गुरुवार, 29 सितंबर 2022

बाई बाई पीएफआई

मित्रों, आतंकी संगठन पीएफआई अब गुजरे हुए कल की बात हो गई है. केंद्र सरकार की कार्रवाई और संगठन पर प्रतिबन्ध के बाद स्वयं संगठन ने खुद को समाप्त घोषित कर दिया है. निश्चित रूप से केंद्र सरकार का यह उचित समय पर उठाया गया उचित कदम है. लेकिन सवाल उठता है कि जब सिम्मी पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया तो फिर यह उससे भी ज्यादा हिंदूविरोधी तदनुसार भारतविरोधी संगठन पैदा कैसे हो गया और किन लोगों ने इसके पैदा होने व पल्लवित-पुष्पित होने में सहायता की? सवाल उठता है कि भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति और सोनिया गाँधी परिवार के लाडले मोहम्मद हामिद अंसारी साल २०१७ में इस आतंकी संगठन के कार्यक्रम में भाग लेने क्यों गए थे? जबकि यह जेहादी और आतंकी काम तो करता ही है, केरल में देशभक्तों की निर्मम हत्याओं में भी इनके कार्यकर्ता आरोपित हैं. इतना ही नहीं दिल्ली में हिन्दुओं के नरसंहार, शाहीन बाग़ सड़क जाम, उत्तर प्रदेश की तोड़फोड़ समेत तमाम ऐसे सारे हिंसक कृत्यों में इसके हाथ होने के प्रमाण हैं जिनमें मुसलमान संगठित रूप से शामिल हैं. मित्रों, इसमें कोई संदेह नहीं कि हमारे पूर्व उपराष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी और उनकी कांग्रेस पार्टी ने हिन्दुओं और हिन्दुस्थान के लिए बेहद खतरनाक इस आतंकी संगठन के पैदा होने और पनपने में नैतिक समर्थन दिया और बदले में चुनावों में थोक में मुस्लिम वोट बैंक का समर्थन हासिल किया. इतना ही नहीं आज जब इस संगठन पर कार्रवाई हुई है तो भाजपा को छोड़कर किसी भी राजनैतिक दल ने कार्रवाई का समर्थन नहीं किया है बल्कि कुछ मुस्लिमजीवी कथित हिन्दू नेताओं ने तो कार्रवाई का विरोध करते हुए महान राष्ट्रवादी संगठन आरएसएस को भी प्रतिबंधित करने की मांग तक कर दी है. इन छद्मधर्मनिरपेक्ष परिवारवादी भ्रष्टाचारवादियों का वश चले तो ये सारे हिन्दुओं का सुन्नत करवा देंगे बस इनको देश और प्रदेश को लूटने का सुनहरा अवसर मिलना चाहिए और बार-बार मिलना चाहिए. केंद्र सरकार को ऐसे नेताओं के साथ पीएफआई के संबंधों की भी जाँच करनी चाहिए और उनको भी जेल में डालना चाहिए. मित्रों, जैसा कि हमने कहा कि पीएफआई पर केंद्र सरकार की कार्रवाई की जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है. लेकिन सवाल उठता है कि क्या यह पर्याप्त है? क्या इस रक्तबीज के रक्त से आगे कोई राक्षसी संगठन जन्म नहीं लेगा? क्या सिम्मी पर प्रतिबन्ध के बाद उसके अशुद्ध रक्त से पीएफआई पैदा नहीं हो गया था? फिर क्या गारंटी है कि पीएफआई के बाद कोई आतंकी संगठन पैदा नहीं होगा? दरअसल इन सारे फसादों की जड़ कुरान के उन २६ आयातों में है जिन्हें इस पुस्तक से हटाने की मांग सुप्रीम कोर्ट में जीतेंद्र नारायण त्यागी जी ने की थी जब वो वसीम रिजवी थे. अब इस महान आसमानी पुस्तक पर तो रोक लग नहीं सकती क्योंकि भाजपा में भी नकवी जैसे नेता हैं इसलिए केंद्र सरकार को चाहिए कि कानून बनाकर मदरसों पर रोक लगाए. साथ ही जनसंख्या कानून और समान नागरिक संहिता को तुरंत लागू किया जाए. पीएफआई के दस्तावेज भी बताते हैं कि वो जनसंख्या बढाकर भारत में इस्लाम का शासन लाना चाहता था. ऐसे इन दोनों कानूनों को और नहीं टाला जा सकता. इसके साथ ही धार्मिक स्थल कानून, १९९१ और वक्फ बोर्ड को हिन्दुओं के मंदिर और जमीनों पर कब्ज़ा करने की असीमित शक्ति देनेवाले सारे कानूनों को भी तत्काल समाप्त करना चाहिए. तभी देशविरोधी और हिंदूविरोधी सोंच और विचारधारा को कमजोर किया जा सकेगा क्योंकि पीएफआई एक संगठन नहीं विचारधारा है और हमें उस विचारधारा को जड़ से उखाड़कर उसकी जड़ों में मट्ठा डालना है.

