मित्रों,कानून के लिहाज से अच्छी और राजनीति के हिसाब से उतनी ही बुरी एक घटनात्मक प्रगति हुई है.भ्रष्टाचार के खिलाफ वनमैन आर्मी बाबा रामदेव के अनन्य सहयोगी आचार्य बालकृष्ण को केंद्र सरकार ने सी.बी.आई. के माध्यम से गिरफ्तार कर लिया है.ये तो होना ही था सिर्फ यह पूर्व निश्चित नहीं था कि कब होगा?मैं उनकी गिरफ़्तारी को अनुचित भी नहीं मानता हूँ;जाने-अनजाने में उनसे गंभीर अपराध तो हुआ ही है और इसके लिए उन्हें सजा भी मिलनी चाहिए.लेकिन सवाल उठता है कि अगर बाबा रामदेव ने भी स्वनामधन्य और स्वकामधन्य नित्यस्वमूत्र पानकर्ता स्वामी अग्निवेश की तरह पाला बदलकर कांग्रेस की ताबेदारी स्वीकार कर ली होती तो भी क्या आज बालकृष्ण उस स्थान पर होते जहाँ कभी उनके हमनाम युगपुरुष बालक श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था.वैसे भी हुकूमत के हाथों में काफी सुख-साधन होता है जिसके बल पर वह हर किसी को अपने कदमों में झुकाने की कोशिश करती है.इस सन्दर्भ में प्रख्यात शायर मुनव्वर राणा ने क्या सटीक बात कही है-
"हुकूमत मुंह भराई के हुनर से खूब वाकिफ है
ये हर कुत्ते के आगे शाही टुकड़ा दाल देते है."
परन्तु वह लाख कोशिश करके भी हरेक को नहीं खरीद पाती.कुछ लोग ऐसे दीवाने होते हैं जो कवि शिव ओम अम्बर के सुझाए मार्ग पर चलना और हंसी-ख़ुशी तबाह हो जाना मंजूर कर लेते हैं-
"सुविधा से परिणय मत करना
अपना क्रय-विक्रय मत करना."
और जब कोई बिकने को तैयार नहीं होता और साथ ही अपनी थोड़ी-बहुत शक्ति को एकजुट करके मुट्ठी भींचकर उसके खिलाफ खड़ा हो जाता है तो फिर वही होता है जो आज आचार्य बालकृष्ण के साथ हुआ और ५ जून २०११ को बाबा रामदेव के साथ हुआ था.
मित्रों,सरकार एक विशालकाय तंत्र है हाथी की तरह और आम आदमी अन्ना या रामदेव तुच्छ हैं,छोटे हैं-चींटी की तरह.चींटी जब हाथी को चुनौती देगी तो स्वाभाविक है कि हाथी को बहुत-बड़ी मात्रा में उसकी ताकत के समानुपाती ही गुस्सा आएगा और वह उसे कुचल देने का भरसक प्रयास करेगा.आजकल इस हाथीरूपी सरकार की सबसे महत्वपूर्ण पैर बन गयी है या फिर बना दी गयी है सी.बी.आई..मैंने अपने एक पूर्व के लेख में इसे केंद्र सरकार का कुत्ता भी कहा था सो तो वह है ही.बल्कि मैं तो इसकी तुलना पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी आई.एस.आई. से भी करना चाहूँगा.पाकिस्तानी आई.एस.आई. और हिन्दुस्तानी सी.बी.आई. में बस इतना ही अंतर है कि एक सरकार को गिराती है और दूसरी चलाती है.एक सरकार को काट खानेवाला कुत्ता है तो दूसरा सरकार के पीछे-पीछे दुम हिलानेवाला.यूं तो कथित रूप से सी.बी.आई. सरकार से स्वायत्त है लेकिन वास्तव में ऐसा है नहीं बल्कि वह सरकार की चार में से एक पैर बन गयी है जिन पर सरकार को पौआं-पौआं चलाने की महती जिम्मेदारी तो है ही साथ ही विरोधी चीटियों को कुचलना भी अब उसका ही काम बन गया है.कोई जो बेदाग होता है उसके पाँव के नीचे नहीं आ पाता और कोई जिसने कभी छोटी-मोटी गलती भी की होती है उसे यह पांव कुचल देती है.ऐसा करते समय यह हाथी सत्ता मद में यह भूल जाता है कि अगर यही चींटीं उसके नाक-कान में घुस जाए तो उसकी जान भी जा सकती है.
