रविवार, 23 जुलाई 2017

हिन्दू राष्ट्रवाद से भयभीत कौन?

मित्रों, अगर आप हाजीपुर में किराया के मकान में रहते हैं तो आपको काफी सावधानी से रहने की आवश्यकता होती है. जैसे अगर आपके मकान मालिक के घर कोई कामवाली नहीं आती है तो आपके घर भी नहीं आनी चाहिए, अगर आपके मकान मालिक के पास गाड़ी नहीं है तो आपके पास भी नहीं होनी चाहिए, आपके खान-पान और रहन-सहन का स्तर भी उनलोगों से ज्यादा नहीं होना चाहिए इत्यादि. आप कहेंगे कि जब पैसे आप खर्च कर रहे हैं तो मकान मालिक कौन होता है टांग अड़ानेवाला? इतना ही नहीं कभी-कभी तो पड़ोस का मकान मालिक भी आपसे अनर्गल उम्मीदें रखने लगता है जैसे आप उनके यहाँ दरबार क्यों नहीं लगाते या उनकी चापलूसी क्यों नहीं करते इत्यादि.
मित्रों, कुछ ऐसी ही स्थिति इन दिनों भारत के भीतर और बाहर स्थित भारत विरोधी तत्वों की हिन्दुओं और हिंदुस्तान को देखकर हो रही है. हम वर्तमान में किसी का कुछ भी नहीं बिगाड़ रहे और न ही भूत में कभी किसी का बिगाड़ा है लेकिन फिर भी कई लोग और कई देश हमसे जले जा रहे हैं. बल्कि हम तो सनातन काल से इन्सान तो इन्सान जीव मात्र के लिए ईश्वर से सर्वे भवन्तु सुखिनः की प्रार्थना करते आ रहे हैं. फिर भी कुछ लोगों और देशों को समस्या है. क्या भारत ने चीन के आर्थिक विकास में कभी कोई बाधा डाली? बल्कि पुराने घावों को भूलकर मदद ही की फिर चीन को भारत की आर्थिक उन्नति से परेशानी क्यो होनी चाहिए? पिछले दो दशकों से भी ज्यादा समय से जब चीन एफडीआई में दुनिया का सरताज बना हुआ था तब तो भारत को उससे डाह नहीं हुई फिर आज चीन क्यों जला-भुना जा रहा है जबकि भारत को इस क्षेत्र में उससे आगे निकले अभी एक साल ही हुआ है?
मित्रों, कहने का तात्पर्य यह है कि जो लोग या देश ईर्ष्या नामक दिमागी विकृति के शिकार हैं उनको अपना ईलाज कराना चाहिए अथवा आत्मपरीक्षण करना चाहिए. उनको खुश करने के लिए न तो हम अपना विकास करना बंद करेंगे और न ही अपने को मजबूत करना. चतुर्दिक विकास पर जितना उनका हक़ है उतना हमारा भी है.
मित्रों, जहाँ तक हिन्दू राष्ट्रवाद का सवाल है तो यह तो निश्चित है कि भारत में इस समय राष्ट्रवाद की लहर चल रही है लेकिन वह लहर किसी भी प्रकार से हिन्दू लहर नहीं है बल्कि उसमें उन सभी लोगों का समान योगदान है जो भारत से प्यार करते हैं और जिनको अपने भारतीय होने पर गर्व है. जो लोग अपनी मातृभूमि से ज्यादा सुदूर की जमीन या वहां की संस्कृति को ज्यादा महत्व देते है और चाहते हैं कि बांकी के लोग भी उनका अनुसरण करें तो उनसे हमारा आग्रह है कि वे भारत से प्रेम करें क्योंकि जब उनके घर में आग लगेगी तो कोई अरब या वेटिकन से नहीं आएगा बुझाने के लिए. अभी जब कश्मीर में बाढ़ आई तो किसने बाढ़-पीड़ितों की जान बचाई और सहायता की? वैसे हम अक्सर ट्रकों के पीछे लिखा देखते हैं कि जलनेवाला जलता रहेगा, ७२२२ चलता रहेगा. या फिर जलो मत संघर्ष करो आदि.