रविवार, 18 सितंबर 2022

राहुल गाँधी की भारत तोड़ो यात्रा

मित्रों, तथाकथित भारत जोड़ो यात्रा के क्रम में राहुल गाँधी कन्याकुमारी, तमिलनाडु से यात्रा शुरू कर फिलहाल केरल में है। वाम दलों द्वारा शासित इस राज्य में यह यात्रा करीब 18 दिन रहेगी। ज्ञात हो कि केरल की वायनाड लोकसभा क्षेत्र से राहुल गांधी सांसद हैं। 20 लोकसभा सीटों वाले केरल की राष्ट्रीय राजनीति में वैसी अहमियत नहीं, जैसी कहीं अधिक सीटों वाले उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बंगाल आदि की है। सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि यह यात्रा चुनाव वाले राज्यों हिमाचल और गुजरात से नहीं गुजर रही है। मित्रों, अब यह कहा जा रहा है कि यह यात्रा पूरी हो जाने के बाद उसका दूसरा चरण गुजरात से शुरू होगा। इसका अर्थ है कि यह काम करीब पांच माह बाद होगा। भारत जोड़ो यात्रा केरल में तो 18 दिन रहेगी, लेकिन 80 सीटों वाले उत्तर प्रदेश में चार-पांच दिन। इसे लेकर सवाल उठ रहे हैं और सबसे पहला सवाल केरल सरकार का नेतृत्व कर रही माकपा ने उठाया। उसने इसे सीट जोड़ो यात्रा करार दिया, जिसके जवाब में कांग्रेस ने उसे भाजपा की बी टीम बता दिया। ध्यान रहे कि माकपा के साथ मिलकर कांग्रेस ने बंगाल में विधानसभा चुनाव लड़ा था। जिससे लगता है कि यह यात्रा भारत जोड़ो यात्रा नहीं बल्कि विपक्षी एकता तोड़ो यात्रा है. मित्रों, एक समय उत्तर प्रदेश कांग्रेस का गढ़ था। नेहरू, इंदिरा और राजीव गांधी यहीं से चुनाव जीतकर प्रधानमंत्री बने, लेकिन लगता है कि कांग्रेस इस राज्य में अपने लिए कोई उम्मीद नहीं देख रही है। भारत जोड़ो यात्रा का उत्तर प्रदेश में केवल चार-पांच दिन का सफर कांग्रेसजनों के लिए भी आश्चर्य का विषय है। कांग्रेस प्रवक्ता जयराम रमेश की मानें तो इस यात्रा का उद्देश्य पार्टी को मजबूती देना है, न कि विपक्षी एकता को बल देना, लेकिन वह इसकी अनदेखी कर रहे हैं कि कांग्रेस अपने बूते कितनी भी मजबूती पा ले, बिना गठबंधन वह कोई ख़ास छाप नहीं छोड़ पाएगी। जयराम रमेश का यह भी मानना है कि यदि कांग्रेस मजबूत होगी तो विपक्षी दल खुद उसके साथ आ जाएंगे, पर यह भी उनकी एक भूल ही है, क्योंकि अधिकांश भाजपा विरोधी दल उसकी कमजोरी का लाभ उठाकर उसके ही वोट बैंक में सेंध लगा रहे हैं। कांग्रेस इसीलिए कमजोर हुई, क्योंकि वह क्षेत्रीय दलों को साथ लेने के फेर में अपनी राजनीतिक जमीन उनके लिए छोड़ती गई। कांग्रेस भले ही यह कहे कि इस यात्रा का उद्देश्य पार्टी को मजबूती देना है, लेकिन लगता यही है कि इसका मकसद राहुल गांधी का कद बढ़ाना भर है। मित्रों, भारत जोड़ो यात्रा को शुरू हुए अभी दस दिन ही हुए हैं, लेकिन वह कई विवादों से दो-चार होकर विवादों भरी यात्रा बन चुकी है। एक विवाद जहरीले नफरती बयान देने वाले पादरी से राहुल की मुलाकात से उभरा और दूसरा कांग्रेस की ओर से आरएसएस के गणवेश को आग लगाते हुए ट्वीट से। इस ट्वीट से यही स्पष्ट हुआ कि कांग्रेस भारत जोड़ने के नाम पर आरएसएस और भाजपा पर निशाना साधना चाहती है। साथ ही राहुल और पादरी की मुलाकात का वीडियो भी वायरल हुआ है, जिसमें जॉर्ज पोन्नैया राहुल को समझाते नजर आते हैं कि केवल जीसस क्राइस्ट यानी यीशु मसीह ही एकमात्र वास्तविक भगवान हैं, कोई शक्ति देवी या देवता भगवान नहीं हैं। मतलब जिन हिन्दुओं को कांग्रेस को अपने साथ जोड़ना चाहिए उन्हीं हिन्दुओं को वो उल्टे नाराज कर रही है. कांग्रेस आज भी यह मानने को तैयार नहीं है कि हिंदुस्तान हिन्दुओं का देश है. ऐसा लगता है कि भारत को जोड़ने के लिए नहीं बल्कि हिन्दुओं से नफरत करनेवालों को अपने साथ जोड़ने निकले हैं। तभी तो उन्होंने जॉर्ज पोन्नैया जैसे व्यक्ति को भारत जोड़ो यात्रा का पोस्टर बॉय बनाया है, जिसने हिंदुओं को चुनौती दी, धमकी दी और भारत माता के बारे में