शनिवार, 27 जुलाई 2013

जागो हिन्दुओं जागो

मित्रों,आप सभी देश के मौजूदा हालात से अच्छी तरह से वाकिफ हैं। चाहे देश की उत्तरी,दक्षिणी,पूर्वी और पश्चिमी सीमाओं की सुरक्षा का सवाल हो या फिर देश की आंतरिक सुरक्षा का। चाहे देश की अर्थव्यवस्था का प्रश्न हो या विदेशी व्यापार का हर मोर्चे पर आज की तारीख में देश की हालत खस्ता है। चीन बार-बार हमारी सीमाओं में दाखिल होकर हमारी संप्रभुता को खुली चुनौती दे रहा है। कोई नहीं जानता कि वह गद्दार कब हमारे देश पर हमला कर दे और सच्चाई तो यही है कि अगर ऐसा हुआ तो इस बार हमें एक साथ चीन और पाकिस्तान दोनों से लोहा लेना पड़ेगा। इधर भारत-चीन सीमा पर हमारी तैयारी की हालत कदाचित 1962 से भी ज्यादा खराब है। जहाँ चीन ने भारत-चीन सीमा के समानान्तर रेल-लाइनों और सड़कों का जाल बिछा दिया है हमारी सड़कें सीमा से 40-50 किलोमीटर पहले ही समाप्त हो जाती हैं,रेल-लाइनों को बिछाने का प्रश्न ही नहीं उठता। पाकिस्तान तो हमेशा हमें नुकसान पहुँचाने की ताक में लगा रहता ही है,नेपाल,मालदीव,भूटान और श्रीलंका भी वर्तमान केंद्र सरकार की आत्मविनाशक विदेश नीति के कारण हमारे विश्वस्त मित्र नहीं रह गए हैं। बांग्लादेश की हमारे प्रति नीति भी दो राजनैतिक दलों के बीच पेंडुलम की भाँति झूलती रहती है।
                     मित्रों,क्या आपने कभी विचार किया है कि देश के इन हालातों के लिए कौन जिम्मेदार है? कहते हैं कि लोकतंत्र में यथा प्रजा तथा राजा का नियम काम करता है। हमारे लुटेरे छद्म धर्मनिरपेक्ष सियासतदानों ने पहले आरक्षण के नाम पर बहुसंख्यक हिन्दुओं को आपस में लड़वाया फिर पूरे भारत को अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक में बाँट दिया। आज हम हिन्दुओं की स्थिति इतनी बिगड़ गई है कि हमारे देश का प्रधानमंत्री लाल-किले से खुलेआम ऐलान करता है कि देश के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों का है। पारसी,इसाई,बौद्ध,जैन और सिक्खों की स्थिति तो पहले से ही हिन्दुओं से अच्छी है। तो फिर इसका तो यही मतलब हुआ कि ऐसा कहके और करके केंद्र सरकार सिर्फ मुसलमानों को खुश करना चाहती है। आज हम अपनी मातृभूमि-आदिभूमि हिन्दुस्थान में मंदिरों में लाऊडस्पीकर और घंटे-घड़ियाल तक नहीं बजा सकते (उदाहरण के लिए हैदराबाद का भाग्यलक्ष्मी मंदिर)। आज ही उत्तर प्रदेश के मेरठ में मंदिर में लाऊडस्पीकर बजाने पर मुसलमानों ने मंदिर पर हमला कर दिया जिसमें दो लोग मारे भी गए। ऐसा कब तक चलेगा? हमने तो कभी नहीं रोका उनको नमाज पढ़ने या अजान देने से फिर वो क्यों हम पर गोलियाँ चलाते हैं? इतिहास गवाह है कि दंगे चाहे भागलपुर में हुए हों या गुजरात में,शुरू हमेशा मुसलमान ही करते हैं।
                                      मित्रों, लाल किले से ऐसा कहकर और मुसलमानों के लिए अलग से विशेष योजनाएँ चलाकर हमारे ही वोटों से चुनी गई हमारी केंद्र सरकार ने हमें हमारे ही देश हिन्दुस्थान में द्वितीय श्रेणी का नागरिक बना दिया है। अंग्रेजों के जमाने से ही भारत में हिन्दुओं और मुसलमानों के लिए आपराधिक कानून या संहिता तो एक है लेकिन दीवानी कानून या नागरिक संहिता अलग-अलग हैं। यह घोर दुर्भाग्यपूर्ण है कि आजादी के बाद भी जो भी संशोधन और बदलाव हमारी सरकारों ने किए सिर्फ और सिर्फ हिन्दू उत्तराधिकार कानून और विवाह कानून में किए मुगलकाल से चले आ रहे तत्संबंधी इस्लामिक कानूनों को कभी छुआ तक नहीं गया। हिन्दू पुरूष एक विवाह करे और मुसलमान पुरूष चार फिर क्यों नहीं मुसलमानों की जनसंख्या ज्यादा तेजी से बढ़ेगी? बीच में स्व. संजय गांधी ने 1974-77 में जबरन नसबंदी के प्रयास भी किए लेकिन उनको भी दूसरी बार सत्ता में आने के बाद अपने कदम पीछे खींचने पड़े। मैं सर्वधर्मसमभाव पर अमल का दावा करनेवाली केंद्र सरकार से जानना चाहता हूँ कि क्यों सारे सुधार और संशोधन हिन्दुओं के विवाह और सम्पत्ति कानून में ही किए जाते हैं,मुसलमानों के कानूनों को क्यों नहीं बदला जाता है? ٍक्यों बार-बार सारे-के-सारे प्रतिबंध हिन्दुओं पर ही लादे जाते हैं? सुप्रीम कोर्ट ने भी वर्तमान और पूर्व की केंद्र सरकारों की इस प्रवृत्ति पर कई बार सवाल उठाए हैं। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कई बार सरकारों  को समान नागरिक संहिता लागू करने परामर्श दिया है लेकिन सब बेकार।
                               मित्रों,इसी तरह अंग्रेजों के जमाने से ही हिन्दू मंदिरों पर तो सरकार का कब्जा और नियंत्रण है मगर मस्जिदों,दरगाहों और कब्रगाहों पर शिया या सुन्नी वक्फ बोर्ड का। जब सरकार या दूसरों के पैसों से हज करना शरियत के अनुकूल नहीं है तो फिर क्यों केंद्र सरकार मुसलमानों को हज-सब्सिडी दे रही है और क्यों भारतीय मुसलमान इसका लाभ उठा रहे हैं? अमरनाथ या कैलाश-मानसरोवर-यात्रा पर हिन्दुओं को क्यों सब्सिडी नहीं दी जा रही है? क्यों हिन्दू मंदिरों के खजाने पर कोर्ट-कानून का डंडा चलता है और क्यों मुस्लिम दरगाहों की कमाई को सरकार के अधिकार-क्षेत्र से बाहर रखा गया है?
