शुक्रवार, 28 जनवरी 2022
तन्ने उपराष्ट्रपति किन्ने बनाया?
मित्रों, इस बार गणतंत्र दिवस पर जब पूरा भारत, देशभक्ति में डूबा हुआ था. उस समय हमारे ही देश के एक पूर्व उप-राष्ट्रपति हामिद अंसारी, अमेरिका में एक भारत विरोधी मंच पर, भारत के ही लोकतंत्र के ख़िलाफ़ ज़हर उगल रहे थे. भारत के 73वें गणतंत्र दिवस पर, अमेरिकी कार्यक्रम में भारत के पूर्व उप राष्ट्रपति कह रहे थे कि यहां धर्म के आधार पर असहनशीलता बढ़ गई है और अल्पसंख्यकों में डर और असुरक्षा की भावना पैदा की जा रही है. गणतंत्र दिवस के मौक़े पर हम सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम तो करते हैं ताकि कहीं पर कोई हमला ना हो जाए. कहीं कोई विस्फोट ना हो जाए. और इसके लिए हमारे सुरक्षाबल चारों तरफ़ तैनात भी रहते हैं. लेकिन जब हमारे ही देश में बैठे इस तरह के लोग भारत विरोधी विचारों से विस्फोट करते हैं तो उससे पूरी दुनिया में देश की बदनामी होती है और भारत कमज़ोर और बंटा हुआ दिखाई देता है. हद तो यह है कि ऐसे गंदे और झूठे आरोप वह व्यक्ति लगा रहा है जो दस वर्षों तक भारत का उपराष्ट्रपति रह चुका है. इस कार्यक्रम में हामिद अंसारी के अलावा, स्वरा भास्कर और बेंगलूरु के आर्कबिशप पीटर मचाडो भी शामिल थे, जो भारत में ईसाई धर्म के लोगों को ख़तरे में बता चुके हैं. आप इन लोगों को हमारे गणतंत्र के टाइम बम भी कह सकते हैं.
मित्रों, सवाल ये है कि भारत के मुसलमानों को हामिद अंसारी को अपना आदर्श मानना चाहिए या गुलाम नबी आज़ाद और आरिफ मोहम्मद खान जैसे नेताओं को अपना आदर्श मानना चाहिए. उन्हें डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम से प्रेरणा लेनी चाहिए या हाफिज़ सईद जैसे आतंकवादियों को अपना नायक मानना चाहिए. इनमें से इस्लाम का सच्चा अनुयायी कौन है? हामिद अंसारी ने भारत के ख़िलाफ़ ये वैचारिक जेहादी विस्फोट उस समय किया, जब देश अपना 73वां गणतंत्र दिवस मना रहा था. ये एक वर्चुअल कार्यक्रम था, जिसका आयोजन अमेरिका की छोटी बड़ी कुल 17 संस्थाओं ने किया. इन संस्थाओं में ज़्यादातर वो हैं, जिन पर पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के इशारे पर भारत विरोधी एजेंडा चलाने के आरोप लगते रहे हैं. सोचिए, जिन संस्थाओं के डीएनए में ही भारत विरोधी विचार मिले हुए हैं, उन्हीं के कार्यक्रम में इस देश के एक पूर्व उपराष्ट्रपति ना सिर्फ़ शामिल होते हैं, बल्कि देश के ख़िलाफ़ वैचारिक धमाके भी करते हैं.
मित्रों, हामिद अंसारी ने इस कार्यक्रम में भारत के ख़िलाफ़ तीन बड़ी बातें कहीं. पहली बात उन्होंने ये कही कि भारत में धर्म के आधार पर असहनशीलता बढ़ गई है और अल्पसंख्यकों में असुरक्षा की भावना पैदा की जा रही है. दूसरी बात उन्होंने ये कही कि भारत में नागरिक राष्ट्रवाद को सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से बदलने की कोशिशें हो रही हैं. धार्मिक बहुमत वाली आबादी को राजनीति में एकाधिकार देकर असुरक्षा का माहौल पैदा किया जा रहा है. यहां बहुमत वाली आबादी से उनका मतलब हिन्दुओं से है. और तीसरी बात उन्होंने ये कही कि, भारत की मौजूदा व्यवस्था और ट्रेंड्स को राजनीतिक और कानूनी रूप से चुनौती देने की ज़रूरत है. यानी वो इस कार्यक्रम का आयोजन करने वाली संस्थाओं से भारत के ख़िलाफ एकजुट होकर राजनीतिक और कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए कह रहे हैं. अब राजनीतिक और कानून लड़ाई का मतलब क्या है? इसका मतलब है, मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था यानी जो सरकार अभी केन्द्र में है, उसे हटाना और उसके ख़िलाफ़ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कानूनी संघर्ष करके उसे बदनाम करना.
