध्या में मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम के मंदिर का निर्माण शुरू होनेवाला है. हर्ष का विषय यह भी है कि मंदिर का शिलान्यास स्वयं भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी करने जा रहे हैं. यह हमारा दुर्भाग्य रहा कि जिस स्थान पर भगवान राम ने जन्म लिया उस स्थान पर ५०० सालों तक एक मस्जिद खड़ी रही और हम कुछ भी नहीं कर पाए. बार-बार हिन्दुओं और सिखों ने उसपर कब्ज़ा करने के प्रयास किए, शहीद हुए लेकिन सफल नहीं हो पाए.

मित्रों, बाबर के सेनापति मीर बांकी द्वारा राम मंदिर तोड़कर मस्जिद बना देना हिन्दू धर्म के पराभव का भी प्रतीक है. आत्मघाती जातिप्रथा के कारण सदियों तक हिन्दुओं की तरफ से सिर्फ राजपूत लड़ते, मरते और हारते रहे. जातिप्रथा और हमारी आपसी फूट के ही चलते पहले मुट्ठीभर अरबी-तुर्क-मंगोल-पठान और फिर बाद में कुछेक हजार अंग्रेजों ने विशालकाय भारतीय उपमहाद्वीप पर कब्ज़ा कर लिया और हिन्दुओं को सदियों तक उनकी गुलामी करनी पड़ी.

मित्रों, १९४७ में आजादी मिलने के बाद भी देश का दुर्भाग्य रहा कि देश की सत्ता ऐसे लोगों के हाथों में रही जिनका न तो हिन्दू धर्म में विश्वास था और न ही जिनकी राम में किंचित आस्था थी. वे लोग ऐसे लोग थे जिन्होंने सिर्फ हिन्दुओं को बेवकूफ बनाने के लिए अपने नाम के आगे पंडित लगा रखा था. यहाँ तक कि सोनिया-मनमोहन की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में लिखकर दे दिया कि राम तो कभी हुए ही नहीं, पूरी रामकथा ही काल्पनिक है.

मित्रों, जो राम भारत के जन-जन में, कण-कण में समाए हुए हैं. जो राम प्रत्येक हिन्दू के लिए उदाहरण हैं कि एक पुत्र को कैसा आचरण करना चाहिए, एक पति को किस तरह अपनी पत्नी की रक्षा करनी चाहिए, एक मित्र को किस तरह मित्र का ख्याल रखना चाहिए, एक शिष्य को किस प्रकार गुरु की सेवा करनी चाहिए और गुरु आज्ञा का पालन करना चाहिए, एक राजा को किस तरह अपनी प्रजा के सुख-दुःख में ही अपना सुख-दुःख मानना चाहिए और एक सेनापति को कैसे अपनी सेना के छोटे-से-छोटे सैनिक की चिंता करनी चाहिए उस राम को काल्पनिक बता दिया!  फिर ऐसे लोग कैसे राम मंदिर निर्माण का समर्थन कर सकते थे?

मित्रों, इसमें कोई संदेह नहीं कि अगर हिन्दू एक नहीं होते तो अभी भी राम मंदिर का निर्माण नहीं हो पाता. खैर राम मंदिर से जुडी सारी बाधाएँ अब दूर हो चुकी हैं और ५ अगस्त से राम के भव्य मंदिर का निर्माण आरम्भ हो जाएगा. मंदिर निर्माण को लेकर दुनियाभर के हिन्दुओं के मन में जो उत्साह है वह वर्णनातीत है. तथापि मैं सोंचता हूँ कि अगर हिन्दू अपने मन-मंदिर में भी राम को स्थापित कर ले और राम के आदर्शों पर अमल करे तो यह भारत-भूमि निश्चित रूप से स्वर्गादपि गरीयसी हो जाए. हिन्दू समाज में व्याप्त हो रही अव्यवस्था और वासनासक्तता का अगर कोई ईलाज है तो वह राम हैं और केवल राम हैं.

मित्रों, कुछ लोगों के मन में मेरे राम को लेकर कुछ सवाल भी हैं. दरअसल गुप्त काल में हमारे सारे धर्मग्रंथों में कुछे लफंगों ने अपने मनमुताबिक प्रसंग और श्लोक डाल दिए. मैं वाल्मीकि रामायण में शम्बूक-वध  और सीता-निर्वासन को जोड़कर राम की छवि को मलिन करने के ऐसे सारे प्रयासों का विरोध करता हूँ. आश्चर्य है कि जो राम वाल्मीकि जो जन्मना मुसहर थे, के चरण-स्पर्श करते हैं और आशीर्वाद लेते हैं, निषादराज गुह को गले लगाते हैं और भीलनी शबरी की जूठन खाते हैं वे एक ऋषि की सिर्फ इसलिए कैसे हत्या कर सकते हैं कि वो वेदपाठ कर रहा होता है? जो राम जिस पत्नी के लिए दुनिया के सबसे शक्तिशाली राजा से भयंकर युद्ध करते हैं वही राम अपनी उसी पत्नी का परित्याग भला कैसे कर सकते हैं? जिसने भी वाल्मीकि रामायण में यह प्रक्षिप्त जोड़ा है उसने गर्हित कर्म किया है और उसके इस कुकर्म की जितनी भी निंदा की जाए कम है.

मित्रों, इसलिए मैं बार-बार कहता हूँ कि मेरा राम वो राम है जो तुलसीकृत रामचरितमानस में वर्णित है. मेरा राम निरा अहिंसावादी नहीं है बल्कि सिंहासन पर बैठते ही धरती को निशिचरहीन करने की प्रतिज्ञा धारण करनेवाला राम है. मेरा राम निषाद गुह का बालसखा है. प्रेम की प्रतिमूर्ति है. मेरे राम में कोई अवगुण नहीं है. मेरा राम तीनों लोकों का स्वामी होते हुए भी विनम्रता की साक्षात् प्रतिमूर्ति है,अभिमान तो उसको छू तक नहीं गया है. मेरे राम जितना उदार और उदात्त कोई दूसरा हो ही नहीं सकता. वह अहैतुकी कृपा करता है. मेरे राम का न तो अपना कोई सुख है और न ही अपना कोई दुःख है मेरे राम के लिए उनकी प्रजा का सुख ही सुख है और प्रजा का दुःख ही दुःख. मेरे ऐसे राम का भव्य मंदिर बन रहा है. निश्चित रूप से इससे ५०० वर्षों से हताश-निराश हिन्दू मन में असीम उत्साह का संचार होगा लेकिन जैसा कि मैं इस आलेख में एक बार पहले भी कह चुका हूँ कि कितना अच्छा होता कि सारे हिन्दू राम की अच्छाइयों को भी अपना लेते, अपने जीवन में उतार लेते. फिर पूरा हिन्दू-समाज सच्चे अर्थों में राममय हो जाता. खैर! फिलहाल तो जय श्रीराम के नारे लगाने का समय है. मेरे राम की घर वापसी जो हो रही है. मेरे राम का ५०० साल पुराना वनवास समाप्त हो रहा है. तो बंधुओं आईये हम सारे हिन्दू जाति-पाति, ऊंच-नीच, भेदभाव को सरयू की उफनती धारा में प्रवाहित करते हुए नारा लगायें-जय श्रीराम, जिससे पूरी धरती प्रकम्पित हो उठे, पूरा ब्रह्माण्ड डोलायमान हो जाए.