                                    मित्रों,हम यह भी जानना चाहते हैं कि कांग्रेस की तरफ से प्रधानमंत्री पद के अघोषित उम्मीदवार राहुल गांधी किस धर्म को मानते हैं? क्या वे हिन्दू-धर्म को मानते हैं? अगर वे किसी दूसरे धर्म को मानते हैं तो फिर क्या गारंटी है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद वे हिन्दुओं का खास ख्याल रखेंगे और अल्पसंख्यक-फर्स्ट की कुत्सित नीति पर नहीं चलेंगे? हम यह भी जानना चाहेंगे कि राहुल गांधी के गोहत्या के बारे में क्या विचार हैं? वे इसका समर्थन करते हैं या विरोध? क्या उन्होंने कभी गोमांस-भक्षण किया है या वे अब भी गोमांस खाते हैं? क्या सोनिया गांधी ने कभी गोमांस खाया है या अब भी वे उतने ही चाव से इसका सेवन करती हैं?
                                              मित्रों,हमारे गाँवों में एक कहावत बड़ी ही मकबूल है कि जो खाए गाय का गोश्त,वो हो नहीं सकता हिन्दुओं का दोस्त। अब आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं कि कौन हम हिन्दुओं का शुभचिंतक है और कौन नहीं? चाहे वो गोहत्या पर से कर्नाटक में पाबंदी हटानेवाला सिद्धरमैया हो या उत्तर प्रदेश में नए बूचड़खानों के लिए टेंडर मंगवानेवाला अखिलेश यादव,ये लोग कभी हिन्दुओं के दोस्त या हितचिंतक हो ही नहीं सकते। इतना ही नहीं हम प्रधानमंत्री की कुर्सी की तरफ काफी तेज कदमों से बढ़ रहे श्रीमान् नरेंद्र मोदी जी से भी स्पष्ट शब्दों में यह जानना चाहते हैं,बल्कि हम उनके मुखारविन्द से यह सुनना चाहते हैं कि वे प्रचंड बहुमत से प्रधानमंत्री बनने के बाद संसद से गोहत्या पर रोक लगाने का कानून बनवाएंगे।
                        मित्रों,जबकि 85 प्रतिशत मुसलमान पहले से ही आरक्षण के दायरे में हैं फिर भी मात्र 15 प्रतिशत अगड़े मुसलमानों को आरक्षण देने की जी-तोड़ कोशिश की जा रही है। क्या अगड़े मुसलमानों के पिछड़ेपन के लिए पिछड़ी जाति के हिन्दू जिम्मेदार हैं? फिर क्यों उनका कोटा कम करके अगड़े मुसलमानों को संविधान की खुलेआम अनदेखी करते हुए धर्म के आधार पर आरक्षण देने की नापाक कोशिश की जा रही है?
                                    मित्रों,हमारे छद्म धर्मनिरपेक्ष नेता आज देश पर मरनेवालों पर आँसू नहीं बहाते,उत्तराखंड में उनकी लापरवाही के चलते मारे गए हजारों बेगुनाह हिन्दुओं की लाशों पर भी आँसू बर्बाद नहीं करते बल्कि वे आँसू बहाते हैं मुस्लिम आतंकियों की मौत और गिरफ्तारी पर। क्या इसको सर्वधर्मसमभाव का नाम दिया जा सकता है? क्या इस तरह की आत्मघाती रणनीति अपनाकर देश से आतंकवाद का खात्मा किया जाएगा?
                                         मित्रों,कुल मिलाकर इस सारी मगजमारी का लब्बोलुआब यह है कि देश की दुर्दशा इसलिए हो रही है क्योंकि इस देश के बहुसंख्यक अर्थात् हिन्दू एक नहीं हैं। कम-से-कम हिन्दुओं को तो इस संकट-काल में देशहित में एक हो ही जाना चाहिए और अगर ऐसा नहीं हुआ तो फिर वो दिन दूर नहीं जब इस देश का एक नाम हिन्दुस्थान या हिन्दुस्तान न होकर चीन या पाकिस्तान हो जाएगा। आज नेफा से लेकर राजस्थान तक और कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक पूरे हिन्दुस्थान को कांग्रेस की लुटेरी और देशबेचवा सरकार ने अपनी शत्रुतापूर्ण नीतियों के चलते खतरे में डाल दिया है। चूँकि हमारा धर्म इस देश और पृथ्वी पर सबसे पुराना धर्म है इसलिए इस देश की अस्तित्व-रक्षा के प्रति अगर किसी की पहली जिम्मेदारी बनती है तो वो हम हिन्दुओं की। वैसे अगर दूसरे धर्मवाले देशभक्त भी इस परमपुनीत कार्य में अपना महती योगदान देना चाहें तो हम तहेदिल से उनका स्वागत करेंगे। और हिन्दुओं को भी एक कुछ इस तरह से होना चाहिए कि हमारे देश की एकमात्र बहुसंख्यकवादी राष्ट्रीय पार्टी भाजपा को अकेले ही दो-तिहाई बहुमत प्राप्त हो जाए और अल्पसंख्यकवादी देशबेचवा नेताओं की दाल चुनावों के बाद किसी भी सूरत में गलने नहीं पाए।
                       मित्रों,हम हिन्दू एक होंगे तो न केवल अपने देश में ही हमारे धर्माम्बलंबियों की स्थिति सुधरेगी बल्कि हमारे पड़ोसी देशों में भी हिन्दुओं की स्थिति में सुधार आएगा। तब पाकिस्तान में हिन्दुओं की बहु-बेटियों का दिन-दहाड़े अपहरण नहीं होगा और उनको अपनी मातृभूमि छोड़कर प्राण-प्रतिष्ठा बचाकर भारत नहीं भागना पड़ेगा। हमें हमेशा यह बात अपने जेहन में रखनी चाहिए कि दुनिया में भारत के अलावा ऐसा कोई दूसरा देश नहीं है जहाँ कि बहुसंख्यकों को द्वितीय श्रेणी का नागरिक बनकर रहना पड़ता हो।                                         

