शनिवार, 1 सितंबर 2018

मोदी सरकार के ४ साल के गड्ढे

मित्रों, न जाने क्यों यह मेरा कैसा दुर्भाग्य रहा है कि जब भी मैंने दिल से किसी नेता को चाहा है और तन-मन और धन से सहयोग देकर जिताया है तो एक वाजपेयी जी को छोड़कर बाद में हमारे साथ धोखा ही हुआ है. मुझे याद आता है २०१४ का चुनाव जब मैंने नरेन्द्र मोदी की तुलना विवेकानंद और अब्राहम लिंकन से करते हुए देश की जनता से इनको मत देने की अपील की थी. दरअसल उनकी बातें ही इतनी दमदार होती थी कि कोई भी उन पर यकीं कर ले. भाषा और भाषण-शैली भी उतनी ही जानदार जितना शानदार कथ्य.
मित्रों, तब हमने मोदी के हरेक भाषण को चाहे वो ५६ ईंच सीनेवाला भाषण हो, हर व्यक्ति को १५ लाख देनेवाला भाषण हो, देश से चलता है की संस्कृति को चलता करने वाला भाषण हो या गरीबों को त्वरित न्याय देने के वादे वाला भाषण हो, देश से गरीबी और भ्रष्टाचार का नामोंनिशान समाप्त करने वाला भाषण हो, रूपये और मनमोहन सिंह की आयु में आगे निकलने की होड़ वाला भाषण हो, महंगाई पर व्यंग्य करनेवाला भाषण हो, पेट्रोल के मूल्य की आलोचना करनेवाला भाषण हो या नेशन फर्स्ट की बात करनेवाला भाषण हो या फिर कांग्रेस के ६० साल के गड्ढों को भरनेवाला भाषण हो मैंने जम्मू-कश्मीर से लेकर तमिलनाडु तक उनके दिए हरेक भाषण को तत्क्षण अपने से ब्लॉग पर प्रकाशित किया.
मित्रों, परन्तु बड़े ही खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि मोदी की सरकार चाल और चरित्र के मामले में कहीं से भी मनमोहन सरकार से बेहतर साबित नहीं हुई है. जब चाल और चरित्र ही सही न हो तो चेहरे की बात करना वैसे ही बेमानी हो जाता है.
मित्रों, शायद आपको याद हो कि एक गाना २०१४ के चुनावों में काफी प्रसिद्ध हुआ था मेरा देश बदल रहा है और अब हालत यह है कि सरकार यह बता ही नहीं पा रही कि देश में करेंसी नोटों के बदलने के सिवा और क्या बदला है. देश की आर्थिक स्थिति को देखकर तो रोना आता है. जिस नोटबंदी को मोदी जी ने आर्थिक स्वच्छता अभियान कहा था उसकी जो रिपोर्ट आरबीआई ने जारी की है उससे यह पता चलता है कि मोदी सरकार ने मच्छर को मारने के लिए तोप चला दिया जिससे आर्थिक गतिविधियों को बेवजह गहरा धक्का लगा. मोदी सरकार बार-बार जीडीपी के आंकडे दिखाती है लेकिन वो यह नहीं बताती कि जीडीपी वृद्धि में से ८२ प्रतिशत देश के सबसे अमीर १० प्रतिशत लोगों की जेबों में जा रहा है. इस समय व्यापार घाटा ऐतिहासिक ऊंचाई पर ४८ प्रतिशत पर और रूपया ऐतिहासिक गहराई में ७०+ पर है. इसी तरह से बरसात में जैसे नदियों का जलस्तर खतरे के निशान को पार कर जाता है उसी तरह से पेट्रोल-डीजल-रसोई गैस के मूल्य भी खतरे के निशान को पार कर चुके हैं. मोदी यह भी नहीं बता पा रहे कि योजना आयोग को समाप्त क्यों किया गया और उसकी जगह जो नीति आयोग लाया गया उसकी नीतिगत उपलब्धियां क्या है. अभी कल-परसों ही सरकार द्वारा गठित विधि आयोग ने कहा है कि देश को अभी समान