अनुचित बातें कहीं। इसमें संदेह नहीं कि स्वयं कांग्रेस का हिंदू विरोधी होने का लंबा इतिहास रहा है। मित्रों, सवाल उठता है और उठाना भी चाहिए कि यदि कांग्रेस का उद्देश्य वास्तव में भारत को जोड़ना है, तो फिर वह अपने आचार-व्यवहार के माध्यम से आरएसएस-भाजपा की विचारधारा से प्रभावित हिन्दुओं को आकर्षित करने का काम क्यों नहीं करती? यदि भारत जोड़ो यात्रा का उद्देश्य सचमुच लोगों से जुड़ना है तो फिर विरोधी दलों पर अनावश्यक टीका-टिप्पणी करने का क्या मतलब है? इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि इस यात्रा में राहुल गांधी वही सब बयान दोहरा रहे हैं, जो वह बीते तीन-चार साल से कहते चले आ रहे हैं। इसका अर्थ है कि वह आम जनता के समक्ष कोई नया विचार नहीं रखने जा रहे हैं या फिर उनके पास कोई नवीन विचार है ही नहीं। मित्रों, भारत जोड़ो यात्रा के बीच ही गोवा के आठ कांग्रेस विधायक जिस तरह टूट कर भाजपा में चले गए, उससे कांग्रेस को झटका तो लगा ही, यह भी प्रकट हुआ कि ये विधायक पार्टी में अपना कोई भविष्य नहीं देख रहे थे। जब विधायकों का यह हाल है तो सामान्य कार्यकर्ताओं के मनोबल का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। कांग्रेस में ऐसे नेताओं की संख्या बढ़ती जा रही है, जो यह मान रहे हैं कि कुछेक चाटुकार नेता गांधी परिवार का गुणगान कर अपना हित साधने में लगे हुए हैं। उनके पास ऐसी कोई रणनीति नहीं कि देश को आगे कैसे ले जाया जाए और जनता के सामने क्या ठोस विकल्प पेश किया जाए? उनकी इस खोखली सोच के कारण ही इस समय जदयू, टीआरएस, तृणमूल कांग्रेस आदि अपने-अपने हिसाब से विपक्षी एका की रणनीति पर आगे बढ़ रहे हैं। मित्रों, मरा हुआ हाथी भी सवा लाख का होता है. कांग्रेस के बिना विपक्षी एकता संभव नहीं, लेकिन ममता बनर्जी और केसीआर उसे साथ लिए बिना विपक्ष को एकजुट करना चाहते हैं। ये नेता यह भूल रहे हैं कि कांग्रेस के पास आज भी कहीं अधिक वोट हैं और उसे केंद्र में शासन करने का अनुभव भी है। इस सबके बावजूद कांग्रेस जिस तरह गांधी परिवार को ही अपना उद्धारक बताने में समय जाया कर रही है, वह उसकी मुश्किलों को बढ़ा रहा है। मित्रों, कांग्रेस की मुश्किलें इसलिए भी बढ़ रही हैं, क्योंकि सोनिया गांधी हों या राहुल, उनका एकमात्र लक्ष्य हर विषय पर प्रधानमंत्री को कोसना और उन्हें नीचा दिखाना है। राहुल यही काम भारत जोड़ो यात्रा के जरिये कर रहे हैं। उनके बयान उनकी नकारात्मक राजनीति को ही रेखांकित कर रहे हैं। भारत जोड़ो यात्रा यह भी बता रही है कि राहुल उन राज्यों से बचना चाहते हैं, जहां भाजपा राजनीतिक रूप से कहीं अधिक सशक्त है। भाजपा विरोधी दलों के नेता जिस तरह अपने-अपने तरीके से विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं, उससे यही स्पष्ट होता है कि उनका लक्ष्य प्रधानमंत्री पद के लिए अपनी दावेदारी को मजबूत करना है। मुश्किल यह है कि इनमें से किसी नेता का अपने राज्य के बाहर कोई प्रभाव नहीं। इन दलों के मुकाबले कांग्रेस का प्रभाव कहीं अधिक है, लेकिन वह अपनी मूर्खतापूर्ण राजनीति के कारण न तो अपनी छवि सुधार पा रही है और न ही देश की जनता का ध्यान अपनी ओर खींच पा रही है। मित्रों, ४०० से ४४ तक पहुँचने के बाद भी कांग्रेस किस तरह विचारशून्यता और दिशाहीनता से ग्रस्त है, उससे पता चलता है कि उसके नेता और खासकर राहुल गांधी कोई नया विमर्श नहीं खड़ा कर पा रहे हैं। कांग्रेस की एक अन्य समस्या यह भी है कि वह वामपंथी और समाजवादी हिंदुविरोधी सोच से बाहर निकलने के बजाय उससे और अधिक ग्रस्त होती जा रही है. जबकि देश अब हिन्दू-राष्ट्र बनने की ओर बढ़ चुका है. साथ ही यह यात्रा उसी तरह की अत्यंत आरामदायक पांचसितारा पैदल यात्रा है जैसे गांधीजी की एक्सपेंसिव पावर्टी यानि महँगी गरीबी. जनता इस बात को भी समझ रही है.

