रविवार, 30 जनवरी 2022

योगी तेरी खैर नहीं ...

मित्रों, ज्यादा दिन नहीं हुए. यही कोई २०१८-१९ की बात है. राजस्थान में विधानसभा चुनाव चल रहे थे तब एक नारा खूब सुर्ख़ियों में था-मोदी तुझसे वैर नहीं, वसुंधरा तेरी खैर नहीं. हुआ भी ऐसा ही. राजस्थान की जनता ने वसुंधरा को मुख्यमंत्री के पद से हटाकर एक निहायत अयोग्य हिंदूविरोधी व्यक्ति को मुख्यमंत्री बना दिया. जनता समझ रही थी कि वो वसुंधरा से बदला ले रही है लेकिन वास्तविकता कुछ और ही थी. जनता खुद कुल्हाड़ी पर पैर मारने जा रही थी. मित्रों, आज तीन-चार साल बाद राजस्थान की क्या स्थिति है? वसुंधरा तो महारानी थी और है लेकिन जनता का क्या हाल है? अगर हम कहें कि आज राजस्थान बलात्कारियों का प्रदेश बन गया है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. और सिर्फ इसलिए बन गया है क्योंकि कांग्रेस का हाथ बलात्कारियों के साथ है. सरकार न जाने क्यों मूक-बधिर नाबालिग लड़कियों के साथ हुए बलात्कार को भी जबरदस्ती सड़क-दुर्घटना बना दे रही है. आए दिन दलितों के साथ मार-पीट होती है. आदिवासी ललनाओं के साथ सामूहिक बलात्कार होते हैं. पुजारियों की हत्या होती है. जेहादियों के हौंसले इतने बुलंद हैं कि राजधानी जयपुर के शिवमंदिर की छत पर दरगाह बनाने की घिनौनी कोशिश होती है. हिन्दू डरे-सहमें हैं जैसे वो भारत में नहीं पाकिस्तान में हों. मित्रों, इतना ही नहीं किसानों की ऋण माफ़ी के बदले उनकी जमीनों की नीलामी हो रही है. वास्तव में वहां किसानों की जमीनों की नहीं बल्कि उनके सम्मान और ईज्जत की नीलामी हो रही है. छात्र बेहाल हैं. रीट तक के प्रश्न आउट हो जा रहे हैं. मित्रों, कहने का तात्पर्य यह है कि राजस्थान में वसुंधरा तो आज भी खैर से हैं अगर खैर से कोई नहीं है तो वो है राजस्थान की जनता जो बदले की भावना में इस कदर अंधी हो गई थी कि खुद अपना ही नुकसान कर बैठी. आज राजस्थान में जंगलराज है. जिसकी लाठी उसकी भैंस है. मित्रों, मैं देख रहा हूँ कि यूपी में भी कुछ हिन्दू योगी से बदला लेने की बात कर रहे हैं जबकि सच्चाई यह है कि अगर योगी हार गए तो यूपी में हिन्दुओं की हालत राजस्थान से भी ज्यादा बुरी हो जाएगी. राजस्थान में तो फिर भी तोतला मुख्यमंत्री है यूपी में तो अकल लेस मुख्यमंत्री बन जाएगा जो बिना मुख्यमंत्री बने ही पत्रकारों को कूटवा दे रहा है. इस संबंध में एक ताजा वीडियो इंटरनेट मीडिया पर वायरल हो रहा है। वायरल वीडियो में हाथ में असलहा लिए सुरक्षाकर्मी पत्रकार खालिद चौधरी को धक्का देकर अखिलेश के पास आने से रोक रहे हैं। पत्रकार का आरोप है कि उसके साथ मारपीट भी की गई। वीडियो में वह मारो मत, मारो मत कहकर खुद को सुरक्षाकर्मियों से बचाने की कोशिश भी कर रहे हैं। मित्रों, अकल लेस ने जो टिकट बांटे हैं उस सूची को गौर से देखिएगा. उसमें ज्यादातर गुंडे हैं. कुछ तो हिन्दुओं के खिलाफ दंगा करने के आरोपी भी हैं. फिर यह भी फैक्ट है कि विकास शांति की छाँव में होता है. अकल लेस का पुराना रिकॉर्ड कहता है कि उसके मुख्यमंत्री बनते ही प्रदेश में कानून और व्यवस्था चौपट हो जाएगी और गुंडों का राज कायम हो जाएगा. आज जो अपराधी जेल की शोभा बढ़ा रहे हैं तब कैबिनेट की शोभा बढाएंगे. अच्छे पुलिस अधिकारियों को खुलेआम सड़कों पर पीटा जाएगा जिसकी बानगी कुछ दिन पहले सुपर कॉप अनिरुद्ध सिंह को पीट कर समाजवादी नेता दिखा भी चुके हैं. मित्रों, इतना ही नहीं सारी वैकेंसी यादवों और मुसलमानों से भरी जाएगी. थानों पर जेहादियों का कब्ज़ा हो जाएगा. मंदिरों पर हमले होंगे. पुजारियों जिनमें ज्यादातर ब्राह्मण हैं के दिन-दहाड़े गले रेते जाएंगे. होली मनाने पर रोक लग जाएगी. मंदिरों में जबरन नमाज पढ़ी जाएगी. मंदिरों से लाउडस्पीकर उतार दिए जाएंगे. राम मंदिर का निर्माण संकट में पड़ जाएगा. मंदिरों में घंटी न बजे यह देखने के लिए पुलिसकर्मी तैनात कर दिए जाएँगे. कुकुरमुत्ते की तरह सर्वत्र दरगाह उग आएँगे. राजस्थान को पछाड़ते हुए यूपी एक बार फिर से नंबर वन बलात्कारी स्टेट बन जाएगा. आपकी कहीं कोई सुनवाई नहीं होगी. रोते-रोते आपकी आँखों में आंसू सूख जाएंगे. मित्रों, कहने का तात्पर्य यह है कि इस बार अगर आप योगी जी से बदला लेने की सोंच कर मतदान करने की सोंच रहे हैं तो निश्चित रूप से आप अपने ही भविष्य का सर्वनाश करने जा रहे हैं. योगी जी का क्या वो तो फिर से मठ में वापस चले जाएंगे जहाँ कोई शत्रु उनकी छाया तक को नहीं छू सकता लेकिन आपका जीवन और आपके प्रदेश का जन-जीवन जरूर बर्बाद हो जाएगा. इसलिए राजस्थान से शिक्षा लीजिए कोई जरूरी नहीं कि ठेंस लगने पर ही बुद्धि खुले दूसरों को लगे ठेस से समय रहते सीख लेना कहीं बेहतर होता है.