शनिवार, 20 जुलाई 2013

वर्ल्ड कप फेम पूनम पांडे

मित्रों,क्या आप बहुत बड़ी खिलाड़ी पूनम पांडे को जानते हैं? अगर नहीं जानते तो जान लीजिए। वे ऐसी-वैसी खिलाड़ी नहीं हैं बल्कि विश्व कप विजेता खिलाड़ी हैं। मैंने तो आज भी अखबार में पढ़ा है। क्या कहा मेरा ही सामान्य ज्ञान कमजोर है और उन्होंने कभी कोई वर्ल्ड कप नहीं जीता। परंतु ऐसा कैसे हो सकता है कि कोई बिना वर्ल्ड कप जीते ही वर्ल्ड कप फेम हो जाए या कहलाने लगे? क्या कहा उन्होंने वर्ल्ड कप नहीं जीता था बल्कि वर्ल्ड कप के समय अपने नंग-धड़ंग होने के वादे को पूरा किया था। अरे भाई तो इसमें कौन-सी बड़ी बात है,हम्माम में तो सभी नंगे होते ही हैं? क्या कहा वे कैमरे के आगे पूरी तरह से नंगी हो गई थीं और फिर बाद में वीडियो को सार्वजनिक भी कर दिया था। लीजिए मैं तो उनको कुछ और ही समझ रहा था वो क्या कहते हैं कि खिलाड़ी। अब समझा कि वे खिलाड़ी हैं ही नहीं बल्कि उन्होंने तो जमाने के सामने नंगा होने का वर्ल्ड कप जीता है। वैसे मैंने कई बार सड़कों पर विक्षिप्त पुरूष-महिलाओं को नंगे घूमते देखा है तो कहीं यह पूनम पांडे भी पागल तो नहीं है? अरे तू समझता क्यों नहीं है भाऊ पूनम पांडे पागल नहीं है वो तो दूसरों को पागल बनाती है रे।
                   मित्रों,वास्तव में यह अश्लील सत्य है कि इस समय पूरी दुनिया में अश्लीलता और नंगेपन का विश्व कप चल रहा है। आदमी खुद तो नंगा हो ही रहा है उसने प्रकृति को भी नंगा करके रख दिया है जंगल काटकर। लेकिन यहाँ हम आदमी और उसकी आत्मा के नंगेपन तक ही सीमित रहेंगे वरना बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी। पहले भारत इस विश्वकप से बाहर था लेकिन अब संचार-क्रांति और अपसंस्कृतिकरण की कृपा के चलते वो भी इस महाआयोजन में शामिल ही नहीं हो गया है वरन् धूम मचा रहा है। कहिए तो सभी पूर्व खिताब विजेता क्लिंटनों और बर्लस्कोनियों को प्रतियोगिता से बाहर ही कर दिया है। अब इस विश्वकप का मतलब ही अखिल भारतीय कप रह गया है। क्या बूढ़े,क्या जवान और क्या किशोर हर कोई हर किसी से बाजी मार लेना चाहता है। जहाँ पहले नंगा शव्द गालियों में शुमार होता था अब उसने बदलते युगधर्म में पर्याप्त प्रतिष्ठा अर्जित कर ली है। बाजारवाद का जमाना जो ठहरा। पहले कहावत थी कि हम्माम में सभी नंगे हैं अब गर्व से हम कह सकते हैं कि बाजार में सभी नंगे हैं क्योंकि बाजार में तो सिर्फ पैसा बोलता है न भाई। पैसा है तो अनैतिकता भी नैतिकता है वरना नैतिकता भी अनैतिकता।
                                        मित्रों,अभी-अभी दो-तीन दिन पहले ही दिल्ली से सटे गुड़गाँव में लगभग 100 होनहार किशोरों को सेक्स एंड पार्टी का आनंद लेते गिरफ्तार किया गया। आप खुद ही अनुमान लगा सकते हैं कि हमारा समाज किस तरह एकदम सही दिशा में अग्रसर हो गया है। अभी दो-तीन दिन पहले ही राजस्थान से एक बेहद शोचनीय मामला सामने आया। एक पिता ने अपनी 5 बेटियों के साथ कई महीने तक बलात्कार किया,उनको जबर्दस्ती ब्लू फिल्म दिखाया और परिणामस्वरूप कई-कई बार गर्भपात भी करवाया। तो क्या भविष्य में हमारी बेटियाँ अपने घरों में भी सुरक्षित नहीं रह जाएंगी? परंतु हमारी बेटियाँ तो वे भी हैं जो पूनम पांडे,सन्नी लियोन की तरह इस विश्वकप में खुद ही कपड़ों को तिलांजली देकर शामिल हो गई हैं और समाज तो दिक्भ्रमित कर रही हैं।
                          मित्रों,इसी बीच सर से पाँव तक और उससे भी कहीं ज्यादा आत्मा तक नंगी केंद्र सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट को साफ-साफ शब्दों में बता दिया है कि वो अच्छे कहलानेवाले सरकार-विरोधी हजारों वेबसाइटों को तो जब चाहे तब बैन कर सकती है लेकिन अश्लील वेबसाइटों को कतई नहीं क्योंकि उसके मतानुसार ये वेबसाइटें हजारों सदियों से असभ्य रहे भारत का संस्कृतिकरण कर रहीं हैं। आजादी से पहले जहाँ ऐसा करना अंग्रेजों के लिए ह्वाईट मेन्स बर्डेन था अब इटली से अवतरित सोनिया गाँधी के लिए भारी बोझ बन गया है।
                         मित्रों,समझ में नहीं आता कि नंगई का वर्ल्ड कप किसे प्रदान किया जाए? जहाँ ओलंपिक में हमारे देश को पदकों के लाले पड़ जाते हैं यहाँ तो एक-से-एक प्रतियोगी मौजूद हैं। हमारे नेताओं को जिन्होंने घोटाला करने और जनता को धोखा देने में,झूठ बोलने और बरगलाने में और साथ-साथ कैमरे की उपस्थिति या अनुपस्थिति में नंगा होने में विश्व ही नहीं,ब्रह्माण्ड रिकार्ड बनाया हुआ है? या फिर अपने यहाँ के अधिकारियों को दे दिया जाए जिन्होंने संवेदनहीनता और घूस-कमीशनखोरी में पत्थरों और पशुओं तक को मीलों पीछे छोड़ दिया है। या फिर उन न्यायाधीशों को जो पैसे या लड़की लेकर न्याय के बदले अन्याय करते हैं। या फिर आम जनता को जिसने 16 दिसंबर जैसे कई महाक्रूर घटनाओं को अंजाम दिया है और जिनके मन-मस्तिष्क पर पूरी और बुरी तरह से अश्लीलता के वाईरस का कब्जा हो गया है,जिन्होंने देशभक्ति समेत समस्त नैतिक मूल्यों की एक बार में ही सामूहिक अंत्येष्टि कर दी है और अवशेषों को उपभोक्तावाद और बाजारवाद के गंदे गटर में ससम्मान प्रवाहित कर दिया है।
                              मित्रों,नंगई के विश्वकप के लिए नामांकन सालोंभर चलता रहता है। बहुत मारामारी है यहाँ। लालू, नीतीश, मुलायम, सोनिया, चांडी, राहुल, राघवजी, सन्नी लियोन, शरद पवार,पूनम पांडे आदि ने तो अपना नाम दर्ज करवा भी लिया है। आपने अपना नामांकन करवाया या नहीं? नहीं?? तो जल्दी करवाईए,आजकल नंगई बेस्ट कैरियर ऑप्शन बन गया है। जमकर पैसा बनाईए और अगर महेश भट्ट ने चाहा तो आपको फिल्मों में भी मौका मिल सकता है। अंदरखाने की एक बात बताऊँ आपको। आप पहले वादा करिए कि आप भी मेरी तरह किसी की नहीं बताएंगे-महेश भट्ट ने अपनी अगली अनाम फिल्म के लिए राघवजी और अभिषेक मनु सिंघवी को साईन कर भी लिया है। अब तो आप समझ ही गए होंगे कि इस दुनिया और भारत के सबसे तेजी से उभरते सुनहरे क्षेत्र में कितनी मारामारी है। जल्दी करिए,जल्दी भरिए मित्रों,नहीं तो आप कप की रेस में काफी पीछे छूट जाएंगे/जाएंगी और तब कितना भी नंगा होने के बाद भी आपके पास सिर्फ एक ही विकल्प बचेगा खुद को कोंसने का और हाथ मलने का।

