सोमवार, 28 नवंबर 2016

विपक्ष की दाढ़ी में तिनका

मित्रों, 15 अगस्त,1947 के बाद से ही अपने देश में पक्ष और विपक्ष के बीच यह अघोषित समझौता रहा है कि जब भी कोई पार्टी सत्ता में रहती है तो उन दूसरी पार्टियों को बचाती है जिनको गरियाकर या अपदस्थकर वो सत्ता में आती है। सौभाग्यवश इन दिनों पहली बार केंद्र में ऐसी सरकार सत्तारूढ़ है जो किसी को भी बचा नहीं रही है बल्कि देश को बचाने की सच्चे मन से कोशिश कर रही है। वरना इससे पहले जो तथाकथित प्रधानमंत्री थे वे पकड़े गए कालेधन को छुड़ाने के लिए आयकर आयुक्त को एक-एक दिन में 27 बार खुद ही फोन करते थे।
मित्रों, हमने-आपने सबने अकबर-बीरबल की चोर की दाढ़ी में तिनके वाली कहानी पढ़ी है। उक्त कहानी में किसी की भी दाढ़ी में तिनका नहीं होता लेकिन जो चोर होता है वो बीरबल के झाँसे में आकर अपनी दाढ़ी में तिनका खोजने लगता है। कालेधन के खिलाफ मोदी सरकार ने जो मुहिम छेड़ी है उसके खिलाफ जिस तरह से विपक्ष बौखलाया हुआ है उससे स्वतः ही पता चल जाता है कि किसके घर में कितना बोरा 500-1000 का नोट रखा हुआ है। वैसे जिन लोगों को लगता होगा कि मोदी सरकार का यह कालाधन के विरूद्ध पहला और आखिरी कदम है उनको बता दूँ कि अभी तो महफिल शुरू ही हुई है। अभी तो उसका चरमबिंदु (क्लाईमेक्स) पर पहुँचना बाँकी है। अभी तो भ्रष्टाचार की कई परतों को उघाड़ना बाँकी है,बरगद की कई जटाओं को काटना शेष है।
मित्रों, कहावत है कि जिनके मकान शीशे के होते हैं वे दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंका करते। जाहिर है कि जिसके पास खुद अपार कालाधन होगा वो श्यामालक्ष्मी के दूसरे उपासकों के विरूद्ध भला कैसे कार्रवाई करेगा? फिर मोदी के पास तो अपना सफेद धन भी नहीं है कालाधन तो दूर की बात है। कदाचित, मोदी के हाथों अपनी दुर्गति का अंदाजा विपक्ष के लुटेरों को पहले से ही था इसी वजह से वे 2014 में मोदी के पीएम बनने के खिलाफ एकजुट हो गए थे।
मित्रों, इन दिनों लालू परिवार दिल्ली में 100 करोड़ की लागत से राबड़ी भवन बना रहा है। कहाँ से आया उस लालू परिवार के पास इतना अकूत धन जो आज से 35-40 साल पहले पटना में एक कमरे के फ्लैट में किराये पर रहता था? आज सोनिया गांधी के बारे में विदेशी पत्र-पत्रिकाओं में छप रहा है कि उसके पास ब्रिटेन की महारानी से भी ज्यादा संपत्ति है। एक जमाने की बार-गर्ल महाकंगाल एंटोनिया माइनो उर्फ सोनिया गांधी के पास कहाँ से आई इतनी अकूत संपत्ति? इसी तरह से केजरीवाल, मुलायम, ममता, माया आदि ने भी कभी कोई व्यवसाय तो किया नहीं फिर इन भिखमंगों के पास कहाँ से आ गया उनके पास इतना पैसा जिसके छिन जाने से या छीन लिए जाने की प्रबल संभावना से वे पगला गए हैं?
मित्रों, इन दिनों कालेधन के खिलाफ संग्राम छिड़ने से सिर्फ राजनेता ही परेशान नहीं हैं बल्कि कई न्याय की कथित मूर्ति और बैंक यूनियन वाले भी अलबला रहे हैं। कहना न होगा कि नोट बंद होने की चोट इनको भी करारी पड़ी है। कहावत है कि जाके पैर न फटे बिबाई सो क्या जाने पीड़ पराई। जब किसी लुटेरे से उसकी जीवनभर की लूट की कमाई छीन ली जाती है तो उस हत्यारे पर क्या गुजरती है ये या तो वही जानता है या फिर उस लूट से मौज उड़ानेवाला उसका परिवार जानता है। जब कुत्तों के झुड में से किसी एक की पूँछ गाड़ी के नीचे आती है तो हर कोई बिना पूछे ही जान जाता है कि किस कुत्ते की पूँछ कुचली गई है।
मित्रों, मोदी सरकार बड़ी बेरहम है। जबरा मारे भी और रोये भी न दे। वह बेरहमी से मार भी रही है और रोने भी नहीं दे रही। चिल्लाये तो हर कोई जान जाएगा कि इसकी पूँछ भी कुचली गई है और चुप रहे तो पूँछ से हाथ ही धोना पड़ेगा। गरीबों का क्या उसको तो अपना लुटा हुआ पैसा वापस चाहिए, चमकता हुआ भारत चाहिए, अभावमुक्त सुखी जीवन चाहिए जिनके झूठे सपने उसे आज तक बारी-बारी से सत्ता में रहे लुटेरे दिखाते रहे हैं।

शुक्रवार, 25 नवंबर 2016

नोटबंदी से मिलेगी भारतीय अर्थव्यवस्था को संजीविनी

मित्रों, हमने पिछले कुछ दिनों से गौर किया है कि मनमोहन सिंह समेत भारत के सारे अर्थशास्त्री मोदी सरकार द्वारा की गई नोटबंदी से होनेवाले अल्पकालिक नुकसान की चर्चा करते थक नहीं रहे हैं लेकिन इस दौरान वे इससे होनेवाले दीर्घकालीन फायदे की संभावना को चालाकी से छिपा जा रहे हैं। जबकि वास्तविकता यह है कि नोटबंदी के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था कुंदन की तरह चमकनेवाली है। यह सही है कि कुछ दिनों के लिए जीडीपी विकासदर में कमी आएगी लेकिन उसके बाद जब तेजी आएगी तो इस कदर आएगी कि दुनियाभर की आँखें फटी-की-फटी रह जाएंगी।
मित्रों, नोटबंदी से
1- जाली नोटों का चलन ख़त्म हो जायेगा। इससे देश की अर्थव्यवस्था में सुधार आएगा और देश की अर्थव्यवस्था और मजबूत होगी। इसका असर कुछ हद तक दिखना शुरू भी हो गया है।

2- पैसे की वजह से जो अशांति फैलती थी, वह रुक गयी है। इससे आपराधिक घटनाओं में कमी आई है।