रविवार, 11 सितंबर 2022

पीके से भयभीत नीतीश

मित्रों, करीब ढाई-तीन दशक पहले की बात है. जब मैं बीए में पढ़ रहा था तब मुझ पर शतरंज सीखने का नशा चढ़ा. मुझे लगता था कि मैं काफी तेज दिमाग का हूँ. मैंने एक किताब शतरंज कैसे खेलें और बिसात-मोहरे आदि खरीदे. जब शतरंज की एबीसीडी सीख ली तब समस्या यह थी कि खेलूँ किसके साथ. उस समय मेरा भांजा बंटी हमारे यहाँ ही रहता था. तब वो मात्र आठ-नौ साल का रहा होगा. मैंने उसे अपने साथ शतरंज खेलने को कहा. शुरू में चूंकि उसे शतरंज आती नहीं थी इसलिए मैं एकतरफा जीतता रहा. फिर एक दिन उसने मुझे मात दे दी. मैं गुस्से में आ गया और बिसात ही पलट दी. थोड़ी देर बाद मुझे लगा कि खेल तो खेल है इसमें जीत-हार होती रहती है. मित्रों, हमारे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी बिहार में अपनी संभावित हार को देखते हुए बौखला गए हैं. दरअसल उनको लगता है कि उनको कोई हरा ही नहीं सकता. वो यह समझने को तैयार ही नहीं हैं कि राजनीति भी शतरंज के खेल के समान होती है और नीतीश जी राजनीति की बिसात पर अब तक की सबसे गलत चाल चल चुके हैं. जिस परिवार और विचारधारा के खिलाफ नीतीश जी पिछले २५ सालों से राजनीति करते आ रहे हैं उसी के चरणों में जाकर लमलेट हो गए. इतना ही नहीं जो परिवार कल तक नीतीश जी की नजरों में भ्रष्टाचार का प्रतीक था आज परम पवित्र हो गया? आज उस परिवार की घोटालों से अर्जित कई हजार करोड़ की संपत्ति अचानक महा सफ़ेद हो गई? सारे पाप समाप्त? मित्रों, इतना ही नहीं नीतीश जी कह रहे हैं कि प्रशांत किशोर जी को दिख नहीं रहा कि उन्होंने बिहार के लिए क्या किया है. तो मैं नीतीश जी से कहना चाहता हूँ कि दिख तो आपको भी नहीं रहा है कि आपने बिहार के लिए क्या किया है. आज झूठे हैं और इसलिए आपका स्वयं को बिहार-निर्माता मानने का घमंड भी झूठा है क्योंकि हर झूठे व्यक्ति में झूठा घमंड होता ही है. बिहार के लिए आपने ऐसा कुछ भी नहीं किया है जिसका आप जिक्र कर सकें. नीतीश जी पहले बिहार में एक ही लालू थे अब हजारों लालू हैं जो कलम दिखाकर आपकी सरकार के हजारों कार्यालयों में जनता को दिन-रात लूट रहे हैं. नीतीशजी आपके कार्यकाल में भ्रष्टाचार और नौकरशाही चरम पर है. हर तरफ रूदन और बर्बादी है. ये जंगल राज टाइप टू है. पहले गुंडे लूट रहे थे अब अधिकारी लूट रहे हैं. रक्षक भक्षक बन गए हैं. लोक शिकायत कार्यालयों में कोई समाधान नहीं मिल रहा सिर्फ मामलों को निष्पादित किया जाता है. जज को दारोगा न सिर्फ उनके चेंबर में घुसकर पीटता है बल्कि उसके खिलाफ एफआईआर भी दर्ज करता है और आप