गुरुवार, 20 जुलाई 2017

विकास से एकबार फिर वंचित रह गया बिहार

मित्रों, हमने काफी दिन पहले भक्तराज रामकृष्ण परमहंस की एक पुस्तक में एक कहानी पढ़ी थी. एक अंधा एक बार एक गुफा में घुस गया और बाहर निकलने के प्रयास में बार-बार दीवारों से टकरा जा रहा था. किस्मत देखिए कि जब भी वो दरवाजे के पास आता दीवार छोड़ देता था और उसे एक बार फिर से पूरी गुफा का चक्कर काटना पड़ता था.
मित्रों, कुछ ऐसी ही किस्मत बिहार की भी है. जब यह अविभाज्य था तब भी इसको प्रचुरता में निर्धनता का इकलौता उदाहरण माना जाता था और आज तो इसके पास लालू, बालू  और आलू के सिवा कुछ बचा ही नहीं है. वैसे कहने को तो अभी भी इसके पास अनमोल मानव संसाधन है लेकिन दुर्भाग्यवश यहाँ के लोगों की सोंच आज भी वही है जो राज्य के बंटवारे से पहले थी. यहाँ के लोग आज भी सिर्फ पेट के लिए जीते हैं विकास की भूख उनमें है ही नहीं.
मित्रों, जब देश को आजादी मिली और देश में औद्योगिक और कृषि क्रांति की शुरुआत हुई तो कांग्रेस पार्टी की केंद्र और राज्य की सरकारों की दुष्टता के चलते बिहार उससे वंचित रह गया. परिणाम यह हुआ कि बिहार से मजदूरों का पलायन उन राज्यों की तरफ शुरू हो गया जिन राज्यों को इसका लाभ मिला था और वह पलायन आज भी बदस्तूर जारी है.
मित्रों, बाद में १९९० के दशक में जब आर्थिक सुधारों के दौर में देश में दूसरी औद्योगिक क्रांति हो रही थी तब बिहार में शासन एक ऐसे व्यक्ति के हाथ में था जिसका मानना था कि विकास करने से वोट नहीं मिलता.
मित्रों, दुर्भाग्यवश जब गुजरात को विकास की नई ऊंचाईयों तक ले जानेवाला सच्चा देशभक्त देश का प्रधानमंत्री बना जो ह्रदय से चाहता थे कि भारतमाता का पूर्वांग भी समान रूप से शक्तिशाली बने तो बिहार के मुख्यमंत्री ने उससे दूरी बना ली और उन्हीं लालू जी से महाठगबंधन करके बिहार की जनता को ठग लिया जिनकी छवि महाभ्रष्ट और महा विकासविरोधी की है. आज नरेन्द्र मोदी सरकार के अनथक सद्प्रयास से प्रत्यक्ष पूँजी निवेश के मामले में भारत नंबर एक पर है लेकिन बिहार अपने मुख्यमंत्री और अपनी मूर्खता के चलते एक बार फिर से इसके लाभ से वंचित हो रहा है.
मित्रों, आज बिहार में शासन-प्रशासन नाम की चीज नहीं है और यत्र-तत्र-सर्वत्र अराजकता का बोलवाला है. ऐसे माहौल में कौन करेगा बिहार में पूँजी निवेश? यहाँ तक कि परसों पटना हाइकोर्ट ने बिहार सरकार से पूछा राजनीति ही होगी या कुछ काम भी होगा. कोर्ट ने सरकार से वही पूछा जो हम पिछले चार सालों से पूछते आ रहे हैं. हाईकोर्ट ने सरकार से यह भी पूछा कि जब बहाली सही ढंग से नहीं करनी है, तो रिक्तियों का सब्जबाग क्यों दिखाते हैं जनता को?
मित्रों, कदाचित अपनी नीतिहीन राजनीति से उब चुके नीतीश कुमार लालू परिवार से छुटकारा भी पाना चाहते हैं लेकिन उनके विधायक और सांसद ही उनका साथ देने को तैयार नहीं हैं. मुझे लगता नहीं है कि नीतीश के अन्दर इतना नैतिक बल है कि वे सत्ता के अनैतिक मोह तो त्याग कर बिहार के भले की दिशा में कोई कदम उठाएंगे.

मंगलवार, 18 जुलाई 2017

कानून डाल-डाल शशिकला पात-पात

मित्रों, क्या आप जानते हैं कि कानून क्या है? वेदों में वर्णन है कि राजा सभा और समिति की सहायता से शासन करते थे. बाद में प्राचीन और मध्यकाल में राजा का वचन ही शासन होता था. यद्यपि ज्यादातर राजा तब निष्पक्ष हुआ करते थे जिसकी एक झलक आपने बाहुबली फिल्म में देखी भी होगी . मुग़लकाल में मूल्यों का अवमूल्यन हो चुका था और बतौर तुलसी समरथ को नहीं दोष गोसाईं की स्थिति बन गयी थी। ब्रिटिश काल आते-आते स्थिति इतनी बिगड़ गयी कि गांधी जी कानून को अमीरों का रखैल बता गए।
मित्रों, आजादी मिलने के बाद तो जैसे भारत के अमीर और प्रभावशाली लोग कानून के साथ खिलवाड़ करने के लिए पूरी तरह से आजाद ही हो गए क्योंकि अब उनके जैसे और उनके बीच के लोगों के हाथों में ही सबकुछ है और उस सबकुछ में कानून भी आता है. इन वास्तविक रूप से आजाद होनेवाले लोगों में अमीर लोग, न्यायाधीश, अधिकारी और नेता प्रमुख थे. बांकी लोगों के लिए पहले भी देश एक विशाल जेलखाना था और अब भी है.
मित्रों, कानून खुद-ब-खुद तो लागू होने से रहा. शासन सजीव तो कानून सजीव और शासन निर्जीव तो कानून भी मुर्दा. और जब शासन कुशासन तो कानून सज्जनों के गले की फांस और दुर्जनों का कंठहार. ठीक ऐसी ही स्थिति भारत में बन गयी. लेकिन इसमें में सभी राज्यों में एकसमान स्थिति नहीं रही अन्यथा आज बिहार गरीब और गुजरात अमीर नहीं होता.
मित्रों, हमारे ब्रिटिश ज़माने के कानून के अनुसार कानून के समक्ष सभी बराबर हैं और उसको तोड़नेवालों को बिना किसी भेदभाव के जेल भेजने का प्रावधान है. लेकिन क्या ऐसा होता है? वास्तविकता तो यह है किसी भी प्रभावशाली व्यक्ति को जल्दी सजा होती नहीं है और अगर होती भी है तो जेल उसके लिए जेल नहीं रह जाता बल्कि पञ्चतारा होटल बन जाता है. चाहे बिहार में २० साल पहले लालू जेल गए हों या कर्नाटक में आज शशिकला कारावास का दंड भोग रही हो. क्या उत्तर और क्या दक्षिण. क्या १९९७ और क्या २०१७ स्थिति एक समान है.
मित्रों, कुल मिलाकर प्रभावशाली लोगों के लिए जेल की सजा सजा है ही नहीं पिकनिक और आनंदयात्रा है. सवाल उठता है कि ऐसे में कानून का क्या मतलब है और इसके लिए जिम्मेदार कौन हैं? बेशक हम किसी और पे दोषारोपण नहीं कर सकते क्योंकि देश में लोकतंत्र है. हम जब तक लालच या जातीय-सांप्रदायिक दुर्भावनाओं को देश से ऊपर रखेंगे स्थिति नहीं बदलेगी. जब विधानसभा और लोकसभा में चोरों, अराजकतावादियों और देशद्रोहियों का बहुमत होगा तो सिर्फ बागों में बहार है का झूठा तराना दिन-रात गाने से बहार आ तो नहीं जाएगी बल्कि देश और राज्य के मंच पर भारतेंदु के प्रसिद्ध नाटक अंधेर नगरी चौपट राजा का जीवंत मंचन होता रहेगा.