गुरुवार, 18 जुलाई 2013

मिडडेमिल बना मौत की थाली

मित्रों,कल की ही तो बात है। घड़ी में दोपहर के एक बज रहे थे। धर्मासती प्राथमिक विद्यालय,जिला-सारण (बिहार) की घंटी घनघना उठी। बच्चे शोर मचाते हुए पंक्तिबद्ध होकर बैठ गए। मिडडेमिल योजनान्तर्गत चावल,दाल और सब्जी परोसी जाने लगी। न जाने क्यों आज सब्जी कुछ ज्यादा ही तीखी और अलग स्वादवाली थी। रसोईया मंजू को विश्वास नहीं हुआ तो उसने भी चखकर देखा। एक पंक्ति उठी और अभी दूसरी पंक्ति को भोजन परोसा भी नहीं गया था कि भोजन कर चुके बच्चों के पेट में भयंकर दर्द होने लगा। कुछ तो तत्काल ही बेहोश भी हो गए। पूरे गाँव में कोहराम मच गया। दो बच्चों ने चंद मिनटों में वहीं पर देखते-ही-देखते दम तोड़ दिया। बाँकियों को मशरख के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया और कुछ बच्चों को मशरख के ही निजी अस्पतालों में भर्ती कराया गया। परंतु वहाँ न तो सुविधाएँ ही थीं और न तो डॉक्टर कुछ समझ ही पा रहे थे। तब तक 5 अन्य बच्चे दुनिया को अलविदा कह चुके थे। शाम के 6 बजे जीवित बचे 40 बच्चों को मशरख से हटाकर छपरा,सदर अस्पताल में भर्ती करवा दिया गया लेकिन वहाँ की तस्वीर भी कोई अलग नहीं थी। वहाँ न तो कोई डॉक्टर ही उपस्थित था और न तो जहर काटने की दवा ही उपलब्ध थी,ऑक्सीजन का तो सवाल ही नहीं उठता। सूर्यास्त तक अस्पताल में मौत तांडव करने लगा और 9 अन्य बच्चों ने भी दम तोड़ दिया। रात के नौ बजे स्थिति बिगड़ती देख जिंदा बचे 30 बच्चों को पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल भेज दिया गया जहाँ वे करीब 12 बजे पहुँचे। तब तक रास्ते में भी 4 बच्चों की साँसें थम चुकी थीं। बाद में पीएमसीएच में भी 7 बच्चों ने दम तोड़ दिया। लाशों की गिनती 27 मौतों के बाद भी अभी थमी नहीं है और कई बच्चों की हालत गंभीर बनी हुई है। दुर्भाग्यवश रसोईया मंजू देवी ने भी चूँकि उस भोजन को चखकर देखा था इसलिए वे भी पीएमसीएच में दाखिल हैं लेकिन उसके भी दो बच्चे इस घटना में काल-कवलित हो गए हैं। कल ही राज्य सरकार ने मामले की जाँच के लिए कमिश्नर और आईजी की जाँच कमिटी बना दी थी जो अब तक भी गाँव नहीं पहुँची है। अलबत्ता सुबह-सुबह पुलिस जरूर गाँव में आई थी और लोगों के सख्त विरोध के बाबजूद बर्तन और तैयार भोजन समेत सारे प्रमाण अपने साथ ले गई। इस बीच बिहार के शिक्षा मंत्री ने एक प्रेस वार्ता में कहा है कि उनका पुलिसिया जाँच में विश्वास नहीं है क्योंकि वे मानते हैं कि पुलिस पक्षपाती होकर काम करती है। इस मामले की जाँच से तो सरकार ने पुलिस को अलग कर दिया लेकिन उन बाँकी हजारों मामलों का क्या जिनका अनुसंधान बिहार पुलिस कर रही है?
                                 मित्रों,इतनी बड़ी संख्या में इन नौनिहालों की मौत के लिए जिम्मेदार कौन है? केंद्र
सरकार ने तो योजना बना दी,आवंटन भी कर दिया लेकिन उसे सही तरीके से लागू कौन करवाएगा? क्यों एफसीआई के गोदाम से ही 50 किलो की बोरी में 45 किलो अनाज होता है? फिर कैसे स्कूल तक पहुँचते-पहुँचते रास्ते में ही बोरी का वजन घटकर 30-35 किलो हो जाता है? क्यों स्कूलों के शिक्षक पढ़ाना छोड़कर दिन-रात मिडडेमिल योजना में से पैसे बनाने और आपस में बाँटने की जुगत में लगे रहते हैं? क्यों मिडडेमिल प्रभारी अधिकारियों को सड़े और फफूंद लगे चावल-दाल नजर नहीं आते? कल धर्मासती में भोजन में जहर कहाँ से आ गया? जाहिर है कि रसोईये न तो नहीं मिलाया क्योंकि अगर वो ऐसा करती तो न तो उसको खुद खाती और न ही अपने दोनों बच्चों को ही खिलाती। अगर सरसों तेल जहरीला था तो कैसे और क्यों जहरीला था? चूँकि खाद्य-सामग्री प्रधानाध्यापिका के पति की दुकान से खरीदी जाती थी जो राजद का दबंग नेता भी है इसलिए हो सकता है कि उसने राजनैतिक फायदे के लिए जानबूझकर सरसो तेल में जहर मिला दिया हो या गलती से वहीं पर तेल जहर के संसर्ग में आ गया हो। हो तो यह भी सकता है कि प्रधानाध्यापिका के दरवाजे पर ही तेल में जहर मिल गया हो क्योंकि वहाँ खाद्य-सामग्री के साथ-साथ कीटनाशक और रासायनिक खाद भी रखा हुआ था। अगर यह मान भी लिया जाए कि इस घटना के पीछे कोई राजनैतिक साजिश थी तो भी प्रधानाध्यापिका तो सरकारी अधिकारी थीं उन पर निगरानी रखना तो सरकार का काम था। इतना ही नहीं इस योजना की निगरानी के लिए राज्य में अधिकारियों व स्थानीय निकाय के जनप्रतिनिधियों की एक लंबी फौज मौजूद है फिर राज्यभर में बराबर इस तरह की घटनाएँ कैसे घटती रहती हैं,क्या सुशासन बाबू जवाब देंगे? बाद में जब सहारा,बिहार संवाददाता पंकज प्रधानाध्यापिका मीना देवी यादव जिनके पति अर्जुन यादव इलाके के जानेमाने राजद नेता भी हैं के दरवाजे पर पहुँचे तो पाया कि एक टोकरी में आलू रखा हुआ है था जो पूरी तरह से सड़ चुका था और जानवरों के खाने के लायक भी नहीं था। प्रश्न तो यह भी उठता है कि उक्त स्कूल में पिछले 3 सालों से भोजन की देखभाल करनेवाली समिति भी भंग है और संबद्ध अधिकारी कान पर ढेला डाले हुए हैं।
