शुक्रवार, 27 जुलाई 2012

आ बैल मुझे मार और बांग्लादेशी घुसपैठी

मित्रों,मान लीजिए मेरे दरवाजे पर एक मरखंड (बदमाश) बैल बंधा हुआ है.अगर आपको उसके आसपास से गुजरने की मजबूरी है तो जाहिर है कि आप उससे एक सुरक्षित दूरी बनाकर चलिएगा.नहीं चलते हैं या फिर उसे उसकी मारक-क्षमता में होते हुए जान-बूझकर छेड़ते हैं तो जाहिर है कि आप अपनी किस्मत को अपने ही हाथों बिगाड़ना चाहते हैं.बैल तो बैल है वह तो मारेगा ही.
          मित्रों,ऐसा ही कुछ हाल हमारी भारत सरकार और हमारे कथित धर्मनिरपेक्ष दलों का है.वह पहले तो असहिष्णु बांग्लादेशियों को अपने देश (घर) में घुस जाने देते हैं.फिर तात्कालिक लाभ यानि चुनाव में वोट के लिए उनके लिए राशन कार्ड,मतदाता पहचान-पत्र आदि की व्यवस्था करते हैं और जब वे बांग्लादेशी सामूहिक रूप से भारतीयों का कत्लेआम करने लगते हैं तब भी एक थेथर की तरह वे यही कहते फिरते हैं कि यह एक जातीय हिंसा है सांप्रदायिक नहीं है.मैं उन धर्मनिरपेक्षतावादियों से पूछता हूँ कि क्या असं में दंगे हिन्दू या मुस्लिम संप्रदाय की विभिन्न अन्रूनी जातियों के बीच हो रहे हैं?अगर नहीं तो फिर यह हिंसा कैसे सांप्रदायिक नहीं है?कांग्रेस के बडबोले नेता दिग्विजय सिंह इन दंगों को गुजरात के दंगों से अलग बता रहे हैं.पता नहीं उनके दावे का आधार क्या है?गुजरात दंगा जहाँ ट्रेन पर हमले से शुरू हुआ था वहीं असम के दंगों में दंगा पहले शुरू हुआ ट्रेनों पर हमले बाद में हुए.गुजरात में जहाँ हिन्दू हमलावर की भूमिका में थे और पुलिस मूकदर्शक थी वहीं असम में मुसलमान हमलावर हैं और यहाँ भी पुलिस मूकदर्शक है.
                     मित्रों,बांग्लादेशी घुसपैठी न सिर्फ भारत बल्कि पडोसी म्यांमार की कानून-व्यवस्था और शांति के लिए भी समस्या बन गए हैं.हाल ही में म्यांमार के मूल निवासियों की जिन रोहिंग्या मुसलमानों से हिंसक झडपें हुई थीं और फलस्वरूप कई लोग मारे गए थे वे रोहिंग्या मुसलमान कोई और नहीं बल्कि यही बांग्लादेशी घुसपैठी हैं.कई साल पहले १९९४-९५ में मैं कटिहार जिले में रहता था.तब मैं अक्सर कोढ़ा से कटिहार सड़क मार्ग से आता-जाता था और देखता था कि सड़कों के किनारे धीरे-धीरे बधिया मुसलमानों (बांग्लादेशी घुसपैठियों का स्थानीय नाम) की बस्तियां उगती जा रही थीं.मेरा फुलवडिया स्थित खेत मो. इस्राईल जोतता था जो खुद भी स्वीकार करता था कि वह एक बांग्लादेशी घुसपैठी है.बाद में १९९६ में मेरे वहां रहने के दौरान ही फुलवडिया के एक गरीब धानुक की गाय रात में चोरी हो गयी.वह धानुक जाता-चक्की कूटना जानता था.कई दिनों तक भटकने के बाद उसने अपनी गाय को उन्हीं बधिया मुसलमानों में से एक के दरवाजे पर बंधी मिली.बेचारा दौड़ा-दौड़ा थाना गया परन्तु थानेदार ने मदद नहीं की.उसकी कथित मजबूरी यह थी कि तत्कालीन राज्य सरकार ने कथित रूप से उसे इन प्यारे अंतर्राष्ट्रीय मेहमानों पर हाथ डालने से मना कर रखा था.
                  मित्रों,पहले तो ये बांग्लादेशी भारत में भारत-पाक युद्ध के दौरान मानवीय आपदा के मारे अतिथि बनकर आए थे फिर उन्होंने यहीं पर स्थायी रूप से डेरा-डंडा ही जमा लिया.बाद में भी वे अपने भाई-भतीजों,बेटी-दामादों आदि को सीमापार से लाने लगे.इस तरह उनकी आबादी में बुलेट की रफ़्तार से बढ़ोतरी होती गयी.वैसे तो इनका धर्म भी भारतीय मुसलमानों की तरह इस्लाम ही है लेकिन ये भारतीय मुसलमानों की तरह सर्वधर्मसमभाव और सहिष्णुता में विश्वास नहीं करते.इनका मुख्य धंधा गायवंशीय पशुओं की चोरी करना और उनकी सीमापार तस्करी करना है जिसके चलते हाजीपुर तक में भी दूध की कमी पैदा हो रही है;पशुधन की क्षति तो हो ही रही है.जबतक इनकी आबादी स्थानीय आबादी से कम होती है तब तक तो ये गाय जैसे सीधे बने रहते हैं लेकिन जैसे ही जनांकिकी का आंकड़ा बदलता है ये वही सब करना शुरू कर देते हैं जो आज वे असम में कर रहे हैं.यह भले ही इस तरह की पहली घटना है परन्तु अंतिम नहीं है.आज जो असम में हो रहा है कल वही प. बंगाल में होगा और परसों वही बिहार में.