बुधवार, 12 जुलाई 2017

निर्दोषों पर हमला हिंदुत्व नहीं

मित्रों, मैंने अपने दिल्ली प्रवास के दौरान कई महिलावादी महिलाओं को पुरुषों जैसा व्यवहार करते देखा है. महिलाएं बेशक बराबरी के लिए संघर्ष करें लेकिन क्या उनके उन्मुक्त होकर जीने, खुलेआम सिगरेट-शराब पीने से महिलाओं का सशक्तिकरण हो जाएगा? इसी तरह मैंने बचपन में गाँव में कीर्तन करते हुए सरस्वती-विसर्जन किया है. बाद में जब महनार रहने आया तो देखा कि मुहर्रम में मुसलमान लाउडस्पीकर पर हो-हल्ला करते हुए जुलूस निकालते हैं. अब देख रहा हूँ कि हिन्दू भी सरस्वती-विसर्जन उसी तरीके से करने लगे हैं.
मित्रों, इस बार बांकी बिहार की ही तरह हाजीपुर में भी रामनवमी में हिन्दू संगठनों की मदद से उग्र जुलूस निकाला गया. सारे जुलूस ऐतिहासिक रामचौड़ा मंदिर जाकर समाप्त हो रहे थे. हर साल की भांति जब हम सपरिवार शाम में रामचौड़ा मंदिर पहुंचे तो पाया कि मंदिर के बाहर-भीतर हर जगह लम्पट युवकों का कब्ज़ा है. अंततः हम बिना पूजा किए ही लौट आए. हमें याद रखना चाहिए कि भीड़ जब उग्र हो जाती है तो अच्छे-बुरे का विचार काफी पीछे छूट जाता है फिर चाहे वो भीड़ हिन्दुओं की हो या किसी और धर्म माननेवालों की.
मित्रों, जब भी कोई हिन्दू पर्व त्योहार आता है तो उस पर मुस्लिम आतंकवादी हमले का खतरा पैदा हो जाता है. अभी जिन अमरनाथ यात्रियों पर हमला हुआ उनकी हमलावरों से क्या कोई दुश्मनी थी? जान-पहचान तक तो थी नहीं. इन हमलों को रोकने का क्या समाधान है? क्या इनको रोकने के लिए हिन्दुओं को भी मुस्लिम आतंकवादी हो जाना चाहिए और निर्दोष मुस्लिमों पर हमला बोल देना चाहिए भले ही वे इस तरह की हिंसा के खिलाफ ही क्यों न हों? फिर हममें और उनमें क्या फर्क रह जाएगा? क्या हमारे ऐसा करने से देश बेवजह के गृह-युद्ध की आग में नहीं जलने लगेगा? हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि अगर हमारी भी प्रकृति और प्रवृत्ति हिंसक हो जाती है तो हम भी उसी तरह से आपस में ही लड़-कटकर मर जाएंगे जिस तरह से आज सीरिया, इराक, पाकिस्तान आदि में मुसलमान मर रहे हैं. यहाँ तक कि मस्जिदों तक को मुसलमानों के खून से ही लाल कर दे रहे हैं.
मित्रों, छत्रपति शिवाजी ने जब शाईस्ता खान को पूना में हराया तो उसके हरम की औरतें भी गिरफ्तार कर ली गईं. जब उनको शिवाजी के दरबार में लाया गया तो शिवा अपने ही सैनिकों पर नाराज़ हो गए और शाईस्ता खान की पत्नी जो औरंगजेब की मामी थी से माफ़ी मांगते हुए कहा कि काश आप मेरी माँ होतीं तो मैं भी काफी सुन्दर होता. इतना ही नहीं इसके बाद सभी बंदी महिलाओं को ससम्मान पालकी में बिठाकर मुग़ल शिविर में भिजवा दिया.
मित्रों, अगर इसके उलट उस युद्ध में हिन्दू महिलाएं मुगलों के हाथ आ जातीं तो वे उनके साथ क्या करते? बेशक वे उन पर टूट पड़ते. यह जानते हुए भी शिवाजी ने एक बेमिसाल उदाहरण पेश किया. क्या उनके ऐसा करने से हिंदुत्व का सिर और भी गर्व से ऊंचा नहीं हो गया? इसी तरह से राम ने जब लंका पर विजय प्राप्त की तो राक्षस प्रजा के साथ दयालुतापूर्ण व्यवहार किया.
मित्रों, आज अगर हिन्दुओं की पूरे भारत में दुर्गति हो रही है तो इसके लिए क्या मुसलमान जिम्मेदार हैं? नहीं हो भी नहीं सकते क्योंकि आज भी हिन्दू आबादी में उनसे कई गुना ज्यादा हैं. आज अगर हिन्दू के घर में सांप घुस जाए तो उसको मारने के लिए एक लाठी भी नहीं मिलती. किसने रोका है आत्मरक्षा के लिए वैध हथियार रखने से? जिनके पास अरबों की संपत्ति है उनके पास भी एक लाईसेंसी बन्दूक तक नहीं होती. क्यों? क्या हम अरबों कमानेवाले लाख-दो लाख रूपया आत्मरक्षा पर खर्च नहीं कर सकते? इसी तरह से जब चुनाव आता है तो हिन्दू किसी लालू, केजरीवाल, ममता, अखिलेश जैसे घोषित हिन्दू विरोधी द्वारा दिए गए लालच में आकर उनको वोट दे देते हैं और जब चुनाव के बाद उनकी ही शह पे मुसलमान उनका जीना दूभर कर देते हैं तब वे केंद्र सरकार से राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग करने लगते हैं. आखिर केंद्र कहाँ-कहाँ राष्ट्रपति शासन लगाएगा?
मित्रों, फिर भी केंद्र सरकार को जनसंख्या नियंत्रण के लिए अतिशीघ्र कानून बनाना चाहिए या यूं कहें कि बनाना पड़ेगा जिससे भारत में विभिन्न धर्मों की आबादी का अनुपात स्थिर रहे. ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि आज मुस्लिमबहुल पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान जो १४ अगस्त,१९४७ तक भारत में ही थे में हिन्दू विलुप्ति के कगार पर पहुँच चुके हैं. खुद हमारी कश्मीर घाटी में आज एक भी हिन्दू नहीं हैं जबकि कुछ सौ साल पहले पूरा कश्मीर हिन्दू था. 