                        मित्रों,क्या उन बच्चों को गाँव से सरकारी हेलिकॉप्टर भेजकर सीधे पटना नहीं लाया जा सकता था। क्या सरकारी हेलिकॉप्टर सिर्फ मुख्यमंत्री की जागीर होती है? अगर नहीं तो फिर ऐसा क्यों नहीं किया गया? स्वास्थ्य मंत्रालय तो इस समय मुख्यमंत्री के पास ही है फिर सरकारी अस्पतालों में इंतजाम की इतनी भारी कमी क्यों है और अव्यवस्था और गैरजिम्मेदारी का माहौल क्यों है? क्यों अभी तक मुख्यमंत्री ने अभी तक पीएमसीएच,सदर अस्पताल,छपरा या धर्मासती गाँव का दौरा नहीं किया? वे जब पैर में फ्रैक्चर होने बाबजूद सांस्कृतिक कार्यक्रम को देखने जा सकते हैं तो प्रभावित गाँव क्यों नहीं जा सकते हैं? कहीं भी पुलिस फायरिंग में लोग मारे जाएँ या नरसंहार में या किसी दुर्घटना में क्यों मुख्यमंत्री लोगों को सांत्वना देने नहीं जाते? क्या उनको राज्य की जनता की कोई चिंता भी है? क्या उनको आनन-फानन में मुआवजा और जाँच समिति की घोषणा करने के बदले बचे हुए बीमार बच्चों को जल्दी-से-जल्दी पीएमसीएच लाने का इंतजाम नहीं करना चाहिए था? क्या दो-दो लाख रूपए प्रति मृतक बाँट देने से मरे हुए बच्चे जीवित हो जाएंगे?
                                           मित्रों,अभी पूरे गाँव में शोक का माहौल है। किसी-किसी परिवार ने तो एकसाथ अपने 5-5 नौनिहाल खोए हैं। पूरे गाँव में किसी भी घर में चूल्हा नहीं जल रहा है। कल तक जहाँ किलकारियाँ गूँजा करती थीं आज चीत्कारें आसमान का भी सीना चीर दे रही हैं। कल तक स्कूल के सामने स्थित जिस तालाब किनारे के जिस मैदान में बच्चे कबड्डी खेला करते थे आज उसी मैदान में वे 27 बच्चे सोये हुए हैं,गीली और नम मिट्टी की चादर ओढ़कर। गाँववाले अभी भी उसी मैदान में जमा हैं,हाथों में कुदाल लिए इंतजार में कि न जाने अगली बारी किसके बच्चे की हो और न तो इस समय 18 मंत्रालय संभाल रहे सुशासन बाबू का ही कहीं पता है और न तो जिले के जिलाधिकारी का ही। उत्तराखंड की ही तरह बिहार में भी पूरा-का-पूरा तंत्र लापता हो गया लगता है। दिल्ली में योजनाएँ बनाईं जाती हैं जनता का कुपोषण दूर करने के लिए और लागू करने में व्याप्त भ्रष्टाचार और लापरवाही उसे जानलेवा बना देती है। क्या केंद्र सरकार द्वारा योजना बना देने से ही और राशि का आवंटन कर देने से उसके कर्त्तव्यों की इतिश्री हो जाती है? अगर राज्य सरकारें उनको ठीक तरह से लागू नहीं करे तो उन्हें इसके लिए कौन बाध्य करेगा?
                                       मित्रों,क्या कभी बिहार के हालात को बदला जा सकेगा? मिश्र गए,लालू भी गए और अब नीतीश भी चले जाएंगे लेकिन क्या कभी भ्रष्टाचार राज्य से जाएगा? क्या कभी तंत्र की लोक के प्रति संवेदनहीनता समाप्त होगी? या फिर गरीबों को पढ़ाई की आस ही छोड़ देनी होगी? निजी विद्यालयों की मोटी फीस तो वे भरने से रहे,बच्चों के खाली पेट को भर सकना भी जानलेवा महँगाई ने असंभव बना दिया है तभी तो वे मुफ्त की शिक्षा और भोजन के लालच में बच्चों को सरकारी स्कूल भेजते हैं। अगर बार-बार इसी तरह मिडडेमिल जान लेता रहा तो क्या वे बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजने का जोखिम उठाएंगे? क्या वे अपने बच्चों की पढ़ाई छुड़वाकर उनको मजदूरी में नहीं लगा देंगे यह सोंचकर कि जिएगा तो बकरी चराकर भी पेट भर लेगा?
                                       मित्रों,एक बात और! मैं हमेशा से इस तरह की भिक्षुक-योजनाओं के खिलाफ रहा हूँ जिनका वास्तविक उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ अपने वोट-बैंक को बढ़ाना है। देना है तो सरकार बच्चों के माता-पिता को योग्यतानुसार काम दे मिडडेमिल का घटिया भोजन खाकर और घटिया शिक्षा पाकर सरकारी स्कूलों से पास होनेवाले विद्यार्थी भविष्य में करेंगे भी तो क्या करेंगे? कैसा होगा उनका भविष्य? मेरा यह भी मानना रहा है कि शिक्षकों को शिक्षा के अलावा और किसी भी काम में नहीं लगाना चाहिए। शिक्षक पढ़ाए या भोजन बनवाए और उसकी गुणवत्ता जाँचे? इस बीच बिहार के मधुबनी में भी 15 बच्चे मिडडेमिल खाकर बेहोश हो गए हैं। इतना ही नहीं पूरे उत्तर भारत पश्चिम बंगाल से राजस्थान तक से मिडडेमिल की हालत खराब होने के समाचार लगातार हमें मिलते रहते हैं। गुजरात ने जरूर भोजन का शिक्षक द्वारा चखना अनिवार्य किया हुआ है और इस आदेश का अनुपालन भी होता है। जिस तरह कि पूरे उत्तर भारत में इस योजना में अफरातफरी और भ्रष्टाचार व्याप्त है उससे तो यही लगता है कि अच्छा होता कि बच्चों को बिस्कुट वगैरह डिब्बाबंद पौष्टिक खाद्य-पदार्थ दे दिया जाता या फिर घर ले जाने के लिए कच्चा अनाज ही दे दिया जाता। इस बीज बिहार के मुजफ्फरपुर और कई अन्य स्थानों से ऐसे समाचार भी मिल रहे हैं कि कई स्कूलों में आज बच्चों ने मिडडेमिल खाने से ही मना कर दिया है।