              मित्रों,दिग्विजय सिंह जैसे साईनबोर्डवाले धर्मनिरपेक्षतावादी यह तो मानते हैं कि भारत में बांग्लादेशी घुसपैठी हैं लेकिन यह भी कुतर्क देते हैं कि उनमें हिन्दू भी शामिल हैं.परन्तु वे यह नहीं बताते कि उनमें हिन्दुओं की संख्या कितनी है?क्या वे सब्जी में नमक के बराबर नहीं हैं?फिर उनकी सरकार को उन हिन्दुओं को वापस भेजने से किसने रोक रखा है?भेजना है तो सभी बांग्लादेशियों को वापस भेजो फिर चाहे वे हिन्दू हों या मुसलमान.अब अगर एक लाख मुसलमान घुसपैठियों पर एक हिन्दू घुसपैठी है तो क्या यह बहाना बनाने या देश की एकता और अखंडता की रक्षा के लिए उन्हें वापस भेजने से बचने का आधार हो सकता है?
                 मित्रों,२००१ की जनगणना के अनुसार देश में ४ करोड़ बांग्लादेशी मौजूद थे. आईबी की ख़ुफ़िया रिपोर्ट के मुताबिक़ अभी भी भारत में करीब डेढ़ करोड़ से अधिक बांग्लादेशी अवैध रूप से रह रहे हैं जिसमें से ८० लाख पश्चिम बंगाल में और ५० लाख के लगभग असम में मौजूद हैं.वहीं बिहार के किशनगंज, कटिहार और पूर्णिया जिलों में और झारखण्ड के साहेबगंज जिले में भी लगभग ४.५ लाख बांग्लादेशी रह रहे हैं.राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में १३ लाख बांग्लादेशी शरण लिए हुए हैं वहीं ३.७५ लाख बांग्लादेशी त्रिपुरा में डेरा डाले हैं.नागालैंड और मिजोरम भी बांग्लादेशी घुसपैठियों के लिए शरणस्थली बने हुए हैं.१९९१ में नागालैंड में अवैध घुसपैठियों की संख्या जहाँ २० हज़ार थी वहीं अब यह बढ़कर ८० हज़ार से अधिक हो गई है.असम के २७ जिलों में से ८ में बांग्लादेशी मुसलमान बहुसंख्यक बन चुके हैं.१९०१ से २००१ के बीच असम में मुसलामानों का अनुपात १५.०३ प्रतिशत से बढ़कर ३०.९२ प्रतिशत हो गया है.जाहिर है इन अवैध मुस्लिम बांग्लादेशी घुसपैठियों की वजह से असम सहित अन्य राज्यों का राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक ढांचा प्रभावित हो रहा है.हालात यहाँ तक बेकाबू हो चुके हैं कि ये अवैध मुस्लिम बांग्लादेशी घुसपैठिये भारत का राशन कार्ड इस्तेमाल कर रहे हैं, चुनावों में वोट देने के अधिकार का उपयोग कर रहे हैं व सरकारी सुविधाओं का जी भर कर उपभोग कर रहे हैं और देश की राजनीतिक व्यवस्था में आई नैतिक गिरावट का जमकर फायदा उठा रहे हैं.दुनिया में भारत ही एकलौता देश है जहां अवैध नागरिकों को आसानी से वे समस्त अधिकार स्वतः प्राप्त हो जाते हैं जिनके लिए देशवासियों को कार्यालयों के चक्कर लगाना पड़ते हैं.यह स्वार्थी राजनीति का नमूना नहीं तो और क्या है?
                मित्रों,प्रत्येक स्थान और देश की अलग-अलग संस्कृति होती है.एक स्थान या देश से अगर दूसरे स्थान या देश में सामूहिक अप्रवासन होता है तो उससे सिर्फ खाने-पीने या पर्यावरण की या आर्थिक संसाधनों पर जोर पड़ने की समस्या ही नहीं उत्पन्न होती है बल्कि उससे सांस्कृतिक संघर्ष का भी खतरा पैदा हो जाता है.मान लीजिए और कल्पना कीजिए कि अगर भारत की आधी या चौथाई जनसंख्या ही रातोंरात अमेरिका में जा बसती है तो फिर अमेरिका का क्या हाल होगा?क्या तब अमेरिका अमेरिका रह जाएगा और भारत नहीं हो जाएगा?ठीक इसी तरह भारत के जिन जिलों में बांग्लादेशी घुसपैठी बहुमत में आ गए हैं वे भौगोलिक रूप से भले ही भारतीय हैं सांस्कृतिक रूप से भारतीय नहीं रह गए हैं.
                   मित्रों,आज ही खबर आई है कि तालिबान ने बांग्लादेशी अप्रवासी मुसलमानों के साथ हुई हिंसा पर नाराजगी व्यक्त करते हुए म्यांमार को आतंकी हमले की धमकी दी हैं.मतलब कि बांग्लादेशी घुसपैठ एक स्थानीय या एकदेशीय सामान्य नहीं है बल्कि "पैन इस्लामिकवाद" में विश्वास रखनेवाले उन सभी लोगों द्वारा रचा गया सुनियोजित षड्यंत्र है जो दुनिया के कई देशों में निवास कर रहे हैं.अब यह हम पर निर्भर करता है कि हम असम के दंगों से शिक्षा लेते हैं या नहीं.आनेवाले खतरे को भाँपते हुए बांग्लादेशी घुसपैठियों को वापस भेजने के पिछले कई दशकों में दी गए सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न आदेशों पर अमल करते हैं (म्यांमार ने हाल के दंगों से सबक लेते हुए बांग्लादेशी घुसपैठियों को वापस बांग्लादेश भेजना शुरू कर भी दिया है.) या फिर शुतुरमुर्ग की तरह बालू में सिर छिपाकर यह सोंचने में लग जाते हैं कि खतरा खुद ही टल जाएगा.वैसे यह खतरा खुद-ब-खुद टलनेवाला नहीं है बल्कि दिन-ब-दिन भयावह स्वरुप अख्तियार करते जानेवाला है.          