3- हवाला के जरिये जो पैसा नक्सलियों, आतंकियों और जिहादियों तक पहुँचता था, उसपर लगाम लग गयी है। सूत्रों से मिली खबर के अनुसार उनको पैसा मिलना बंद हो गया है। जैसा कि हम सभी जानते हैं, इस घोषणा के बाद कश्मीर में शांति का माहौल बरक़रार है। वहाँ पर फिर से स्कूल खुलने लगे हैं, दुकानें जो कई दिनों से बंद पड़ी थीं, अब शुरू हो चुकी हैं। लोग फिर से खुद को सुरक्षित महसूस कर रहे हैं। पत्थारबाजों में भी भारी कमी आयी है। अगर आतंकियों को पैसा मिलना पूरी तरह से बंद हो जाए तो घाटी में फिर से शांति आ सकती है।

4- बैंक ने हॉस्पिटल्स के लिए मोबाइल एटीएम शुरू किये हैं, जिससे मरीजों को पैसा निकालने के लिए कहीं और ना जाना पड़े।

5- जन- धन अकाउंट अब पैसे से भरने लगे हैं। सरकार ने यह योजना इसी लिए शुरू की थी कि लोग बचत करना सीखें और अपने भविष्य के लिए कुछ बचत कर सकें। जब से विमुद्रीकरण हुआ है, लोग अपने अकाउंट में पैसे जमा कर रहे हैं। लोग अब बैंक जाने लगे हैं। देश में तो कई ऐसे लोग भी हैं जो, इस योजना की वजह से पहली बार बैंक जा रहे हैं।

6- सिर्फ स्टेट बैंक में अब तक देश में 3 लाख करोड़ रूपये से ज्यादा जमा किये जा चुके हैं। जो एक बहुत बड़ी रकम होती है।

7- सभी बड़े उद्योगपति अपने टैक्स जमा कर रहे हैं, जो पिछले कई सालों से झूठ बोलकर कम टैक्स देते थे। इससे देश का विकास होने वाला है।

8- सभी बड़े सुनार अब अपने द्वारा बेचे गए सोने के गहनों का रिकॉर्ड रख रहे हैं और उनकी एंट्री फॉर्म में कर रहे हैं।

9- जिन लोगों ने अपना टैक्स, बिजली बिल, फ़ोन बिल कई सालों से नहीं भरा हुआ था, अब वो भी अपना बिल जमा कर रहे हैं।

10- जितने भी तरीके के टैक्स होते हैं, उनकी चोरी पर लगाम लगी है और चोरी करने वालों के होश उड़ चुके हैं। डर की वजह से वे सभी अपने टैक्स जमा कर रहे हैं।

11- छोटे- छोटे दुकानदार भी अब डिजिटल तरीके से पैसे का लेन देन शुरू कर रहे हैं। जो लोग पहले केवल कैश लिया करते थे, अब वो भी पेटिएम और डिजिटल वैलेट का इस्तेमाल कर रहे हैं।

12- भारत के राजकोषीय घाटे में कमी आयी है।

13- देश के सभी बिजनेसमैन अब अपने काले धन को उजागर कर रहे हैं, और टैक्स जमा कर रहे हैं। इतना ही नहीं वह पिछले टैक्स के साथ ही साथ आगे के टैक्स भी भर रहे हैं। पिछले दिनों ऐसी कई घटनाएं देखने को मिल रही हैं, जिसमें ऐसे लोग दौड़कर आ रहे हैं और अपनी संम्पति को घोषणा कर रहे हैं और अपना टैक्स भर रहे हैं।

मित्रों, इतना ही नहीं मूडीज कॉर्पोरेट फाइनेंस ग्रुप की प्रंबध निदेशक लौरा एक्रेस ने कहा, ‘कॉर्पोरेट कंपनियों की आर्थिक गतिविधियों में गिरावट आएगी, क्योंकि नकदी की कमी से बिक्री की मात्रा गिरेगी। इससे सबसे ज्यादा प्रभावित खुदरा विक्रेता होंगे।’ वहीं, मध्यम अवधि में नोटबंदी का कॉर्पोरेट पर असर इस बात से निर्धारित होगा कि बाजार में वापस कितनी तेजी से तरलता आती है और लेनदेन का प्रवाह वापस पहले जितना होता है। सरकार पहले जितने नोट वापस बाजार में लौटने से रोक सकती है, ताकि कैशलेस लेनदेन और डिजिटल भुगतान को बढ़ावा दिया जा सके। इससे भारत में व्यापार का माहौल सुधरेगा। इससे उत्पादकों तक तेजी से भुगतान पहुंचेगा और भ्रष्टाचार पर रोक लगेगी, लेकिन इससे देर तक अर्थव्यवस्था में व्यवधान पैदा होगा। भारत में अभी भी व्यापक तौर पर नकदी का इस्तेमाल होता है और डिजिटल भुगतान की तरफ बढ़ने के लिए उपभोक्ता की आदतों में बदलाव की जरूरत होगी।
इस फैसले से देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में दीर्घकालिक रूप से एक से दो फीसदी की बढ़ोतरी के रूप में इकोनॉमी को फायदा लेगा।भारत में जीडीपी का 12 फीसदी करंसी सर्कुलेशन में है, जबकि दूसरी इमर्जिंग इकोनॉमी में यह तीन से चार फीसदी है और विकसित देशों में इससे भी कम है। इस कदम के बाद ट्रांजैक्शन की बड़ी संख्या कैशलेस की ओर जाएगी। कैशलेस ट्रांजैक्शन का ट्रेल मिलना आसान है और उसके चलते इकोनॉमी के बड़े हिस्से को टैक्स के दायरे में आना आसान हो जाएगा। इस कदम से सरकार को करीब तीन लाख करोड़ का फायदा होने की उम्मींद है। यह अभी सिर्फ अनुमान है पर लॉग टर्म में यह तय है कि इससे सरकार का रेवेन्यू बढ़ने वाला है।
वैसे सरकार अगर चाहे तो उसके सामने उतनी ही मात्रा में नोट छापने का विकल्प भी खुला हुआ है जितना कि संचालन से बाहर हुआ है। अगर सरकार ऐसा करती है तो उसके पास विकास कार्यों के लिए भारी मात्रा में धन उपलब्ध होगा।
इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि बैंकों के डिपॉजिट बढ़ जाएंगे और उनकी लैंडिंग क्षमता बढ़ने के साथ ही डिपाजिट्स पर लागत भी कम आएगी। जिससे उनके इंटरेस्ट रेट में कमी आसान हो जाएगी। कुछ बैंकों ने तो अपने ब्याज दर में कटौती की घोषणा भी कर दी है। एसबीआई और आईसीआईसीआई ने डिपॉजिट दरें घटा दी हैं। वहीं, प्रॉपर्टी रिसर्च कंपनी जेएलएल ने नोटबंदी के फैसले के बाद अगले छह महीने के भीतर प्रॉपर्टी की कीमतों में 25-30 फीसदी की कमी आने का अनुमान है। इससे स्पष्ट कि भविष्य में लोगों के लिए अपने घर का सपना पूरा करना आसान हो जाएगा।
नोटबंदी से सेक्‍टर-बैंकिंग, प्लास्टिक करंसी, ई-कॉमर्स, डिजिटल वॉलेट, आईटी को भी फायदा होगा।  कुछ रिपोर्ट्स का दावा है कि देश में करीब 17 लाख करोड़ रुपए की करंसी में 3 लाख करोड़ रुपए ब्लैकमनी के रूप में हैं। केयर रेटिंग की रि‍पोर्ट के मुताबि‍क, 500 और 1000 रुपए के नोटों को बाहर करने से यह दोबारा सि‍स्‍टम में नहीं आ पाएंगे और मनी सप्‍लाई अपने आप घट जाएगी। साथ ही, देश की जीडीपी के करीब 11 फीसदी हिस्से वाले रियल एस्टेट सेक्टर, स्टॉक मार्केट और गोल्ड में ब्लैकमनी के फ्लो पर काफी हद तक अंकुश लगेगा।
अप्रैल, 2017 से जीएसटी लागू होने जा रहा है। इस लिहाज से यह एक इंटीग्रेटेड स्टेप है, जिससे देश को आगे खासा फायदा मिलेगा। भारत में अभी कुल 2.87 करोड़ लोग इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करते हैं, लेकिन इनमें से महज 1.25 करोड़ लोग टैक्स भरते हैं। इससे यह संख्या खासी बढ़ जाएगी। टैक्‍स बेस बढ़ने से सरकार के खजाने में भी ज्यादा पैसे आएंगे।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि किसी देश की 10% से कम आबादी आयकर देती हो, तो वह देश प्रगति नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि इससे भ्रष्टाचार को समाप्त करने और बैंकिंग सेवाओं की लागत नीचे लाने में मदद मिलेगी। वैश्विक ईमानदारी इंडेक्स में भारत तेजी से ऊपर चढ़ेगी।
मित्रों, अभा भारत की 60% संपत्ति पर मात्र 1% धनकुबेरों का कब्जा है। नोटबंदी के बाद अमीर-गरीब के बीच की खाई में कमी आएगी जिससे माओवाद को धक्का लगेगा और आंतरिक शांति स्थापित होगी।