मित्रों,अगर सी.बी.आई.स्वायत्त है तो वह भ्रष्टाचार के आरोपी कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियों के नेताओं पर क्यों अपना हाथ नहीं डालती?मुलायम,माया और अब जगनमोहन जिनका अस्तित्व ही कांग्रेस विरोध पर टिका हुआ था और है;किसके डर से कांग्रेस की जय-जयकार करने में लगे हैं?क्या वह हौआ या गब्बर सिंह सी.बी.आई. नहीं है?कैसे और क्यों लालू जिनके खिलाफ बड़े परिश्रम से यू.एन.विश्वास ने कई ट्रक कागजी सबूत चारा घोटाले के सिलसिले में जमा किए थे जेल में होने के बजाए दिन-रात उड़नखटोले की सवारी गांठ रहे हैं?क्यों सी.बी.आई.को वे सबूत नजर ही नहीं आ रहे हैं?
मित्रों,मैं यह नहीं कहता कि आचार्य की गिरफ़्तारी गलत है लेकिन हमारी केंद्र सरकार क्यों निष्पक्ष होकर काम नहीं कर रही है जबकि प्रधानमंत्री सहित सारे मंत्रियों को पदग्रहण से पहले भय और पक्षपात से रहित होकर काम करने की शपथ दिलवाई जाती है?क्यों उसे सिर्फ वही अपराधी नजर आता है जो उसके विरुद्ध आवाज उठता है?क्या यह सबकुछ लोकतंत्र को मजबूत करेगा?जब किसी निर्दोष हिन्दू संन्यासी और उसके हजारों बाल-वृद्ध अनुयायियों पर रात के दो बजे डंडा चलाना होता है तो कथित रूप से धर्मनिरपेक्ष पार्टी की सरकार के हाथों में दानवी ताकत कहाँ से आ जाती है?वही ताकत तब कहाँ खो जाती है जब किसी संसद पर हमला करनेवाले व सजायाफ्ता मुसलमान को फाँसी पर लटकाना होता है या फिर जब कोई बुखारी या गिलानी अलगाववादी भाषण करता है या बयान देता है?क्या हिन्दू सन्यासियों को बेवजह परेशान करने या फिर षड्यंत्रपूर्वक देश में हिन्दू आतंकवाद की मौजूदगी को साबित करने का प्रयास करने को धर्मनिरपेक्षता कहते हैं?क्या हमारी केंद्र सरकार बताएगी कि वह पाकिस्तान के साथ क्रिकेट सम्बन्ध स्थापित करने के लिए बेताब क्यों हुई जा रही है जबकि अबु जुन्दाल के साथ की गयी पूछताछ ने यह साबित कर दिया है कि मुम्बई हमले में पाकिस्तान सरकारी अमला भी शामिल था.क्या उसके साथ देश की अस्मिता और सुरक्षा की कीमत पर भी सम्बन्ध स्थापित करना कांग्रेस की धर्मनिरपेक्षता के दायरे में आता है?
मित्रों,आचार्य की इस समय गिरफ़्तारी के पीछे कई कारण हो सकते हैं जिनमें सबसे प्रमुख तो यह है कि उन्हें इसलिए इस समय गिरफ्तार किया गया है ताकि आगामी कुछ दिनों में नई दिल्ली में प्रस्तावित बाबा रामदेव के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन को रोका जा सके.किन्तु क्या ऐसा हो पाएगा?मुझे तो नहीं लगता बल्कि मुझे तो लगता है कि इससे उनका मनोबल और भी मजबूत ही होगा.अभी कुछ ही दिनों पहले केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद ने अन्ना हजारे से गुप्त मंत्रणा की.मजमून क्या था अब जगजाहिर है.केंद्र सरकार के १५ दागी मंत्रियों में से एक मियाँ खुर्शीद उन्हें शायद इस झांसे में लेना चाहते थे कि वे लोग लोकपाल को लेकर वाकई गंभीर हैं.कितने गंभीर हैं आचार्य की इस समय की गिरफ़्तारी से खुद ही बयाँ हो गयी हैं.उनकी गिरफ़्तारी के पीछे एक आदि कारण यह भी हो सकता है कि वे एक महान आयुर्वेदिक वैद्य हैं और उनके द्वारा बनाई जानेवाली नई-नई औषधियों के कारण बहुराष्ट्रीय अंग्रेजी दावा कंपनियों को भारी नुकसान हो रहा था.