गुरुवार, 26 जुलाई 2012

राष्ट्रपति पद की गरिमा पर ?

भक्तराज रामकृष्ण परमहंस वचनामृत में एक कथा आती है जो कुछ इस प्रकार है.एक बार किसी साधु का शिष्य तीर्थयात्रा पर निकल रहा था.उसने जब अपने गुरु से इसके लिए आज्ञा मांगी तो उन्होंने चलते समय उसे एक नीम की लकड़ी से बनी तुम्बी थमा दी और कहा कि जहाँ-जहाँ तुम स्नान करना इसे भी स्नान करवाते जाना.जब शिष्य तीर्थयात्रा से वापस आया तो गुरु ने उससे पूछा कि उसे तीर्थ-भ्रमण से क्या प्राप्त हुआ?शिष्य चुप्प,क्या जवाब दे?तब गुरु ने शिष्य से वह तुम्बी मांगी और उसे तोड़ दिया और उसमें से थोड़ी लकड़ी निकालकर शिष्य को चखने के लिए दिया.शिष्य ने ओए-ओए करके उसे थूक दिया.तब गुरु ने उसे समझाया कि जब इस निर्जीव व निर्दोष पदार्थ में तीर्थ करने से कोई अंतर नहीं आया तो तुम्हारे जैसे सजीव और सदोष मनुष्य में कैसे आ सकता है?
             मित्रों,शायद आपको भी मेरी तरह किसी अपराधी के लिए इस उम्मीद में मतदान करने का सुअवसर मिला हो कि जीतने के बाद अर्थात विधायक या सांसद बनने के पश्चात् वह सुधर जाएगा.मैंने महनार विधानसभा क्षेत्र में वर्ष २००० में एक अपराधी उम्मीदवार रामकिशोर सिंह उर्फ़ रामा सिंह को वोट और समर्थन दिया था और जिताया था.परन्तु बाद में मुझे घोर निराशा हुई जब मैंने पाया कि उस व्यक्ति का जीतने के बाद कुछ भी व्यकित्वांतर नहीं हुआ;वह जनप्रतिनिधि बनने के पहले भी अपराधी था और बाद में भी मूल रूप से अपराधी ही बना रहा;कभी सच्चे मायनों में जनप्रतिनिधि नहीं बनने पाया.
          मित्रों,इन कटु सच्चाइयों की मौजूदगी के बाबजूद भारतीय संविधान और कई भारतीय हमसे यह आशा कर रहे हैं कि हम किसी व्यक्ति का सिर्फ इसलिए सम्मान करें क्योंकि वह अब भारत का राष्ट्रपति बन गया है.कल कोई खूनी-हत्यारा राष्ट्रपति बन जाएगा तो क्या वह केवल राष्ट्रपति बन जाने से ही अकस्मात् सम्मान का पात्र हो जाएगा?जब पूरे भारत की तीर्थयात्रा करके भी नीम की तुम्बी कसैली बनी रही,अपराधी विधायक बन जाने के बाद भी अपराधी ही बना रहा और उसके आचरण में कोई क्रांतिकारी बदलाव परिलक्षित नहीं हुआ तो फिर राष्ट्रपति बन जाने मात्र से ही कोई कैसे महान,श्रद्धेय,पूज्य और सम्मानित हो जाएगा?याद रखिए कि सम्मान जबरन करवाया नहीं जा सकता बल्कि अपने कृत्यों द्वारा क्रमशः अर्जित किया जाता है.जबरदस्ती की श्रद्धा तानाशाह करवाया करते हैं परन्तु क्या उसे सचमुच की श्रद्धा की श्रेणी में रखा जा सा सकता है?कहा जाता है कि उत्तर कोरिया के तानाशाह राष्ट्रपति किम जोंग ईल की जब १९ दिसंबर २०११ को मृत्यु हुई तो वहां की साम्यवादी तानाशाही सरकार की ओर से आदेश जारी किया गया कि देश की प्रत्येक जनता इस अवसर पर दिवंगत शासक के सम्मान में अश्रुपूर्ण विलाप करेगी और ऐसा नहीं करने वालों को शासन की ओर से दण्डित किया जाएगा.क्या इस प्रकार डंडे और बंदूकों के बल पर जनता के मन में सचमुच का आदर पैदा किया जा सकता है?नहीं न?
          मित्रों,तब फिर क्यों हम भारतीय जनता से यह झूठी उम्मीद की जा रही है कि हम राष्ट्रपति के पद को स्वाभाविक रूप से आदरणीय मानते हुए उनका सम्मान करें और उनकी आलोचना नहीं करें?अगर हम ऐसा करें भी तो क्या वह कोरा दिखावा नहीं होगा?क्या कोई आदमी राष्ट्रपति बनने के बाद आदमी नहीं रह जाता?क्या वह देवता बन जाता है?क्या वह भोजन नहीं करता,साँस नहीं लेता,मल-मूत्र त्याग नहीं करता,सोंचना और बोलना बंद कर देता है?अगर वह फिर भी ऐसा करता है तो फिर वह एक इन्सान के रूप में गलतियाँ भी जरूर करेगा और इसके लिए उसकी आलोचना होना भी उतना ही स्वाभाविक होगा.
              मित्रों,क्या आप बता सकते हैं कि आज ही राष्ट्रपति के पद से पदमुक्त हुई श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने राष्ट्रपति के रूप में ऐसा कौन-सा महान कार्य किया है जिसके लिए हमें उनका सम्मान करना ही चाहिए?शायद आप भी नहीं बता सकते.हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि सम्माननीय या असम्माननीय व्यक्ति हुआ करता है उसका पद नहीं.आप एक राजा के रूप में राम और रावण को बराबर का सम्मान सिर्फ इस एक कारण से नहीं दे सकते क्योंकि दोनों ही राजा थे.इसलिए भविष्य में प्रणव मुखर्जी का राष्ट्रपति के रूप में सम्मान इस बात पर निर्भर करेगा कि वे इस रूप में कैसा और कितनी ईमानदारी और निष्पक्षता से कार्य करते हैं न कि इस बात पर कि अब वे भारतीय गणराज्य के १३वें राष्ट्रपति हैं.यहाँ मैं फिर से भक्त प्रवर रामकृष्ण परमहंस की वक्तृता का सहारा लेना चाहूँगा.उन्होंने कहा है कि कोई भी तीर्थ सिर्फ स्थान-विशेष पर स्थित होने से ही तीर्थ नहीं हो जाता बल्कि जहाँ महान लोग निवास करते हैं वहीं तीर्थ है और तीर्थ बन जाता है.तदनुसार कोई व्यक्ति सिर्फ इसलिए आलोचना से परे नहीं सकता क्योंकि वह ३४० कमरों वाले भारतीय लोकतंत्र के सबसे बड़े कथित तीर्थस्थल राष्ट्रपति भवन में निवास करता है बल्कि उसे तदनुसार महान कर्म भी करने होंगे या करने चाहिए.किसी पद की गरिमा का बढ़ना या घटना पदधारक पर और सिर्फ उसी पर निर्भर करता है न कि जनता पर.वर्ना अगर भारत को भी उत्तर कोरिया बनाना है तो कोई बात नहीं.फिर करवाईए जबरदस्ती जनता से आदर;बलबन की तरह अनिवार्य कर दीजिए सिजदा और पाबोस को.