सोमवार, 15 जुलाई 2013

खाद्य-सुरक्षा के नाम पर दे दे रे बाबा

मित्रों,दिवाने तो आपने बहुत-से देखे होंगे मैंने भी देखे हैं। मैंने लोगों को लंगोट में फाग खेलते हुए भी देखा है और खूब देखा है मगर अल्लाहकसम मैंने आज तक किसी लंगोटधारी को दानी बनते हुए नहीं देखा है। मगर यहाँ तो बिल्कुल ऐसा ही हो रहा है। जिन लोगों ने देश को देशी-विदेशी पूंजीपतियों के हाथों गिरवी रख दिया है और जनता को लगातार महँगाई की चाबुक से मार-मारकर लहूलुहान कर दिया है वही बेईमान और मक्कार लोग आज खाद्य-सुरक्षा कानून लाकर खुद के दुनिया का सबसे बड़ा दानी होने का स्वांग रच रहे हैं।
             मित्रों,पहले घोटाले कर-करके,कर-करके देश के खजाने को लूट लिया,टैक्स और महँगाई बढ़ाकर जनता को भिखारी बना दिया और अब जब सरकार का खर्च भी नहीं निकल पा रहा है,भीख देने को भी जब पास में पैसे नहीं बचे हैं तो सरकार के दो-दो बड़बोले मंत्री जा पहुँचे हैं अमेरिका कटोरा लेकर लेकिन अमेरिका ठहरा विशुद्ध बनिया सो वो क्यों बिना कुछ लिए नाक पर मक्खी भी बैठने दे?
                मित्रों,अगर इन लुटेरों को जनता के लिए अपने निजी धन में से एक पैसा भी खर्च करना पड़े तो ये कदाचित् वो भी न करेंगे। लेकिन खजाना तो जनता का है खाली रहे या भरा इनके बाप का क्या? इन्होंने तो पिछले 9 सालों में अपने निजी कोष में इतना माल भर लिया है अब इनकी सात पीढ़ियों को हाथ-पाँव हिलाने की जरुरत ही नहीं पड़ेगी। यह देश का दुर्भाग्य है कि बावजूद इसके इन लुटेरों का लूट से मन ही नहीं भर रहा है और ये लोग लगातार तीसरी बार दिल्ली के तख्त पर बैठने की जुगत भिड़ा रहे हैं।
                   मित्रों,वो कहते हैं न कि सत्ता बड़ी बुरी शह है।  सत्ता की लत पड़ जाती है क्योंकि उसमें नशा भी है अफीम और हीरोइन से भी बहुत ज्यादा। हमारे कांग्रेसी नेताओं को यकीन ही नहीं हो रहा है कि वो लोग 2014 में सत्ता से बाहर भी हो सकते हैं। कलम के जादूगर रामवृक्ष बेनीपुरी ने कहा था कि अमीरी की कब्र पर उपजी हुई गरीबी की घास बड़ी जहरीली होती है सो विपक्ष में बैठने की सोंचकर ही सोनिया गांधी एंड फेमिली के हाथ-पाँव में सूजन आने लगी है। सरकारी खजाने में रोज के खर्च के लिए भी पैसा है नहीं और भूतपूर्व त्यागमूर्ति सोनिया अम्मा को पूरे देश के उन गरीबों को जो उनके और उनके परिवार के भ्रष्टाचार की वजह से भी गरीब हैं,भोज देना है। उनको न जाने कैसे यह मतिभ्रम हो गया है कि भारत के लोग भूखे,भिखारी और परले दर्जे के कामचोर हैं। वो काम करना ही नहीं चाहते इसलिए उनको काम नहीं दो बल्कि बिठाकर पैसे दे दो और रोटी दे दो फिर चाहे देश को खा जाओ,बेच दो,गुलाम बना दो वे बेचारे अहसानों तले इस कदर दबे रहेंगे कि किंचित भी बुरा नहीं मानेंगे।
                     मित्रों,आपने भी कहीं-न-कहीं किसी-न-किसी सरकारी दफ्तर में यह लिखा हुआ देखा होगा कि शीघ्रता को भी समय चाहिए लेकिन सोनिया जी ने आजतक नहीं देखा। मान लीजिए कि आपको गंगा नदी पर एक पुल बनाना है तो उसमें कम-से-कम 5-7 साल तो लग ही जाएंगे। पहले जमीन का सर्वेक्षण होगा फिर पाया बनेगा तब ऊपर का काम शुरू होगा। कंक्रीट के जमने में समय तो लगेगा ही। अब अगर आप चाहेंगे कि वही पुल 6 महीने में बन जाए तब तो उस पुल का भगवान ही मालिक है। परन्तु इतनी छोटी-सी बात महाभ्रष्ट-देशबेचवा सोनिया गांधी एंड फेमिली के शातिर दिमाग में घुस ही नहीं पा रही है। वो आमादा हैं कि हम तो इसी साल 20 अगस्त से देश के लोगों को भिक्षा (भोजन) की गारंटी दे देंगे। जबकि इसके लिए पहले सही जरुरतमंदों का पता लगाना चाहिए था,फिर पीडीएस को ठीक-ठाक करना चाहिए था,फिर योजना की मॉनिटरिंग और अन्य प्रकार की व्यवस्थाएँ की जानी चाहिए थी तब जाकर अधिकार देना था वरना कागजी अधिकारों और गारंटियों की तो इस देश में पहले से ही बहुतायत है। वैसे गारंटी देने में इस परिवार का भी कोई जवाब नहीं है,इसने सबसे पहले जनता को सूचना की गारंटी दी हालाँकि अब अपनी ही पार्टी को इसकी मार से बाहर करने के लिए छटपटा रही है,फिर इसने 100 दिन के काम की गारंटी दी,फिर लगे हाथों शिक्षा की गारंटी भी दे दी और अब भीख की गारंटी देने जा रही है। हमारे प्रदेश बिहार की जनता तो सूचना के लिए मारी-मारी फिर रही है पर सूचना मिलती नहीं अलबत्ता कृष्ण-जन्मस्थली की तीर्थयात्रा का पुनीत अवसर जरूर मिल जा रहा है। आपके राज्य की आप जानिए। काम की गारंटी ने मुखियों को करोड़पति होने की गारंटी जरूर दे दी है और मजदूरों को या तो पता ही नहीं है कि उनका नाम मनरेगा में दर्ज है या तो उनको बैठे-बिठाए आधा ही पैसा मिल पा रहा है। शिक्षा के अधिकार का तो कहना ही क्या? इस पर तो अभी तक अमल शुरू हुआ ही नहीं है और शायद कभी होगा भी नहीं और अब आ गया है बिना किसी पूर्व तैयारी के एक और महान अधिकार भिक्षा का अधिकार। वास्तव में यह गरीबों के लिए भोजन की गारंटी नहीं है बल्कि वर्तमान परिस्थितियों में यह पीडीएस के जुड़े मंत्रियों,अधिकारियों,कर्मचारियों व दुकानदारों के करोड़पति होने की गारंटी है। क्या सोनिया एंड फेमिली बताएगी कि भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी जनवितरण प्रणाली के माध्यम से यह कानून कैसे पारदर्शी तरीके से लागू हो पाएगा? क्या वे लोग जल्दीबाजी करके यह नहीं चाहते हैं कि इस योजना का 12 आना से भी ज्यादा बड़ा हिस्सा भ्रष्टाचारियों की जेब में पहुँच जाए?
                              मित्रों, जब देश की बीपीएल जनता को पहले से ही हर महीने सस्ता अनाज दिया जा रहा है तो फिर नाम बदलकर उसी तरह की नई योजना लाने का क्या प्रयोजन? यह तो वही बात हुई कि एक ही बार बनी हुई सड़क का शिलापट्ट बार-बार बदल-बदलकर अलग-अलग नेता बार-बार उद्घाटन करें। विपक्ष तो विपक्ष खुद कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों के हाथ-पाँव भी खजाने की बुरी सेहत को देखते हुए इस योजना के बारे में सोंचकर ही फूले जा रहे हैं। मगर सोनिया गांधी एंड फेमिली को देश और देश के खजाने से क्या लेना-देना? उनको तो बस एक गेम चेंजर प्लान चाहिए जो अकस्मात् जनता की याद्दाश्त को इस कदर धुंधली कर दे कि वे उनकी सरकार में हुए सारे रिकार्डतोड़ महाघोटालों को भुला दें। वे यह भी भूल जाएँ कि कांग्रेस ने अपनी आवारगी से किस तरह उनकी घरेलू पारिवारिक अर्थव्यवस्था के साथ-साथ देश की अर्थव्यवस्था को भी चमकते चांद से टूटा हुआ तारा बना डाला है और एक बार फिर से उसकी झूठ और फरेब की काठ की हाँडी में सत्ता की परम स्वादिष्ट खिचड़ी को वोटों की मीठी आँच देकर पक जाने दें।