मित्रों,कुल मिलाकर इस समय देश की स्थिति अच्छी नहीं है और सबसे बुरा हो यह हो रहा है कि केंद्र सरकार इस सच्चाई को सुनना ही नहीं चाहती.अगर कोई फिर भी सुनाना या दिखाना चाहता है तो उसका वही हाल होता है जो रामदेव के सहयोगी बालकृष्ण के साथ हुआ.महान अर्थशास्त्री के कार्यकाल में हमारी अर्थव्यवस्था जमीन सूंघ रही है.दूसरी ओर सांस्कृतिक क्षेत्र में देश को अधोगति तक पहुँचाने और अप्राकृतिक यौनाचार को बढ़ावा देने के लिए बेताब केंद्र सरकार मानसून सत्र में संशोधन लाने जा रही है.देश की आतंरिक और बाह्य सुरक्षा के लिए खतरे भी लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं.आज के भारत के हालात को फैज अहमद 'फैज' के ये लफ्ज क्या खूब बयां करते हैं-
"यह दाग दाग उजाला,ये शब गज़ी दह सहर,
वह इंतजार था जिसका,ये वो सहर तो नहीं."
"हुकूमत मुंह भराई के हुनर से खूब वाकिफ है
ये हर कुत्ते के आगे शाही टुकड़ा दाल देते है."
परन्तु वह लाख कोशिश करके भी हरेक को नहीं खरीद पाती.कुछ लोग ऐसे दीवाने होते हैं जो कवि शिव ओम अम्बर के सुझाए मार्ग पर चलना और हंसी-ख़ुशी तबाह हो जाना मंजूर कर लेते हैं-
"सुविधा से परिणय मत करना
अपना क्रय-विक्रय मत करना."
और जब कोई बिकने को तैयार नहीं होता और साथ ही अपनी थोड़ी-बहुत शक्ति को एकजुट करके मुट्ठी भींचकर उसके खिलाफ खड़ा हो जाता है तो फिर वही होता है जो आज आचार्य बालकृष्ण के साथ हुआ और ५ जून २०११ को बाबा रामदेव के साथ हुआ था.
मित्रों,सरकार एक विशालकाय तंत्र है हाथी की तरह और आम आदमी अन्ना या रामदेव तुच्छ हैं,छोटे हैं-चींटी की तरह.चींटी जब हाथी को चुनौती देगी तो स्वाभाविक है कि हाथी को बहुत-बड़ी मात्रा में उसकी ताकत के समानुपाती ही गुस्सा आएगा और वह उसे कुचल देने का भरसक प्रयास करेगा.आजकल इस हाथीरूपी सरकार की सबसे महत्वपूर्ण पैर बन गयी है या फिर बना दी गयी है सी.बी.आई..मैंने अपने एक पूर्व के लेख में इसे केंद्र सरकार का कुत्ता भी कहा था सो तो वह है ही.बल्कि मैं तो इसकी तुलना पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी आई.एस.आई. से भी करना चाहूँगा.पाकिस्तानी आई.एस.आई. और हिन्दुस्तानी सी.बी.आई. में बस इतना ही अंतर है कि एक सरकार को गिराती है और दूसरी चलाती है.एक सरकार को काट खानेवाला कुत्ता है तो दूसरा सरकार के पीछे-पीछे दुम हिलानेवाला.यूं तो कथित रूप से सी.बी.आई. सरकार से स्वायत्त है लेकिन वास्तव में ऐसा है नहीं बल्कि वह सरकार की चार में से एक पैर बन गयी है जिन पर सरकार को पौआं-पौआं चलाने की महती जिम्मेदारी तो है ही साथ ही विरोधी चीटियों को कुचलना भी अब उसका ही काम बन गया है.कोई जो बेदाग होता है उसके पाँव के नीचे नहीं आ पाता और कोई जिसने कभी छोटी-मोटी गलती भी की होती है उसे यह पांव कुचल देती है.ऐसा करते समय यह हाथी सत्ता मद में यह भूल जाता है कि अगर यही चींटीं उसके नाक-कान में घुस जाए तो उसकी जान भी जा सकती है.
मित्रों,अगर सी.बी.आई.स्वायत्त है तो वह भ्रष्टाचार के आरोपी कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियों के नेताओं पर क्यों अपना हाथ नहीं डालती?मुलायम,माया और अब जगनमोहन जिनका अस्तित्व ही कांग्रेस विरोध पर टिका हुआ था और है;किसके डर से कांग्रेस की जय-जयकार करने में लगे हैं?क्या वह हौआ या गब्बर सिंह सी.बी.आई. नहीं है?कैसे और क्यों लालू जिनके खिलाफ बड़े परिश्रम से यू.एन.विश्वास ने कई ट्रक कागजी सबूत चारा घोटाले के सिलसिले में जमा किए थे जेल में होने के बजाए दिन-रात उड़नखटोले की सवारी गांठ रहे हैं?क्यों सी.बी.आई.को वे सबूत नजर ही नहीं आ रहे हैं?
