रविवार, 30 सितंबर 2018

राफेल और राहुल गाँधी

मित्रों, हो सकता है कि आप भी कुछ महीने पहले तक राफेल नाम से नावाकिफ रहे हों. मैं था और नहीं भी था. क्योंकि मेरे लिए तब राफेल का मतलब राफेल नडाल से था आज भी है लेकिन कम है. अब आपकी तरह मेरे लिए भी राफेल का मतलब एक लड़ाकू विमान ज्यादा है जो दुनिया में सबसे उन्नत श्रेणी का है, जो एक साथ हवा से जमीन, हवा और जल पर कहीं भी हर तरह से अस्त्र से हमले कर सकता है और हमले का जवाब भी दे सकता है. अर्थात यह एक ऐसा विमान है जिसको खरीदना वायु सेना के लिए अत्यावश्यक था. फिर विवाद है कहाँ?
मित्रों, विवाद है इसके दाम में और अनिल अम्बानी को इसका ठेका दिलवाने में. जहाँ तक मैं समझता हूँ कि पिछले दिनों आज तक चैनल पर जिस तरह से इसके मूल्य को लेकर रिपोर्ट आ चुकी है कि यह यूपीए के मुकाबले १० प्रतिशत कम दाम पर ख़रीदा गया है इस विवाद को समाप्त ही कर देना चाहिए. नैतिकता का यही तकाजा भी है. वैसे भारत सरकार ने भी फ्रांस की सरकार से इसके दाम उजागर करने की अनुमति मांगी है.
मित्रों, अब विवाद बचता है कि इसके ठेके में अनिल अम्बानी कैसे घुसे? इस बात पर मैं शुरू से मोदी सरकार की आलोचना करता रहा हूँ कि वो सरकारी कंपनियों की कीमत पर पूंजीपतियों को बढ़ावा दे रही है जिससे बचा जाना चाहिए था. वैसे शोध का विषय यह भी है कि अनिल इसमें कब घुसे.
मित्रों, आपको कांग्रेस और भाजपा की आर्थिक नीतियों को कोई अंतर दीखता है क्या? मुझे तो वाजपेयी के ज़माने में भी नहीं दिखा था और आज भी नजर नहीं आता. हो सकता है कि अगर कांग्रेस की सरकार होती तो अनिल अम्बानी की जगह मुकेश होते, लेकिन होते.
मित्रों, अब बच गया सबसे बड़ा सवाल कि राहुल इस मामले को इतना उछाल क्यों रहे हैं? मैं जबसे दिल्ली में मनमोहन की सरकार थी तभी से देखता आ रहा हूँ कि कांग्रेस को हिंदी, हिन्दू और हिंदुस्तान से नफरत की हद तक लगाव है. आईएएस की परीक्षा में अंग्रेजी अनिवार्य नहीं थी मनमोहन सरकार ने किया. इसी तरह से कांग्रेस ने हिन्दू-विरोधी सांप्रदायिक दंगा विधेयक पारित करवाने का प्रयास किया. साथ ही भगवा आतंकवाद को न सिर्फ हवा में परिकल्पित किया बल्कि विश्वव्यापी जेहादी आतंकवाद से ज्यादा खतरनाक साबित करने की भरपूर कोशिश भी की. इसी तरह कई बार उसने चीन और पाकिस्तान का इस तरह से पक्ष लिया कि भारतीयों को शक होने लगा कि मनमोहन भारत के प्रधानमंत्री हैं या चीन-पाकिस्तान के? तब रोजाना कहीं वायुसेना के विमान गिर रहे थे तो कहीं नौसैनिक जहाज डूब रहे थे. शक होता था कि सरकार जान-बूझकर तो जहाज गिरा और डूबा नहीं रही है जिससे भारत की सेना चीन-पाकिस्तान के आगे कमजोर हो जाए?
मित्रों, तब कश्मीरी आतंकियों की पहुँच सोनिया-मनमोहन के ड्राईंग रूम तक थी और सीआरपीएफ के जवानों हाथों से से राइफल लेकर डंडा थमा दिया गया था. चाहे कोई गंगा में भी घुसकर क्यों न बोले मैं यह मान ही सकता कि कोई आरएसएस का कार्यकर्ता प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठकर देश की सुरक्षा के साथ समझौता करेगा. (मैंने वाजपेयी के ज़माने में भी ताबूत वाले आरोपों पर थोडा-सा भी यकीं नहीं किया था.) फिर चाहे वो कसम खानेवाले संत या महासंत ही क्यों न हो राहुल की तो औकात ही क्या?