मंगलवार, 11 जुलाई 2017

राहुल क्यों गए थे चीनी दूतावास?

मित्रों, पता नहीं क्यों मुझे मनमोहन सरकार के गठन के तत्काल बाद ही ऐसा लगने लगा था कि यह सरकार देश के दुश्मनों के हाथों में खेल रही है. २००९ के बाद मैंने अपने ब्लॉग पर कई-कई बार लिखा कि सोनिया-मनमोहन की सरकार देश की दुश्मन है और भारत की बर्बादी के एजेंडे पर काम कर रही है.
मित्रों, उनके बाद जनता ने उनकी जो दुर्गति की उससे आप भी वाकिफ हैं लेकिन दुर्भाग्य यह है कि कांग्रेस पार्टी आज भी अपने भारत की बर्बादी के गुप्त एजेंडे पर पूरी मुस्तैदी से काम कर रही है. वरना ऐसी कौन-सी बात थी जिस पर विचार-विमर्श करने राहुल गाँधी ८ जुलाई को चीनी दूतावास गए थे.
मित्रों, जो ख़बरें छनकर आ रही हैं उनसे यह भी पता चला है कि राहुल इससे पहले भी गुप्त रूप से दो बार चीनी दूतावास जा चुके हैं. कदाचित उनकी ताजा यात्रा भी गुप्त ही रह जाती लेकिन चीनी दूतावास के अधिकारियों के उतावलेपन के कारण इसके बारे में दुनिया को पता चल गया. अब खुद कांग्रेस पार्टी कह रही है कि राहुल उस दिन भूटान के दूतावास में भी गए थे.
मित्रों, पता नहीं परदे के पीछे कांग्रेस पार्टी कौन-सी खिचड़ी पका रही है? जबकि हम सभी जानते हैं कि इस समय चीन का भूटान सीमा पर भारत के साथ गहरा तनाव चल रहा है और दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने है? हो सकता है मेरा अनुमान बाद में पूरी तरह से सही साबित न हो लेकिन जहाँ तक मैं कांग्रेस पार्टी को समझ पाया हूँ मुझे लगता है कि राहुल चीन की तरफ से धमकाने के लिए भूटान के दूतावास में गए थे. क्योंकि उनको लगता है कि अगर चीन ने भारत को नीचा दिखा दिया तो आगे मोदी सरकार देश के सामने मुंह दिखाने के लायक नहीं रहेगी और कांग्रेस की सत्ता में पुनर्वापसी का रास्ता फिर से खुल जाएगा. मेरा अनुमान यह भी है कि कांग्रेस पार्टी को चीन से मोटा कमीशन मिलता है.
मित्रों, राहुल गाँधी की चीनी दूतावास की गुप्त यात्राओं का चाहे जो भी मकसद हो लेकिन इन यात्राओं को जिस तरह से देश की नज़रों से छिपाया जा रहा था उससे लगता तो यही है इनका उद्देश्य भारत का भला करना तो नहीं ही था. तो क्या चीन की बदमाशियों के पीछे कांग्रेस पार्टी है? खैर होगी भी तो क्या? चीन को भलीभांति यह समझ लेना चाहिए कि आज न तो १९६२ का भारत है और न ही ६२ वाला नेतृत्व. आज अगर वो भारत से भिड़ा तो उसका वही हाल होगा जो चौबेजी का छब्बे बनने के चक्कर में हुआ था.

