मित्रों, शायर अल्लामा इक़बाल ने क्या खूब कहा है-हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है,बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा. और यह हमारा सौभाग्य है कि आजादी के ६७ साल बाद हमारे देश ने खुद को एक ऐसा दीदा-वर नेतृत्व प्रदान किया है जिसके लिए देश का चमन ही सब कुछ है. ईश्वरीय कृपा से देश में आज एक ऐसी सरकार है जो ऐसे बहाने नहीं बनाती कि ५ साल बहुत कम होता है बल्कि वो ५ साल में ही वो सारे जरूरी काम कर लेना चाहती है जो पिछले ६७ सालों की सरकारें नहीं कर पाई थीं. मास्टर स्ट्रोक पर मास्टर स्ट्रोक. जनता मस्त चीन-पाकिस्तान समेत समस्त विपक्ष पस्त.
मित्रों, आपको याद होगा कि पिछले साल ३०-३१ जुलाई को मैं श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन की ओर से आयोजित होनेवाली राईटर्स मीट में भाग लेने दिल्ली गया था. तब मैंने आपको वहां के माहौल के बारे में बताया था कि वक्ताओं ने उपलब्धियों का वर्णन तो बहुत कम किया केंद्र सरकार की मजबूरियों का रोना ज्यादा रोया. लगता था जैसे केंद्र सरकार के हाथों में कुछ है ही नहीं संविधान-निर्माताओं ने सबकुछ राज्य सरकारों के हाथों में दे दिया है. ऐसे माहौल में लोग केंद्र सरकार से निराश होने लगे थे. तभी पहले सीमा पर सर्जिकल स्ट्राइक और बाद में नोटबंदी ने जैसे फ़िजा को ही बदल कर रख दिया.
मित्रों, जब नोटबंदी की गयी तब हमने उसे ऐतिहासिक बताते हुए कहा था कि सरकार को यहीं पर रूक नहीं जाना चाहिए और बेनामी संपत्ति पकड़ने की दिशा में भी त्वरित कदम उठाने चाहिए. तब मुझे नहीं लगता था कि जीएसटी मोदी सरकार के इस कार्यकाल में मूर्त रूप ले पाएगी. लेकिन कल १ जुलाई २०१७ से जीएसटी एक सच्चाई बन चुकी है. इसमें कोई संदेह नहीं कि यह आजाद भारत में सबसे बड़ा अप्रत्यक्ष कर-सुधार है. अब तक हम कमोबेश उसी कर-प्रणाली को ढोते आ रहे थे जो अंग्रेज छोड़कर गए थे. कश्मीर से कन्याकुमारी तक अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग कानून और अलग-अलग कर. विदेशी निवेशकों का तो समझने में जैसे दिमाग का दही ही हो जाता था. लेकिन अब करों के सारे मकड़जालों को साफ़ कर दिया गया है. १७ करों के स्थान पर सिर्फ एक कर और वो भी पूरे देश में एक समान. कुछ राज्यों की आपत्तियों को देखते हुए अभी सिगरेट,शराब और पेट्रो-उत्पादों को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है. इतना ही नहीं अब कर देने की प्रक्रिया को भी पूरी तरह से पारदर्शी बनाते हुए उसका डिजिटलीकरण कर दिया गया है.
मित्रों, जीएसटी को जो लोग गरीबों के लिए जजिया कर का नाम दे रहे हैं उनको बता दूं कि इससे भारत के सभी गरीब व बड़ी जनसंख्या वाले राज्यों को भारी लाभ होने वाला है क्योंकि अब कर पहले की तरह उत्पादन वाले स्थानों पर नहीं लिया जाएगा बल्कि वहां लिया जाएगा जहाँ उत्पाद का अंतिम उपभोग होता है. जाहिर है जिस राज्य में कर संग्रहण होगा वहां की सरकार के खजाने में स्टेट जीएसटी ज्यादा जाएगा. अब न केवल भारत में उत्पादन करना ही आसान हो जाएगा बल्कि व्यापार करना भी सरल हो जाएगा.
मित्रों, जीएसटी लागू करके अप्रत्यक्ष करों में तो सुधार कर दिया गया है अब बारी है प्रत्यक्ष करों में सुधार की. नकली कंपनी बनाकर काले धन को ठिकाने लगानेवालों पर भी कार्रवाई की आवश्यकता है. पीएम मोदी ने अपने ३० जून के संसद में ऐतिहासिक भाषण और कल चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के समक्ष संबोधन में इसका संकेत भी दे दिया है.अगर जीएसटी के बाद इस दिशा में भी कदम उठाए जाते हैं तो इसमें कोइ संदेह नहीं कि भारतीय अर्थव्यस्था राकेट की गति से आगे बढ़ने लगेगी और कुछ ही सालों में हम दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति होंगे क्योंकि हमारे पास न केवल विश्व की सबसे बड़ी युवा आबादी है बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा बाज़ार भी है. कमी अगर कहीं है तो सिर्फ व्यवस्था की है,व्यवस्था में है.