मित्रों, आपको क्या लगता है कि राहुल बार-बार चीन के दूतावास में क्यों जाते हैं या उनकी मां पिछले दिनों रूस क्यों गई थी? मुझे तो आज भी शक होता है कि ये मां-बेटे हिंदी-हिन्दू-हिंदुस्तान के खिलाफ आज भी कोई-न-कोई खिचड़ी अवश्य पका रहे हैं. माना कि पेट्रोल के दाम बढ़ गए हैं लेकिन इन्टरनेट सहित बहुत-सी वस्तुएं आज यूपीए सरकार के मुकाबले सस्ती भी हैं. फिर पेट्रोल पर कोहराम क्यों? जहाँ तक ईरान का सवाल है तो यह वही देश है जिसने कांग्रेस सरकार का तो खूब लाभ उठाया लेकिन कश्मीर के मुद्दे पर कभी भारत का साथ नहीं दिया. इसी तरह से हमें बचपन से पढाया जा रहा है कि रूस हमारा मित्र है. अगर है भी या रहा भी है तो कांग्रेस पार्टी का मित्र रहा है भारत का नहीं. जब चीन हम पर चढ़ आया था तब तो उसने हमारी मदद नहीं की और आज भी नहीं करेगा. क्योंकि आज भी वो हमारे सबसे बड़े शत्रु चीन का सबसे बड़ा दोस्त है. हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि रूस में ही हमारे एक प्रधानमंत्री की हत्या को चुकी है और उसमें वहां की तत्कालीन सरकार की भी संदेहास्पद भूमिका थी. साथ ही नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के गायब होने में भी रूस का हाथ रहा है और ऐसा करके भी उसने कांग्रेस पार्टी के साथ ही मित्रता निभाई थी.
मित्रों, इस प्रकार हम पाते हैं कि राहुल के राफेल राग के पीछे कोई-न-कोई भारत-विरोधी साजिश है. जिन लोगों ने कभी रिमोट से केंद्र में सरकार चलाई उनका खुद का रिमोट कहीं-न-कहीं चीन-पाकिस्तान-रूस में है और वो वहीं से संचालित भी हो रहे हैं. साथ ही हम मोदी सरकार से हाथ जोड़कर विनती करने हैं कि वो राफेल से सबक लेते हुए देश का सब कुछ पूँजी से हवाले न करे क्योंकि पूँजी ही सबकुछ नहीं है और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को फिर से मजबूत और स्थापित करे इसी में उसकी भी भलाई है और देश की भी.

शुक्रवार, 21 सितंबर 2018

अमित शाह की मोदी भक्ति

मित्रों, हर साल की भांति इस साल भी भारत के प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी जी का जन्मदिन १७ सितम्बर को था. उस दिन सुबह जब दैनिक जागरण पलटा तो देखा कि उसमें भाजपा अध्यक्ष अमित भाई शाह का एक आलेख प्रकाशित है. शीर्षक था नए भारत का निर्माण करती भाजपा. मगर जब पढ़ा तो पता चला कि उसमें आदरणीय प्रधान सेवक जी का स्तुति गान किया गया है. 
मित्रों, श्रीमान अमित शाह ने फ़रमाया है (वैसे आजकल वे फरमाते कम हैं भरमाते ज्यादा हैं) कि प्रधानमंत्री जी ने हाल ही में लाखों आशा, आंगनवाड़ी और एएनएम कार्यकर्ताओं के साथ संवाद किया और उनको बताया कि वे देश के लिए कितनी महत्वपूर्ण हैं. साथ ही उनका मानदेय बढ़ाने की घोषणा भी की. अमित भाई को लगता है कि इससे उनको बेहतर काम करने का प्रोत्साहन मिलेगा. 
मित्रों, आपके इलाके में आंगनबाडियों की हालत क्या है मुझे नहीं पता लेकिन मेरे इलाके में तो इनकी हालत ऐसी है जैसी कि सरकार का सारा पैसा नालियों में बह रहा हो. मैंने १८ जनवरी, २०१५ को भ्रष्टाचार की बाड़ी आंगनबाड़ी योजना शीर्षक से एक ब्लॉग इस उम्मीद में लिखा था कि प्रधान सेवक जी मेरे आलेख को पढेंगे और इस दिशा में ठोस कदम उठाएंगे लेकिन आज मुझे यह लिखते हुए घोर निराशा हो रही है कि मोदी सरकार ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया बल्कि कदम उठाया सिर्फ वोट बैंक मजबूत करने की दिशा में.