शनिवार, 19 नवंबर 2016

बैंकों के ग्राहक सेवा केंद्र बने प्रताड़ना केंद्र

मित्रों, हम जानते हैं कि बिहार भारत का सबसे पिछड़ा राज्य है। इसमें कुछ योगदान निश्चित रूप से बिहारियों के स्वयं का है लेकिन अगर हम कहें बिहार के पिछड़ापन के लिए बैंक भी कम जिम्मेदार नहीं हैं तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी। आजादी और बैंकों के राष्ट्रीयकरण के बाद से ही बैंकों का ऋण-जमा अनुपात बिहार में ही सबसे कम रहा है,क्यों? विजय माल्या जितना चाहे उतना कर्ज पा जाता है लेकिन एक बिहारी अगर अपनी मेहनत से जमा किया गया पैसा भी निकालने जाए तो बैंकवाले उसके साथ इस कदर बेरूखी से पेश आते हैं मानों वो बैंक लूटने आया हो। ऐसा नहीं है कि बिहार में अंबानी-टाटा पैदा नहीं हो सकते लेकिन जब बैंक पैसा देगा ही नहीं तो व्यवसायी व्यवसाय करेगा कैसे? पता नहीं प्रधानमंत्री द्वारा घोषित स्टार्ट अप में बिहार की हालत क्या है लेकिन मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि बिहार इसमें भी शर्तिया सबसे पीछे होगा। ऐसा भी नहीं है कि बिहार के सभी सरकारी बैंकों के प्रबंधक बिहार के बाहर से हैं बल्कि लगभग सारे-के-सारे बिहारी हैं लेकिन उनकी नीयत गंदी है। वे सोंचते हैं कि जब तक उनको व्यक्तिगत आर्थिक लाभ न हो वे किसी की मदद क्यों करें? वे यह भी सोंचते हैं किअगर बिहार का विकास होता है तो उनको इससे क्या फायदा होगा?
मित्रों, अब वैशाली जिले के ऐतिहासिक शहर महनार (बुद्धकालीन महानगर) स्थित एसबीआई की शाखा के मैनेजर को ही लें तो श्रीमान का कहना है कि रिजर्व बैंक को जो कहना है कहे हम तो वही करेंगे जो हमारा मन करेगा। श्रीमान का नाम है गोपाल प्रसाद सिंह। महनार एसबीआई से जुड़े 9 ग्राहक सेवा केंद्रों के 10000 ग्राहकों की इनकी जिद के चलते जान पर बन आई है। पहले इन्होंने ग्राहक सेवा केंद्रों को 20000 रुपये प्रति ग्राहक प्रतिदिन जमा और इतनी ही निकासी की मंजूरी दे रखी थी लेकिन अब नोटबंदी के बाद ये प्रति ग्राहक मात्र 2000 रुपये प्रतिदिन ही जमा ले रहे हैं। उस पर जले पर नमक यह कि ग्राहकों की निकासी के लिए सीएसपी को एक भी पैसा नहीं दे रहे जबकि यह खेती-किसानी का मौसम है और सीएसपी के अधिकतर ग्राहक किसान हैं। पता नहीं बिहार की बाँकी जगहों के ग्राहक सेवा केंद्रों को ग्राहकों की जान का ग्राहक बना दिया गया है या नहीं लेकिन बानगी से जो पता चल रहा है घोर निराशाजनक है। कदाचित इसे ही कहते हैं कि खेती कईली जिए ला,बैल बिका गेल बिए ला अर्थात् हमने खेती तो की थी जीने के लिए लेकिन बीज खरीदने में ही बैल को बेचना पड़ गया।
मित्रों, कल आईसीआईसीआई की हाजीपुर शाखा में भी हमारा जाना हुआ। पता चला कि वहाँ ग्राहकों से एक अतिरिक्त फॉर्म भरवाया जा रहा है जिसमें जमा किए गए पैसों का पूरा विवरण देना होता है। जब हमने बैंक अधिकारी से ऐतराज जताया और कहा कि आरबीआई ने तो इस तरह का कोई आदेश नहीं दिया है तो उनका साफ तौर पर कहना था कि उनका आरबीआई से कोई लेना-देना नहीं है बल्कि वे तो वही करेंगे तो उनके उच्च पदस्थ अधिकारी आदेश देंगे।
मित्रों, अब आप ही बताईए कि इस तरह के बैंकिंग माहौल में कोई राज्य कैसे विकास कर सकता है? किसानों को जब उनका खुद का पैसा बुवाई के मौसम में ही नहीं मिलेगा तो खेती का विस्तार कैसे होगा और बिहार द्वितीय हरित क्रांति का ईंजन कैसे बनेगा? किसी के पैर बांध दीजिए फिर कहिए कि ये तो दौड़ ही नहीं रहा है!
मित्रों, हमारी यह दिली ख्वाहिश है कि नोटबंदी सिर्फ नोटबंदी तक ही सीमित नहीं रहे बल्कि इसे बैंक-परिवर्तन का महापर्व भी बनाना चाहिए। कहना न होगा कि अगर हमारे बैंकों का कामकाज निराशाजनक न होता तो नोटबंदी के इस कठिन समय में जनता को किंचित भी परेशानी नहीं उठानी पड़ती। इसलिए सरकार को बैंकों के रवैये में मूलभूत बदलाव लाना चाहिए तभी देश में भी जड़ से बदलाव आएगा। तभी भारत निवेश और व्यवसाय की वैश्विक रैंकिंग में तेजी से ऊपर चढ़ेगा। वरना गोपाल का प्रसाद जिसको मिलेगा केवल वहीं सिंह बनेगा और जैसा चलता है चलता रहेगा।