शनिवार, 21 जुलाई 2012

बालकृष्ण की गिरफ़्तारी के निहितार्थ

मित्रों,कानून के लिहाज से अच्छी और राजनीति के हिसाब से उतनी ही बुरी एक घटनात्मक प्रगति हुई है.भ्रष्टाचार के खिलाफ वनमैन आर्मी बाबा रामदेव के अनन्य सहयोगी आचार्य बालकृष्ण को केंद्र सरकार ने सी.बी.आई. के माध्यम से गिरफ्तार कर लिया है.ये तो होना ही था सिर्फ यह पूर्व निश्चित नहीं था कि कब होगा?मैं उनकी गिरफ़्तारी को अनुचित भी नहीं मानता हूँ;जाने-अनजाने में उनसे गंभीर अपराध तो हुआ ही है और इसके लिए उन्हें सजा भी मिलनी चाहिए.लेकिन सवाल उठता है कि अगर बाबा रामदेव ने भी स्वनामधन्य और स्वकामधन्य नित्यस्वमूत्र पानकर्ता स्वामी अग्निवेश की तरह पाला बदलकर कांग्रेस की ताबेदारी स्वीकार कर ली होती तो भी क्या आज बालकृष्ण उस स्थान पर होते जहाँ कभी उनके हमनाम युगपुरुष बालक श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था.वैसे भी हुकूमत के हाथों में काफी सुख-साधन होता है जिसके बल पर वह हर किसी को अपने कदमों में झुकाने की कोशिश करती है.इस सन्दर्भ में प्रख्यात शायर मुनव्वर राणा ने क्या सटीक बात कही है-
"हुकूमत मुंह भराई के हुनर से खूब वाकिफ है
ये हर कुत्ते के आगे शाही टुकड़ा दाल देते है."
परन्तु वह लाख कोशिश करके भी हरेक को नहीं खरीद पाती.कुछ लोग ऐसे दीवाने होते हैं जो कवि शिव ओम अम्बर के सुझाए मार्ग पर चलना और हंसी-ख़ुशी तबाह हो जाना मंजूर कर लेते हैं-
"सुविधा से परिणय मत करना
अपना क्रय-विक्रय मत करना."
और जब कोई बिकने को तैयार नहीं होता और साथ ही अपनी थोड़ी-बहुत शक्ति को एकजुट करके मुट्ठी भींचकर उसके खिलाफ खड़ा हो जाता है तो फिर वही होता है जो आज आचार्य बालकृष्ण के साथ हुआ और ५ जून २०११ को बाबा रामदेव के साथ हुआ था.
                मित्रों,सरकार एक विशालकाय तंत्र है हाथी की तरह और आम आदमी अन्ना या रामदेव तुच्छ हैं,छोटे हैं-चींटी की तरह.चींटी जब हाथी को चुनौती देगी तो स्वाभाविक है कि हाथी को बहुत-बड़ी मात्रा में उसकी ताकत के समानुपाती ही गुस्सा आएगा और वह उसे कुचल देने का भरसक प्रयास करेगा.आजकल इस हाथीरूपी सरकार की सबसे महत्वपूर्ण पैर बन गयी है या फिर बना दी गयी है सी.बी.आई..मैंने अपने एक पूर्व के लेख में इसे केंद्र सरकार का कुत्ता भी कहा था सो तो वह है ही.बल्कि मैं तो इसकी तुलना पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी आई.एस.आई. से भी करना चाहूँगा.पाकिस्तानी आई.एस.आई. और हिन्दुस्तानी सी.बी.आई. में बस इतना ही अंतर है कि एक सरकार को गिराती है और दूसरी चलाती है.एक सरकार को काट खानेवाला कुत्ता है तो दूसरा सरकार के पीछे-पीछे दुम हिलानेवाला.यूं तो कथित रूप से सी.बी.आई. सरकार से स्वायत्त है लेकिन वास्तव में ऐसा है नहीं बल्कि वह सरकार की चार में से एक पैर बन गयी है जिन पर सरकार को पौआं-पौआं चलाने की महती जिम्मेदारी तो है ही साथ ही विरोधी चीटियों को कुचलना भी अब उसका ही काम बन गया है.कोई जो बेदाग होता है उसके पाँव के नीचे नहीं आ पाता और कोई जिसने कभी छोटी-मोटी गलती भी की होती है उसे यह पांव कुचल देती है.ऐसा करते समय यह हाथी सत्ता मद में यह भूल जाता है कि अगर यही चींटीं उसके नाक-कान में घुस जाए तो उसकी जान भी जा सकती है.
                   मित्रों,अगर सी.बी.आई.स्वायत्त है तो वह भ्रष्टाचार के आरोपी कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियों के नेताओं  पर क्यों अपना हाथ नहीं डालती?मुलायम,माया और अब जगनमोहन जिनका अस्तित्व ही कांग्रेस विरोध पर टिका हुआ था और है;किसके डर से कांग्रेस की जय-जयकार करने में लगे हैं?क्या वह हौआ या गब्बर सिंह सी.बी.आई. नहीं है?कैसे और क्यों लालू जिनके खिलाफ बड़े परिश्रम से यू.एन.विश्वास ने कई ट्रक कागजी सबूत चारा घोटाले के सिलसिले में जमा किए थे जेल में होने के बजाए दिन-रात उड़नखटोले की सवारी गांठ रहे हैं?क्यों सी.बी.आई.को वे सबूत नजर ही नहीं आ रहे हैं?
