मित्रों, जबसे रिपब्लिकन डोनाल्ड ट्रंप दुनिया की एकमात्र महाशक्ति अमेरिका के राष्ट्रपति बने हैं उनके भावी कार्यकाल को लेकर पूरी दुनिया में तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। मसलन, ट्रंप की आर्थिक नीति क्या होगी, ट्रंप की विदेश नीति कैसी होगी, ट्रंप का आईएसआईएस,रूस,चीन या पाकिस्तान के प्रति कैसा व्यवहार होगा। परंतु हमारे देश के बुद्धिजीवी जिस बात को लेकर सबसे ज्यादा मगजमारी कर रहे हैं या चिंतित हैं वह बात यह है कि अमेरिका की भारत-नीति क्या होगी,क्यों होगी।
मित्रों, हम सभी जानते हैं कि डोनाल्ड ट्रंप भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनन्य प्रशंसकों में से हैं। हमारे लिए गौरव की बात है कि चुनाव प्रचार के दौरान उनको बार-बार अमेरिकियों से ऐसा वादा करते हुए देखा गया है कि अगर वे अमेरिका के राष्ट्रपति बनते हैं तो वे उसी तरह से अमेरिका को चलाएंगे जिस तरह से नरेंद्र मोदी भारत को चला रहे हैं वरना कुछ साल पहले तक तो स्थिति ऐसी थी कि जब भारत के प्रधानमंत्री अमेरिका की यात्रा पर जाते थे तो अखबार के पहले पृष्ठ पर उनको स्थान तक नहीं मिलता था।
मित्रों, सवाल उठता है कि चुनाव-प्रचार के दौरान मोदी के नाम की माला जपनेवाले ट्रंप की मोदी से कैसी निभेगी? सवाल इसलिए क्योंकि ऐसा देखा जाता है कि दोस्ती अपनी जगह होती है और देशहित अपनी जगह। बात जब अमेरिका की हो तो यह प्रश्न और भी समीचीन हो जाता है क्योंकि अमेरिका के उत्कर्ष के बाद से ही देखा जाता है कि अमेरिका में सरकार चाहे रिपब्लिकनों की हो या डेमोक्रेटों की उनके लिए नेशन फर्स्ट होता है और लास्ट भी। बांकी दुनिया भाड़ में जाती है तो जाए।
मित्रों, इसलिए हमें ऐसी आशा नहीं करनी चाहिए कि मोदी के भक्त डोनाल्ड ट्रंप उनके अंधभक्त साबित होंगे बल्कि जहाँ-जहाँ भी और जब-जब भी भारत और अमेरिका के हितों में टकराव होगा ट्रंप भारत के प्रति भी उतने ही निष्ठुर साबित होंगे जितना कि अब तक के अन्य अमेरिकी राष्ट्रपति साबित होते रहे हैं। जहाँ तक अवैध अप्रवासियों का सवाल है तो हम समझते हैं कि यह अमेरिका का आंतरिक मामला है ठीक वैसे ही जैसे हमारे लिए बांग्लादेशी घुसपैठियों का मामला। तथापि ऐसा कदापि नहीं होने वाला कि ट्रंप भारत के भले की चिंता उस हद तक करेंगे जिस हद तक स्वयं हमारे पीएम नरेंद्र मोदी करते हैं।
मित्रों, जाहिर-सी बात है कि श्रीमान् राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत के लिए कोई ट्रंप कार्ड सिद्ध नहीं होने जा रहे अपितु अमेरिका की भारत-नीति कमोबेश तब भी वही होती जब हिलेरी क्लिंटन अमेरिका की पहली महिला राष्ट्रपति होतीं। हो सकता है कि ट्रंप की आईएसआईएस, पाकिस्तान, चीन या इस्लाम संबंधी नीति से भारत को अपेक्षाकृत कुछ ज्यादा लाभ हो जाए लेकिन वह सहउप्ताद या बाई प्रोडक्ट या आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के शब्दों में कहें तो सिर्फ और सिर्फ घलुआ होगा।
मित्रों, हम सभी जानते हैं कि डोनाल्ड ट्रंप भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनन्य प्रशंसकों में से हैं। हमारे लिए गौरव की बात है कि चुनाव प्रचार के दौरान उनको बार-बार अमेरिकियों से ऐसा वादा करते हुए देखा गया है कि अगर वे अमेरिका के राष्ट्रपति बनते हैं तो वे उसी तरह से अमेरिका को चलाएंगे जिस तरह से नरेंद्र मोदी भारत को चला रहे हैं वरना कुछ साल पहले तक तो स्थिति ऐसी थी कि जब भारत के प्रधानमंत्री अमेरिका की यात्रा पर जाते थे तो अखबार के पहले पृष्ठ पर उनको स्थान तक नहीं मिलता था।
मित्रों, सवाल उठता है कि चुनाव-प्रचार के दौरान मोदी के नाम की माला जपनेवाले ट्रंप की मोदी से कैसी निभेगी? सवाल इसलिए क्योंकि ऐसा देखा जाता है कि दोस्ती अपनी जगह होती है और देशहित अपनी जगह। बात जब अमेरिका की हो तो यह प्रश्न और भी समीचीन हो जाता है क्योंकि अमेरिका के उत्कर्ष के बाद से ही देखा जाता है कि अमेरिका में सरकार चाहे रिपब्लिकनों की हो या डेमोक्रेटों की उनके लिए नेशन फर्स्ट होता है और लास्ट भी। बांकी दुनिया भाड़ में जाती है तो जाए।
मित्रों, इसलिए हमें ऐसी आशा नहीं करनी चाहिए कि मोदी के भक्त डोनाल्ड ट्रंप उनके अंधभक्त साबित होंगे बल्कि जहाँ-जहाँ भी और जब-जब भी भारत और अमेरिका के हितों में टकराव होगा ट्रंप भारत के प्रति भी उतने ही निष्ठुर साबित होंगे जितना कि अब तक के अन्य अमेरिकी राष्ट्रपति साबित होते रहे हैं। जहाँ तक अवैध अप्रवासियों का सवाल है तो हम समझते हैं कि यह अमेरिका का आंतरिक मामला है ठीक वैसे ही जैसे हमारे लिए बांग्लादेशी घुसपैठियों का मामला। तथापि ऐसा कदापि नहीं होने वाला कि ट्रंप भारत के भले की चिंता उस हद तक करेंगे जिस हद तक स्वयं हमारे पीएम नरेंद्र मोदी करते हैं।
मित्रों, जाहिर-सी बात है कि श्रीमान् राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत के लिए कोई ट्रंप कार्ड सिद्ध नहीं होने जा रहे अपितु अमेरिका की भारत-नीति कमोबेश तब भी वही होती जब हिलेरी क्लिंटन अमेरिका की पहली महिला राष्ट्रपति होतीं। हो सकता है कि ट्रंप की आईएसआईएस, पाकिस्तान, चीन या इस्लाम संबंधी नीति से भारत को अपेक्षाकृत कुछ ज्यादा लाभ हो जाए लेकिन वह सहउप्ताद या बाई प्रोडक्ट या आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के शब्दों में कहें तो सिर्फ और सिर्फ घलुआ होगा।
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