बैंकों के ग्राहक सेवा केंद्र बने प्रताड़ना केंद्र

मित्रों, हम जानते हैं कि बिहार भारत का सबसे पिछड़ा राज्य है। इसमें कुछ योगदान निश्चित रूप से बिहारियों के स्वयं का है लेकिन अगर हम कहें बिहार के पिछड़ापन के लिए बैंक भी कम जिम्मेदार नहीं हैं तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी। आजादी और बैंकों के राष्ट्रीयकरण के बाद से ही बैंकों का ऋण-जमा अनुपात बिहार में ही सबसे कम रहा है,क्यों? विजय माल्या जितना चाहे उतना कर्ज पा जाता है लेकिन एक बिहारी अगर अपनी मेहनत से जमा किया गया पैसा भी निकालने जाए तो बैंकवाले उसके साथ इस कदर बेरूखी से पेश आते हैं मानों वो बैंक लूटने आया हो। ऐसा नहीं है कि बिहार में अंबानी-टाटा पैदा नहीं हो सकते लेकिन जब बैंक पैसा देगा ही नहीं तो व्यवसायी व्यवसाय करेगा कैसे? पता नहीं प्रधानमंत्री द्वारा घोषित स्टार्ट अप में बिहार की हालत क्या है लेकिन मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि बिहार इसमें भी शर्तिया सबसे पीछे होगा। ऐसा भी नहीं है कि बिहार के सभी सरकारी बैंकों के प्रबंधक बिहार के बाहर से हैं बल्कि लगभग सारे-के-सारे बिहारी हैं लेकिन उनकी नीयत गंदी है। वे सोंचते हैं कि जब तक उनको व्यक्तिगत आर्थिक लाभ न हो वे किसी की मदद क्यों करें? वे यह भी सोंचते हैं किअगर बिहार का विकास होता है तो उनको इससे क्या फायदा होगा?
मित्रों, अब वैशाली जिले के ऐतिहासिक शहर महनार (बुद्धकालीन महानगर) स्थित एसबीआई की शाखा के मैनेजर को ही लें तो श्रीमान का कहना है कि रिजर्व बैंक को जो कहना है कहे हम तो वही करेंगे जो हमारा मन करेगा। श्रीमान का नाम है गोपाल प्रसाद सिंह। महनार एसबीआई से जुड़े 9 ग्राहक सेवा केंद्रों के 10000 ग्राहकों की इनकी जिद के चलते जान पर बन आई है। पहले इन्होंने ग्राहक सेवा केंद्रों को 20000 रुपये प्रति ग्राहक प्रतिदिन जमा और इतनी ही निकासी की मंजूरी दे रखी थी लेकिन अब नोटबंदी के बाद ये प्रति ग्राहक मात्र 2000 रुपये प्रतिदिन ही जमा ले रहे हैं। उस पर जले पर नमक यह कि ग्राहकों की निकासी के लिए सीएसपी को एक भी पैसा नहीं दे रहे जबकि यह खेती-किसानी का मौसम है और सीएसपी के अधिकतर ग्राहक किसान हैं। पता नहीं बिहार की बाँकी जगहों के ग्राहक सेवा केंद्रों को ग्राहकों की जान का ग्राहक बना दिया गया है या नहीं लेकिन बानगी से जो पता चल रहा है घोर निराशाजनक है। कदाचित इसे ही कहते हैं कि खेती कईली जिए ला,बैल बिका गेल बिए ला अर्थात् हमने खेती तो की थी जीने के लिए लेकिन बीज खरीदने में ही बैल को बेचना पड़ गया।
मित्रों, कल आईसीआईसीआई की हाजीपुर शाखा में भी हमारा जाना हुआ। पता चला कि वहाँ ग्राहकों से एक अतिरिक्त फॉर्म भरवाया जा रहा है जिसमें जमा किए गए पैसों का पूरा विवरण देना होता है। जब हमने बैंक अधिकारी से ऐतराज जताया और कहा कि आरबीआई ने तो इस तरह का कोई आदेश नहीं दिया है तो उनका साफ तौर पर कहना था कि उनका आरबीआई से कोई लेना-देना नहीं है बल्कि वे तो वही करेंगे तो उनके उच्च पदस्थ अधिकारी आदेश देंगे।
मित्रों, अब आप ही बताईए कि इस तरह के बैंकिंग माहौल में कोई राज्य कैसे विकास कर सकता है? किसानों को जब उनका खुद का पैसा बुवाई के मौसम में ही नहीं मिलेगा तो खेती का विस्तार कैसे होगा और बिहार द्वितीय हरित क्रांति का ईंजन कैसे बनेगा? किसी के पैर बांध दीजिए फिर कहिए कि ये तो दौड़ ही नहीं रहा है!
मित्रों, हमारी यह दिली ख्वाहिश है कि नोटबंदी सिर्फ नोटबंदी तक ही सीमित नहीं रहे बल्कि इसे बैंक-परिवर्तन का महापर्व भी बनाना चाहिए। कहना न होगा कि अगर हमारे बैंकों का कामकाज निराशाजनक न होता तो नोटबंदी के इस कठिन समय में जनता को किंचित भी परेशानी नहीं उठानी पड़ती। इसलिए सरकार को बैंकों के रवैये में मूलभूत बदलाव लाना चाहिए तभी देश में भी जड़ से बदलाव आएगा। तभी भारत निवेश और व्यवसाय की वैश्विक रैंकिंग में तेजी से ऊपर चढ़ेगा। वरना गोपाल का प्रसाद जिसको मिलेगा केवल वहीं सिंह बनेगा और जैसा चलता है चलता रहेगा।