           मित्रों,मैं यह नहीं कहता कि आचार्य की गिरफ़्तारी गलत है लेकिन हमारी केंद्र सरकार क्यों निष्पक्ष होकर काम नहीं कर रही है जबकि प्रधानमंत्री सहित सारे मंत्रियों को पदग्रहण से पहले भय और पक्षपात से रहित होकर काम करने की शपथ दिलवाई जाती है?क्यों उसे सिर्फ वही अपराधी नजर आता है जो उसके विरुद्ध आवाज उठता है?क्या यह सबकुछ लोकतंत्र को मजबूत करेगा?जब किसी निर्दोष हिन्दू संन्यासी और उसके हजारों बाल-वृद्ध अनुयायियों पर रात के दो बजे डंडा चलाना होता है तो कथित रूप से धर्मनिरपेक्ष पार्टी की सरकार के हाथों में दानवी ताकत कहाँ से आ जाती है?वही ताकत तब कहाँ खो जाती है जब किसी संसद पर हमला करनेवाले व सजायाफ्ता मुसलमान को फाँसी पर लटकाना होता है या फिर जब कोई बुखारी या गिलानी अलगाववादी भाषण करता है या बयान देता है?क्या हिन्दू सन्यासियों को बेवजह परेशान करने या फिर षड्यंत्रपूर्वक देश में हिन्दू आतंकवाद की मौजूदगी को साबित करने का प्रयास करने को धर्मनिरपेक्षता कहते हैं?क्या हमारी केंद्र सरकार बताएगी कि वह पाकिस्तान के साथ क्रिकेट सम्बन्ध स्थापित करने के लिए बेताब क्यों हुई जा रही है जबकि अबु जुन्दाल के साथ की गयी पूछताछ ने यह साबित कर दिया है कि मुम्बई हमले में पाकिस्तान सरकारी अमला भी शामिल था.क्या उसके साथ देश की अस्मिता और सुरक्षा की कीमत पर भी सम्बन्ध स्थापित करना कांग्रेस की धर्मनिरपेक्षता के दायरे में आता है?
                     मित्रों,आचार्य की इस समय गिरफ़्तारी के पीछे कई कारण हो सकते हैं जिनमें सबसे प्रमुख तो यह है कि उन्हें इसलिए इस समय गिरफ्तार किया गया है ताकि आगामी कुछ दिनों में नई दिल्ली में प्रस्तावित बाबा रामदेव के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन को रोका जा सके.किन्तु क्या ऐसा हो पाएगा?मुझे तो नहीं लगता बल्कि मुझे तो लगता है कि इससे उनका मनोबल और भी मजबूत ही होगा.अभी कुछ ही दिनों पहले केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद ने अन्ना हजारे से गुप्त मंत्रणा की.मजमून क्या था अब जगजाहिर है.केंद्र सरकार के १५ दागी मंत्रियों में से एक मियाँ खुर्शीद उन्हें शायद इस झांसे में लेना चाहते थे कि वे लोग लोकपाल को लेकर वाकई गंभीर हैं.कितने गंभीर हैं आचार्य की इस समय की गिरफ़्तारी से खुद ही बयाँ हो गयी हैं.उनकी गिरफ़्तारी के पीछे एक आदि कारण यह भी हो सकता है कि वे एक महान आयुर्वेदिक वैद्य हैं और उनके द्वारा बनाई जानेवाली नई-नई औषधियों के कारण बहुराष्ट्रीय अंग्रेजी दावा कंपनियों को भारी नुकसान हो रहा था.
                  मित्रों,कुल मिलाकर इस समय देश की स्थिति अच्छी नहीं है और सबसे बुरा हो यह हो रहा है कि केंद्र सरकार इस सच्चाई को सुनना ही नहीं चाहती.अगर कोई फिर भी सुनाना या दिखाना चाहता है तो उसका वही हाल होता है जो रामदेव के सहयोगी बालकृष्ण के साथ हुआ.महान अर्थशास्त्री के कार्यकाल में हमारी अर्थव्यवस्था जमीन सूंघ रही है.दूसरी ओर सांस्कृतिक क्षेत्र में देश को अधोगति तक पहुँचाने और अप्राकृतिक यौनाचार को बढ़ावा देने के लिए बेताब केंद्र सरकार मानसून सत्र में संशोधन लाने जा रही है.देश की आतंरिक और बाह्य सुरक्षा के लिए खतरे भी लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं.आज के भारत के हालात को फैज अहमद 'फैज' के ये लफ्ज क्या खूब बयां करते हैं-
"यह दाग दाग उजाला,ये शब गज़ी दह सहर,
वह इंतजार था जिसका,ये वो सहर तो नहीं."          