शुक्रवार, 28 जनवरी 2022

तन्ने उपराष्ट्रपति किन्ने बनाया?

मित्रों, इस बार गणतंत्र दिवस पर जब पूरा भारत, देशभक्ति में डूबा हुआ था. उस समय हमारे ही देश के एक पूर्व उप-राष्ट्रपति हामिद अंसारी, अमेरिका में एक भारत विरोधी मंच पर, भारत के ही लोकतंत्र के ख़िलाफ़ ज़हर उगल रहे थे. भारत के 73वें गणतंत्र दिवस पर, अमेरिकी कार्यक्रम में भारत के पूर्व उप राष्ट्रपति कह रहे थे कि यहां धर्म के आधार पर असहनशीलता बढ़ गई है और अल्पसंख्यकों में डर और असुरक्षा की भावना पैदा की जा रही है. गणतंत्र दिवस के मौक़े पर हम सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम तो करते हैं ताकि कहीं पर कोई हमला ना हो जाए. कहीं कोई विस्फोट ना हो जाए. और इसके लिए हमारे सुरक्षाबल चारों तरफ़ तैनात भी रहते हैं. लेकिन जब हमारे ही देश में बैठे इस तरह के लोग भारत विरोधी विचारों से विस्फोट करते हैं तो उससे पूरी दुनिया में देश की बदनामी होती है और भारत कमज़ोर और बंटा हुआ दिखाई देता है. हद तो यह है कि ऐसे गंदे और झूठे आरोप वह व्यक्ति लगा रहा है जो दस वर्षों तक भारत का उपराष्ट्रपति रह चुका है. इस कार्यक्रम में हामिद अंसारी के अलावा, स्वरा भास्कर और बेंगलूरु के आर्कबिशप पीटर मचाडो भी शामिल थे, जो भारत में ईसाई धर्म के लोगों को ख़तरे में बता चुके हैं. आप इन लोगों को हमारे गणतंत्र के टाइम बम भी कह सकते हैं. मित्रों, सवाल ये है कि भारत के मुसलमानों को हामिद अंसारी को अपना आदर्श मानना चाहिए या गुलाम नबी आज़ाद और आरिफ मोहम्मद खान जैसे नेताओं को अपना आदर्श मानना चाहिए. उन्हें डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम से प्रेरणा लेनी चाहिए या हाफिज़ सईद जैसे आतंकवादियों को अपना नायक मानना चाहिए. इनमें से इस्लाम का सच्चा अनुयायी कौन है? हामिद अंसारी ने भारत के ख़िलाफ़ ये वैचारिक जेहादी विस्फोट उस समय किया, जब देश अपना 73वां गणतंत्र दिवस मना रहा था. ये एक वर्चुअल कार्यक्रम था, जिसका आयोजन अमेरिका की छोटी बड़ी कुल 17 संस्थाओं ने किया. इन संस्थाओं में ज़्यादातर वो हैं, जिन पर पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के इशारे पर भारत विरोधी एजेंडा चलाने के आरोप लगते रहे हैं. सोचिए, जिन संस्थाओं के डीएनए में ही भारत विरोधी विचार मिले हुए हैं, उन्हीं के कार्यक्रम में इस देश के एक पूर्व उपराष्ट्रपति ना सिर्फ़ शामिल होते हैं, बल्कि देश के ख़िलाफ़ वैचारिक धमाके भी करते हैं. मित्रों, हामिद अंसारी ने इस कार्यक्रम में भारत के ख़िलाफ़ तीन बड़ी बातें कहीं. पहली बात उन्होंने ये कही कि भारत में धर्म के आधार पर असहनशीलता बढ़ गई है और अल्पसंख्यकों में असुरक्षा की भावना पैदा की जा रही है. दूसरी बात उन्होंने ये कही कि भारत में नागरिक राष्ट्रवाद को सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से बदलने की कोशिशें हो रही हैं. धार्मिक बहुमत वाली आबादी को राजनीति में एकाधिकार देकर असुरक्षा का माहौल पैदा किया जा रहा है. यहां बहुमत वाली आबादी से उनका मतलब हिन्दुओं से है. और तीसरी बात उन्होंने ये कही कि, भारत की मौजूदा व्यवस्था और ट्रेंड्स को राजनीतिक और कानूनी रूप से चुनौती देने की ज़रूरत है. यानी वो इस कार्यक्रम का आयोजन करने वाली संस्थाओं से भारत के ख़िलाफ एकजुट होकर राजनीतिक और कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए कह रहे हैं. अब राजनीतिक और कानून लड़ाई का मतलब क्या है? इसका मतलब है, मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था यानी जो सरकार अभी केन्द्र में है, उसे हटाना और उसके ख़िलाफ़ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कानूनी संघर्ष करके उसे बदनाम करना. मित्रों, सवाल उठता है कि देश से सबकुछ पाने के बाद भी ऐसी गद्दारी क्यों? इस देश ने हामिद अंसारी को वो सबकुछ दिया, जो भारत को एक सहनशील और धर्मनिरपेक्ष देश साबित करता है. वो एक