शुक्रवार, 12 जुलाई 2013

नीतीश हैं भारी असमंजस में

मित्रों,यह शायद आपको भी पता होगा कि बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बिहारी राजनीति का चाणक्य कहा जाता है। क्यों कहा जाता है कहनेवाले जानें लेकिन फिलहाल तो राजग से अलग होने के बाद श्रीमान् चाणक्य जी की हालत उस मकड़ी वाली हो गई है जो कभी अपने ही बुने जाल में फँस जाती है। विडंबना यह है कि नीतीश कुमार ने भाजपा के सभी हटाए गए मंत्रियों के विभाग गठबंधन टूटने के 26 दिनों के बाद भी अपने ही पास रखे हैं और मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं कर पा रहे हैं। परिणाम यह हुआ है कि बिहार में पूरे शासन-प्रशासन में अव्यवस्था और अराजकता व्याप्त होने लगी है,कामकाज ठप्प पड़ने लगा है।
               मित्रों,कदाचित् नीतीश कुमार को यह भ्रम या घमंड हो गया है कि राज्य में राजनीति सिर्फ उनको ही आती है। उन्होंने सोंचा था कि राजग से अलग होने के बाद देशबेचवा कांग्रेस उनको हाथोंहाथ लेगी और राज्य में वही करेगी जो वे कहेंगे लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा। कांग्रेस ने राजद और लोजपा से दूरी तो नहीं ही बनाई उल्टे झारखंड में राजद की मदद से महाभ्रष्ट हेमंत सोरेन की सरकार भी बनवा दी और नीतीश गुब्बार देखते रह गए। नीतीश भूल गए थे कि कांग्रेस उनसे भी बड़ी,सबसे बड़ी अवसरवादी है और उसको सिर्फ सत्ता से मतलब है धर्मनिरपेक्षता वगैरह तो जनता को फुसलाने और भरमाने के साधनभर हैं।
                     मित्रों,कांग्रेस पर भरोसा करके नीतीश न घर के रह गए हैं और न घाट के। भाजपा जैसा भरोसेमंद,सुख-दुःख में हमेशा साथ निभानेवाला साथी छूटा और नया साथी सौतन को छोड़ नहीं रहा है। ऐसे में बिहार में आगामी चुनावों में त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति अर्थात् भाजपा,कांग्रेस-राजद-लोजपा और जदयू के बीच हो सकती है जो किसी भी तरह नीतीश जी के लिए शुभ नहीं होगा। वैसे भी अब जनता के बीच लगातार बढ़ते सत्ता-विरोधी आक्रोश को भी उनको अकेले ही झेलना होगा। इस समय यह बताना संभव नहीं है कि नीतीश जी के मन में चल क्या रहा है लेकिन इतना तो निश्चित है कि भाजपा के हटने का शासन-प्रशासन पर बहुत-ही बुरा प्रभाव पड़ा है। इसमें कोई शक नहीं कि भाजपा के मंत्री काफी योग्य थे और सुधार भी सिर्फ उन्हीं विभागों में देखने को मिल रहा था जिसके मंत्री भाजपाई थे।
                                                       मित्रों,पिछले 26 दिनों से नीतीश कुमार एक साथ एक दर्जन से अधिक विभागों के मंत्री हैं (क्योंकि भाजपाई मंत्रियों के सारे विभाग अभी उनके पास ही हैं) और मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं कर रहे हैं। साथ ही उन्होंने अभी तक विभिन्न आयोगों और निगमों में काबिज भाजपा नेताओं को भी उनके पदों से नहीं हटाया है जिससे प्रदेश के राजनैतिक हलकों में कई सवाल उठने लगे हैं। क्या वे फिर से राजग में वापसी करने जा रहे हैं या उनको मंत्रिमंडल-विस्तार से पार्टी में विद्रोह का भय सता रहा है? उनको जो भी करना है जल्दी में करें तो अच्छा होगा उनके लिए भी और राज्य के लिए भी क्योंकि देरी करने से शासन-प्रशासन में सन्निपात की स्थिति और भी ज्यादा गहरी होती जाएगी जिसके दुष्परिणाम सीधे-सीधे चुनाव-परिणामों में परिलक्षित होंगे।

बुधवार, 10 जुलाई 2013

सुशासन में आकाशकुसुम हुआ न्याय

 
क्या पुष्पम की आत्मा को मिल पाएगा न्याय?