मित्रों,मैं यह नहीं कहता कि आचार्य की गिरफ़्तारी गलत है लेकिन हमारी केंद्र सरकार क्यों निष्पक्ष होकर काम नहीं कर रही है जबकि प्रधानमंत्री सहित सारे मंत्रियों को पदग्रहण से पहले भय और पक्षपात से रहित होकर काम करने की शपथ दिलवाई जाती है?क्यों उसे सिर्फ वही अपराधी नजर आता है जो उसके विरुद्ध आवाज उठता है?क्या यह सबकुछ लोकतंत्र को मजबूत करेगा?जब किसी निर्दोष हिन्दू संन्यासी और उसके हजारों बाल-वृद्ध अनुयायियों पर रात के दो बजे डंडा चलाना होता है तो कथित रूप से धर्मनिरपेक्ष पार्टी की सरकार के हाथों में दानवी ताकत कहाँ से आ जाती है?वही ताकत तब कहाँ खो जाती है जब किसी संसद पर हमला करनेवाले व सजायाफ्ता मुसलमान को फाँसी पर लटकाना होता है या फिर जब कोई बुखारी या गिलानी अलगाववादी भाषण करता है या बयान देता है?क्या हिन्दू सन्यासियों को बेवजह परेशान करने या फिर षड्यंत्रपूर्वक देश में हिन्दू आतंकवाद की मौजूदगी को साबित करने का प्रयास करने को धर्मनिरपेक्षता कहते हैं?क्या हमारी केंद्र सरकार बताएगी कि वह पाकिस्तान के साथ क्रिकेट सम्बन्ध स्थापित करने के लिए बेताब क्यों हुई जा रही है जबकि अबु जुन्दाल के साथ की गयी पूछताछ ने यह साबित कर दिया है कि मुम्बई हमले में पाकिस्तान सरकारी अमला भी शामिल था.क्या उसके साथ देश की अस्मिता और सुरक्षा की कीमत पर भी सम्बन्ध स्थापित करना कांग्रेस की धर्मनिरपेक्षता के दायरे में आता है?
मित्रों,आचार्य की इस समय गिरफ़्तारी के पीछे कई कारण हो सकते हैं जिनमें सबसे प्रमुख तो यह है कि उन्हें इसलिए इस समय गिरफ्तार किया गया है ताकि आगामी कुछ दिनों में नई दिल्ली में प्रस्तावित बाबा रामदेव के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन को रोका जा सके.किन्तु क्या ऐसा हो पाएगा?मुझे तो नहीं लगता बल्कि मुझे तो लगता है कि इससे उनका मनोबल और भी मजबूत ही होगा.अभी कुछ ही दिनों पहले केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद ने अन्ना हजारे से गुप्त मंत्रणा की.मजमून क्या था अब जगजाहिर है.केंद्र सरकार के १५ दागी मंत्रियों में से एक मियाँ खुर्शीद उन्हें शायद इस झांसे में लेना चाहते थे कि वे लोग लोकपाल को लेकर वाकई गंभीर हैं.कितने गंभीर हैं आचार्य की इस समय की गिरफ़्तारी से खुद ही बयाँ हो गयी हैं.उनकी गिरफ़्तारी के पीछे एक आदि कारण यह भी हो सकता है कि वे एक महान आयुर्वेदिक वैद्य हैं और उनके द्वारा बनाई जानेवाली नई-नई औषधियों के कारण बहुराष्ट्रीय अंग्रेजी दावा कंपनियों को भारी नुकसान हो रहा था.
मित्रों,कुल मिलाकर इस समय देश की स्थिति अच्छी नहीं है और सबसे बुरा हो यह हो रहा है कि केंद्र सरकार इस सच्चाई को सुनना ही नहीं चाहती.अगर कोई फिर भी सुनाना या दिखाना चाहता है तो उसका वही हाल होता है जो रामदेव के सहयोगी बालकृष्ण के साथ हुआ.महान अर्थशास्त्री के कार्यकाल में हमारी अर्थव्यवस्था जमीन सूंघ रही है.दूसरी ओर सांस्कृतिक क्षेत्र में देश को अधोगति तक पहुँचाने और अप्राकृतिक यौनाचार को बढ़ावा देने के लिए बेताब केंद्र सरकार मानसून सत्र में संशोधन लाने जा रही है.देश की आतंरिक और बाह्य सुरक्षा के लिए खतरे भी लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं.आज के भारत के हालात को फैज अहमद 'फैज' के ये लफ्ज क्या खूब बयां करते हैं-
"यह दाग दाग उजाला,ये शब गज़ी दह सहर,
वह इंतजार था जिसका,ये वो सहर तो नहीं."
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