मुसलमान होते हुए 10 साल तक इस देश के उप-राष्ट्रपति रहे. इस नाते वो राज्यसभा के सभापति भी थे. इसके अलावा वो संयुक्त अरब अमीरात, ऑस्ट्रेलिया, अफगानिस्तान, ईरान और सऊदी अरब जैसे देशों में भारत के राजदूत और उच्चायुक्त भी रहे. वर्ष 1984 में उन्हें इसी देश में भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, पद्म श्री से सम्मानित किया गया. क्या यह चिंताजनक नहीं है कि आज वो अचानक से इस देश को साम्प्रदायिक बताने लगते हैं. अगर भारत वाकई में साम्प्रदायिक है, तो एक मुसलमान होते हुए, हामिद अंसारी इस देश के 10 साल तक उप-राष्ट्रपति कैसे बने रहे? हमें लगता है कि इस देश ने हामिद अंसारी को जो सम्मान दिया, उसी सम्मान की थाली में उन्होंने छेद करने का काम किया है. इससे बड़ी विडम्बना नहीं हो सकती कि, आज भी हामिद अंसारी जैसे व्यक्ति, इस देश से सबकुछ हासिल करके उसे आसानी से बदनाम कर सकते हैं. मित्रों, बदनाम भी कहाँ और किस मंच से किया? हामिद अंसारी ने जिस कार्यक्रम में ये सारी बातें कहीं, उसका आयोजक कौन था? ये वर्चुअल कार्यक्रम अमेरिका की 17 संस्थाओं ने आयोजित किया था और इनमें से ज्यादातर भारत विरोधी एजेंडा चलाने के लिए मशहूर हैं. इनमें इंडियन अमेरिकन मुस्लिम कौंसिल, एमनेस्टी इंटरनेशनल और जेनोसाइड वाच जैसे भारत और हिंदुविरोधी संगठन प्रमुख हैं. सबसे पहले आईएएमसी नाम की संस्था के बारे की बात करते हैं. हाल ही में त्रिपुरा की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक एफिडेविट दाख़िल किया था, जिसमें इस संस्था पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं. इसमें लिखा है कि ऐसे कई सबूत मौजूद हैं, जो ये बताते हैं कि भारत के ख़िलाफ़ आईएएमसी और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई मिल कर साथ काम कर रहे हैं. इसके अलावा ये संस्था, पाकिस्तान स्थित ‘जमात-ए-इस्लामी’ संगठन से भी मिली हुई है, जिस पर भारत में धार्मिक माहौल बिगाड़ने के आरोप हैं. पिछले साल जब त्रिपुरा में हिंसा भड़की थी, तब इस संस्था के लोगों ने सोशल मीडिया के ज़रिए भारत के ख़िलाफ़ एक मुहिम चलाई थी. जिसके तहत ये झूठी खबर फैलाई गई कि त्रिपुरा में मस्जिदों और मुस्लिम समुदाय के लोगों को निशाना बनाया जा रहा है. आईएएमसी के संस्थापक, शेख उबैद पर ये आरोप भी लग चुके हैं कि उन्होंने रोहिंग्या मुसलमानों के नाम पर फंड जुटाए. बाद में इस फंड का इस्तेमाल, अमेरिका के धार्मिक स्वतंत्रता आयोग में भारत को ब्लैकलिस्ट करवाने की कोशिश करने के लिए किया. मित्रों, चौंकाने वाली बात ये है कि इस संगठन से कई ऐसे लोग भी जुड़े हुए हैं, जो भारत से जम्मू कश्मीर को अलग करने के लिए अभियान चलाते रहते हैं. रशीद अहमद नाम का व्यक्ति, जो इस संस्था का मौजूदा अध्यक्ष है, वो वर्ष 2017 और 2018 में इस्लामिक मेडिकल एसोसिएशन ऑफ़ नार्थ अमेरिका नाम की संस्था का भी प्रमुख था. उसने कोरोना महामारी के दौरान भारत की मदद के लिए करोड़ों रुपए का चंदा जुटाया लेकिन बाद में इसका इस्तेमाल भारत को बदनाम करने में किया. अब सोचिए, हामिद अंसारी एक ऐसी संस्था के वर्चुअल कार्यक्रम में शामिल हुए, जो भारत को तोड़ने का सपना देखती है. मित्रों, इस कार्यक्रम के आयोजकों में एमनेस्टी इंटरनेशनल नाम का एक एनजीओ भी था, जिसने सितम्बर 2020 में भारत में अपने सभी ऑपरेशंस बन्द कर दिए थे. ब्रिटेन के इस एनजीओ पर आरोप है कि उसने विदेशों से मिलने वाले करोड़ों रुपये के फण्ड की जानकारी भारत सरकार से छिपाई और भारत विरोधी एजेंडे को भी हवा दी. उदाहरण के लिए ये संस्था जम्मू कश्मीर के मुद्दे पर दुनिया भर में भारत के खिलाफ अभियान चलाती रही है. 