मित्रों, अमित भाई फरमाते हैं कि पीएम मोदी तकनीकी प्रयोग से मोबाइल एप के माध्यम से अक्सर समाज के गुमनाम नायकों तक पहुंचते हैं और उन्हें यह जरूर बताते हैं कि देश के लिए वे बहुत महत्वपूर्ण हैं और राष्ट्र निर्माण में उनका अतुलनीय योगदान है। स्वास्थ्यकर्मियों से पहले शिक्षकों तक भी वह इसी माध्यम से पहुंचे और समाज में उनके योगदान के लिए आभार जताया। उन्होंने भाजपा के विभिन्न मोर्चो के कार्यकर्ताओं और दूसरे लोगों से भी बातचीत की। प्रधानमंत्री मोदी की इस विशेषता को अमित भाई तब से देखते रहे हैं जबसे उनको उनके सान्निध्य में कार्य करने का अवसर मिला।
मित्रों, तथापि मैं जिन मोदी जी को जानता हूँ वे लोगों को बड़े ही तरीके से चने के झाड़ पर चढ़ाकर बेवकूफ बनाते हैं. हो सकता है कि अमित भाई इस मामले में मोदी जी से २० पड़ते हों इसलिए उन्होंने बनने के बदले उनको बनाया हो. मुझे याद आता है कि कई साल पहले इन्ही अमित शाह ने मोदी जी के वादों के बारे में कहा था कि वे तो चुनावी जुमले थे. तो क्या अमित भाई बताएंगे कि मोदी कब जुमले बोलते हैं और कब नहीं? अब तो बता देते चुनाव फिर से माथे पर है.
मित्रों, अमित भाई फरमाते हैं कि पीएम मोदी के चार वषों के कार्यकाल में कई बेहतरीन और अनुकरणीय कार्य हुए हैं। बड़े स्तर पर सोचना और फिर उसे जमीनी स्तर पर लागू करने की उनकी क्षमता बेजोड़ है। यह उनका ही चिंतन और दर्शन है कि समाज के अंतिम व्यक्ति के लिए कई योजनाएं शुरू हुईं। जैसे देश के प्रत्येक परिवार के पास एक बैंक खाता। आज जनधन योजना के तहत 32 करोड़ से अधिक बैंक खाते खोले जा चुके हैं। वह गरीब महिलाओं के जीवन को धुएं से मुक्त करना चाहते थे। यही सोच उज्ज्वला योजना का आधार बनी जिसके तहत गरीब महिलाओं को पांच करोड़ से अधिक गैस कनेक्शन मुफ्त दिए गए। निश्चित रूप से मोदी जी ने लोगों के खाते खुलवाए जो सब्सिडी और अन्य लाभों को सीधे लोगों के खातों में पहुँचाने के लिए आवश्यक भी था लेकिन मोदी जी शायद आज भी इस मुगालते में जी रहे हैं कि सिर्फ इतना कर देने से ही दिल्ली से चले १०० पैसे में से पूरा-का-पूरा लाभार्थियों तक पहुँचने लगे हैं जबकि सच्चाई यह है कि गरीबी के मारे लोगों को तब तक कई सारी सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता जब तक वे कमीशन के रूप में रिश्वत की मोटी रकम अधिकारियों और जिम्मेदार लोगों तक पहुंचा नहीं देते. मोदी जी जो भूतपूर्व गरीब हैं को बखूबी पता होगा कि गरीबी और भ्रष्टाचार एक दुष्चक्र के दो पहलू हैं. गरीब जब तक गरीब रहेगा घूस देना उसकी मजबूरी होगी और जब तक वो घूस देता रहेगा वो गरीब ही रहेगा. एलपीजी वितरण के क्षेत्र में जरूर भ्रष्टाचार कम हुआ है इससे इंकार नहीं किया जा सकता. लेकिन सच्चाई यह भी है कि आज भी गरीबों के लिए बैंक से लोन प्राप्त करना चाँद-तारों की सैर करने के बराबर है. मैंने अपनी आँखों से देखा है कि बैंकों ने किस तरह मुद्रा लोन स्थापित व्यवसायियों को देकर खानापूरी की है और नए कारोबारियों को मायूस किया है.
मित्रों, अमित भाई फरमाते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी की ईमानदारी और सत्यनिष्ठा पर कोई विवाद नहीं है और इसे उनके कई विरोधी भी स्वीकार करते हैं। मगर शायद अमित भाई भूल गए हैं कि कुछ इसी तरह के तर्क एक समय मनमोहन सिंह जी को लेकर भी बड़ी शान और बेशर्मी से दिए जाते थे.
