रविवार, 18 सितंबर 2022
राहुल गाँधी की भारत तोड़ो यात्रा
मित्रों, तथाकथित भारत जोड़ो यात्रा के क्रम में राहुल गाँधी कन्याकुमारी, तमिलनाडु से यात्रा शुरू कर फिलहाल केरल में है। वाम दलों द्वारा शासित इस राज्य में यह यात्रा करीब 18 दिन रहेगी। ज्ञात हो कि केरल की वायनाड लोकसभा क्षेत्र से राहुल गांधी सांसद हैं। 20 लोकसभा सीटों वाले केरल की राष्ट्रीय राजनीति में वैसी अहमियत नहीं, जैसी कहीं अधिक सीटों वाले उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बंगाल आदि की है। सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि यह यात्रा चुनाव वाले राज्यों हिमाचल और गुजरात से नहीं गुजर रही है।
मित्रों, अब यह कहा जा रहा है कि यह यात्रा पूरी हो जाने के बाद उसका दूसरा चरण गुजरात से शुरू होगा। इसका अर्थ है कि यह काम करीब पांच माह बाद होगा। भारत जोड़ो यात्रा केरल में तो 18 दिन रहेगी, लेकिन 80 सीटों वाले उत्तर प्रदेश में चार-पांच दिन। इसे लेकर सवाल उठ रहे हैं और सबसे पहला सवाल केरल सरकार का नेतृत्व कर रही माकपा ने उठाया। उसने इसे सीट जोड़ो यात्रा करार दिया, जिसके जवाब में कांग्रेस ने उसे भाजपा की बी टीम बता दिया। ध्यान रहे कि माकपा के साथ मिलकर कांग्रेस ने बंगाल में विधानसभा चुनाव लड़ा था। जिससे लगता है कि यह यात्रा भारत जोड़ो यात्रा नहीं बल्कि विपक्षी एकता तोड़ो यात्रा है.
मित्रों, एक समय उत्तर प्रदेश कांग्रेस का गढ़ था। नेहरू, इंदिरा और राजीव गांधी यहीं से चुनाव जीतकर प्रधानमंत्री बने, लेकिन लगता है कि कांग्रेस इस राज्य में अपने लिए कोई उम्मीद नहीं देख रही है। भारत जोड़ो यात्रा का उत्तर प्रदेश में केवल चार-पांच दिन का सफर कांग्रेसजनों के लिए भी आश्चर्य का विषय है। कांग्रेस प्रवक्ता जयराम रमेश की मानें तो इस यात्रा का उद्देश्य पार्टी को मजबूती देना है, न कि विपक्षी एकता को बल देना, लेकिन वह इसकी अनदेखी कर रहे हैं कि कांग्रेस अपने बूते कितनी भी मजबूती पा ले, बिना गठबंधन वह कोई ख़ास छाप नहीं छोड़ पाएगी। जयराम रमेश का यह भी मानना है कि यदि कांग्रेस मजबूत होगी तो विपक्षी दल खुद उसके साथ आ जाएंगे, पर यह भी उनकी एक भूल ही है, क्योंकि अधिकांश भाजपा विरोधी दल उसकी कमजोरी का लाभ उठाकर उसके ही वोट बैंक में सेंध लगा रहे हैं। कांग्रेस इसीलिए कमजोर हुई, क्योंकि वह क्षेत्रीय दलों को साथ लेने के फेर में अपनी राजनीतिक जमीन उनके लिए छोड़ती गई। कांग्रेस भले ही यह कहे कि इस यात्रा का उद्देश्य पार्टी को मजबूती देना है, लेकिन लगता यही है कि इसका मकसद राहुल गांधी का कद बढ़ाना भर है।
मित्रों, भारत जोड़ो यात्रा को शुरू हुए अभी दस दिन ही हुए हैं, लेकिन वह कई विवादों से दो-चार होकर विवादों भरी यात्रा बन चुकी है। एक विवाद जहरीले नफरती बयान देने वाले पादरी से राहुल की मुलाकात से उभरा और दूसरा कांग्रेस की ओर से आरएसएस के गणवेश को आग लगाते हुए ट्वीट से। इस ट्वीट से यही स्पष्ट हुआ कि कांग्रेस भारत जोड़ने के नाम पर आरएसएस और भाजपा पर निशाना साधना चाहती है। साथ ही राहुल और पादरी की मुलाकात का वीडियो भी वायरल हुआ है, जिसमें जॉर्ज पोन्नैया राहुल को समझाते नजर आते हैं कि केवल जीसस क्राइस्ट यानी यीशु मसीह ही एकमात्र वास्तविक भगवान हैं, कोई शक्ति देवी या देवता भगवान नहीं हैं। मतलब जिन हिन्दुओं को कांग्रेस को अपने साथ जोड़ना चाहिए उन्हीं हिन्दुओं को वो उल्टे नाराज कर रही है. कांग्रेस आज भी यह मानने को तैयार नहीं है कि हिंदुस्तान हिन्दुओं का देश है. ऐसा लगता है कि भारत को जोड़ने के लिए नहीं बल्कि हिन्दुओं से नफरत करनेवालों को अपने साथ जोड़ने निकले हैं। तभी तो उन्होंने जॉर्ज पोन्नैया जैसे व्यक्ति को भारत जोड़ो यात्रा का पोस्टर बॉय बनाया है, जिसने हिंदुओं को चुनौती दी, धमकी दी और भारत माता के बारे में अनुचित बातें कहीं। इसमें संदेह नहीं कि स्वयं कांग्रेस का हिंदू विरोधी होने का लंबा इतिहास रहा है।