शुक्रवार, 7 जुलाई 2017

ममता की आग में जलता हिंदुत्व

मित्रों, कई साल हो गए. तब उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि जहां 10-20 प्रतिशत मुसलमान होते हैं, वहां छिटपुट सांप्रदायिक दंगे होते रहते हैं। जहां 20-35 प्रतिशत होती है, वहां गंभीर दंगे होते हैं और जहां उनकी आबादी 35 प्रतिशत से ज्यादा होती है, वहां गैर मुस्लिमों के लिए कोई जगह नहीं है। तब मेरे साथ-साथ बहुत-से लोगों को उनका बयान भड़काऊ और बकवास लगा था लेकिन जब हम आज के पश्चिम बंगाल के हालात देखते हैं तो लगता है कि योगी जी ने जो कहा था बिल्कुल सही कहा था और व्यावहारिक अनुभव के आधार पर कहा था.
मित्रों, साल २०११ में मैंने भी कुछ कहा था. तारीख थी १४ मई. ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में चुनाव जीत चुकी थीं लेकिन शपथ-ग्रहण नहीं हुआ था. तब हमने कहा था कि सांपनाथ हारे नागनाथ जीते. अर्थात ममता और कम्युनिस्टों में कोई तात्विक भेद नहीं है. दोनों का एजेंडा भी एक ही है और काम करने का तरीका भी एक ही.
मित्रों, आज ममता के शासन के ६ साल बाद मैं ताल ठोंक के कह सकता हूँ कि इससे अच्छा तो कम्युनिस्टों का ही शासन था. ममता वोट-बैंक के लिए वही गलतियाँ कर रही है जो बंगाल में कम्युनिस्टों, यूपी में अखिलेश और केंद्र में सोनिया ने किया. कथित अल्पसंख्यकों को सर पर चढ़ा लेना और बहुसंख्यकों की पूर्ण अवहेलना करना.
मित्रों, आज बंगाल के हालात क्या है? आज बंगाल में हिन्दू उतने भी सुरक्षित नहीं हैं जितने बंगला देश में हैं. कहना न होगा कि योगी आदित्यनाथ की भविष्यवाणी यहाँ एकदम सटीक साबित हो रही है. बंगाल में मुसलमान ३५ % हो चुके हैं. आज के बंगाल में सचमुच हिन्दुओं के लिए कोई जगह नहीं रह गई हैं. बंगाल दूसरा कश्मीर बनने की और तीव्र गति से अग्रसर है. ऐसे में जब राज्य सरकार को उनपर सख्ती से नियंत्रण करना चाहिए तो वो उनको और भी बढ़ावा दे रही है. मानों ६५ % हिन्दुओं की उसकी नजर में कोई कीमत ही नहीं.
मित्रों, कीमत हो भी कैसे जबकि बंगाली हिन्दुओं में से बहुत-से लोग निजी या जातीय स्वार्थ के लिए तृणमूल कांग्रेस के समर्थक बने हुए हैं. हालाँकि ऐसे ही चलता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब वे भी सीधी कार्यवाही के शिकार होंगे. समझे नहीं क्या? इतिहास गवाह है कि भारत की स्वतंत्रता के पूर्व इसी बंगाल की राजधानी कोलकाता से मुस्लिम लीग ने इतिहास के सबसे भीषण दंगों की शुरुआत की थी.  लीग द्वारा 'सीधी कार्यवाही' की घोषणा से १६ अगस्त सन् १९४६ को कोलकाता में भीषण दंगे शुरु हो गये। इसे कलकत्ता दंगा या कलकत्ता का भीषण हत्याकांड (Great Calcutta Killing) कहते हैं। 'सीधी कार्रवाई' मुस्लिम लीग द्वारा पाकिस्तान की माँग को तत्काल स्वीकार करने के लिए चलाया गया अभियान था। यह 16 अगस्त 1946 को प्रारंभ हुआ, जब लीग के उकसाने पर कलकत्ता तथा बंगाल और बिहार के सीमावर्ती क्षेत्रों में भीषण दंगे भड़क गए। 72 घंटों के भीतर छह हजार से अधिक लोग मारे गए, बीस हजार से अधिक गंभीर रूप से घायल हुए और एक लाख से अधिक कलकत्तावासी बेघर हो गए। उसके बाद जब दंगों की आग पंजाब पहुंची तो ६०-७० लाख लोग इसकी आग में झुलस गए. कहना न होगा कि प्रभावितों में और मरनेवालों में तब भी हिन्दू ज्यादा थे. तो क्या फिर से बंगाल उसी इतिहास को दोहराने जा रहा है? फिर से बंगाल से एक और बंगला देश निकलेगा?  और क्या हम हिन्दू बंगाल खाली करके मूकदर्शक बने ऐसा होने देंगे?
मित्रों, आज संकट की इस विकट घडी में बंगाल में कौन-से दल हिन्दुओं के साथ है? बंगाल के अन्य दंगों की तरह वशीरहाट के दंगों में भी मुसलमानों ने न तो किसी कम्युनिस्ट नेता को मारा और न ही तृणमूल या कांग्रेस के कार्यकर्ता को. वहां भी सिर्फ और सिर्फ भाजपा कार्यकर्ताओं की चुन-चुनकर हत्या की गयी. जब भी इस्लाम के नाम पर दंगे होते हैं और हत्याएं होती हैं केवल भाजपाई ही हिन्दुओं के लिए जान देते आए हैं और देते रहेंगे बांकी दल तो शुरू से ही घोषित हिन्दू-विरोधी हैं.
मित्रों, यह तो सही है कि केरल के साथ-साथ बंगाल में भी केवल भाजपाई हिन्दुओं के लिए जान दे रहे हैं लेकिन सवाल यह भी उठता है कि आखिर कब तक ऐसा चलता रहेगा? कब तक हिन्दू कट्टर इस्लाम के हाथों बंगाल में जलता, लुटता और मरता रहेगा? कब तक केंद्र सरकार मूकदर्शक होकर हिन्दू महिलाओं का बलात्कार और हत्या देखती रहेगी? कब लगेगा बंगाल में राष्ट्रपति शासन? कब????? कितनी हिन्दू बस्तियों के जलने के बाद????

