सोमवार, 29 सितंबर 2008

करना ज्यादा महत्वपूर्ण

मैं क्या लिखूं ? क्यों लिखूं ? क्या इसे कोई इसे पढेगा भी ? किशी पर कोई प्रभाव परेगा फ़िर भी मैं लिख रहा हूँ। लिखता जा रहा हूँ। हालाँकि मैं यह जनता हूँ कि लिखने से ज्यादा अमल करना जरूरी है।

बुधवार, 10 सितंबर 2008

क्या होगा इस दुनिया का

अभी साड़ी दुनिया इस बहस में लगी हुई है की १० सेप्टेम्बर को दुनिया रहेगी या नहीं. जहाँ तक मेरा मानना है की बदलेगी और रहेगी दुनिया यही रहेगी. होंगे यही झमेले.
खैर यह मानते हुए की ११ सेप्टेम्बर को भी हम वैसे ही जागेंगे जैसे रोज़ जागते है.
इस दुनिया के भीतर ही सही मेरी एक अलग दुनिया है. मई बात कर रहा हूँ खबरों की दुनिया का. हालत कुछ अच्छे नहीं हैं. १०० रुपीस रोजाना पर मैं बिहार के सबसे बड़े पेपर में पेज एक पर काम करता हूँ.
हालत बदलने की कोशिश में लगा मैं ख़ुद ही हालत का शिकार हूँ और शोषित भी. करूँ भी क्या चापलूसी मुझे आती नहीं और काम की कोई क़द्र करनेवाला है नहीं.
बस ये उम्मीद है की वोह सुबह कभी तो आएगी............