बुधवार, 18 जुलाई 2012

कांग्रेस में विचारों की कमी हो गयी है

मित्रों,प्रणव मुखर्जी का अगला राष्ट्रपति बनना तय हो चुका है.कहने को तो प्रणव सरकार में नंबर २ थे लेकिन अब यह किसी से छिपा हुआ नहीं है कि दरअसल इस सरकार को चला वही रहे थे.लगभग सारी कैबिनेट समितियों के अध्यक्ष वही थे न कि मनमोहन सिंह और तदनुसार सरकार के बारे में सारे यथास्थितिवादी फैसले वही ले रहे थे न कि मनमोहन सिंह.उनमें चाहे जितनी भी योग्यता हो यू.पी.ए.-२ के वित्त मंत्री और अघोषित प्रधानमंत्री के रूप में उनका कामकाज औसत से अतीव कमतर तो रहा ही देश को विकास के पथ पर पीछे 'हिन्दू दर" वाले युग में ले जानेवाला भी रहा.चाहे अर्थव्यवस्था को गति देने का प्रश्न हो अथवा भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने का सवाल प्रणव प्रत्येक मोर्चे पर असफल रहे.उनकी गलत और अर्थशास्त्र के सिद्धांतों से बेमेल नीतियों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को उस समय भारी नुकसान पहुँचाया जब वह पहले से ही वैश्विक आर्थिक संकट के कारण ढलान के मुहाने पर थी.प्रणव मुखर्जी ने ह्रास को रोकने का इंतजाम करने के बदले करों में वृद्धि करके और गार जैसे विवेकहीन कर प्रस्ताव लाकर ढलान से नीचे उतर रही भारतीय अर्थव्यवस्था को जोर का धक्का दे दिया.जिस कालखंड में सरकारी व्यय बढाकर आधारभूत संरचना का तेज विकास किया जाना था उसी कालखंड में मूर्खतापूर्ण तरीके सरकारी सार्थक व्यय में कटौती की गयी जबकि अपव्यय को खूब बढ़ावा दिया गया.जैसे मनरेगा जैसी धन-संपत्ति अनुत्पादक लेकिन आलसी और निकम्मा-उत्पादक और वर्द्धक योजना पर भारी व्यय किया गया जिससे न तो गांवों को आनुपातिक लाभ हुआ और न ही देश और गांवों में स्थायी रोजगार की सृष्टि ही हो पाई.
                 मित्रों,उनकी मौद्रिक नीति का तो कहना ही क्या?लगता है जैसे उनको एक ही काम आता था सिर्फ ब्याज दर में लगातार बढ़ोत्तरी करना.यद्यपि इसके चलते कर्ज यानि पूँजी तो महँगी होती ही गयी महंगाई में भी किसी तरह की कमी नहीं आई.माना कि मौद्रिक नीति का सञ्चालन रिजर्व बैंक करता है लेकिन वे उसे निर्देश तो दे ही सकते थे.भ्रष्टाचार के प्रति भी प्रणव मुखर्जी का रवैया निहायत अफसोसनाक,खतरनाक,शर्मनाक और टालमटोल भरा रहा है.लोकपाल विधेयक के किसी सार्थक परिणति तक नहीं पहुँचने देने के लिए जितने जिम्मेदार कपिल सिब्बल,सलमान खुर्शीद और पी. चिदंबरम हैं प्रणव किसी भी तरह उनसे कम जिम्मेदार नहीं हैं.इस दिशा में उनका रवैया अवरोधक वाला ही रहा है त्वरक (एक्सीलेटर) वाला नहीं.उनके द्वारा काले धन पर प्रस्तुत श्वेत पत्र तो आपको याद होगा ही.शायद वह जिस कागज पर लिखा गया था उसे सादा ही छोड़ दिया गया था उसे किंचित भी काला नहीं किया गया था.इसको लाने के पीछे प्रणव का छिपा हुआ उद्देश्य मुद्दे का घोर-मट्ठा कर देने के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं था.भ्रष्टाचार के मामलों की लीपा-पोती करने में उनका कोई जवाब नहीं था.यू.पी.ए.-२ में उन्होंने इसके अलावा और कुछ किया ही नहीं.
                    मित्रों,मैं नहीं जानता कि २-जी घोटाले,कोयला घोटाले,अन्तरिक्ष घोटाले,राष्ट्रमंडल घोटाले इत्यादि के पीछे प्रणव की प्रेरणा कहाँ तक काम कर रही थी लेकिन शायद वे इतने अधिक शक्तिशाली भी नहीं थे की इतने बड़े-बड़े सरकार प्रायोजित घोटालों का दिग्दर्शन कर सकें.शायद इनका सबका सूत्रधार कोई और था या थी शायद सोनिया गाँधी या कोई और.जब ये घोटाले किए जा रहे थे तब प्रणव की उतनी चलती नहीं थी जितनी कि घोटालों के हो जाने और उजागर हो जाने के बाद हो गयी.इसका कारण शायद यह था कि वे अतिव्यवहार कुशल और वाकपटु थे कि उन्हें ही सरकार का बचाव करने की महती जिम्मेदारी सौंपी गयी.इसमें भी संदेह नहीं कि उन्होंने संकटमोचक की नई भूमिका का बखूबी निर्वहन भी किया परन्तु घोटाला सम्बन्धी मामलों की लगातार लीपापोती करने से भ्रष्टाचार में वृद्धि ही हुई कमी नहीं आई.साथ ही दादा की चलती का दुष्परिणाम यह भी हुआ कि सरकार ने कोई भी नया निर्णय लेना ही बंद कर दिया.न तो कोई निर्णय लिया जाएगा और न ही कोई घोटाला ही होगा,ठीक बिहार में लालू-राबड़ी शासन वाली स्थिति.प्रणव या सरकार या कांग्रेस की इस नीति की ही परिणति है कि आज की तारीख में भारतीय प्रधानमंत्री की अंतर्राष्ट्रीय छवि रसातल में पहुँच चुकी है.
                              मित्रों,प्रणव जो कांग्रेस और सरकार के लिए संकटमोचक थे अब राष्ट्रपति भवन जा रहे हैं.ऐसे में सरकार में और पार्टी में के विराट शून्य पैदा हो गया है.अब सरकार में कोई संकटमोचक नहीं रहा लेकिन कांग्रेस और सरकार के लिए मूल समस्या यह है ही नहीं.यह तो समस्या-वृक्ष की सिर्फ एक शाखा है.मूल समस्या तो यह है कि कांग्रेस और सरकार में विचारों (IDEAS) की कमी हो गयी है.कांग्रेस और सरकार पूरी तरह से विचारशून्य हो गयी हैं.उनकी समझ में यही नहीं आ रहा है कि वर्तमान परिस्थितियों में उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए.क्यों करना चाहिए और कैसे करना चाहिए तो दूर की बात रही.यह एक सार्वकालिक सत्य है कि विशुद्ध वोट बैंक की राजनीति से सरकार बनाई तो जा सकती है भलीभांति चलाई नहीं जा सकती.भलीभांति से यहाँ मेरा मतलब है कि सिर्फ इसके बल पर ९-१०% की विकास-दर प्राप्त नहीं की जा सकती और न ही देश का चतुर्दिक विकास ही हो सकता है.बल्कि कई बार इस तरह की उपलब्धियाँ प्राप्त करने के लिए लोकप्रिय राजनीति का परित्याग भी करना पड़ता है.बार-बार विधानसभा चुनावों में पराजय का मुँह देखती आ रही कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश की हार के बाद कुछ इस तरह सन्निपात की स्थिति में आ गयी हैं वह अपने हर कदम को लेकर संशय की स्थिति में है.भयभीत है कि कहीं उसके किसी कदम का प्रभाव उसके बहुमूल्य वोट-बैंक पर उल्टा न पड़ जाए.अजीब चक्रव्यूह है-जब तक अलोकप्रिय निर्णय नहीं लिए जाते स्थितियां नहीं सुधरेंगी और अगर अलोकप्रिय कदम उठाए जाते हैं तो पार्टी के चुनाव में हार जाने का खतरा है.साथ ही कोई ऐसा विचारक भी पार्टी के पास उपलब्ध नहीं है जो कि यह बतला सके कि एकसाथ इन दोनों निशानों को कैसे साधा जाए और अगर है भी तो सोनिया उनपर विश्वास ही नहीं करतीं या फिर उन्हें भी चापलूसी करवाने में ही मजा आ रहा है.एक समय था जब बतौर साहित्यकार श्रीकांत वर्मा मगध में विचारों की कमी हो गई थी इसलिए उसका पतन हो गया.आज वही स्थिति कांग्रेस के समक्ष उत्पन्न हो गई है और ऐसा कोई आदमी पार्टी को मिल नहीं रहा है जो निर्भीक होकर ऐसे विचार दे सके कि सोनिया गाँधी सुनें तो सुनते ही रह जाएँ और अनायास उनके मुंह से निकल जाए-व्हाट ऐन आईडिया सर जी?मैं पहले ही कह चुका हूँ कि ऐसा भी नहीं है कि पार्टी के पास थिंक टैंक हैं ही नहीं परन्तु वे भी आजकल पार्टी को नए-नए विचार देने के स्थान पर "राहुल बाबा नाम केवलम" नामक निष्प्रभावी सिद्ध हो चुके मंत्र के अखंड जाप में लगे हुए हैं.वे इस छोटी-सी बात को या तो समझ नहीं पा रहे हैं या फिर नहीं समझ पाने का ढोंग कर रहे हैं कि राहुल गाँधी सर्वथा अयोग्य हैं और उनकी एकमात्र योग्यता उनका राजीव गाँधी का बेटा होना है.राहुल उस नेपोलियन बोनापार्ट के पाँव की धूल के बराबर भी नहीं हैं जो अक्सर कहा करता था कि मैं आया,मैंने देखा और मैं जीत गया (I CAME, I SAW AND I WON).              