गुरुवार, 6 जुलाई 2017

इजराईल में मोदी,देर आयद दुरुस्त आयद

मित्रों, यह हमारे लिए बड़े ही सौभाग्य की बात है कि इस समय हमारे प्रधानमंत्री इजराईल में हैं. दुर्भाग्यवश वे वहां जानेवाले भारत के पहले प्रधानमंत्री हैं. दुर्भाग्यवश इसलिए क्योंकि वोटबैंक की गन्दी राजनीति के चलते पहले के प्रधानमंत्री वहां नहीं गए जबकि १९६२, १९७१ और १९९९ की लड़ाइयों के समय इजराईल ने हर तरह से हमारी मदद की. वो तो खुलकर हमारी मदद करना चाहता था लेकिन हमने उससे चोरी-चोरी चुपके-चुपके सहायता ली. वजह वही वोटबैंक की गन्दी राजनीति. वोटबैंक पहली प्राथमिकता और देश सबसे अंतिम या फिर प्राथमिकता सूची से बिल्कुल बाहर. वैसे वाजपेयी जी को मैं दोषी नहीं ठहराता क्योंकि उनके पास पूर्ण बहुमत था ही नहीं. तो मैं कह रहा था कि हमारी पूर्ववर्ती सरकारों ने अपने राष्ट्रीय हितों को नजरंदाज कर निजी हितों के लिए हमेशा उन फिलिस्तीनियों का एकतरफा और असंतुलित समर्थन किया जिन्होंने हमेशा कश्मीर के मुद्दे पर हमारे दुश्मन पाकिस्तान का साथ दिया.
मित्रों, रामजी की कृपा से भारत के इतिहास में पहली बार केंद्र में एक ऐसी सरकार हमने बनाई है जिसके लिए पहली दस प्राथमिकताओं में एक से लेकर १० तक सिर्फ देशहित है और देशहित ही है. इसलिए सत्ता में आते ही पहले के चलन को बदलते हुए इजराईल से नजदीकियां बढ़ाई गईं और एकतरफा प्यार को दोतरफा बनाया गया. अब तक इजराईल बार-बार आई लव इंडिया का रट्टा लगाते हुए हमारी तरफ दोस्ती का हाथ बढा रहा था लेकिन हम बार-बार उसके बढे हुए हाथ, खुली हुई बाँहों को झटक दे रहे थे.
मित्रों, अब जबकि इतिहास में की गयी गलतियों को मोदी सरकार ने सुधार लिया है और भारत के सच्चे दोस्त की तरफ दोगुनी गर्मजोशी के साथ हाथ बढाया है तो भारत की रणनीतिक क्षमता में एकबारगी जैसे चमत्कारिक अभिवृद्धि हो गयी है. इजराईल देखने में तो छोटा-सा मुल्क है लेकिन है सतसैया के दोहरे तीर की तरह. उसके पास जो तकनीक है वो अमेरिका को छोड़कर अन्य किसी के पास नहीं है. दुनियाभर में डेढ़ करोड़ से भी कम आबादी वाला यहूदी समुदाय इस कदर प्रतिभा का धनी है कि अब तक १९२ नोबेल पुरस्कार उसकी झोली में जा चुके है. मानों इस समुदाय में लोग पैदा ही होते हैं नोबेल जीतने के लिए. कहना न होगा कि यह वही समुदाय है जो पिछले २००० सालों से दुनियाभर में ठोकरें खाता फिर रहा था. यहाँ तक कि शेक्सपीयर की कहानी मर्चेंट ऑफ़ वेनिस में भी उसको बुरा-भला कहा गया. इनको अगर किसी ने सही मायने में गले से लगाया तो वो केवल भारत था. जर्मनी में तो द्वितीय विश्वयुद्ध के ६ सालों में ६० लाख यहूदियों को यातना देकर मार दिया गया जिनमें से १५ लाख बच्चे थे. स्वामी विवेकानंद अंग्रेजों को यथार्थ क्षत्रिय कहा करते थे लेकिन इजराईल तो एकसाथ यथार्थ क्षत्रिय और ब्राह्मण दोनों है. साहस और बुद्धि का अद्भुत संगम.
मित्रों, प्रधानमंत्री मोदी की इजराईल यात्रा से हमें एकसाथ कृषि, रक्षा और तमाम तरह के तकनीकी क्षेत्रों में अभूतपूर्व लाभ प्राप्त होने जा रहा है जिससे हम अभी तक बेवजह वंचित थे. इतना ही नहीं अमेरिका में भारतीय लॉबी की ताक़त अब कई गुना बढ़ जाएगी क्योंकि उसके साथ अमेरिका की सबसे शक्तिशाली यहूदी लॉबी सुर-में-सुर मिलाकर बोलेगी. आश्चर्य होता है कि क्यों नेहरु को कूटनीति का महारथी कहा जाता है जबकि उनकी नीतियों से भारत को केवल क्षति हुई लाभ कुछ भी नहीं मिला भले ही नेहरु परिवार को मिला हो. सौभाग्यवश इजराईल यात्रा करके नरेन्द्र मोदी जी ने नेहरु सिद्धांत को पूरी तरह से तिलांजलि दे दी है और दुनिया को सन्देश दे दिया है कि अब हम भी वही करेंगे जो देशहित में होगा. दुनिया के बांकी देशों की सरकारें भी तो यही करती हैं