मित्रों, हालाँकि कर-संधारण के अतिरिक्त अभी भी हमारे देश में बहुत-कुछ ऐसा है जो औपनिवेशिक काल का है और उसमें आमूल-चूल परिवर्तन की आवश्यकता है जैसे हमारी न्यायिक प्रणाली, हमारी पुलिसिंग, हमारे आपराधिक और दीवानी कानून, हमारी शिक्षा-व्यवस्था इत्यादि. लेकिन इससे जीएसटी लागू करने के महान कदम की महत्ता कम नहीं हो जाती.
मित्रों, आपको याद होगा कि पिछले साल ३०-३१ जुलाई को मैं श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन की ओर से आयोजित होनेवाली राईटर्स मीट में भाग लेने दिल्ली गया था. तब मैंने आपको वहां के माहौल के बारे में बताया था कि वक्ताओं ने उपलब्धियों का वर्णन तो बहुत कम किया केंद्र सरकार की मजबूरियों का रोना ज्यादा रोया. लगता था जैसे केंद्र सरकार के हाथों में कुछ है ही नहीं संविधान-निर्माताओं ने सबकुछ राज्य सरकारों के हाथों में दे दिया है. ऐसे माहौल में लोग केंद्र सरकार से निराश होने लगे थे. तभी पहले सीमा पर सर्जिकल स्ट्राइक और बाद में नोटबंदी ने जैसे फ़िजा को ही बदल कर रख दिया.
मित्रों, जब नोटबंदी की गयी तब हमने उसे ऐतिहासिक बताते हुए कहा था कि सरकार को यहीं पर रूक नहीं जाना चाहिए और बेनामी संपत्ति पकड़ने की दिशा में भी त्वरित कदम उठाने चाहिए. तब मुझे नहीं लगता था कि जीएसटी मोदी सरकार के इस कार्यकाल में मूर्त रूप ले पाएगी. लेकिन कल १ जुलाई २०१७ से जीएसटी एक सच्चाई बन चुकी है. इसमें कोई संदेह नहीं कि यह आजाद भारत में सबसे बड़ा अप्रत्यक्ष कर-सुधार है. अब तक हम कमोबेश उसी कर-प्रणाली को ढोते आ रहे थे जो अंग्रेज छोड़कर गए थे. कश्मीर से कन्याकुमारी तक अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग कानून और अलग-अलग कर. विदेशी निवेशकों का तो समझने में जैसे दिमाग का दही ही हो जाता था. लेकिन अब करों के सारे मकड़जालों को साफ़ कर दिया गया है. १७ करों के स्थान पर सिर्फ एक कर और वो भी पूरे देश में एक समान. कुछ राज्यों की आपत्तियों को देखते हुए अभी सिगरेट,शराब और पेट्रो-उत्पादों को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है. इतना ही नहीं अब कर देने की प्रक्रिया को भी पूरी तरह से पारदर्शी बनाते हुए उसका डिजिटलीकरण कर दिया गया है.
मित्रों, जीएसटी को जो लोग गरीबों के लिए जजिया कर का नाम दे रहे हैं उनको बता दूं कि इससे भारत के सभी गरीब व बड़ी जनसंख्या वाले राज्यों को भारी लाभ होने वाला है क्योंकि अब कर पहले की तरह उत्पादन वाले स्थानों पर नहीं लिया जाएगा बल्कि वहां लिया जाएगा जहाँ उत्पाद का अंतिम उपभोग होता है. जाहिर है जिस राज्य में कर संग्रहण होगा वहां की सरकार के खजाने में स्टेट जीएसटी ज्यादा जाएगा. अब न केवल भारत में उत्पादन करना ही आसान हो जाएगा बल्कि व्यापार करना भी सरल हो जाएगा.
मित्रों, जीएसटी लागू करके अप्रत्यक्ष करों में तो सुधार कर दिया गया है अब बारी है प्रत्यक्ष करों में सुधार की. नकली कंपनी बनाकर काले धन को ठिकाने लगानेवालों पर भी कार्रवाई की आवश्यकता है. पीएम मोदी ने अपने ३० जून के संसद में ऐतिहासिक भाषण और कल चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के समक्ष संबोधन में इसका संकेत भी दे दिया है.अगर जीएसटी के बाद इस दिशा में भी कदम उठाए जाते हैं तो इसमें कोइ संदेह नहीं कि भारतीय अर्थव्यस्था राकेट की गति से आगे बढ़ने लगेगी और कुछ ही सालों में हम दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति होंगे क्योंकि हमारे पास न केवल विश्व की सबसे बड़ी युवा आबादी है बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा बाज़ार भी है. कमी अगर कहीं है तो सिर्फ व्यवस्था की है,व्यवस्था में है.
मित्रों, हालाँकि कर-संधारण के अतिरिक्त अभी भी हमारे देश में बहुत-कुछ ऐसा है जो औपनिवेशिक काल का है और उसमें आमूल-चूल परिवर्तन की आवश्यकता है जैसे हमारी न्यायिक प्रणाली, हमारी पुलिसिंग, हमारे आपराधिक और दीवानी कानून, हमारी शिक्षा-व्यवस्था इत्यादि. लेकिन इससे जीएसटी लागू करने के महान कदम की महत्ता कम नहीं हो जाती.
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