26/11 हमले के दोषी अजमल कसाब, संसद हमले के दोषी अफज़ल गुरु और 1993 मुंबई ब्लास्ट के दोषी याकूब मेमन के समर्थन में भी इसने दुनिया भर में अभियान चलाया था. इसके अलावा भीमा कोरेगांव हिंसा को लेकर भी इस संस्था ने खूब बयान जारी किए थे. ये विशेष तौर पर विदेशों में भारत की छवि खराब करने के लिए काम करती रही है. इस कार्यक्रम में अमेरिका के भी चार सांसद भी शामिल हुए. इनकी बातों का सार ये था कि भारत में धार्मिक स्वतंत्रता ख़तरे में है. मित्रों, इसमें कोई संदेह नहीं कि हामिद अंसारी ने अपने देश के साथ बहुत बड़ा विश्वासघात किया है. हामिद अंसारी, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत विरोधी बातें करते हैं. लेकिन निजी जीवन में इसी देश से मिलने वाली तमाम सुख सुविधाओं का इस्तेमाल करते है. दिल्ली में उनका पता है, 31, डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलम रोड, ये एक सरकारी बंगला है, जो डेढ़ एकड़ से ज्यादा के क्षेत्र में फैला हुआ है. इस बंगले के रख रखाव का खर्च, हामिद अंसारी के टेलीफ़ोन बिल, उनके स्टाफ की सैलरी, दफ़्तर का ख़र्च, उन्हें हर महीने मिलने वाली पेंशन और सभी यात्राओं के लिए अलग से भत्ता भारत सरकार द्वारा दिया जाता है. यानी हामिद अंसारी इस देश से तमाम सुख सुविधाएं लेते हैं, लेकिन फिर इसी देश के टुकड़े टुकड़े चाहने वालों का वो साथ देते हैं. जबकि सच्चाई यह है कि भारत में आजादी के बाद से मुस्लिम तुष्टिकरण के चलते हिदुओं को दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया गया. भारत में पुजारियों के बदले मौलवियों को सरकार वेतन देती है. भारत में तीन मुसलमान राष्ट्रपति हो चुके हैं. भारत का प्रधानमंत्री लाल किले घोषणा करता है कि देश के संसाधनों पर पहला अधिकार अल्पसंख्यकों का है. मित्रों, फिर भी मुसलमानों के बड़े-बड़े नेताओं द्वारा ये साबित करने की कोशिश होती है कि पाकिस्तान ज़िन्दाबाद का नारा लगाना ही असली इस्लाम है. हामिद अंसारी जैसे लोगों की वजह से ही भारत, लगभग 200 वर्षों तक अंग्रेज़ों का गुलाम रहा था. आपको जानकर हैरानी होगी कि, कुल मिला कर सिर्फ़ 20 हज़ार ब्रिटिश अफसरों और सैनिकों ने 30 करोड़ भारतीयों को दो सदियों तक गुलाम बना कर रखा. सोचिए, अंग्रेज़ सिर्फ़ 20 हज़ार थे और हम 30 करोड़ थे. लेकिन इसके बावजूद हमारे देश को आज़ादी पाने में वर्षों लग गए. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि हमारा देश संगठित नहीं था और हमारे लक्ष्य स्पष्ट नहीं थे. जबकि अंग्रेज़ संख्या में केवल 20 हज़ार होते हुए भी एकजुट थे और उनका मकसद साफ़ था. उन्हें भारत पर शासन करना था. वो जानते थे कि इस देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो अपने राजनीतिक फायदों के लिए उनकी गोदी में बैठ जाएंगे. वर्ना, सोचिए, ये कैसे मुमकिन होता कि केवल मुट्ठीभर अंग्रेज़ों ने करोड़ों भारतीयों को अपना गुलाम बना कर रखा. मित्रों, आज जब हामिद अंसारी की बात हो ही रही है तो उनकी एक चर्चित तस्वीर भी इन दिनों वायरल हो रही है, जो 2015 के गणतंत्र दिवस समारोह की है. इस समारोह में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा और उनकी पत्नी बतौर मुख्य अतिथि शामिल थे. सलामी मंच पर उनके साथ भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, उस समय के उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और पूर्व केन्द्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह मौजूद थे. तब राष्ट्रगान के दौरान इस मंच पर मौजूद भारत के सभी नेता तिरंगे को सैल्यूट कर रहे थे. लेकिन हामिद अंसारी ने ऐसा नहीं किया था. ये एक तस्वीर उनके पूरे चरित्र के बारे में आपको बता देगी. वैसे, प्रोटोकोल के तहत तब उनके लिए सैल्यूट करना ज़रूरी नहीं था. लेकिन सोचिए, राष्ट्रगान के दौरान देश को सैल्यूट करने में क्या परेशानी हो सकती है, बांकी लोग भी तो प्रोटोकॉल तोड़ते हुए झंडे को सलामी दे ही रहे थे? लेकिन हामिद अंसारी भला ऐसा क्यों करने लगें, वे तो ऐसे विषधर सांप की तरह हैं जिसको दूध पिलाकर लोग ऐसी झूठी उम्मीद मन में बांधे रहते हैं कि ऐसा करने से वो अपनी दुष्टता छोड़कर संत-महात्मा बन जाएगा.