मित्रों,जब ग्राम+पोस्ट-राहतपुर,थाना-बलिया,जिला-बेगूसराय निवासी बलराम सिंह ने वर्ष 2002 में अपनी फूल से भी ज्यादा नाजुक पुत्री पुष्पम का हाथ ग्राम+पोस्ट-हरखपुरा,थाना-गढ़पुरा,जिला-बेगूसराय निवासी चिरंजीवी मुरारी राय के हाथों में सौंपा था तब उन्होंने यह सपनों में भी नहीं सोंचा था कि एक दिन इन्हीं हाथों से उनकी पुत्री की दो-दो बच्चों की माँ बन जाने के बाद चंद रूपयों की मांग को उनके द्वारा पूरा न कर पाने के कारण हत्या कर दी जाएगी। उन्होंने सोंचा तो यह भी नहीं था कि सुशासन की पुलिस मोटी रिश्वत खाकर उनके बजाए उनकी बेटी के हत्यारों की ही पैरोकार हो जाएगी और उनकी बेटी तो क्या उसकी आत्मा तक को भी न्याय नहीं मिल पाएगा।
               मित्रों,बलराम बाबू ने जो सपने में भी नहीं सोंचा था वही हुआ और हकीकत में हुआ। 10/11 मई,2013 की रात में उनकी बेटी पुष्पम को उसके पति और परिवारवालों ने मिलकर मार डाला और चुपके से उसका दाह-संस्कार भी कर दिया। सूचना मिलते ही उन्होंने हत्या का मुकदमा भी किया (केस नं.-46/2013,थाना-गढ़पुरा,जिला-बेगूसराय),डीएसपी उपेन्द्र प्रसाद के यहाँ वीडियो कैमरे के सामने बिटिया की ससुराल के 7 लोगों से गवाही भी दिलवाई लेकिन हुआ कुछ भी नहीं,यहाँ तक कि हत्यारों को गिरफ्तार भी नहीं किया गया। थक हारकर जब वे डीएसपी श्री प्रसाद के यहाँ गुहार लगाने पहुँचे तो पूरे परिदृश्य को ही उल्टा पाया। डीएसपी ने उनको कार्रवाई का आश्वासन तो नहीं दिया लेकिन समझौते के लिए दबाव खूब डाला। यहाँ तक कि हत्यारों से उनकी अपने मोबाईल पर बात भी करवाई और अपने सामने बिठाकर फोन पर उनको गालियाँ भी सुनवाई। उसी दिन डीएसपी कार्यालय के एक स्टाफ ने कार्रवाई के लिए उनसे मोटी रकम की मांग की। बाद में मुकदमे के अनुसंधान पदाधिकारी ने भी उनसे समझौता कर लेने को कहा और यह भी कहा कि वह उनको इसके बदले अच्छी-खासी रकम दिलवा देगा। साथ ही यह धमकी भी दी कि अगर उन्होंने ऐसा नहीं किया तो वो मामले को आत्महत्या का मामला बना देगा। अब बेचारे बलराम बाबू,सपरिवार चारों तरफ से असहाय हैं। मन में क्षोभ और गुस्से का लावा उबल रहा है। उनका बस चले तो वे पूरे सरकारी तंत्र को ही जलाकर राख कर दें। आज हत्या को पूरे 2 महीने हो चुके हैं और सुशासन बाबू की पुलिस ने (मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद बिहार के गृह मंत्री भी हैं) हत्यारों की गिरफ्तारी तक नहीं की है और शायद कभी करेगी भी नहीं।
                    मित्रों,पुष्पम का मामला तो सिर्फ एक नमूना है बिहार पुलिस की महानता का। सारे मामलों को तो सात समंद की मसि करौं और लेखनी सब बनराई करके भी स्वयं गणेश जी भी नहीं लिख सकते। बिहार के प्रत्येक थाने में चाहे वो घोषित रूप से आदर्श हों या नहीं सत्य और ईमानदारी के प्रतीक गाँधी जी की तस्वीर जरूर टंगी होती है। ऊपर दीवार पर गाँधी की तस्वीर लगी होती है और उसके ही नीचे बैठकर गाँधी का लेन-देन किया जाता है,व्यापार किया है। थानों में एक पंक्ति भी मोटे-मोटे अक्षरों में लिखी होती है कि क्या मैं आपकी सहायता कर सकता हूँ? जबकि वास्तव में लिखा हुआ यह होना चाहिए कि क्या मैं हत्यारों की सहायता कर सकता हूँ? अथवा क्या मैं आपको तंग कर सकता हूँ? अथवा क्या मैं आपको लूट सकता हूँ?
                                  मित्रों,काफी साल पहले मैंने कादम्बिनी पत्रिका में चंबल के मशहूर डाकू मोहर सिंह का साक्षात्कार पढ़ा था जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर गाँव का पटवारी ईमानदार रहे तो पूरे चंबल क्षेत्र में कोई बागी नहीं बनेगा। मैं कहता हूँ कि अगर हमारी पुलिस ईमानदार हो जाए तो पूरे भारत में कोई नक्सली नहीं बने और नहीं रहे और साल लगते-लगते नक्सलवाद सिर्फ इतिहास की किताबों में सिमटकर रह जाए। लेकिन ऐसा होगा क्या? जिस देश और प्रदेश में नेताओं द्वारा अधिकारियों की पोस्टिंग रिश्वत लेकर की जाती हो,तबादलों ने उद्यम का रूप ले लिया हो,जहाँ अच्छे अफसरों को (उदाहरणस्वरूप शिवदीप लांडे,अरविन्द पांडे वगैरह) शौक से शंटिंग करके रखा जाता हो वहाँ ऐसा कदापि नहीं होगा। वहाँ तो बस यही होगा कि इसी तरह पुष्पम जलाई जाती रहेंगी,इसी तरह डीएसपी की सहानुभूति पीड़ितों के बजाए पीड़कों के साथ बनी रहेगी और जीवित या मृत पुष्पमों के लिए न्याय इसी तरह आकाशपुष्प बनी रहेगी।