मित्रों, सवाल उठता है कि देश से सबकुछ पाने के बाद भी ऐसी गद्दारी क्यों? इस देश ने हामिद अंसारी को वो सबकुछ दिया, जो भारत को एक सहनशील और धर्मनिरपेक्ष देश साबित करता है. वो एक मुसलमान होते हुए 10 साल तक इस देश के उप-राष्ट्रपति रहे. इस नाते वो राज्यसभा के सभापति भी थे. इसके अलावा वो संयुक्त अरब अमीरात, ऑस्ट्रेलिया, अफगानिस्तान, ईरान और सऊदी अरब जैसे देशों में भारत के राजदूत और उच्चायुक्त भी रहे. वर्ष 1984 में उन्हें इसी देश में भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, पद्म श्री से सम्मानित किया गया. क्या यह चिंताजनक नहीं है कि आज वो अचानक से इस देश को साम्प्रदायिक बताने लगते हैं. अगर भारत वाकई में साम्प्रदायिक है, तो एक मुसलमान होते हुए, हामिद अंसारी इस देश के 10 साल तक उप-राष्ट्रपति कैसे बने रहे? हमें लगता है कि इस देश ने हामिद अंसारी को जो सम्मान दिया, उसी सम्मान की थाली में उन्होंने छेद करने का काम किया है. इससे बड़ी विडम्बना नहीं हो सकती कि, आज भी हामिद अंसारी जैसे व्यक्ति, इस देश से सबकुछ हासिल करके उसे आसानी से बदनाम कर सकते हैं.
मित्रों, बदनाम भी कहाँ और किस मंच से किया? हामिद अंसारी ने जिस कार्यक्रम में ये सारी बातें कहीं, उसका आयोजक कौन था? ये वर्चुअल कार्यक्रम अमेरिका की 17 संस्थाओं ने आयोजित किया था और इनमें से ज्यादातर भारत विरोधी एजेंडा चलाने के लिए मशहूर हैं. इनमें इंडियन अमेरिकन मुस्लिम कौंसिल, एमनेस्टी इंटरनेशनल और जेनोसाइड वाच जैसे भारत और हिंदुविरोधी संगठन प्रमुख हैं. सबसे पहले आईएएमसी नाम की संस्था के बारे की बात करते हैं. हाल ही में त्रिपुरा की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक एफिडेविट दाख़िल किया था, जिसमें इस संस्था पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं. इसमें लिखा है कि ऐसे कई सबूत मौजूद हैं, जो ये बताते हैं कि भारत के ख़िलाफ़ आईएएमसी और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई मिल कर साथ काम कर रहे हैं. इसके अलावा ये संस्था, पाकिस्तान स्थित ‘जमात-ए-इस्लामी’ संगठन से भी मिली हुई है, जिस पर भारत में धार्मिक माहौल बिगाड़ने के आरोप हैं. पिछले साल जब त्रिपुरा में हिंसा भड़की थी, तब इस संस्था के लोगों ने सोशल मीडिया के ज़रिए भारत के ख़िलाफ़ एक मुहिम चलाई थी. जिसके तहत ये झूठी खबर फैलाई गई कि त्रिपुरा में मस्जिदों और मुस्लिम समुदाय के लोगों को निशाना बनाया जा रहा है. आईएएमसी के संस्थापक, शेख उबैद पर ये आरोप भी लग चुके हैं कि उन्होंने रोहिंग्या मुसलमानों के नाम पर फंड जुटाए. बाद में इस फंड का इस्तेमाल, अमेरिका के धार्मिक स्वतंत्रता आयोग में भारत को ब्लैकलिस्ट करवाने की कोशिश करने के लिए किया.
मित्रों, चौंकाने वाली बात ये है कि इस संगठन से कई ऐसे लोग भी जुड़े हुए हैं, जो भारत से जम्मू कश्मीर को अलग करने के लिए अभियान चलाते रहते हैं. रशीद अहमद नाम का व्यक्ति, जो इस संस्था का मौजूदा अध्यक्ष है, वो वर्ष 2017 और 2018 में इस्लामिक मेडिकल एसोसिएशन ऑफ़ नार्थ अमेरिका नाम की संस्था का भी प्रमुख था. उसने कोरोना महामारी के दौरान भारत की मदद के लिए करोड़ों रुपए का चंदा जुटाया लेकिन बाद में इसका इस्तेमाल भारत को बदनाम करने में किया. अब सोचिए, हामिद अंसारी एक ऐसी संस्था के वर्चुअल कार्यक्रम में शामिल हुए, जो भारत को तोड़ने का सपना देखती है. मित्रों, इस कार्यक्रम के आयोजकों में एमनेस्टी इंटरनेशनल नाम का एक एनजीओ भी था, जिसने सितम्बर 2020 में भारत में अपने सभी ऑपरेशंस बन्द कर दिए थे. ब्रिटेन के इस एनजीओ पर आरोप है कि उसने विदेशों से मिलने वाले करोड़ों रुपये के फण्ड की जानकारी भारत सरकार से छिपाई और भारत विरोधी एजेंडे को भी हवा दी. उदाहरण के लिए ये संस्था जम्मू कश्मीर के मुद्दे पर दुनिया भर में भारत के खिलाफ अभियान चलाती रही है. 26/11 हमले के दोषी अजमल कसाब, संसद हमले के दोषी अफज़ल गुरु और 1993 मुंबई ब्लास्ट के दोषी याकूब मेमन के समर्थन में भी इसने दुनिया भर में अभियान चलाया था. इसके अलावा भीमा कोरेगांव हिंसा को लेकर भी इस संस्था ने खूब बयान जारी किए थे. ये विशेष तौर पर विदेशों में भारत की छवि खराब करने के लिए काम करती रही है. इस कार्यक्रम में अमेरिका के भी चार सांसद भी शामिल हुए. इनकी बातों का सार ये था कि भारत में धार्मिक स्वतंत्रता ख़तरे में है.