गुरुवार, 17 नवंबर 2016

प्रसव पीड़ा से गुजरता भारत

मित्रों, जबसे मोदी सरकार सत्ता में आई है तभी से कई लोग हैं जिनका फुल टाईम जॉब मोदी जी का विरोध करना रह गया है। मोदी सरकार चाहे कितने भी अच्छे कदम क्यों न उठाए, उनके कदम से देश को कितना भी लाभ क्यों न हो ये बिना सोंचे-समझे उसका विरोध कर देंगे। दुर्भाग्यवश कई बार केंद्र सरकार दबाव में भी आ गई है और अचानक बढ़े कदम को पीछे खींच भी लिया है। जाहिर है कि ऐसी भ्रष्ट शक्तियों के लूट के धन पर जब सरकार हाथ डालेगी तो वे पूरे जी-जान से सरकार का विरोध करेंगे ही।
मित्रों, इन दिनों एक नीतीश कुमार माईनस शरद यादव को छोड़कर पूरा विपक्ष जिस तरह से एकजुट होकर चिल्ल-पों कर रहा है उसके पीछे और कोई कारण नहीं है। इन भ्रष्टाचारियों ने जो अपनी सात पुश्तों के मौज उड़ाने के लिए पैसे और संपत्ति जमा किए थे मोदी सरकार ने अचानक उनसे वह छीन लिया है। जब लुटेरों से लूट का धन छिनेगा तो वे खुश होंगे हम ऐसी उम्मीद कर भी कैसे सकते हैं। अब आप समझ गए होंगे कि केजरी, राहुल, माया, मुलायम, ममता, शिवसेना, कम्युनिस्ट सबके-सब इस समय सारे काम छोड़कर नोट-परिवर्तन का विरोध करने में क्यों जुटे हुए हैं।
मित्रों, कई मीडिया-चैनल और अखबार भी दिन-रात नोट बदलने से उत्पन्न हुई अफरा-तफरी को चढ़ा-बढ़ा कर दिखाने में लगे हुए हैं जबकि वास्तविकता तो यह है कि इस समय जो महायज्ञ चल रहा है वो नोट-परिवर्तन के लिए है ही नहीं। नोट-परिवर्तन तो काफी छोटा काम है असली लक्ष्य तो देश-परिवर्तन का है और नोट-परिवर्तन उस दिशा में उठाया गया छोटा-सा लेकिन प्रभावी कदम है।
मित्रों, मोदी जी ने हमसे 50 दिन मांगे हैं और वादा किया है कि 50 दिनों के बाद नए भारत का जन्म होगा और हम यह भी जानते हैं कि मोदी सरकार का यह कदम पूरी तरह से देशहित में है। हम यह भी जानते हैं कि जन्म से पहले प्रसव-पीड़ा अवश्यंभावी होती है। कोई भी माँ तभी तक इस दर्द से परेशान रहती है जब तक कि बच्चे का जन्म न हो जाए। जैसे ही बच्चा जन्म ले लेता है और वो अपने बच्चे को पहली बार देखती है वैसे ही वो सारी पीड़ा को भूल जाती है। तब उसकी प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहता।
मित्रों, ठीक यही स्थिति इस समय हम भारतवासियों की है। हम सब मिलकर सरकार के साथ कदम मिलाकर एक नए भारत को जन्म देने जा रहे हैं। जिस दिन हम देखेंगे कि भारत बदल गया है हम सारी प्रसव-पीड़ा को भूल जाएंगे और तब हमारी खुशियों का भी ठिकाना नहीं होगा। इसलिए हमें अपने मन में ठान लेना चाहिए कि जिन लोगों ने पिछले 70 सालों में हमारे देश-प्रदेश को लूटा है हम उनके बहकावे में हरगिज नहीं आएंगे चाहे वे भाजपाई ही क्यों न हों। अगर आपकी नजर में बैंकवाले लोगों के साथ मनमानी कर रहे हैं तो मामले को brajvaishali@gmail.com पर ई-मेल कर हमारे सामने लाईए। हम आपकी पीड़ा को अविलंब केंद्र सरकार तक पहुँचाएंगे। हमें महाराणा प्रताप की तरह घास की रोटी ही क्यों न खानी पड़े हम अपने देश को गरीबी की दुनिया से बाहर निकालकर विकास की दुनिया में ऩंबर एक बनाकर रहेंगे।

मंगलवार, 15 नवंबर 2016

बैंकों को सुधारें मोदी जी वर्ना ..........


मित्रों, अपने देश के राष्ट्रीयकृत बैंकों की हालत किसी से छिपी हुई नहीं है. जब भी बैंक जाना होता है तो जैसे हमारी रूह काँप जाती है. जबकि पैसा भगवान बन गया है जाहिर है कि बैंककर्मी जिनके हाथों में जमा लेना और ऋण देना होता है अपने आपको भगवान से भी बड़ा समझते हैं. पासबुक,चेकबुक लेने के लिए ग्राहकों को हफ़्तों दौडाते हैं. खुद मेरे पिताजी को एटीएम के पिन नंबर के लिए ६ महीने तक दौड़ाया गया. यही कारण है कि मैं खुद एटीएम से पैसे निकालकर काम चलाता हूँ कभी बैंक नहीं जाता. लोगों को अपना जमा पैसा निकालने में खून-पसीना एक करना होता है. जब किसी को लोन लेना होता है तब बैंकवाले ऐसे पेश आते हैं जैसे ग्राहक बैंक लूटने आया हो. महीनों भगवान की परिक्रमा करिए फिर चढ़ावा चढ़ाईए तब जाकर कृपा होती है.
मित्रों, हमारे बैंकों की यह हालत सामान्य दिनों में होती है और अभी तो आर्थिक आपातकाल जैसी स्थिति है. स्वाभाविक है कि हमारे बैंक इस स्थिति के लिए पहले से बिलकुल भी तैयार नहीं थे. अब इलाहबाद बैंक की आर.एन.कॉलेज शाखा को ही लें. आज पूरे दिन बैंक में किसी ग्राहक को घुसने नहीं दिया गया. बैंककर्मी अन्दर बैठकर आराम फरमाते रहे और ग्राहकों की भीड़ सुबह से लेकर शाम तक दरवाजे पर ताला खुलने का इंतजार करती रही. शाम ढलने के बाद बाहर जमा लोग जब हल्ला करने लगे तो बैंककर्मी भीतर से गालियाँ देने लगे.
मित्रों, जाहिर है कि इस तरह के हालातवाला यह इकलौता बैंक नहीं है. पहले भी हाजीपुर में एसबीआई, एक्सिस बैंक, एचडीएफसी,यूको बैंक और आईसीआईसीआई को छोड़कर अन्य जितने भी बैंकों के एटीएम हैं सारे-के-सारे बंद रहते थे और अब भी बंद रहते हैं. ऐसे में अगर बैंकों से भी लोगों में खाली हाथ लौटाया जायेगा तो जनता में असंतोष तो भड़केगा ही.
मित्रों, सवाल उठता है कि ऐसे हालात में मोदी जी का शुद्धि यज्ञ कैसे सफल होगा? आज जो लोग बैंक वालों में गालियाँ दे रहे हैं क्या वे कल मोदी जी को गाली नहीं देंगे?  जबकि पूरा देश रोजाना के खर्च के लिए मारा-मारा फिर रहा है ऐसे में अगर किसी बैंक के स्टाफ गेट भीतर से बंद करके आराम फरमा रहे हों तो इसे एक आपराधिक कृत्य ही माना जाना चाहिए और ऐसा करनेवालों के साथ वही व्यवहार होना चाहिए जो एक अपराधी के साथ किया जाता है. मोदीजी जनता तो देश की अर्थव्यवस्था की शुद्धि के लिए हर परेशानी सहने को तैयार हैं लेकिन बेवजह या जानबूझकर दिया गया कष्ट हरगिज नहीं. पहले आप अपने बैंकों को तो शुद्ध करिए अन्यथा पासा पलटते देर नहीं लगेगी और आपको आनेवाले चुनावों में भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है. और आपको होनेवाला नुकसान देश के लिए कहीं ज्यादा नुकसानदेह होगा.