सोमवार, 16 जुलाई 2012

बच के रहना रे बाबा

मित्रों,ठगने या फुसलाने की क्रिया या प्रथा कदाचित उतनी ही पुरानी है जितनी कि मानव सभ्यता.शुरुआत में यह व्यक्तिगत कर्म था परन्तु बाद में इसने संस्थागत स्वरुप ग्रहण कर लिया.मध्यकाल में ठगों की एक जाति का भी जन्म हुआ जिसका दमन लॉर्ड विलियम वेंटिंक के समय १८३० के दशक में जून सुलिमैन ने किया.तब से ठगी मजबूरन व्यक्तिगत कर्म बनी हुई थी.वो कहते हैं न कि कुत्ते का भी वक़्त आता है.धीरे-धीरे ही सही पर वक़्त ने करवट बदली और पूरी दुनिया एक विश्वग्राम में परिवर्तित हो गयी.इसका अतिउर्वर मस्तिष्कवाले ठगों ने भी फायदा उठाया और अब ठगी तकनीक आधारित बिना किसी पूँजीगत लागत के लाभ-ही-लाभ देनेवाली संस्थागत पेशा बनकर उभरी है.
             मित्रों,आपने ई-मेल खोला नहीं कि बिना मांगे दहेज़ देनेवालों के सन्देश प्राप्त होने लगते हैं.कोई सन्देश कथित रूप से कोका कोला कंपनी की ओर से आया हुआ होता है तो कोई सन्देश संयुक्त राष्ट्र संघ विकास कार्यक्रम की ओर से.कोई बिना टिकट ख़रीदे ही दस लाख पौंड की लॉटरी आपके नाम निकलने की सूचना देता है तो कोई चुपके से हमारे जीवन की सबसे बड़ी घोषणा करता है कि आपको संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की ओर से दक्षिण एशिया में लोगों के जीवन-स्तर को ऊँचा उठाने की योजना के तहत 9 लाख पौंड दिया जा रहा है.गजब की योजना है भाई जिसके बारे में न तो कभी पढ़ा गया और न ही सुना ही गया.साथ में एक फॉर्म भी संलग्न होता है जिसके माध्यम से आपसे आपका नाम,उम्र,पेशा,मोबाईल नंबर,लिंग और पता पूछा जाता है.अगर आपने गलती से भी जवाब दे दिया तो फिर आपको पहले तो ई-मेल द्वारा ही एक एकाउंट नंबर देकर उसमें कस्टम ड्यूटी या किसी और चीज के नाम पर कुछ हजार रूपये डालने के लिए कहा जाता है और अगर आपने पैसा डाल दिया तो फिर उनसे संपर्क करते रहिए और खुद को और उस मनहूस घडी को कोसते रहिए जब आप लालच में आ गए थे.न तो आपकी उनसे बात ही हो पाती है और न ही आपको करोड़ों रूपये का कथित;सपनो से सुन्दर ड्राफ्ट ही कभी प्राप्त हो पाता है.
                      मित्रों,अब इन साईबर ठगों ने अपनी रणनीति बदल ली है.अब वे ई-मेल द्वारा विश्वास में लेने के बाद मोबाईल से फोन भी करते हैं और एक ब्रिटिश लहजे में अंग्रेजी बोलनेवाले भारतीय या यूरोपियन से फोन करवाते हैं जिससे शिकार पर पूरा विश्वास जमाया जा सके.      
           मित्रों,यूं तो मुझे मेरे brajvaishali@gmail.com पर हमेशा इस तरह का लालच दिया जाता रहा है कभी कोका कोला कम्पनी का नाम लेकर तो कभी पेप्सी कोला कम्पनी या अन्य प्रतिष्ठित कम्पनियों का नाम लेकर और मैं इस तरह के ई-मेलों को पूरी तरह से नजरंदाज भी करता रहा हूँ लेकिन जब संयुक्त राष्ट्र संघ की एक सर्वज्ञात संस्था संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम अर्थात UNDP के नाम से पिछले सप्ताह ७ जुलाई को एक ई-मेल मिला तो मैं एकबारगी अविश्वास नहीं कर पाया और ई-मेल का जवाब दे दिया.ई-मेल में कुछ भी नहीं लिखा गया था लेकिन संलग्नक कुछ इस प्रकार था-
 
United Nations Development Programme (UNDP)
Department of Humanitarian Affairs / Information Centre
Millbank Tower, 21st Floor
21-24 Millbank
London SW1P 4QH
United Kingdom
Dear Sir / Madam,
This is a very big congratulation and to inform you that we
have selected you as an individual to stand for the 2012 UNDP
Humanitarian Donation in your locality. We collected email
address from world databases for a random pick up, to choose
some few individual and charities home, for wealth distribution
in urban area.
Please do not take this notice as a junk because this might be
a life time opportunity, so we advice you to accept this
donation with good faith because your email address has been
selected and you will be receiving a donation of £900,000 GBP
(Nine Hundred Thousand Great British Pound) as one of this
year lucky beneficiary.
This amount is been giving to you as a lucky recipient to
enhance your personal life, so congratulation once again.
YOU ARE TO FILL THE CLAIMS VERIFICATION FORM TO
FACILITATE THE REMITTANCE OF YOUR FUND.
Full Name:-----------------------------
Forwarding Addresses:---------------
City/State:----------------------------
Country:-------------------------------
Marital Status:------------------------
Sex:----------------------------------
Date of birth:------------------------
Occupation:----------------------------
Tel/Mobil:-----------------------------
Secure Email:--------------------------
Please send your responds to Dr. Conklin Myers via email at:
(undp173@9.cn) with your complete particulars and if possible
also send your id proves for recognition.
Best Regards,
Asli Parker
Regional Resettlement Director.United Nations Development Programme, (UNDP)
 

इसके बाद 12 जून को जवाबी ई-मेल में बताया गया कि एक व्यक्ति लन्दन से आपका ड्राफ्ट लेकर हवाई जहाज से रवाना होने जा रहा है.कल वह भारत पहुंचकर आपसे संपर्क कर लेगा-


United Nations Development Programme (UNDP)
Department of Humanitarian Affairs / 
Information Centre
Millbank Tower, 21st Floor
21-24 Millbank
London SW1P 4QH
United Kingdom

 
Dear Braj kishore Singh,
Sequel to the decision from the 2012 UNDP online grant committee, we hereby wish to inform you that your demand draft will be dispatch Today the 12th of July 2012. Because it’s our obligation to make sure that your entitlement gets to you without any problem or delay; so a senior officer from the office for the Coordination of Humanitarian Affairs (OCHA) has been assigned to help deliver your parcel containing a draft payment of £900,000.00 Great British Pound Sterling from the United Nation Online Grant Donation Sponsored by World Bank.
All information most be kept confidential until you have receive your parcel and you are advice to take guidelines from Mr. Patrick Moses.