मित्रों, इसमें कोई संदेह नहीं कि हामिद अंसारी ने अपने देश के साथ बहुत बड़ा विश्वासघात किया है. हामिद अंसारी, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत विरोधी बातें करते हैं. लेकिन निजी जीवन में इसी देश से मिलने वाली तमाम सुख सुविधाओं का इस्तेमाल करते है. दिल्ली में उनका पता है, 31, डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलम रोड, ये एक सरकारी बंगला है, जो डेढ़ एकड़ से ज्यादा के क्षेत्र में फैला हुआ है. इस बंगले के रख रखाव का खर्च, हामिद अंसारी के टेलीफ़ोन बिल, उनके स्टाफ की सैलरी, दफ़्तर का ख़र्च, उन्हें हर महीने मिलने वाली पेंशन और सभी यात्राओं के लिए अलग से भत्ता भारत सरकार द्वारा दिया जाता है. यानी हामिद अंसारी इस देश से तमाम सुख सुविधाएं लेते हैं, लेकिन फिर इसी देश के टुकड़े टुकड़े चाहने वालों का वो साथ देते हैं. जबकि सच्चाई यह है कि भारत में आजादी के बाद से मुस्लिम तुष्टिकरण के चलते हिदुओं को दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया गया. भारत में पुजारियों के बदले मौलवियों को सरकार वेतन देती है. भारत में तीन मुसलमान राष्ट्रपति हो चुके हैं. भारत का प्रधानमंत्री लाल किले घोषणा करता है कि देश के संसाधनों पर पहला अधिकार अल्पसंख्यकों का है.
मित्रों, फिर भी मुसलमानों के बड़े-बड़े नेताओं द्वारा ये साबित करने की कोशिश होती है कि पाकिस्तान ज़िन्दाबाद का नारा लगाना ही असली इस्लाम है. हामिद अंसारी जैसे लोगों की वजह से ही भारत, लगभग 200 वर्षों तक अंग्रेज़ों का गुलाम रहा था. आपको जानकर हैरानी होगी कि, कुल मिला कर सिर्फ़ 20 हज़ार ब्रिटिश अफसरों और सैनिकों ने 30 करोड़ भारतीयों को दो सदियों तक गुलाम बना कर रखा. सोचिए, अंग्रेज़ सिर्फ़ 20 हज़ार थे और हम 30 करोड़ थे. लेकिन इसके बावजूद हमारे देश को आज़ादी पाने में वर्षों लग गए. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि हमारा देश संगठित नहीं था और हमारे लक्ष्य स्पष्ट नहीं थे. जबकि अंग्रेज़ संख्या में केवल 20 हज़ार होते हुए भी एकजुट थे और उनका मकसद साफ़ था. उन्हें भारत पर शासन करना था. वो जानते थे कि इस देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो अपने राजनीतिक फायदों के लिए उनकी गोदी में बैठ जाएंगे. वर्ना, सोचिए, ये कैसे मुमकिन होता कि केवल मुट्ठीभर अंग्रेज़ों ने करोड़ों भारतीयों को अपना गुलाम बना कर रखा.
मित्रों, आज जब हामिद अंसारी की बात हो ही रही है तो उनकी एक चर्चित तस्वीर भी इन दिनों वायरल हो रही है, जो 2015 के गणतंत्र दिवस समारोह की है. इस समारोह में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा और उनकी पत्नी बतौर मुख्य अतिथि शामिल थे. सलामी मंच पर उनके साथ भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, उस समय के उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और पूर्व केन्द्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह मौजूद थे. तब राष्ट्रगान के दौरान इस मंच पर मौजूद भारत के सभी नेता तिरंगे को सैल्यूट कर रहे थे. लेकिन हामिद अंसारी ने ऐसा नहीं किया था. ये एक तस्वीर उनके पूरे चरित्र के बारे में आपको बता देगी. वैसे, प्रोटोकोल के तहत तब उनके लिए सैल्यूट करना ज़रूरी नहीं था. लेकिन सोचिए, राष्ट्रगान के दौरान देश को सैल्यूट करने में क्या परेशानी हो सकती है, बांकी लोग भी तो प्रोटोकॉल तोड़ते हुए झंडे को सलामी दे ही रहे थे? लेकिन हामिद अंसारी भला ऐसा क्यों करने लगें, वे तो ऐसे विषधर सांप की तरह हैं जिसको दूध पिलाकर लोग ऐसी झूठी उम्मीद मन में बांधे रहते हैं कि ऐसा करने से वो अपनी दुष्टता छोड़कर संत-महात्मा बन जाएगा.
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