सोमवार, 24 जनवरी 2022

रेप रेप में फर्क

मित्रों, मेरे इस आलेख का शीर्षक देखकर आप चौंक जरूर गए होंगे. आप सोंच रहे होंगे कि रेप रेप होता है, सबसे जघन्य अपराध होता है, सारी रेप पीड़िताओं को एक समान दर्द होता है फिर फर्क कैसा? हमारे आपके लिए नहीं होता है, कोई फर्क नहीं होता है लेकिन सियासत के लिए फर्क होता है और बहुत होता है. मित्रों, सबसे पहले तो यह देखा जाता है कि रेप हुआ किसके साथ है. क्या वो दलित है? ऐसे मामले बड़े ही गंभीर होते हैं. फिर देखा जाता है कि आरोपी कौन है सवर्ण या अवर्ण या मुसलमान? आरोपी अगर सवर्ण और पीडिता दलित हुई तो मामला फिर काफी बिकाऊ और लम्बा चलनेवाला हो जाता है. पूरी-की-पूरी कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियाँ आनन-फानन में घटनास्थल पर पहुँच जाती हैं और पीडिता को तत्काल बिटिया का ख़िताब दे दिया जाता है. लेकिन अगर पीडिता दलित और आरोपी मुसलमान हुआ तो ऐसा मान लिया जाता है कि पीडिता को कोई दर्द नहीं हुआ होगा, यह भी मान लिया जाता है कि गलती लड़की की ही रही होगी. फिर तो कोई राजनैतिक दल उसके घर के कई सौ किलोमीटर के पास से नहीं फटकते. ऐसा लगने लगता है कि जैसे किसी हिन्दू लड़की के साथ बलात्कार भारत में नहीं पाकिस्तान में हुआ हो. अगर पीडिता सवर्ण है और आरोपी चाहे दलित, अवर्ण, मुसलमान या कोई भी हो तो मामला दबा देने लायक होता है क्योंकि सवर्णों को दर्द तो होता ही नहीं है. मित्रों, इतना ही नहीं रेप के मामलों में सियासत यह भी देखती है कि जिस राज्य में रेप हुआ है वहां किस पार्टी की सरकार है. अगर भाजपा की हुई तो मामला काफी गंभीर और अक्षम्य हो जाता है. फिर तो अगर दलित पीडिता के पड़ोस में किसी राजपूत का घर हुआ तो उसे ही बलात्कारी मान लिया जाता है फिर चाहे बलात्कार न भी हुआ हो या फिर पीडिता की मौत खुद उसके भाई की पिटाई से ही क्यों न हुई हो. आखिर राजपूतों ने आज से ८०० साल पहले तक देश पर शासन जो किया था और देश की रक्षा में करोड़ों की संख्या में बलिदान जो दिया है, आखिर राजपूतों ने हिन्दू ललनाओं की आततायियों से रक्षा के लिए अपनी जान दी है. फिर आप पूछेंगे कि जब इतिहास में राजपूतों के किसी दुष्कर्म का जिक्र ही नहीं है तो फिर वे प्रमाणित दुष्कर्मी कैसे हो गए? तो इसका जवाब है कि चूँकि बॉलीवुड की सलीम-जावेद लिखित फ़िल्में राजपूतों को बलात्कारी बताती हैं इसलिए वे बलात्कारी होते हैं, होने चाहिए और हैं. फिर चाहे हाथरस में उन्होंने पीडिता की पानी पिलाकर प्राणरक्षा ही क्यों न की हो, फिर चाहे वो कथित बलात्कार के समय फैक्ट्री में क्यों न हों. फिर चाहे वो नाटकवाली बाई पीडिता की भाभी क्यों न बन गई हो जैसे रेप न हुआ हो रेप का नाटक हो रहा हो, कोई खेल चल रहा हो और खेल-खेल में बिना किसी सबूत के घटना के ७ दिन बाद मुआवजे के लिए केस का मजमून बदल दिया जाता है और चार निरपराध राजपूतों को जेल में डाल दिया जाता है क्योंकि यही सियासत की मांग है. मित्रों, आप पूछेंगे कि अगर राज्य में कांग्रेस या दूसरे गैर भाजपाई दलों का शासन हो तब? तब तो जादूगर सरकार बड़े ही आराम से रेप को सड़क-दुर्घटना में बदल देती है और घटना-स्थल को धुलवा देती है जिससे सारे सबूत मिट जाएँ लेकिन सरकार के पास इस सवाल का जवाब नहीं होता कि ऐसी कौन-सी सड़क-दुर्घटना होती है जिसमें बोतल पीडिता के गुप्तांग में घुस जाता है? मित्रों, एक और तरह का रेप होता है और वो राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में होता है. यहाँ आरोपी मुसलमान और पीडिता दलित होती है. आप पार्टी का नेता आरोपी जेल से वापस आने के बाद पीडिता के चाचा को सरेआम पुलिसवालों के सामने गोली मार देता है और आराम से टहलता हुआ निकल जाता है जैसे वो भारत में नहीं पाकिस्तान में हो. फिर भी किसी भी दल का कोई राजनेता पीडिता के घर झाँकने तक नहीं आता और ऐसा तब होता है जबकि दिल्ली पुलिस पर हिन्दुत्ववादी सरकार का नियंत्रण होता है. मित्रों, अब तो आप समझ ही गए होंगे कि सारे रेप एक जैसे नहीं होते और उनमें भारी अंतर होता है भले ही पीडिताओं के दर्द में कोई अंतर नहीं हो रेप को देखने का सियासत का चश्मा जरूर अलग-अलग होता है.