मित्रों, सवाल उठता है और उठाना भी चाहिए कि यदि कांग्रेस का उद्देश्य वास्तव में भारत को जोड़ना है, तो फिर वह अपने आचार-व्यवहार के माध्यम से आरएसएस-भाजपा की विचारधारा से प्रभावित हिन्दुओं को आकर्षित करने का काम क्यों नहीं करती? यदि भारत जोड़ो यात्रा का उद्देश्य सचमुच लोगों से जुड़ना है तो फिर विरोधी दलों पर अनावश्यक टीका-टिप्पणी करने का क्या मतलब है? इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि इस यात्रा में राहुल गांधी वही सब बयान दोहरा रहे हैं, जो वह बीते तीन-चार साल से कहते चले आ रहे हैं। इसका अर्थ है कि वह आम जनता के समक्ष कोई नया विचार नहीं रखने जा रहे हैं या फिर उनके पास कोई नवीन विचार है ही नहीं।
मित्रों, भारत जोड़ो यात्रा के बीच ही गोवा के आठ कांग्रेस विधायक जिस तरह टूट कर भाजपा में चले गए, उससे कांग्रेस को झटका तो लगा ही, यह भी प्रकट हुआ कि ये विधायक पार्टी में अपना कोई भविष्य नहीं देख रहे थे। जब विधायकों का यह हाल है तो सामान्य कार्यकर्ताओं के मनोबल का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। कांग्रेस में ऐसे नेताओं की संख्या बढ़ती जा रही है, जो यह मान रहे हैं कि कुछेक चाटुकार नेता गांधी परिवार का गुणगान कर अपना हित साधने में लगे हुए हैं। उनके पास ऐसी कोई रणनीति नहीं कि देश को आगे कैसे ले जाया जाए और जनता के सामने क्या ठोस विकल्प पेश किया जाए? उनकी इस खोखली सोच के कारण ही इस समय जदयू, टीआरएस, तृणमूल कांग्रेस आदि अपने-अपने हिसाब से विपक्षी एका की रणनीति पर आगे बढ़ रहे हैं।
मित्रों, मरा हुआ हाथी भी सवा लाख का होता है. कांग्रेस के बिना विपक्षी एकता संभव नहीं, लेकिन ममता बनर्जी और केसीआर उसे साथ लिए बिना विपक्ष को एकजुट करना चाहते हैं। ये नेता यह भूल रहे हैं कि कांग्रेस के पास आज भी कहीं अधिक वोट हैं और उसे केंद्र में शासन करने का अनुभव भी है। इस सबके बावजूद कांग्रेस जिस तरह गांधी परिवार को ही अपना उद्धारक बताने में समय जाया कर रही है, वह उसकी मुश्किलों को बढ़ा रहा है।
मित्रों, कांग्रेस की मुश्किलें इसलिए भी बढ़ रही हैं, क्योंकि सोनिया गांधी हों या राहुल, उनका एकमात्र लक्ष्य हर विषय पर प्रधानमंत्री को कोसना और उन्हें नीचा दिखाना है। राहुल यही काम भारत जोड़ो यात्रा के जरिये कर रहे हैं। उनके बयान उनकी नकारात्मक राजनीति को ही रेखांकित कर रहे हैं। भारत जोड़ो यात्रा यह भी बता रही है कि राहुल उन राज्यों से बचना चाहते हैं, जहां भाजपा राजनीतिक रूप से कहीं अधिक सशक्त है। भाजपा विरोधी दलों के नेता जिस तरह अपने-अपने तरीके से विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं, उससे यही स्पष्ट होता है कि उनका लक्ष्य प्रधानमंत्री पद के लिए अपनी दावेदारी को मजबूत करना है। मुश्किल यह है कि इनमें से किसी नेता का अपने राज्य के बाहर कोई प्रभाव नहीं। इन दलों के मुकाबले कांग्रेस का प्रभाव कहीं अधिक है, लेकिन वह अपनी मूर्खतापूर्ण राजनीति के कारण न तो अपनी छवि सुधार पा रही है और न ही देश की जनता का ध्यान अपनी ओर खींच पा रही है।
मित्रों, ४०० से ४४ तक पहुँचने के बाद भी कांग्रेस किस तरह विचारशून्यता और दिशाहीनता से ग्रस्त है, उससे पता चलता है कि उसके नेता और खासकर राहुल गांधी कोई नया विमर्श नहीं खड़ा कर पा रहे हैं। कांग्रेस की एक अन्य समस्या यह भी है कि वह वामपंथी और समाजवादी हिंदुविरोधी सोच से बाहर निकलने के बजाय उससे और अधिक ग्रस्त होती जा रही है. जबकि देश अब हिन्दू-राष्ट्र बनने की ओर बढ़ चुका है. साथ ही यह यात्रा उसी तरह की अत्यंत आरामदायक पांचसितारा पैदल यात्रा है जैसे गांधीजी की एक्सपेंसिव पावर्टी यानि महँगी गरीबी. जनता इस बात को भी समझ रही है.
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