मित्रों, अमित शाह के अनुसार आयुष्मान भारत जैसी योजना स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में बहुत बड़ी गेमचेंजर साबित होने वाली है। जबकि सच्चाई यह है कि यह योजना भारत सरकार की सरकारी स्वास्थ्य सेवा के स्वास्थ्य को सुधारने की दिशा में विफलता को ही उजागर करता है और इसका असली लाभ गरीबों को नहीं बल्कि स्वास्थ्य सेवा देने के नाम गरीबों को लूटनेवाले उन पूंजीपतियों को होगा जिनके निजी अस्पताल हैं.
मित्रों, अपनी अंतिम पंक्ति में अमित भाई फरमाते हैं कि आज न्यू इंडिया की ‘कैन डू’ यानी ‘कर सकते हैं’ की भावना हर तरफ गूंज रही है। बेशक गूँज रही है लेकिन साथ-साथ 'मोदी जी यू कांट डू' की भावना भी हर तरफ गूँज रही है और गूँज रही है कि मोदी जी आप भी देशप्रेमी नहीं कुर्सी प्रेमी निकले, अमीरों के हाथों गरीबों के वोटों का सौदा करनेवाले निकले.
मित्रों, मेरा इस आलेख को लिखने का उद्देश्य कतई अमित शाह जी को नीचा दिखाना नहीं है. बल्कि राजनीति के भक्तिकाल के महाकवियों से विनम्र निवेदन करना है कि आँखें बंद कर मोदी जी की स्तुति करना बंद करें और सरकार की कमियों को स्वीकार भी करें जिससे उनको समय रहते दूर किया जा सके. क्योंकि प्रथमतः तो मानव जीवन बारम्बार नहीं मिलता और द्वितीय भारत का प्रधानमंत्री बनने का अवसर भारत की जनता बार-बार नहीं देती.

रविवार, 16 सितंबर 2018

भारत में अमीरों का,अमीरों द्वारा और अमीरों के लिए शासन

मित्रों, हमारे बिहार में एक कहावत काफी प्रचलित है कि हर बहे से खर खाए बकरी अंचार खाए अर्थात जो बैल दिनभर हल में जुतता है वो घास खाता है और जो बकरी दिनभर बैठी रहती है वो अंचार यानि स्वादिष्ट खाना खाती रहती है. आप कहेंगे कि यह तो अंधेर है और जहाँ ऐसा हो उसे अंधेर नगरी कहा जाना चाहिए. जी हाँ श्रीमान हमारा देश इन दिनों अंधेर नगरी ही तो है. जो लोग दिनभर काम कर रहे हैं, उनके हाथ खाली हैं और जो कुछ नहीं करते उनको बैंकों से हजारों करोड़ यूं ही पॉकेट खर्च के लिए दे दिए जाते हैं. कहने को तो ग्रामीण मजदूरों यानि मजबूरों के लिए मनरेगा योजना चल रही है लेकिन अगर जाँच हो तो पता चलेगा कि उसका बारह आना पंचायत का प्रधान, वार्ड सदस्य आदि खा जाते हैं इसके बावजूद कि मजदूरी यानि मजबूरी खाते में जाती है. इतना ही नहीं इट्स हप्पेंस ओनली इन इंडिया कि जो योग्य हैं वे ८० प्रतिशत अंक लाकर भी अयोग्य हैं और जो अयोग्य हैं वे शून्य प्रतिशत अंक लाने पर भी योग्य हैं. इसी तरह सिर्फ और सिर्फ भारत में जो दलित धनवान हैं वे गरीब हैं और जो सवर्ण गरीब हैं वे सत्ता की नजरों में महाधनवान हैं. दुनिया के किसी अन्य देश में ऐसा होता है क्या? जातिवादी राजनीति करके राज भोगनेवालों ने तो अब क्रिकेट टीम में भी जातीय आरक्षण की मांग कर दी है. देखना है कि परम देशभक्त मोदी सरकार इस मांग को कब पूरा करती है और कब संसद से इस आशय का कानून पारित करवाती है. वैसे ऐसा वो करेगी जरूर.