सोमवार, 17 जनवरी 2022

यूपी में का नईखे

आपन जे महाराज बा गुंडन खातिर ऊ यमराज बा ढहल ढलमनाईल क्रिमिनल के दरबार बा, बंद पडल मेरठ के चोर बाजार बा यूपी में का नईखे, लईकी लोग सुरक्षित बिया, बिना डरे घर से निकलअतिया २४ घंटा बिजली बा, दंगा मुक्त गली बा मुख्यमंत्री ईमानदार बा, चोर लोग बेरोजगार बा अस्पताल में सुधार बा पूंजी निवेश के बहार बा आ हो के कहअता कि यूपी में कुच्छो नईखे कम भ्रष्टाचार बा गरीब आमदी के बहार बा पत्थरबाजन पर प्रहार बा बाबा के भेदभाव मुक्त वेबहार बा अब तहरा के सूझते न ईखे त हम का करीं हर तरफ होत विकास बा सुरक्षा के अहसास बा क्रिमिनल खुदे जेल में भागत बा सरकार पर विश्वास बा यूपीए में त सबकुछ बा बुझाईल साफ सुथरा शहर बा पानी से भरल नहर बा किसान के जेबी भरल बा नया नया एक्सप्रेस बे बन रहल बा आरे बुडबक अभीयो अन्हरायल बारे रे प्रदुषण मुक्त नदी के पानी बा लहलहात खेती किसानी बा रोजगार के अपार साधन बा साफ सुथरा शासन बा पूरा देश मे नंबर एक बने जा रहल बा आपन यूपी आऊर तहरा के का चाहिं रे तोहनी लोग सूधरे वाला नईखू अईसहिं गावत रह ज ईबअ कि यूपी में का बा जा आपन दिमाग के ईलाज कराबअ प्रधानमंत्री आवास योजना बा हर विद्यार्थी के छात्रवृत्ति बा हर भहीना सस्ता राशन बा साफ सुथरा नीति बा बुझाईल यूपी में का बा कि टिन के चश्मा दीं तहरा के भांग घोंटले बारे का रे आ पढ़े से मन तृप्त ना भईल त देखे-सुने खातिर निचलका लिंक पर क्लिक करीं https://youtu.be/MGLZvyVKfZE