सोमवार, 14 नवंबर 2016

क्या भारत के लिए ट्रंप कार्ड साबित होंगे डोनाल्ड ट्रंप?

मित्रों, जबसे रिपब्लिकन डोनाल्ड ट्रंप दुनिया की एकमात्र महाशक्ति अमेरिका के राष्ट्रपति बने हैं उनके भावी कार्यकाल को लेकर पूरी दुनिया में तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। मसलन, ट्रंप की आर्थिक नीति क्या होगी, ट्रंप की विदेश नीति कैसी होगी, ट्रंप का आईएसआईएस,रूस,चीन या पाकिस्तान के प्रति कैसा व्यवहार होगा। परंतु हमारे देश के बुद्धिजीवी जिस बात को लेकर सबसे ज्यादा मगजमारी कर रहे हैं या चिंतित हैं वह बात यह है कि अमेरिका की भारत-नीति क्या होगी,क्यों होगी।
मित्रों, हम सभी जानते हैं कि डोनाल्ड ट्रंप भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनन्य प्रशंसकों में से हैं। हमारे लिए गौरव की बात है कि चुनाव प्रचार के दौरान उनको बार-बार अमेरिकियों से ऐसा वादा करते हुए देखा गया है कि अगर वे अमेरिका के राष्ट्रपति बनते हैं तो वे उसी तरह से अमेरिका को चलाएंगे जिस तरह से नरेंद्र मोदी भारत को चला रहे हैं वरना कुछ साल पहले तक तो स्थिति ऐसी थी कि जब भारत के प्रधानमंत्री अमेरिका की यात्रा पर जाते थे तो अखबार के पहले पृष्ठ पर उनको स्थान तक नहीं मिलता था।
मित्रों, सवाल उठता है कि चुनाव-प्रचार के दौरान मोदी के नाम की माला जपनेवाले ट्रंप की मोदी से कैसी निभेगी? सवाल इसलिए क्योंकि ऐसा देखा जाता है कि दोस्ती अपनी जगह होती है और देशहित अपनी जगह। बात जब अमेरिका की हो तो यह प्रश्न और भी समीचीन हो जाता है क्योंकि अमेरिका के उत्कर्ष के बाद से ही देखा जाता है कि अमेरिका में सरकार चाहे रिपब्लिकनों की हो या डेमोक्रेटों की उनके लिए नेशन फर्स्ट होता है और लास्ट भी। बांकी दुनिया भाड़ में जाती है तो जाए।
मित्रों, इसलिए हमें ऐसी आशा नहीं करनी चाहिए कि मोदी के भक्त डोनाल्ड ट्रंप उनके अंधभक्त साबित होंगे बल्कि जहाँ-जहाँ भी और जब-जब भी भारत और अमेरिका के हितों में टकराव होगा ट्रंप भारत के प्रति भी उतने ही निष्ठुर साबित होंगे जितना कि अब तक के अन्य अमेरिकी राष्ट्रपति साबित होते रहे हैं। जहाँ तक अवैध अप्रवासियों का सवाल है तो हम समझते हैं कि यह अमेरिका का आंतरिक मामला है ठीक वैसे ही जैसे हमारे लिए बांग्लादेशी घुसपैठियों का मामला। तथापि ऐसा कदापि नहीं होने वाला कि ट्रंप भारत के भले की चिंता उस हद तक करेंगे जिस हद तक स्वयं हमारे पीएम नरेंद्र मोदी करते हैं।
मित्रों, जाहिर-सी बात है कि श्रीमान् राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत के लिए कोई ट्रंप कार्ड सिद्ध नहीं होने जा रहे अपितु अमेरिका की भारत-नीति कमोबेश तब भी वही होती जब हिलेरी क्लिंटन अमेरिका की पहली महिला राष्ट्रपति होतीं। हो सकता है कि ट्रंप की आईएसआईएस, पाकिस्तान, चीन या इस्लाम संबंधी नीति से भारत को अपेक्षाकृत कुछ ज्यादा लाभ हो जाए लेकिन वह सहउप्ताद या बाई प्रोडक्ट या आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के शब्दों में कहें तो सिर्फ और सिर्फ घलुआ होगा।

