मित्रों, केंद्रीय सांख्यिकी मंत्रालय ने सोमवार को जीडीपी के आंकड़े जारी कर दिए हैं जिसमें यह नकारात्मक रूप से 23.9 फ़ीसदी रही है. भारतीय अर्थव्यवस्था में इसे 1996 के बाद ऐतिहासिक गिरावट माना गया है और इसका प्रमुख कारण कोरोना वायरस और उसके कारण लगाए गए देशव्यापी लॉकडाउन को बताया जा रहा है. निश्चित रूप से यह भारत के लिए बड़ा झटका है और इससे 2025 तक अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन (खरब) डॉलर की इकोनॉमी बनाने का सपना अब पूरा होता नहीं दिख रहा है. जीडीपी पिछले चार दशकों में पहली बार इतनी गिरी है और बेरोज़गारी अब तक के चरम पर है. विकास के बड़े इंजन, खपत, निजी निवेश या निर्यात ठप्प पड़े हैं. ऊपर से यह है कि सरकार के पास मंदी से बाहर निकलने और ख़र्च करने की क्षमता नहीं है. यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि
भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में सबसे बुरी तरह बिगड़ी है. अमरीका की अर्थव्यवस्था में जहां इसी तिमाही में 9.5 फ़ीसदी की गिरावट है, वहीं जापान की अर्थव्यवस्था में 7.6 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज की गई है.
मित्रों, अर्थव्यवस्था के आंकड़ों के मामले में भारत की तस्वीर कुछ अलग है क्योंकि यहां अधिकतर लोग ‘अनियमित’ रोज़गार में लगे हैं जिसमें काम के लिए कोई लिखित क़रार नहीं होता और अकसर ये लोग सरकार के दायरे से बाहर होते हैं, इनमें रिक्शावाले, टेलर, दिहाड़ी मज़दूर और किसान शामिल हैं. अर्थशास्त्री मानते हैं कि आधिकारिक आंकड़ों में अर्थव्यवस्था के इस हिस्से को नज़रअंदाज़ करना होता है जबकि पूरा नुक़सान तो और भी अधिक हो सकता है. 130 करोड़ की जनसंख्या वाले देश की अर्थव्यवस्था कुछ ही सालों पहले 8 फ़ीसदी की विकास दर से बढ़ रही थी जो दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक थी. लेकिन कोरोना वायरस महामारी से पहले ही इसमें गिरावट शुरू हुई. उदाहरण के लिए पिछले साल अगस्त में कार बिक्री में 32 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज की गई जो दो दशकों में सबसे अधिक थी. सोमवार को आए आंकड़ों में उपभोक्ता ख़र्च, निजी निवेश और आयात बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. व्यापार, होटल और ट्रांसपोर्ट जैसे क्षेत्र में 47 फ़ीसदी की गिरावट आई है. एक समय भारत का सबसे मज़बूत रहा निर्माण उद्योग 39 फ़ीसदी तक सिकुड़ गया है. सिर्फ़ कृषि क्षेत्र से ही अच्छी ख़बर आई है जो मानसून की अच्छी बारिश के कारण 3 फ़ीसदी से 3.4 फ़ीसदी के दर से विकसित हुआ है. 2019 में भारत की जीडीपी 2900 करोड़ की थी जो अमरीका, चीन, जापान और जर्मनी के बाद दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी. हालांकि, कई अर्थशास्त्रियों का मानना है कि भारत की अर्थव्यवस्था 10 फ़ीसदी छोटी हो जाएगी. भारत की अर्थव्यवस्था कोरोना वायरस की मार से पहले ही कमज़ोर हालत में थी लेकिन दुनिया के सबसे बड़े लॉकडाउन में मैन्युफ़ैक्चरिंग और कंस्ट्रक्शन जैसे उद्योगों पर बड़ा असर डाला और व्यावसायिक गतिविधियां तकरीबन ठप्प पड़ गईं. आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने इंटरव्यू के दौरान बेहद विश्वास से कहा था कि आरबीआई कमज़ोर आर्थिक स्थिरता या बैंकिंग प्रणाली को महामारी के झटके से बचा सकता है, इसमें अगले स्तर का आर्थिक प्रोत्साहन दिए जाने का अनुमान लगाया गया है.
मित्रों, कई लोग अर्थव्यवस्था की बुरी हालत के लिए सीधे तौर पर भारत सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं जबकि वास्तविकता कुछ और ही है. मोटे तौर पर भारतीय अर्थव्यवस्था में गिरावट के दो कारण हैं। पहला कोरोना और दूसरा चीन के साथ चल रहा तनाव। हम सभी जानते हैं कि जब कोरोना महामारी का वैश्विक विस्फोट हुआ तब भारत ने अर्थव्यवस्था पर जनता की प्राणरक्षा को तरजीह दी। देहात में कहावत है जिंदा रहेंगे तो बकरी चराकर भी रह लेंगे। भारत में स्वास्थ्य सुविधाओं की जो स्थिति है उसमें पूर्ण लॉकडाऊन के सिवा सरकार के पास और कोई विकल्प भी नहीं था। जब कोरोना महामारी नियंत्रण में होगी और सबकुछ खुल जाएगा तो जीडीपी खुद ही दौड़ने लगेगी। दूसरी तरफ चीन पर हमारी अर्थव्यवस्था की निर्भरता के चलते भी जीडीपी पर बुरा असर पड़ा है। चीन हमारी इसी मजबूरी का फायदा उठाकर लद्दाख पर कब्जा करना चाहता है। जो चींजे या कच्चा माल भारत में पहले बनता था अब सस्ता होने के कारण चीन से आ रहा है। भारत को इस पर रोक लगानी होगी भले ही इससे तात्कालिक नुकसान हो। भारत सरकार ऐसा ही कर रही है इसलिए भी हमारी अर्थव्यवस्था दबाव में है। लेकिन यह दबाव या गिरावट तात्कालिक है क्योंकि जब सारी आर्थिक गतिविधियां ही रूक जाएगी तो अर्थव्यवस्था तो गिरेगी ही। फिर जब सबकुछ खुल जाएगा तो जीडीपी भी उडान भरने लगेगी. बस अगली तिमाही का इंतजार करिए.
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