रविवार, 16 जनवरी 2022

जबरदस्ती के गृहमंत्री नीतीश कुमार

मित्रों, अगर हम आपसे पूछें कि भारत में पुलिस को किस आधार पर काम करना चाहिए तो आप कहेंगे कि आईपीसी, सीआरपीसी, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के आदेश, संसद और राज्यों की विधानसभाओं द्वारा बनाए गए कानूनों व सरकारों और उच्चाधिकारियों द्वारा जारी आदेशों के आलोक में पुलिस को काम करना चाहिए. लेकिन वास्तविकता है क्या? बिहार की पुलिस को तो जैसे किसी कानून से मतलब ही नहीं है. जो थानेदार और पुलिस अधिकारी करें और बोलें वही कानून. मित्रों, फिर अगर हम आपसे पूछें कि पुलिस का पहला काम क्या है तो आप कहेंगे कि पुलिस का प्रथम या प्राथमिक कार्य प्राथमिकी यानि एफआईआर लिखना है. लेकिन बिहार पुलिस तो एफआईआर लिखती ही नहीं है सिर्फ सनहा दर्ज करती है. अभी दो दिन पहले बिहार की राजधानी पटना के जिस सचिवालय से बिहार का शासन चलता है उस सचिवालय की महिला कर्मचारी को किस तरह से सचिवालय थाना में महिला एएसपी और थानेदार द्वारा एफआईआर आवेदन की रिसीविंग मांगने पर अपमानित किया गया, किस तरह जेल में डाल देने की ठीक उसी तरह धमकी दी गई जैसे गंगाजल फिल्म में एसपी अमित कुमार को दारोगा मंगनीराम ने दी थी सारी दुनिया ने देखा है. मित्रों, ऐसी यह ईकलौती घटना हो ऐसा बिलकुल भी नहीं है. खुद जब मेरे साथ १ फरवरी,२०२१ को साइबर ठगी हुई और जब मैं हाजीपुर नगर थाना में एफआईआर दर्ज करवाने गया तो मुझे भी रिसीविंग नहीं दी गई. बाद में जब भी मैंने थानेदार सुबोध सिंह से संपर्क किया तो उन्होंने मुंशी से संपर्क करने को कहा. जब मुंशी से संपर्क किया तो उसने थानेदार से संपर्क करने के लिए कहा. फिर मैंने थाने पर यह सोंचकर जाना ही बंद कर दिया कि जो पुलिस एफआईआर ही नहीं दर्ज कर रही है वो मेरे १९८५६ रूपये क्या खाक बरामद करवाएगी. मित्रों, इससे पहले जब २०१७ की दिवाली के दिन राजेंद्र चौक, हाजीपुर से मेरा मोबाईल चोरी हो गया और मैं नगर थाने पर एफआईआर दर्ज करवाने गया तब मुंशी ने मुझे चोरी के एफआईआर के बदले मोबाईल गुम जाने का सनहा दर्ज करवाने को कहा और जब वो किसी तरह नहीं माना तो मुझे सनहा ही दर्ज करवाना पड़ा. बाद में मैंने अख़बार में पढ़ा कि बिहार पुलिस मोबाईल चोरी के मामले में एफआईआर दर्ज ही नहीं करती सिर्फ सनहा लिखती है. मित्रों, बलात्कार से लेकर चोरी तक के ऐसे हजारों समाचार पिछले सालों में बिहार में छप चुके हैं जिनमें फरियादी को एफआईआर के लिए कोर्ट जाना पड़ा है. यहाँ तक कि बिहार के मुख्यमंत्री ने जब जनता के दरबार में मुख्यमंत्री कार्यक्रम दोबारा शुरू किया तब सबसे ज्यादा शिकायतें बिहार पुलिस के खिलाफ ही आईं. अभी जब ३ जनवरी, २०२२ को अंतिम बार जनता का दरबार लगा उस दिन भी बिहार पुलिस के खिलाफ ऐसे-ऐसे मामले सामने आए कि बिहार के मुख्यमंत्री को जो गृह मंत्री भी हैं को चुल्लू भर पानी में डूब जाना चाहिए. किसी का बेटा दो साल से अपहृत है लेकिन एफआईआर के दो साल बाद भी न तो कोई गिरफ़्तारी ही हुई है न ही बच्चा ही बरामद हुआ है. रूपसपुर, पटना की लड़की ने आरोप लगाया कि उसके साथ बलात्कार हुआ है और कई महीने बाद भी बलात्कारी न सिर्फ खुलेआम घूम रहे हैं बल्कि दोबारा बलात्कार की धमकी भी दे रहे हैं. अररिया से आए एक युवक ने आरोप लगाया कि उसके भाई की २०२० में ही हत्या हुई लेकिन आज तक कोई गिरफ़्तारी नहीं हुई है. इसी तरह ६ दिसंबर, २०२१ के जनता दरबार में मधेपुरा से आए एक युवक ने आरोप लगाया कि उसे ४ गोली मारी गई थी लेकिन थानेदार अभियुक्तों की गिरफ़्तारी के लिए ४ लाख रूपया मांग रहे हैं मतलब चार गोली का चार लाख. एक गोली का रेट १ लाख. मित्रों, अभी कुछ दिन पहले बेगुसराय और भागलपुर के सोना व्यवसायी को जान से मारने की धमकी देते हुए रंगदारी मांगी गयी. दोनों ही मामलों में पुलिस ने कुछ भी नहीं किया है जबकि हर हफ्ते बिहार में कहीं-न-कहीं सोना व्यवसायी की हत्या हो रही है. बेगुसराय के पीपी ज्वेलर्स के मालिक ने तो वीडियो जारी कर नीतीश कुमार पर बिहार में फिर से जंगलराज लाने का आरोप लगाते हुए कहा है कि उन्होंने शराब की बोतल पकड़ने के लिए उनको मुख्यमंत्री नहीं बनाया था. मित्रों, ईधर बिहार पुलिस का मन इतना बढ़ गया है, खास तौर पर उन थानों में जहाँ पर थानेदार कुर्मी जाति से आते हैं कि बेवजह पहले निर्दोष लोगों को उठा लिया जाता है बाद में जंग लगे हथियार की बरामदगी दिखाकर केस बनाया जाता है. वैशाली जिले के चांदपुरा ओपी में पिछले महीनों में कई सारी ऐसी घटनाएँ घट चुकी हैं. मधुबनी के महमदपुर हत्याकांड से पहले किस तरह दारोगा महेंद्र सिंह ने संजय सिंह को झूठे एससीएसटी एक्ट मुकदमे में फंसाया था इसे भी पूरी दुनिया ने देखा है. साथ ही बिहार की सबसे विवादित पुलिस अधिकारी और मुख्यमंत्री की नाक की बाल लिपि सिंह के नेतृत्व में कैसे पूर्व डॉन पप्पू देव को उठाने के बाद पीट-पीट कर मार दिया गया यह भी पूरी दुनिया ने देखा है. मित्रों, यह बिहार पुलिस की अकर्मण्यता ही है जिसके चलते बिहार में सूचना का अधिकार का प्रयोग करना अपनी मौत को आमंत्रण देना है. पिछले ५ सालों में बिहार में २० से ज्यादा आरटीआई कार्यकर्ताओं की सरेआम हत्या हो चुकी है. मित्रों, ऐसी स्थिति में जबकि पुलिस पर मुख्यमंत्री का कोई नियंत्रण ही नहीं रह गया है न जाने क्यों मुख्यमंत्री नीतीश कुमार गृहमंत्री की कुर्सी पर कुंडली मारे बैठे हैं? उनके गृह मंत्री रहने से बिहार की जनता को तो कोई लाभ नहीं है अगर पूरे बिहार में किसी को कोई लाभ हो रहा है तो सिर्फ एक आदमी को है और वो आदमी हैं नीतीश कुमार. हरियाणा में जब मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर जी को लगा कि वे गृह मंत्री के पद से न्याय नहीं कर पा रहे हैं तो उन्होंने तेज तर्रार अनिल विज को गृह मंत्री बना दिया. आज तो यह विश्वास करने को भी मन नहीं कर रहा कि किसी समय नीतीश कुमार ने रेल मंत्री के पद से इस्तीफा भी दिया था.