सोमवार, 3 जुलाई 2017

प्रियंका का खून और सोनिया के आंसू

मित्रों, आपलोगों ने भी एक चुटकुला जरूर पढ़ा होगा जिसमें एक व्यक्ति का दूसरे से उसकी पत्नी की मौजूदगी में झगडा हो जाता है. जब तक पति दूसरे को पीट रहा होता है तब तक तो महिला मज़ा लेती है लेकिन जैसे ही पति मार खाने लगता है वो पुलिस को फोन कर देती है. पुलिस जब पूछती है कि इतनी देर से मारा-मारा चल रही है तो पहले क्यों नहीं फोन किया तो महिला जबाव देती है कि तबसे तो मेरे पति उसे पीट रहे थे.
मित्रों, हमारे गाँधी-नेहरु परिवार की भी इन दिनों यही हालत है. जब देश में एक के बाद एक जेहादी आतंकवादी हमले हो रहे थे और धरती को कथित काफिरों के निर्दोष खून से लाल किया जा रहा था, जब हजारों निर्दोष सिखों को गले में जलता हुआ टायर डाल कर कांग्रेसियों ने जिन्दा जला दिया तब राजमाता  Antonia Edvige Albina Maino उर्फ़ सोनिया गाँधी की आँखों से एक कतरा आंसू नहीं टपका. लेकिन जैसे ही पुलिस मुठभेड़ में चंद मुस्लिम आतंकवादी मारे गए उनका दिल जार-जार रोने लगा और आँखों से गंगा-जमुना की निर्बाध धारा बह निकली. आतंकियों के प्रति इतनी दया इतनी करुणा तो शायद लादेन के मन में भी नहीं उमड़ी होगी.
मित्रों, यह कैसी भारतीय राजनेता है जो भारत पर हमला करनेवालों के प्रति ही इतनी गहरी सहानुभूति रखती है! फिर ऐसी महिला कैसे स्वप्न में भी भारत का भला सोंच सकती है? और हम भी कितने दीवाने थे कि उसकी ही गोद में सर रखकर दस सालों तक अपने और अपने देश के भले के सपने देखते रहे!?
मित्रों, जब माँ ऐसी होगी तो उसके बच्चे कैसे होंगे जिनके जिस्म में राजमाता का खून प्रवाहित हो रहा है और जिनकी परवरिश राजमाता के मार्गदर्शन में हुआ है? सो बेटी ने भी सिद्ध कर दिया वो मामूली माहिला की नहीं बल्कि महान भारतीय सोनिया गाँधी की बेटी है. जब भीड़ हिन्दुओं-सिखों को मार रही थी तब तो बेटी नयनसुख प्राप्त करने में लगी थी लेकिन जैसे ही भीड़ के हाथों मरनेवाला मुसलमान हुआ अचानक उसका खून खौलने लगा,भुजाएँ कसमसाने लगीं,नसें फरकने लगीं.
मित्रों, ये कैसी करुणा है जो केवल जेहादी दरिंदों के लिए उमड़ती है और यह कैसा खून है जो सिर्फ एक मजहब विशेष के लिए ही खौलता है? यहाँ मैं यह स्पष्ट कर दूं कि मैं किसी भी तरह के भीड़तंत्र के खिलाफ हूँ. चाहे भीड़ के हाथों मुसलमान मारे जाएँ या काफ़िर. लेकिन राजमाता के मन में इतनी करुणा! आहा,मन अभिभूत हुआ जा रहा है. आज अगर महत्मा ईसा होते तो अपने रक्त से आपके चरण पखारते. और इतना गुस्सा! इतना गुस्सा तो अमरीशपुरी को उनकी किसी भी फिल्म में नहीं आया था. बल्कि आपको याद होगा कि मिस्टर इंडिया में तो वे बार-बार खुश हो रहे थे. इंडिया धन्य हो गया कि ऐसे महामानवों के पांव उसकी धरती पर पड़े.

