रविवार, 2 अगस्त 2020

५ अगस्त को समाप्त होगा मेरे राम का वनवास


मित्रों, यह बड़े ही हर्ष का विषय है कि ५ अगस्त से अयोध्या में मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम के मंदिर का निर्माण शुरू होनेवाला है. हर्ष का विषय यह भी है कि मंदिर का शिलान्यास स्वयं भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी करने जा रहे हैं. यह हमारा दुर्भाग्य रहा कि जिस स्थान पर भगवान राम ने जन्म लिया उस स्थान पर ५०० सालों तक एक मस्जिद खड़ी रही और हम कुछ भी नहीं कर पाए. बार-बार हिन्दुओं और सिखों ने उसपर कब्ज़ा करने के प्रयास किए, शहीद हुए लेकिन सफल नहीं हो पाए.

मित्रों, बाबर के सेनापति मीर बांकी द्वारा राम मंदिर तोड़कर मस्जिद बना देना हिन्दू धर्म के पराभव का भी प्रतीक है. आत्मघाती जातिप्रथा के कारण सदियों तक हिन्दुओं की तरफ से सिर्फ राजपूत लड़ते, मरते और हारते रहे. जातिप्रथा और हमारी आपसी फूट के ही चलते पहले मुट्ठीभर अरबी-तुर्क-मंगोल-पठान और फिर बाद में कुछेक हजार अंग्रेजों ने विशालकाय भारतीय उपमहाद्वीप पर कब्ज़ा कर लिया और हिन्दुओं को सदियों तक उनकी गुलामी करनी पड़ी.

मित्रों, १९४७ में आजादी मिलने के बाद भी देश का दुर्भाग्य रहा कि देश की सत्ता ऐसे लोगों के हाथों में रही जिनका न तो हिन्दू धर्म में विश्वास था और न ही जिनकी राम में किंचित आस्था थी. वे लोग ऐसे लोग थे जिन्होंने सिर्फ हिन्दुओं को बेवकूफ बनाने के लिए अपने नाम के आगे पंडित लगा रखा था. यहाँ तक कि सोनिया-मनमोहन की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में लिखकर दे दिया कि राम तो कभी हुए ही नहीं, पूरी रामकथा ही काल्पनिक है.

मित्रों, जो राम भारत के जन-जन में, कण-कण में समाए हुए हैं. जो राम प्रत्येक हिन्दू के लिए उदाहरण हैं कि एक पुत्र को कैसा आचरण करना चाहिए, एक पति को किस तरह अपनी पत्नी की रक्षा करनी चाहिए, एक मित्र को किस तरह मित्र का ख्याल रखना चाहिए, एक शिष्य को किस प्रकार गुरु की सेवा करनी चाहिए और गुरु आज्ञा का पालन करना चाहिए, एक राजा को किस तरह अपनी प्रजा के सुख-दुःख में ही अपना सुख-दुःख मानना चाहिए और एक सेनापति को कैसे अपनी सेना के छोटे-से-छोटे सैनिक की चिंता करनी चाहिए उस राम को काल्पनिक बता दिया!  फिर ऐसे लोग कैसे राम मंदिर निर्माण का समर्थन कर सकते थे?

मित्रों, इसमें कोई संदेह नहीं कि अगर हिन्दू एक नहीं होते तो अभी भी राम मंदिर का निर्माण नहीं हो पाता. खैर राम मंदिर से जुडी सारी बाधाएँ अब दूर हो चुकी हैं और ५ अगस्त से राम के भव्य मंदिर का निर्माण आरम्भ हो जाएगा. मंदिर निर्माण को लेकर दुनियाभर के हिन्दुओं के मन में जो उत्साह है वह वर्णनातीत है. तथापि मैं सोंचता हूँ कि अगर हिन्दू अपने मन-मंदिर में भी राम को स्थापित कर ले और राम के आदर्शों पर अमल करे तो यह भारत-भूमि निश्चित रूप से स्वर्गादपि गरीयसी हो जाए. हिन्दू समाज में व्याप्त हो रही अव्यवस्था और वासनासक्तता का अगर कोई ईलाज है तो वह राम हैं और केवल राम हैं.

मित्रों, कुछ लोगों के मन में मेरे राम को लेकर कुछ सवाल भी हैं. दरअसल गुप्त काल में हमारे सारे धर्मग्रंथों में कुछे लफंगों ने अपने मनमुताबिक प्रसंग और श्लोक डाल दिए. मैं वाल्मीकि रामायण में शम्बूक-वध  और सीता-निर्वासन को जोड़कर राम की छवि को मलिन करने के ऐसे सारे प्रयासों का विरोध करता हूँ. आश्चर्य है कि जो राम वाल्मीकि जो जन्मना मुसहर थे, के चरण-स्पर्श करते हैं और आशीर्वाद लेते हैं, निषादराज गुह को गले लगाते हैं और भीलनी शबरी की जूठन खाते हैं वे एक ऋषि की सिर्फ इसलिए कैसे हत्या कर सकते हैं कि वो वेदपाठ कर रहा होता है? जो राम जिस पत्नी के लिए दुनिया के सबसे शक्तिशाली राजा से भयंकर युद्ध करते हैं वही राम अपनी उसी पत्नी का परित्याग भला कैसे कर सकते हैं? जिसने भी वाल्मीकि रामायण में यह प्रक्षिप्त जोड़ा है उसने गर्हित कर्म किया है और उसके इस कुकर्म की जितनी भी निंदा की जाए कम है.

मित्रों, इसलिए मैं बार-बार कहता हूँ कि मेरा राम वो राम है जो तुलसीकृत रामचरितमानस में वर्णित है. मेरा राम निरा अहिंसावादी नहीं है बल्कि सिंहासन पर बैठते ही धरती को निशिचरहीन करने की प्रतिज्ञा धारण करनेवाला राम है. मेरा राम निषाद गुह का बालसखा है. प्रेम की प्रतिमूर्ति है. मेरे राम में कोई अवगुण नहीं है. मेरा राम तीनों लोकों का स्वामी होते हुए भी विनम्रता की साक्षात् प्रतिमूर्ति है,अभिमान तो उसको छू तक नहीं गया है. मेरे राम जितना उदार और उदात्त कोई दूसरा हो ही नहीं सकता. वह अहैतुकी कृपा करता है. मेरे राम का न तो अपना कोई सुख है और न ही अपना कोई दुःख है मेरे राम के लिए उनकी प्रजा का सुख ही सुख है और प्रजा का दुःख ही दुःख. मेरे ऐसे राम का भव्य मंदिर बन रहा है. निश्चित रूप से इससे ५०० वर्षों से हताश-निराश हिन्दू मन में असीम उत्साह का संचार होगा लेकिन जैसा कि मैं इस आलेख में एक बार पहले भी कह चुका हूँ कि कितना अच्छा होता कि सारे हिन्दू राम की अच्छाइयों को भी अपना लेते, अपने जीवन में उतार लेते. फिर पूरा हिन्दू-समाज सच्चे अर्थों में राममय हो जाता. खैर! फिलहाल तो जय श्रीराम के नारे लगाने का समय है. मेरे राम की घर वापसी जो हो रही है. मेरे राम का ५०० साल पुराना वनवास समाप्त हो रहा है. तो बंधुओं आईये हम सारे हिन्दू जाति-पाति, ऊंच-नीच, भेदभाव को सरयू की उफनती धारा में प्रवाहित करते हुए नारा लगायें-जय श्रीराम, जिससे पूरी धरती प्रकम्पित हो उठे, पूरा ब्रह्माण्ड डोलायमान हो जाए.

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