मंगलवार, 4 जनवरी 2022

भाजपा जदयू लठबंधन

मित्रों, बिहार में यद्यपि भाजपा और जदयू का गठबंधन काफी पुराना है तथापि समय गुजरने के साथ दोनों पार्टियों का वोट-बैंक पूरी तरह से अलग दिखाई देने लगा है जो शुरूआती दौर में नहीं था. पिछले चुनाव के बाद जबसे नीतीश कुमार बिहार में तीन नंबर के नेता बन गए हैं तभी से उन्होंने सोंची-समझी रणनीति के तहत भाजपा के वोट बैंक को चिढाने का काम किया है. मित्रों, पहले हम यह समझ लेते हैं कि दोनों दलों का वोटबैंक है क्या. जहाँ भाजपा का कोर वोटबैंक चार सवर्ण जातियां राजपूत, भूमिहार, ब्राह्मण और कायस्थ हैं वहीँ नीतीश कुमार का कोर वोट बैंक उनकी जाति कुर्मी के अलावे अति पिछड़ी जातियां हैं जिनको राजनीति की दुनिया में पंचफोरना कहा जाता है. मुस्लिम और यादव अभी भी लालू यादव परिवार के साथ अडिग हैं. मित्रों, सबसे पहले नीतीश जी ने 2020 में दुर्घटनावश मिली कुर्सी को पाते ही बिहार के राजपूतों को चिढाने का काम किया जबकि आज बिहार के मुख्यमंत्री पद पर नीतीश जी सिर्फ और सिर्फ इसी जाति के कारण हैं. जहाँ भूमिहारों ने पिछले चुनावों में ही नीतीश जी का साथ छोड़ दिया राजपूत चट्टान की तरह एनडीए के साथ अड़े और खड़े रहे. लेकिन नीतीश जी ने सजा पूरी कर लेने के बाद भी बिहार में राजपूतों के शीर्षस्थ नेता आनंद मोहन को रिहा नहीं किया. भूमिहारों के साथ नीतीश जी का अलग तरह का रिश्ता है. एक तरफ नीतीश जी ने ललन सिंह को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना रखा है वहीँ दूसरी तरफ उन्होंने पिछले दिनों सहरसा में बाहुबली पप्पू देव को घर से उठवा कर विवादित पुलिस अधीक्षक लिपि सिंह जो केन्द्रीय मंत्री आरसीपी सिंह की बेटी है के माध्यम से इस भयंकर ठण्ड में पीट-पीट कर मार डाला. ब्राह्मणों को हड़काने के लिए गठबंधन में जीतन राम मांझी को रखा गया है. पता नहीं वे नीतीश जी के इशारे पर गाहे-बगाहे ब्राह्मणों को गालियाँ देते रहते हैं या किसी और के इशारे पर या फिर खुद अपनी मर्जी से. मित्रों, यह बेहद आश्चर्यजनक है कि नीतीश कुमार खुलेआम भाजपा के वोटबैंक को लतियाते रहते हैं और भाजपा चुपचाप तमाशा देखती रहती है. अभी तो भाजपा से भूमिहार दूर हुए हैं कल ब्राह्मण-राजपूत भी दूर हो जाएँगे तब भाजपा का क्या होगा? क्या भविष्य में भाजपा का वही हाल नहीं होनेवाला है जो हालत राजद के साथ रहने से आज कांग्रेस की हो चुकी है? लेकिन भाजपा भी १९९०-२००५ के मध्य जिस तरह कांग्रेस राजद के साथ सत्ता में मस्त थी मस्त है. उसको यह पता नहीं है कि जनता किसी की गुलाम नहीं है. इस बार तो किसी तरह से दस-पांच सीट से कुर्सी कुमार जी की कुर्सी बच गयी है अगली बार कुछ भी हो सकता है, बहुत अलग परिणाम भी आ सकते हैं.