नागरिक संहिता की आवश्यकता नहीं है. ऐसा उसने किसके इशारे पर कहा है मैं समझता हूँ कि यह बताने की भी आवश्यकता नहीं है. जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे पर सुप्रीम कोर्ट में केंद्र के जवाब का इंतजार है लेकिन सरकार के मौजूदा रूख को देखते हुए उम्मीद है कि वो भी तुष्टिकरण करनेवाला ही होगा. असम के घुसपैठियों के खिलाफ यह कागजी सरकार सिर्फ कागजी कार्रवाई करती रहेगी या उनको बाहर भी निकालेगी यह भविष्य बताएगा वैसे मुझे नहीं लगता कि ऐसा हो पाने की कोई उम्मीद भी है.
मित्रों, कहाँ तो मोदी ने वादा किया था कि उनके प्रत्येक कदम देशहित में होंगे और सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का पुनरोद्धार किया जाएगा वहीँ एक साल में ही २०१६-१७ में सार्वजनिक क्षेत्र को ३०००० करोड़ रूपये का घाटा हुआ है. दुनियाभर में तेल निकालने में झंडे गाड़ चुकी ओएनजीसी मुंह ताक रही है और देश में पेट्रोल के ब्लॉक न जाने क्या ले-देकर वेदांता को दिए जा रहे हैं. राफेल सहित तमाम रक्षा सौदे संदेह के घेरे में हैं लेकिन सरकार कुछ भी बताने को तैयार नहीं है जबकि इन मामलों में उसे अविलम्ब श्वेत-पत्र जारी करना चाहिए और देश की जनता को विश्वास में लेना चाहिए. इसी तरह से पार्टी फंड में आनेवाले चंदों की जानकारी को इस सरकार ने नया कानून लाकर और भी गुप्त कर दिया है जबकि वादा पूर्ण पारदर्शिता लाने का था.
मित्रों, नेशन फर्स्ट तो अब सुनने में भी नहीं आता फिर देखने में कहाँ से आए? केंद्र सरकार पूरी तरह से इस जुगाड़ में लगी हुई है कि कैसे अगला चुनाव जीता जाए. कभी वो एससी-एसटी से सम्बद्ध सुप्रीम कोर्ट के न्यायपूर्ण और विवेकसम्मत फैसले को पलटती  है तो कभी कहती है कि अगली जनगणना में जातीय आंकड़े जारी किए जाएंगे. मतलब यह कि उन लोगों को अब देश की कीमत पर कुर्सी चाहिए जो यह कहकर सत्ता में आए थे कि हमारी प्राथमिकता में देश सर्वोपरि होगा. कहाँ तो हम समझे थे कि मोदी सरकार जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून लाएगी और कहाँ ये जातीय जनगणना के माध्यम से जनसंख्या बढ़ाकर सरकारी अभियान को पलीता लगाने वाले लोगों को ईनाम और इस अभियान में बढ़-चढ़कर भाग लेनेवालों को दंड देने जा रही है। जैसे ही इस जनगणना की रिपोर्ट सामने आएगी पिछड़ी जाति की गन्दी राजनीति करनेवाले भ्रष्ट नेता जनसँख्या के आधार पर आरक्षण की मांग शुरू कर देंगे और इस प्रकार फिर से देश में १९९० के दशक जैसा विषाक्त वातावरण व्याप्त हो जाएगा. कुल मिलाकर, कहाँ तो मोदी कहते थे कि उनको कांग्रेस सरकारों द्वारा ६० साल में किए गए गड्ढों को भरना है और कहाँ खुद उनकी सरकार ने सिर्फ ४ सालों में इतने गड्ढे कर दिए हैं कि अब उनको भरने में आनेवाली सरकारों को ६० साल लग जाएंगे बशर्ते वे शुद्ध मन से भरने के प्रयास करें और पहले से बने गड्ढों को और गहरा न करें.

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