मित्रों, पिछले दिनों मुझे दो तरह के परम ज्ञान प्राप्त हुए हैं. हम बचपन से ही पढ़ते आ रहे हैं, आपने भी पढ़ा होगा कि अब्राहम लिंकन ने कहा था कि लोकतंत्र जनता का, जनता के द्वारा और जनता के लिए शासन होता है और भारत में भी लोकतंत्र है. लेकिन जबसे परम तपस्वी विजय माल्या जी ने खुलासा किया है कि हजारों करोड़ लेकर भागने से पहले उन्होंने भारत के वित्त मंत्री अरुण जेटली जी से गहन विचार-विमर्श किया था और जबसे सीबीआई ने कहा है कि उसने गलती से माल्या को माल लेकर भागते समय ढील बरती थी तबसे मेरी समझ में आ गया है कि लिंकन की परिभाषा भले ही अमेरिका के लिए सही हो भारत के लिए सफ़ेद झूठ से ज्यादा कुछ और नहीं है. तथापि भारतीय लोकतंत्र की दो अनूठी विशेषताएं हैं-पहली भारत में अमीरों का,अमीरों द्वारा और अमीरों के लिये शासन है और दूसरी भारत में भ्रष्टों का,भ्रष्टों द्वारा और भ्रष्टों के लिए शासन है,बांकी सब भाषण है। कहने को तो भारत में सारे लोग समान हैं पर कुछ लोग ज्यादा समान हैं इसलिए उनके पास ज्यादा सामान है और उनका ज्यादा सम्मान है। नहीं समझे तो निश्चित रूप से आप भी मूर्खिस्तान के निवासी हैं।
मित्रों, आपको याद होगा कि अटल जी की सरकार ने सरकारी नौकरों का यानि देश के नौकरों का यहाँ तक कि देश पर जान देनेवालों सीमा सुरक्षा बल और सीआरपीएफ के जवानों का भी पेंशन समाप्त कर दिया था। मगर क्या देश के मालिकों का यानि माननीयों का पेंशन समाप्त हुआ? नहीं न, क्यों? क्योंकि वे बकरी हैं बैल नहीं। इसी तरह आजकल धीरे-धीरे कोयला खदानों सहित पूरा देश अमीरों को सौंपा जा रहा है, राष्ट्रीयकरण को पलट दिया गया हैै, केेंद्र सरकार भी संविदा पर नियुक्ति कर रही है देश के मजदूूूर यह गाकर अपने मन को तसल्ली दे रहे हैं कि हम मेहनतकश जब दुनिया से अपना हिस्सा मांगेंगे एक बाग़ नहीं एक गाँव नहीं हम सारी दुनिया मांगेंगे। उधर अमीरों की सरकार उनको मेहनतकश से भिखारी  बनाती जा रही है. यहाँ तक कि अब पूरी दुनिया में अन्याय से लड़नेवाले पत्रकारों को भी भारत में उनका हक़, नया वेतनमान नहीं मिलता और सरकार इस दिशा में अनजान-तटस्थ बनी रहती है. फिर दूसरे लोगों को कौन न्याय दिलाए और कहाँ से मिले. जिनका भरपूरा बैंक बैलेंस है जनता भी उनके लिए बस वोट बैंक है. बैंक बैलेंस के बल पर वोट ख़रीदे और बेचे जाते हैं जैसे बोहराओं के वोट पिछले दिनों ख़रीदे गए और खरीदने के लिए स्वयं प्रधानमंत्री खाली पाँव उनके दर पर चलकर गए. अब तो चुनाव आयोग भी कह रहा है कि चुनावों में काले धन के दुरुपयोग को रोकने के लिए वर्तमान कानून पर्याप्त नहीं हैं. अर्थात उस संवैधानिक बेचारे को भी पता है कि देश में पैसों से बल पर चुनाव लडे और जीते जाते हैं यानि देश में अमीरों का ………(कितनी बार एक ही बात को दोहराया जाए) लेकिन वो भी कुछ नहीं कर सकता. जब वो संवैधानिक संस्था होकर कुछ नहीं कर सकता तो हम क्या कर सकते हैं? क्रांति???

शनिवार, 8 सितंबर 2018

गौ से गे तक मोदी सरकार

मित्रों, जबसे मोदी सरकार आई है बहुतेरों का गाय पालना और गाय लेकर रास्तों से गुजरना मुश्किल हो गया है. हालाँकि सच यह भी है खुलेआम होनेवाली गौहत्या में भी कमी आई है. पहले जो लोग लूट-हत्यादि असामाजिक कार्यों में संलिप्त थे अब उन्होंने गौरक्षक दल बना लिए हैं और पैसे लेकर मवेशियों से भरे ट्रक पास कराने लगे हैं. मैं यह नहीं कहता कि इस काम में लगे सारे-के-सारे लोग ऐसे ही हैं लेकिन ऐसे लोगों की मौजूदगी से इन्कार भी नहीं किया जा सकता.
