मित्रों, वर्ष २०१४ का वाकया है. तब कांग्रेस जवाहरलाल नेहरु की १२५ जयंती मना रही थी. तब कांग्रेस बार-बार यह कह रही थी कि कांग्रेस का गौरवपूर्ण इतिहास है. तब मैंने कांग्रेस पार्टी को नसीहत देते हुए लिखा था कि कांग्रेस का इतिहास है इसलिए कांग्रेस अब इतिहास है तब मुझे लगा था कि कांग्रेस मेरी सलाह पर कान देगी और खुद को बदलेगी. लेकिन दुर्भाग्यवश ऐसा हुआ नहीं. यह कांग्रेस का दुर्भाग्य है कि उनके शीर्ष नेताओं का अहंकार उन्हें हम जैसे छोटे पत्रकारों की बातों पर ध्यान देने से रोकता है.
मित्रों, यह बड़े ही प्रसन्नता का विषय है कि पहले कांग्रेस के बारे में जो सवाल हम पत्रकार उठाते थे अब वही सवाल उसके भीतर से भी उठने लगे हैं. कांग्रेस पार्टी के २३ बड़े नेताओं ने कांग्रेस नेतृत्व से नेतृत्व छोड़ने की मांग की है जिससे पार्टी के भीतर वास्तविक लोकतंत्र की स्थापना हो सके. यह अलग बात है कि उनकी मांग को फ़िलहाल कांग्रेस नेतृत्व ने नकार दिया है लेकिन इस तरह की मांग का उठना भी बड़ी बात है.
मित्रों, आज की कांग्रेस पार्टी है क्या? यह दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की विडंबना है कि आज कांग्रेस पार्टी नेहरु परिवार की पैतृक या पारिवारिक संपत्ति बनकर रह गई है. उसमें वही होता है जो सोनिया गाँधी और उनके बच्चे चाहते हैं. कोई दूसरा प्रधानमंत्री तो बन सकता है लेकिन पार्टी अध्यक्ष नहीं बन सकता है. १९९९ से लेकर अब तक के २१ सालों में कांग्रेस के बस दो ही अध्यक्ष हुए हैं-माता सोनिया और पुत्र राहुल जबकि इस बीच भाजपा में ९ अध्यक्ष हो चुके हैं. कांग्रेस को देखकर ऐसा लगता ही नहीं कि हम किसी लोकतान्त्रिक देश में रहते हैं. बल्कि ऐसा लगता है जैसे कांग्रेस पार्टी में राजतन्त्र चल रहा है जहाँ सिर्फ रानी और उसके बेटे-बेटियों को ही पार्टी-अध्यक्ष बनने का अधिकार है और वो भी जन्मसिद्ध. बांकी लोग सिर्फ आदेश बजाने के लिए हैं, गुलामी करने के लिए हैं. सोनिया परिवार ऑंखें मूंदे पार्टी के नेताओं के बीच रेवड़ी बाँट रहा है जिसके हाथ जो लग जाए.
मित्रों, वैसे तो खिलाफत आन्दोलन के समय से ही कांग्रेस पार्टी की नीतियाँ हिन्दू विरोधी रही हैं लेकिन जबसे सोनिया गाँधी एंड फैमिली ने कांग्रेस का राजपाट संभाला है तबसे कांग्रेस पार्टी के हिन्दू विरोधी और देशविरोधी रवैये में लगातार आक्रामकता आई है. जब पार्टी सत्ता में थी तब उसने भगवान राम जो भारत के और भारतियों के ह्रदय में बसते हैं को ही उसने काल्पनिक बता दिया था. इतना ही नहीं पार्टी तब चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ समझौता कर रही थी और चंदा प्राप्त कर रही थी. कहना न होगा बदले में भारत की पूरी अर्थव्यवस्था को उसने चीन के हवाले कर दिया. अभी जब भारत का चीन के साथ तनाव चल रहा है तब कांग्रेस पार्टी भारत सरकार और भारतीय सेना के खिलाफ ही शाब्दिक युद्ध छेड़े हुए है. इतना ही नहीं कश्मीर में वो फिर से धारा ३७० लागू करने की मांग कर रही है और ऐसे करते हुए वो भारत की नहीं बल्कि पाकिस्तान की राजनैतिक पार्टी दिख रही है.
मित्रों, इसके बावजूद कुछ पत्रकार और बुद्धिजीवी बन्धु भारत सरकार और नरेन्द्र मोदी जी पर आरोप लगा रहे हैं कि वो कांग्रेस को पूरी तरह से समाप्त कर देना चाहते हैं. कांग्रेस अगर अपनी स्वाभाविक मृत्यु की ओर अग्रसर है तो उसके लिए भाजपा या प्रधानमंत्री कैसे जिम्मेदार हो गए? क्या कांग्रेस को मजबूत करना कांग्रेसियों के बदले भाजपा की जिम्मेदारी है? क्या चुनाव लड़नेवाला कोई उम्मीदवार जनता से यह कहेगा कि मुझे नहीं मेरे निकटतम प्रतिद्वंद्वी को वोट दीजिए और क्या उसका ऐसा करना ठीक होगा? नाच न जाने आँगन टेढ़ा. सारी नीतियाँ बहुसंख्यक विरोधी. कोई सलाह दे तो सुनना भी नहीं है और दोष विपक्षी का हो गया. अभी तो फिर भी ५० सीटें लोकसभा में आ रही हैं ऐसा ही चलता रहा और ऐसे ही चलते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब कांग्रेस बसपा और राजद जैसी पारिवारिक पार्टी की तरह शून्य सीटें प्राप्त करेगी और हमें भी उस दिन का बेसब्री से इंतजार होगा. वैसे मेरा बेटा मुझसे पूछ रहा है कि पापा कांग्रेस मरेगी तो भोज भी होगा क्या.
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