रविवार, 2 जुलाई 2017

अर्थव्यवस्था के लिए राकेट इंजन साबित होगा जीएसटी

मित्रों, शायर अल्लामा इक़बाल ने क्या खूब कहा है-हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है,बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा. और यह हमारा सौभाग्य है कि आजादी के ६७ साल बाद हमारे देश ने खुद को एक ऐसा दीदा-वर नेतृत्व प्रदान किया है जिसके लिए देश का चमन ही सब कुछ है. ईश्वरीय कृपा से देश में आज एक ऐसी सरकार है जो ऐसे बहाने नहीं बनाती कि ५ साल बहुत कम होता है बल्कि वो ५ साल में ही वो सारे जरूरी काम कर लेना चाहती है जो पिछले ६७ सालों की सरकारें नहीं कर पाई थीं. मास्टर स्ट्रोक पर मास्टर स्ट्रोक. जनता मस्त चीन-पाकिस्तान समेत समस्त विपक्ष पस्त.
मित्रों, आपको याद होगा कि पिछले साल ३०-३१ जुलाई को मैं श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन की ओर से आयोजित होनेवाली राईटर्स मीट में भाग लेने दिल्ली गया था. तब मैंने आपको वहां के माहौल के बारे में बताया था कि वक्ताओं ने उपलब्धियों का वर्णन तो बहुत कम किया केंद्र सरकार की मजबूरियों का रोना ज्यादा रोया. लगता था जैसे केंद्र सरकार के हाथों में कुछ है ही नहीं संविधान-निर्माताओं ने सबकुछ राज्य सरकारों के हाथों में दे दिया है. ऐसे माहौल में लोग केंद्र सरकार से निराश होने लगे थे. तभी पहले सीमा पर सर्जिकल स्ट्राइक और बाद में नोटबंदी ने जैसे फ़िजा को ही बदल कर रख दिया.
मित्रों, जब नोटबंदी की गयी तब हमने उसे ऐतिहासिक बताते हुए कहा था कि सरकार को यहीं पर रूक नहीं जाना चाहिए और बेनामी संपत्ति पकड़ने की दिशा में भी त्वरित कदम उठाने चाहिए. तब मुझे नहीं लगता था कि जीएसटी मोदी सरकार के इस कार्यकाल में मूर्त रूप ले पाएगी. लेकिन कल १ जुलाई २०१७  से जीएसटी एक सच्चाई बन चुकी है. इसमें कोई संदेह नहीं कि यह आजाद भारत में सबसे बड़ा अप्रत्यक्ष कर-सुधार है. अब तक हम कमोबेश उसी कर-प्रणाली को ढोते आ रहे थे जो अंग्रेज छोड़कर गए थे. कश्मीर से कन्याकुमारी तक अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग कानून और अलग-अलग कर. विदेशी निवेशकों का तो समझने में जैसे दिमाग का दही ही हो जाता था. लेकिन अब करों के सारे मकड़जालों को साफ़ कर दिया गया है. १७ करों के स्थान पर सिर्फ एक कर और वो भी पूरे देश में एक समान. कुछ राज्यों की आपत्तियों को देखते हुए अभी सिगरेट,शराब और पेट्रो-उत्पादों को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है. इतना ही नहीं अब कर देने की प्रक्रिया को भी पूरी तरह से पारदर्शी बनाते हुए उसका डिजिटलीकरण कर दिया गया है.
मित्रों, जीएसटी को जो लोग गरीबों के लिए जजिया कर का नाम दे रहे हैं उनको बता दूं कि इससे भारत के सभी गरीब व बड़ी जनसंख्या वाले  राज्यों को भारी लाभ होने वाला है क्योंकि अब कर पहले की तरह उत्पादन वाले स्थानों पर नहीं लिया जाएगा बल्कि वहां लिया जाएगा जहाँ उत्पाद का अंतिम उपभोग होता है. जाहिर है जिस राज्य में कर संग्रहण होगा वहां की सरकार के खजाने में स्टेट जीएसटी ज्यादा जाएगा. अब न केवल भारत में उत्पादन करना ही आसान हो जाएगा बल्कि व्यापार करना भी सरल हो जाएगा.
मित्रों, जीएसटी लागू करके अप्रत्यक्ष करों में तो सुधार कर दिया गया है अब बारी है प्रत्यक्ष करों में सुधार की. नकली कंपनी बनाकर काले धन को ठिकाने लगानेवालों पर भी कार्रवाई की आवश्यकता है. पीएम मोदी ने अपने ३० जून के संसद में ऐतिहासिक भाषण और कल चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के समक्ष संबोधन में इसका संकेत भी दे दिया है.अगर जीएसटी के बाद इस दिशा में भी कदम उठाए जाते हैं तो इसमें कोइ संदेह नहीं कि भारतीय अर्थव्यस्था राकेट की गति से आगे बढ़ने लगेगी और कुछ ही सालों में हम दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति होंगे क्योंकि हमारे पास न केवल विश्व की सबसे बड़ी युवा आबादी है बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा बाज़ार भी है. कमी अगर कहीं है तो सिर्फ व्यवस्था की है,व्यवस्था में है. 
मित्रों, हालाँकि कर-संधारण के अतिरिक्त अभी भी हमारे देश में बहुत-कुछ ऐसा है जो औपनिवेशिक काल का है और उसमें आमूल-चूल परिवर्तन की आवश्यकता है जैसे हमारी न्यायिक प्रणाली, हमारी पुलिसिंग, हमारे आपराधिक और दीवानी कानून, हमारी शिक्षा-व्यवस्था इत्यादि. लेकिन इससे जीएसटी लागू करने के महान कदम की महत्ता कम नहीं हो जाती.