मित्रों, मुझे उम्मीद थी कि मोदी सरकार गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करेगी और सारे विवादों पर लगाम लगा देगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं. उल्टे गोवा के भाजपाई मुख्यमंत्री ने घोषणा कर दी कि उनके राज्य में गौमांस की कमी नहीं होने दी जाएगी. मुझे यह भी उम्मीद थी कि मोदी की हिन्दुत्ववादी सरकार बछड़ों के कल्याण के लिए कोई-न-कोई योजना जरूर लाएगी लेकिन यह भी नहीं हुआ. साथ ही मुझे उम्मीद थी कि मोदी सरकार संविधान की धारा ३७० को समाप्त करने की दिशा में भी कदम जरूर उठाएगी.
मित्रों, लेकिन मोदी सरकार ने धारा ३७० को समाप्त करने के बदले सुप्रीम कोर्ट के माध्यम से आईपीसी की धारा ३७७ को ही समाप्त करवा दिया. दरअसल राम और कृष्ण की भूमि भारत में समलैंगिकता को कानूनी बनाने से संबंधित एक याचिका पर जब सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार से उसका मंतव्य पूछा तो महान हिन्दुत्वादी सरकार ने कह दिया कि हमारा इस बारे में कोई मंतव्य है ही नहीं आप जो चाहे निर्णय ले सकते हैं और इस तरह मुक़दमे को एकतरफा हो जाने दिया. कल को कोई सुप्रीम कोर्ट में वेश्यावृत्ति को वैधानिक बनाने की याचिका डाल देगा और मुझे पूरी उम्मीद है कि तब भी पूछे जाने पर हमारी महान हिन्दुत्ववादी मोदी सरकार का कुछ ऐसा ही जवाब होगा. मुझे बेसब्री से इंतजार है उस वक़्त का जब धीरे-धीरे अपने देश में मोदी सरकार की कृपा से कोई भी गर्हित कर्म-कुकर्म अवैध रह ही नहीं जाए.
मित्रों, मैं जब सोंचता हूँ कि क्या वही सब करने के लिए हमने मोदी का प्राणार्पण से समर्थन किया था जो उनकी सरकार इन दिनों कर रही है तो मुझे खुद पर शर्मिंदगी होती है. मैं जानता हूँ कि भाजपा प्रवक्ता ऐसा भविष्य में कह सकते हैं कि आपने तो केवल ३७० समाप्त करने को कहा था हमने तो ७ बढाकर ३७७ को समाप्त कर दिया क्योंकि वे इनदिनों कुछ भी बोलने लगे हैं. यहाँ तक कि वे मोदी को देश का बाप कहने लगे हैं.
मित्रों, मैं आपसे पूछता हूँ कि १९४२ के मुकाबले हमारे देश में बदला क्या है अर्थव्यवस्था के आकार के सिवा? यह तक कि संविधान के ३९५ अनुच्छेदों में से २५० से अधिक अंग्रेजों द्वारा १९३५ में बनाए गए भारत सरकार अधिनियम से लिए गए हैं. देश के लिए संसदीय प्रणाली पिछले ३५ सालों में अभिशाप बन चुकी है. यह कहते-कहते कि भारत को अध्यक्षीय शासन-प्रणाली की अविलम्ब सख्त जरुरत है मेरा गला बैठ चुका है. भारत की न्याय-व्यवस्था, पुलिस प्रणाली और कानून आज भी अंग्रेजों वाले हैं जिसका विकास अंग्रेजों ने भारत को लूटने के उद्देश्य से किया था. हमने १९८४ के बाद पहली बार किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत दिया था तो इसलिए दिया था ताकि वो ५ साल बाद यह बहाना न बना सके कि उसके पास तो बहुमत ही नहीं था. लेकिन हम देख रहे हैं कि भारत की न्यायिक और पुलिस प्रणाली को बदलने की दिशा में तो मोदी सरकार ने कुछ नहीं ही किया शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी उसकी उपलब्धियां शून्य बटा सन्नाटा है. देश का कितना बड़ा दुर्भाग्य है कि देश में इस समय भी मैकाले की औपनिवेशिक शिक्षा-नीति के तहत शिक्षा दी जा रही है.जबकि सरकार को इन मुद्दों पर काम करना चाहिए था वो मशगूल है जाति-जाति और आरक्षण का गन्दा खेल खेलने में जिसके लिए अब तक लालू, मुलायम, मायावती जैसे घिनौने चेहरे बदनाम थे.