कहते हैं कि बिहार में कहाँ जंगल राज है. आपको अपनी ही आँख का ढेढ़र सूझ नहीं रहा है? आपके सातों निश्चय बहुत पहले दम तोड़ चुके हैं. तोड़ते भी क्यों नहीं आपने सारे ईमानदार अधिकारियों को मक्खी मारने का काम जो दे रखा है और सारे बेईमान अधिकारियों को फिल्ड में लगा रखा है. मित्रों, पूरी बिहार सरकार का ऐसा कोई महकमा नहीं जो ठीक-ठाक काम कर रहा हो. पुलिस स्वयं सबसे ज्यादा कानून तोडती है, थानों में बिना रिश्वत एफआईआर दर्ज नहीं होता. बीपीएससी दुकान बन गई है, पुल उद्घाटन से पहले गिर जा रहे हैं, नौकरी मांगने पर लाठी मारी जाती है, तिरंगे तक का अपमान किया जाता है लेकिन अधिकारी का बाल भी बांका नहीं होता. बिहार में सरकार नाम की चीज नहीं है और नीतीश जी प्रधानमंत्री बनकर पूरे भारत को बिहार बना देने के सपने देख रहे हैं. एक शाहे बेखबर मुग़ल बादशाह बहादुर शाह प्रथम था और दूसरे नीतीश कुमार जी हुए हैं. एक और मुग़ल बादशाह शाह आलम के बारे में कहा जाता था कि शहंशाहे शाह आलम, दिल्ली ते पालम. अर्थात शाह आलम का शासन तो कम-से-कम दिल्ली से पालम तक था नीतीश जी का कहीं नहीं है. मित्रों, पूरे बिहार की जनता के विश्वास के साथ धोखा करने वाले, पूरे बिहार की जनता के त्याग के साथ धोखा करनेवाले नीतीश कुमार को अब भी लगता है कि वो बिना कोई उल्लेखनीय काम किए सिर्फ सामाजिक समीकरण के बल पर फिर से चुनाव जीत जाएंगे. नीतीश जी सत्ता के नशे से बाहर आईए. आप प्रशांत जी से भयभीत हैं इसलिए अंड-बंड बोल रहे हैं. २०१५ में आपके सारथी रहे प्रशांत किशोर जी ने अब आपकी निकम्मी सरकार को उखाड़ फेंकने का बीड़ा उठा लिया है. २ अक्तूबर से उनका दांडी मार्च भी शुरू हो जाएगा जो आपके घमंड के ताबूत की आखिरी कील साबित होगा. बस दिन गिनने शुरू कर दीजिए.

रविवार, 4 सितंबर 2022

जय बोलो सुशासन की

हर दफ्तर में घूसासन की, दागी मंत्री के शपथासन की, कुर्सी पर चिपकासन की, जय बोलो सुशासन की. पुलिस के लूटासन की, सीओ के मनमनासन की, राजस्व कर्मचारी के झांसन की, काम के लटकासन की, जय बोलो सुशासन की. शिक्षा के मरणासन की, अस्पतालों के सड़नासन की, डॉक्टर इंजिनियर के कुबेरासन की, गांजा चिलम भाषण की, जय बोलो सुशासन की. सड़कों, बांधों के टूटासन की, पुलों के गिरासन की, पीएम बनने के स्वपनासन की, जय बोलो सुशासन की. भ्रष्ट परिवार से हाथ मिलासन की, पल्टूराम के पलटासन की, डाल डाल कूदासन की, नैतिकता के शीर्षासन की, बंदर के हाथ में शासन की, जय बोलो सुशासन की. जनता दरबार के ढोंगासन की, गुंडाराज के लौटासन की, सरकार के लापतासन की, जय बोलो सुशासन की.