FIND MR. PATRICK MOSES FLIGHT INFORMATION BELOW:
Departure Date /Time: 12th July 2012 -11:45:00 PM (UK TIME)
Arrival Date /Time: 13th 
July 2012 -9:15:00 am (INDIA TIME)


Please remember that the objective of this donation to beneficiaries is to make a notable change in the standard of living around the global before 2020 and also note that you have been chosen to receive this donation just once, which means our yearly donation might not get to you again so we advise you to spend your Money wisely. Email us or call this number + (44) 701-006-7047 if you did not receive your demand draft after 2 working days. 

Note: You will only be responsible for the India Governmental Tax / Custom Clearance which is 19,800 India rupees for the clearance of your consignment at the point of entry. Account details will be provided to you for this payment once Mr. Patrick Moses arrive India by tomorrow and you are advice to act as instructed to avoid any problem or delay regarding this remittance process.  

We wish you good luck.

Best regards,
Dr. Conklin Myers
Payment Verifications officer.

Kindly allow me to inform you that last year we discovered a huge number of double claims due to beneficiary's informing close friend’s relatives, attorneys and third parties about their donations. As a result, these close friends, relatives, attorneys and third parties tried to claim the donation sum on behalf of the real recipients thereby causing problems for the pay-out bank.
Please be informed that any double claim discovered in the disbursement process will certainly result to the cancellation of that particular donation, making a loss for both the double claimer and the real beneficiary, as it is taken that the real recipient was the informer to the double claimer about the donation. So you are hereby advised to keep your information
                                  
                मित्रों,परसों 13 तारीख को मेरे मोबाईल नंबर 7870256008 पर मोबाइल नंबर +919920313360 से फोन करके कहा गया कि मेरा एक ड्राफ्ट मुम्बई कस्टम कार्यालय में आया हुआ है और अगर मैं 19800 रूपया कस्टम क्लीयरेन्स के लिए जमा कर दूँ तो वे मेरा ड्राफ्ट मुझे भेज देंगे.इसके लिए मुझे एस.एम.एस. द्वारा भारतीय कस्टम के बदले किसी नदीम करीम के ICICI बैंक की मलाड (w) शाखा का एक अकाउंट न. 015801541606 में उक्त राशि को जमा करने के लिए कहा गया.एस.एम.एस. rohita_indiacustom@consultant.com के नाम से किया गया था.फोन करनेवाले दो व्यक्ति थे एक पुरुष और एक महिला.पुरुष धाराप्रवाह अंग्रेजी अंग्रेजी लहजे में बोलता था और महिला उतनी ही अच्छी हिंदी बोल ले रही थी.मुझे पैसा तो जमा करना था नहीं क्योंकि मेरे पास किसी तरह का लिखित या कागजी सबूत नहीं था कि मुझे UNDP द्वारा 9 लाख   पौंड जैसी बड़ी राशि बेवजह प्रदान की जा रही है.इसलिए मैंने पैसा जमा नहीं किया.लेकिन बार-बार यह जरूर कहता रहा कि मैं पैसा जमा करने जा रहा हूँ.फलतः मेरे मोबाईल पर +919920313360 नंबर से फोन करके तीन-तीन बार तगादा करके जल्द-से-जल्द पैसा जमा करने के लिए कहा गया.तीनों बार फोन पुरुष ने किया था.
         मित्रों,कल फिर से एक ई-मेल उसी पते से यानि UNDP से प्राप्त हुआ है जिसमें मुझे यह बहुमूल्य और दिलतोड़ जानकारी दी गयी है कि उक्त व्यक्ति को ड्राफ्ट लेकर मुम्बई से वापस लन्दन जाने के लिए कह दिया गया है.साथ ही मुझसे पैसा जमा करने के लिए पुनर्विचार करने के लिए भी कहा गया है-
United Nations Development Programme (UNDP)
Department of Humanitarian Affairs / 
Information Centre
Millbank Tower, 21st Floor
21-24 Millbank
London SW1P 4QH
United Kingdom

Dear Beneficiary, 

 We have been made to understand that you were not acting as instructed and for that simple reason to avoid unwarranted abuse of this program, we have asked Mr. Patrick Moses to retune back to the United Kingdom by Monday with your Demand Draft since you said will not be responsible for the India Governmental Tax / Custom Clearance which is 19,800 India rupees for the clearance of your parcel at the Custom department.

 You should be very happy that you were selected among beneficiaries to receive this year 2012 UNDP online grant allocation and by now you supposed to be thinking on how to make arrangement to complete your funds remittance process instead of watching your prize go. Well, I will personally like to confirm from you if you are interested to pay for the Custom Clearance Charges to receive this grant or not? Because I don’t want to be responsible for non-remittance of fund to beneficiaries, so please I wait for your timely response to proceed further. 

Thanks and have a lovely weekend. 

Best regards,
Dr. Conklin Myers
Payment Verifications officer.
       मित्रों,बंसी (कांटे) में आटा या केंचुए का चारा लगाकर मछली तो मैंने भी बचपन में पकड़ी है लेकिन लालच देकर साबुत आदमी को इस तरह फांसते हुए पहली बार देख रहा हूँ वो भी संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी प्रतिष्ठित संस्था के नाम पर.आप सभी पाठकों से भी मैं करबद्ध निवेदन करता  हूँ कि आपलोग भी इन अंतर्राष्ट्रीय ठगों से सावधान रहें.20000 रू. की रकम हम भारतीयों के लिए बहुत बड़ी होती है जबकि हम भारत सरकार की मूर्खतापूर्ण महाकृपा से सिर्फ 32 रू. प्रतिदिन में ही अमीरों की देवदुर्लभ श्रेणी में आ जा रहे हैं.इसलिए आप अपनी सभी छहों इन्द्रियों को खुला रखिए,सचेत रहिए,सावधानी रखिए जिससे कोई लुटेरा दूर बैठा-बैठा आपकी गाढ़ी कमाई पर डाका नहीं डाल सके.साथ ही मैं मुम्बई पुलिस से मोबाईल न. +919920313360 की जाँच कर शीघ्रतापूर्वक कार्रवाई करने की भी प्रार्थना करता हूँ और ICICI से उसकी मलाड (w) शाखा के खाता न.015801541606 में जमा सारी राशि को जब्त कर इसके मालिक नदीम करीम के विरूद्ध धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज करवाने और चलाने का भी अनुरोध करता हूँ जिससे भविष्य में इसका इस्तेमाल लोगों को ठगने में नहीं किया जा सके.