मित्रों, कुल मिलाकर मोदी सरकार को करना कुछ और चाहिए था और वो कर कुछ और रही है. पता नहीं समलैंगिकता को कानूनी घोषित करवाने के पीछे उसकी क्या मजबूरी थी जो वो गौ कल्याण करने के बजाए गे कल्याण कर बैठी. अब तो देश में स्थिति ऐसी आनेवाली है कि मर्दों की ईज्जत भी सुरक्षित नहीं रह जाएगी औरतों की तो पहले से ही सुरक्षित नहीं है. अब माता-पिता अपने बेटों से भी कहेंगे कि बेटा दिन रहते घर लौट आना.
फ़िलहाल तो हम मोदी सरकार के लिए बतौर ग़ालिब इतना ही कह सकते हैं कि
बंद कराने आये थे तवायफों के कोठे मगर,
सिक्कों की खनक देखकर खुद ही मुजरा कर बैठे.

शनिवार, 1 सितंबर 2018

मोदी सरकार के ४ साल के गड्ढे

मित्रों, न जाने क्यों यह मेरा कैसा दुर्भाग्य रहा है कि जब भी मैंने दिल से किसी नेता को चाहा है और तन-मन और धन से सहयोग देकर जिताया है तो एक वाजपेयी जी को छोड़कर बाद में हमारे साथ धोखा ही हुआ है. मुझे याद आता है २०१४ का चुनाव जब मैंने नरेन्द्र मोदी की तुलना विवेकानंद और अब्राहम लिंकन से करते हुए देश की जनता से इनको मत देने की अपील की थी. दरअसल उनकी बातें ही इतनी दमदार होती थी कि कोई भी उन पर यकीं कर ले. भाषा और भाषण-शैली भी उतनी ही जानदार जितना शानदार कथ्य.
मित्रों, तब हमने मोदी के हरेक भाषण को चाहे वो ५६ ईंच सीनेवाला भाषण हो, हर व्यक्ति को १५ लाख देनेवाला भाषण हो, देश से चलता है की संस्कृति को चलता करने वाला भाषण हो या गरीबों को त्वरित न्याय देने के वादे वाला भाषण हो, देश से गरीबी और भ्रष्टाचार का नामोंनिशान समाप्त करने वाला भाषण हो, रूपये और मनमोहन सिंह की आयु में आगे निकलने की होड़ वाला भाषण हो, महंगाई पर व्यंग्य करनेवाला भाषण हो, पेट्रोल के मूल्य की आलोचना करनेवाला भाषण हो या नेशन फर्स्ट की बात करनेवाला भाषण हो या फिर कांग्रेस के ६० साल के गड्ढों को भरनेवाला भाषण हो मैंने जम्मू-कश्मीर से लेकर तमिलनाडु तक उनके दिए हरेक भाषण को तत्क्षण अपने से ब्लॉग पर प्रकाशित किया.
मित्रों, परन्तु बड़े ही खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि मोदी की सरकार चाल और चरित्र के मामले में कहीं से भी मनमोहन सरकार से बेहतर साबित नहीं हुई है. जब चाल और चरित्र ही सही न हो तो चेहरे की बात करना वैसे ही बेमानी हो जाता है.