शनिवार, 12 नवंबर 2016

काले धन पर मोदी सरकार का करारा प्रहार

मित्रों, यह बात किसी से छिपी नहीं है कि हम भारतीय स्वाभाव से ही चोर होते हैं। मेरा तात्पर्य टैक्स चोरी से है। सरकारी नौकरों के लिए तो सही टैक्स देना मजबूरी है लेकिन बांकि लोगों में शायद ही कोई ऐसा होगा जो सही-सही टैक्स भरता होगा। अगर आम जनता ईमानदारी से टैक्स भरने लगे तो काले धन की समस्या उत्पन्न ही नहीं हो।
मित्रों, मोदी सरकार के गठन के बाद जब विदेश से काला धन वापस लाने की बात होने लगी तब भी मेरे जैसे कई बेकार लोगों ने कहा था कि सरकार पहले घरेलू काला धन पर तो कार्रवाई करे विदेश से काला धन लाना तो बाद की बात है। कहना न होगा कि लगभग सारे अर्थशास्त्री इस बात से सहमत हैं कि विदेश गए काले धन से कई गुना ज्यादा काला धन तो अपने देश में ही मौजूद है।
मित्रों, जाहिर है इस सच्चाई से केंद्र सरकार भी नावाकिफ नहीं थी और सरकार के भीतर भी इस समस्या के समाधान को लेकर मंथन चल रहा था। मोदी सरकार ने पहले तो काला धन घोषित करने की योजना बनाई। साथ ही चेतावनी भी दी कि आनेवाला समय उनके लिए काफी कठिन साबित होनेवाला है। जाहिर है कि हमारे देश के ज्यादातर कालाधन धारकों ने सरकार की चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया। कई बड़े नेता तो लगातार पीएम मोदी से अपने हिस्से का १५ लाख रुपया मांगते रहे और आज लोग अपना-अपना माथा पीटते दिख रहे हैं।
मित्रों, कतिपय नेताओं सहित सारे श्यामा लक्ष्मी धारकों के लिए ५०० और १००० रुपये को परिचालन से बाहर करना वज्रपात सिद्ध हुआ है। कहीं पुल के नीचे से रुपयों से भरे बोरे बरामद हो रहे हैं तो कहीं गंगा जी में पानी के बदले रुपया बह रहा है। हाजीपुर के कई धन्ना सेठों ने अपने कर्मियों के बीच बैंकों में जमा करने के लिए कई-कई लाख रुपए बाँट दिए हैं तो कई ने कर्मियों को एडवांस में लाखों रुपए दे दिए हैं। लेकिन कई लोग ऐसे भी हैं जिनके लिए पुराने नोटों को परिचालन से बाहर करना बहुत बड़ी विपत्ति बनकर आई है। आज ही मैंने हाजीपुर,एसबीआई में एक ऐसे व्यक्ति को मैनेजर के आगे हाथ जोड़कर गिडगिडाते हुए देखा जिसकी बेटी की शादी में अब मात्र दो दिन शेष बचे हुए हैं। उस बेचारे के समक्ष तो जीवन और मृत्यु का प्रश्न खड़ा हो गया है। इस तरह की खबरें कई स्थानों से आई हैं कि फलाने ने इसलिए जीवनांत कर लिया क्योंकि वो अपनी पुत्री के विवाह की व्यवस्था के लिए परिचालन योग्य पैसों का प्रबंध पर्याप्त मात्रा में नहीं कर पाया। इतना ही नहीं इस समय पूरा भारत एकबारगी लाईन में खड़ा हो गया है। पास में पैसा है फिर भी लोग परेशान हैं। जिस तरह से बैंकों और डाकघरों में पैसे बदलने के लिए लोगों की लम्बी कतारें लग रही हैं,लोग कुत्ते की तरह अपने ही पैसों को बदलने के लिए मारे-मारे फिर रहे हैं, खेती-किसानी के मौसम में किसान बेहाल है उससे तो यही लग रहा है कि सरकार ने यह कदम आधी-अधूरी तैयारी के साथ उठाया है। साथ ही हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि सारे आर्थिक कारोबारों के ठप्प हो जाने से देश की अर्थव्यवस्था को अरबों का घाटा हुआ है। 
मित्रों, यद्यपि इस समय जौ के साथ घुन यानि बेईमानों के साथ ईमानदार भी पिस रहे हैं फिर भी ऐसा कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि सरकार ने काले धन की समानान्तर अर्थव्यवस्था पर करारा प्रहार किया है जो तमाम आलोचनाओं के बावजूद अत्यावश्यक था। तथापि बेहतर होता अगर सरकार यह कदम पूरी तैयारी के बाद उठाती। आगे भी जब तक मोदी सरकार सत्ता में रहेगी उम्मीद की जानी चाहिए कि लोग करवंचना करने से बचेंगे क्योंकि उनके मन में हमेशा इस बात का डर रहेगा कि कहीं सरकार फिर से बड़े नोटों के परिचालन को बंद न कर दे। हालाँकि विचारणीय प्रश्न यह भी है कि कोई अरब-खरबपति अपनी अघोषित आय का कितना बड़ा हिस्सा घर में रखता होगा,शायद काफी छोटा।

शनिवार, 5 नवंबर 2016

देश बड़ा या एनडीटीवी?

मित्रों,हमारे देश का यह दुर्भाग्य है कि बार-बार हमारे सामने इस तरह के सवाल आते रहते हैं कि हमारे देश में सबसे बड़ी या प्राथमिकता वाली चीज क्या है और क्या होनी चाहिए। अभी कुछ दिन पहले ही मुस्लिम लॉ पर्सनल बोर्ड ने सरेआम कहा कि उनके लिए शरीयत सबसे बड़ी प्राथमिकता है देश या देश का कानून या तो उसके बाद आता है या फिर आता ही नहीं है। सवाल उठता है कि भारत में किसका राज है? संविधान का, कानून का, मत या विचारधारा विशेष का? क्या आज भी भारत में मुगलों का शासन है? सवाल यह भी उठता है कि पूरी दुनिया में कानून कौन बनाता है बहुसंख्यक या अल्पसंख्यक वर्ग?
मित्रों,इसी तरह से हमारे सामने बार-बार यह सवाल आता रहता है कि देश बड़ा है या नेहरू परिवार? देश बड़ा है कि अभिव्यक्ति या अन्य प्रकार की स्वतंत्रता का अधिकार? हम एक लंबे समय से देख रहे हैं एनडीटीवी नामक टीवी चैनल चीन व पाकिस्तानपरस्त रवैया अपनाए हुए है। कभी उनका एंकर जनभावनाओं के खिलाफ जाकर चीनी सामानों के बहिष्कार का विरोध करता है तो कभी किसी आतंकी घटना या बदले में की गई सैन्य कार्रवाई पर इस तरह के कार्यक्रम प्रसारित करता है कि भ्रम हो जाता है कि उक्त चैनल भारत का चैनल है या पाकिस्तान का?
मित्रों, माना कि सच्चाई को दिखाना जरूरी है लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए हमारे पूर्वजों ने अप्रिय सत्य से बचने की सलाह भी दी है। जिस रहस्य को उजागर करने से देश की सुरक्षा और देश ही खतरे में पड़ने लगे उसको अनजाने में भी प्रकट करने से हर किसी को बचना चाहिए। फिर कोई चैनल जानबूझकर और बार-बार ऐसा कैसे कर सकता है? ऐसा भी नहीं है कि उक्त चैनल की इसके लिए कोई आलोचना नहीं हुई हो। सोशल मीडिया पर हम जैसे कई देशभक्त दीवानों ने तो उक्त चैनल का नाम तक बदल दिया लेकिन यह चैनल फिर भी अपनी जिद पर अड़ा रहा।
मित्रों, हम भारत सरकार के दंडात्मक कदम का समर्थन करते हुए उससे निवेदन करते हैं कि ऐसे चैनलों पर सिर्फ एक दिन के लिए रोक लगाने से काम नहीं चलनेवाला। अगर यह चैनल इस चेतावनीपूर्ण कार्रवाई के बाद भी अपनी देशविरोधी नीति का परित्याग नहीं करता है तो देशहित में उसको हमेशा के लिए प्रतिबंधित कर देना होगा। साथ ही इस बात की जाँच भी होनी चाहिए कि कहीं उक्त चैनल को चीन या पाकिस्तान से तो पैसा नहीं आता है। तब नेशन फर्स्ट की घोषित नीति पर चलनेवाली केंद्र सरकार के समक्ष अन्य कोई विकल्प बचेगा भी नहीं।