मित्रों, शायद आपको याद हो कि एक गाना २०१४ के चुनावों में काफी प्रसिद्ध हुआ था मेरा देश बदल रहा है और अब हालत यह है कि सरकार यह बता ही नहीं पा रही कि देश में करेंसी नोटों के बदलने के सिवा और क्या बदला है. देश की आर्थिक स्थिति को देखकर तो रोना आता है. जिस नोटबंदी को मोदी जी ने आर्थिक स्वच्छता अभियान कहा था उसकी जो रिपोर्ट आरबीआई ने जारी की है उससे यह पता चलता है कि मोदी सरकार ने मच्छर को मारने के लिए तोप चला दिया जिससे आर्थिक गतिविधियों को बेवजह गहरा धक्का लगा. मोदी सरकार बार-बार जीडीपी के आंकडे दिखाती है लेकिन वो यह नहीं बताती कि जीडीपी वृद्धि में से ८२ प्रतिशत देश के सबसे अमीर १० प्रतिशत लोगों की जेबों में जा रहा है. इस समय व्यापार घाटा ऐतिहासिक ऊंचाई पर ४८ प्रतिशत पर और रूपया ऐतिहासिक गहराई में ७०+ पर है. इसी तरह से बरसात में जैसे नदियों का जलस्तर खतरे के निशान को पार कर जाता है उसी तरह से पेट्रोल-डीजल-रसोई गैस के मूल्य भी खतरे के निशान को पार कर चुके हैं. मोदी यह भी नहीं बता पा रहे कि योजना आयोग को समाप्त क्यों किया गया और उसकी जगह जो नीति आयोग लाया गया उसकी नीतिगत उपलब्धियां क्या है. अभी कल-परसों ही सरकार द्वारा गठित विधि आयोग ने कहा है कि देश को अभी समान नागरिक संहिता की आवश्यकता नहीं है. ऐसा उसने किसके इशारे पर कहा है मैं समझता हूँ कि यह बताने की भी आवश्यकता नहीं है. जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे पर सुप्रीम कोर्ट में केंद्र के जवाब का इंतजार है लेकिन सरकार के मौजूदा रूख को देखते हुए उम्मीद है कि वो भी तुष्टिकरण करनेवाला ही होगा. असम के घुसपैठियों के खिलाफ यह कागजी सरकार सिर्फ कागजी कार्रवाई करती रहेगी या उनको बाहर भी निकालेगी यह भविष्य बताएगा वैसे मुझे नहीं लगता कि ऐसा हो पाने की कोई उम्मीद भी है.
मित्रों, कहाँ तो मोदी ने वादा किया था कि उनके प्रत्येक कदम देशहित में होंगे और सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का पुनरोद्धार किया जाएगा वहीँ एक साल में ही २०१६-१७ में सार्वजनिक क्षेत्र को ३०००० करोड़ रूपये का घाटा हुआ है. दुनियाभर में तेल निकालने में झंडे गाड़ चुकी ओएनजीसी मुंह ताक रही है और देश में पेट्रोल के ब्लॉक न जाने क्या ले-देकर वेदांता को दिए जा रहे हैं. राफेल सहित तमाम रक्षा सौदे संदेह के घेरे में हैं लेकिन सरकार कुछ भी बताने को तैयार नहीं है जबकि इन मामलों में उसे अविलम्ब श्वेत-पत्र जारी करना चाहिए और देश की जनता को विश्वास में लेना चाहिए. इसी तरह से पार्टी फंड में आनेवाले चंदों की जानकारी को इस सरकार ने नया कानून लाकर और भी गुप्त कर दिया है जबकि वादा पूर्ण पारदर्शिता लाने का था.
मित्रों, नेशन फर्स्ट तो अब सुनने में भी नहीं आता फिर देखने में कहाँ से आए? केंद्र सरकार पूरी तरह से इस जुगाड़ में लगी हुई है कि कैसे अगला चुनाव जीता जाए. कभी वो एससी-एसटी से सम्बद्ध सुप्रीम कोर्ट के न्यायपूर्ण और विवेकसम्मत फैसले को पलटती  है तो कभी कहती है कि अगली जनगणना में जातीय आंकड़े जारी किए जाएंगे. मतलब यह कि उन लोगों को अब देश की कीमत पर कुर्सी चाहिए जो यह कहकर सत्ता में आए थे कि हमारी प्राथमिकता में देश सर्वोपरि होगा. कहाँ तो हम समझे थे कि मोदी सरकार जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून लाएगी और कहाँ ये जातीय जनगणना के माध्यम से जनसंख्या बढ़ाकर सरकारी अभियान को पलीता लगाने वाले लोगों को ईनाम और इस अभियान में बढ़-चढ़कर भाग लेनेवालों को दंड देने जा रही है। जैसे ही इस जनगणना की रिपोर्ट सामने आएगी पिछड़ी जाति की गन्दी राजनीति करनेवाले भ्रष्ट नेता जनसँख्या के आधार पर आरक्षण की मांग शुरू कर देंगे और इस प्रकार फिर से देश में १९९० के दशक जैसा विषाक्त वातावरण व्याप्त हो जाएगा. कुल मिलाकर, कहाँ तो मोदी कहते थे कि उनको कांग्रेस सरकारों द्वारा ६० साल में किए गए गड्ढों को भरना है और कहाँ खुद उनकी सरकार ने सिर्फ ४ सालों में इतने गड्ढे कर दिए हैं कि अब उनको भरने में आनेवाली सरकारों को ६० साल लग जाएंगे बशर्ते वे शुद्ध मन से भरने के प्रयास करें और पहले से बने गड्ढों को और गहरा न करें.