मंगलवार, 1 नवंबर 2016

चिनमा से करबई लड़ईया हो भैया

मित्रों,महाभारत का एक प्रसंग है। पांडवों का अज्ञातवास समाप्त हो चुका था। नटवरनागर श्रीकृष्ण पांडवों का दूत बनकर युद्ध रोकने का अंतिम प्रयास करने हस्तिनापुर जाने की तैयारी कर रहे थे। इस क्रम में वे द्रुपदसुता याज्ञसेनी द्रौपदी से मिलने जाते हैं। द्रौपदी अपनी चिंता व्यक्त करती हुई कहती है कि हे मधुसूदन! अगर आपकी कोशिश कामयाब हुई तो मेरे अपमान के बदले का क्या होगा? तब सर्वज्ञ श्रीकृष्ण मुस्कुराते हुए कहते हैं कि चिंता मत करो बहन। मेरे प्रयास के बावजूद युद्ध तो होकर रहेगा क्योंकि दुर्योधन का अभिमान उसे संधि करने नहीं देगा।
मित्रों,कुझ ऐसी ही हालत इन दिनों भारत और चीन के बीच है। भारत अभी भी युद्ध रोकना चाहता है लेकिन चीन की महत्त्वाकांक्षाएँ इस कदर सांतवें आसमान पर पहुँच चुकी हैं कि युद्ध ज्यादा समय तक टल सकेगा लगता नहीं। दुर्योधन चीन को एशिया में दूसरा शक्तिशाली राष्ट्र चाहिए ही नहीं। वह एशिया पर अपना एकछत्र राज चाहता है जो मोदी के भारत को किसी भी कीमत पर मंजूर नहीं। मोदी का भारत किसी को आँखें दिखाना भी नहीं चाहता और न ही उसे किसी के आगे आँखें झुकाना ही मंजूर है।
मित्रों,यही कारण है कि भारत के इतिहास में पहली बार सीमापार जाकर आतंक की फैक्ट्रियों पर हमले किए गए हैं। यही कारण है कि भारत-चीन सीमा पर पहली बार टैंकों और लड़ाकू विमानों की तैनाती की गई है। यही कारण है कि भारत सरकार ने सर्वोच्च बौद्ध धर्मगुरू दलाई लामा को पहली बार अरूणाचल प्रदेश की यात्रा की अनुमति दी है। यही कारण है कि चीन के मोहरे पाकिस्तान को ईट का जवाब पत्थर से दिया जा रहा है। यही कारण है कि भारत ने चीनी सीमा के साथ त्वरित गति से सड़कों का निर्माण किया है और भारी मात्रा में युद्धोपकरणों के आयात और निर्माण को मंजूरी दी है। यही कारण है कि भारत सरकार ने इसी महीने चीन की सीमा पर स्थित सभी भारतीय राज्यों के साथ बैठक का आयोजन किया है।
मित्रों,दरअसल चीन को यह सच्चाई पच ही नहीं रही है कि नई सरकार के आने के दो सालों के भीतर ही भारत विदेशी पूंजी निवेश और जीडीपी विकास दर के मामले में उससे आगे हो गया है। साथ ही भारत का बढ़ता वैश्विक कद भी उसकी आँखों को खटक रहा हैं। कहाँ मनमोहन के समय भारत भींगी बिल्ली बना हुआ था और कहाँ मोदी के समय मेक इन इंडिया वाले शेर की तरह दहाड़ रहा है। जहाँ अमेरिकी राष्ट्रपतीय चुनाव के प्रत्याशियों सहित पूरी दुनिया इस चमत्कार को नमस्कार कर रही है वहीं चीन के दसों द्वारों से इन दिनों एक साथ जलन का धुआँ निकल रहा है। ऐसे में भारत को और भी तेज गति से सैन्य तैयारी करनी होगी क्योंकि अगले कुछ सालों या महीनों में चीन कभी भी भारत पर हमला बोल सकता है। जहाँ तक पाकिस्तान का सवाल है तो वो कभी अपने बल पर रहा ही नहीं। एक समय था जब वो अमेरिका का पाला हुआ कुत्ता था और आज चीन का पिट्ठू है।
मित्रों,आश्चर्य होता है कि जब-जब केंद्र में भाजपा की सरकार होती है तभी चीन को भारत से परेशानी होती है। अटलजी की सरकार ने पहली बार चीन की इस कुटिल नीति को समझा था और जब परमाणु-परीक्षण के बाद पूरा पश्चिम लाल हुआ जा रहा था तब तत्कालीन रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडीस ने सिंहगर्जना करते हुए कहा था कि हमने परमाणु-परीक्षण पाकिस्तान को ध्यान में रखकर नहीं किए हैं बल्कि चीन की तरफ से आसन्न खतरे को देखते हुए किए हैं। पहली बार अटलजी की सरकार यह समझी थी कि पाकिस्तान चीन की कठपुतली की भाँति व्यवहार कर रहा है।
मित्रों,इस समय दुनिया बारूद की ढेर पर बैठी है। पश्चिम एशिया से लेकर दक्षिण पूर्व एशिया तक युद्ध की आग भीतर-ही-भीतर सुलग रही है। न जाने कब कौन-सी छोटी-बड़ी घटना बारूद को चिंगारी दे जाए और तृतीय विश्वयुद्ध का आगाज हो जाए। चाहे विश्वयुद्ध की शुरुआत सीरिया से हो या दपू एशिया से पूरी दुनिया में इस बार सबसे ज्यादा नुकसान एशिया को ही होगा यह ब्रह्मा के लिखे की तरह निश्चित है।
मित्रों,संस्कृत में एक श्लोक है-तावत् भयस्य भेतव्यं,यावत् भयं न आगतम्। आगतं हि भयं वीक्ष्य, प्रहर्तव्यं अशंकया।। अर्थात् संकट से तब तक ही डरना चाहिए जब तक भय पास न आया हो। आए हुए संकट को देखकर बिना शंका के उस पर प्रहार करना चाहिए।। भारत के लिए भी अब चीन से डरने का समय बीत चुका है क्योंकि पाकिस्तान को मोहरा बनाकर चीन पहले ही हमारे विरुद्ध युद्ध का शंखनाद कर चुका है। अब हमें चीन का डटकर सामना करना है और उसके प्रत्येक कदम का समुचित और दोगुनी ताकत से जवाब देना है। हमारे समक्ष और कोई विकल्प है भी नहीं। जीवित रहे तो जयजयकार और मारे गए तो वीरगति। हार का तो प्रश्न ही नहीं क्योंकि यतो धर्मः ततो जयः।
मित्रों,आज फिर से याद आ रहे हैं माणिकलाल बख्तियारपुरी जिन्होंने 1962 में बाल्यावस्था में चीन को ललकारते हुए कहा था-चिनमा से करबई लड़ईया हो भैया,चिनमा से करबई लड़ईया। छोड़ देबई हमहुँ पढ़ईया हो भैया चिनमा से करबई लड़ईया।।