गुरुवार, 12 दिसंबर 2019

आरक्षण सही तो CAB गलत कैसे?

मित्रों, मेरा हमेशा से ऐसा मानना रहा है कि किसी भी सरकार के किसी भी कदम का विरोध औचित्यपूर्ण और तार्किक होना चाहिए. सिर्फ विरोध के लिए विरोध करना न केवल मूर्खतापूर्ण हो सकता है बल्कि कई बार सारी सीमाओं को पार कर सीमापार बैठे हमारे दुश्मनों को लाभ पहुँचानेवाला भी साबित होता है.
मित्रों, अगर हम CAB अर्थात CITIZENSHIP AMENDMENT BILL यानि नागरिकता संशोधन विधेयक को ही लें तो इसका विरोध करना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं लगता. बल्कि इसका स्वागत होना चाहिए. यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि इस्लाम दुनिया का सबसे असहिष्णु मजहब है अपितु अगर हम ऐसा कहें कि यह आतंकवादियों का मजहब बनकर ज्यादा प्रसिद्धि पा रहा है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. मैं यहाँ धर्म शब्द का प्रयोग इसलिए नहीं कर रहा है क्योंकि तब दुनिया में अधर्म कुछ भी नहीं रह जाएगा. धर्म शब्द एक बहुत पवित्र शब्द है और इसकी अपनी गरिमा है.
मित्रों, यह भी ऐतिहासिक तथ्य है कि १९४६ के १६ अगस्त को प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस के माध्यम से दंगों की शुरुआत मुसलमानों ने की थी. बाद में भी पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों का जीना दुश्वार कर दिया गया जिसके चलते उनकी आबादी विलुप्त होने के कगार पर पहुँच गई. दूसरी तरफ भारत में स्थितियां इसके उलट रही. कांग्रेस और अन्य छद्मधर्मनिरपेक्षतावादी दलों ने हिन्दू विवाह अधिनियम और अन्य समान कानूनों के माध्यम से हिंदुस्तान में हिन्दुओं को ही दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया. हालात कुछ ऐसे बने कि हिंदुस्तान में हिन्दू होना जैसे अपराध हो गया और निर्भया के साथ जानलेवा बलात्कार करनेवाले मुसलमान को सरकारें ईनाम देने लगी. पूरी दुनिया में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जिसमें पिछले ७५ सालों में अल्पसंख्यकों की आबादी बढ़ी है और बहुसंख्यकों की घटी है.
मित्रों, ऐसे माहौल में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से भारत आनेवाले हिन्दुओं और अन्य धर्मों के शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देता भी तो कौन देता? इनमें से कुछ तो पिछले ३० सालों से दिल्ली से जयपुर तक दफ्तरों के चक्कर लगा रहे हैं. निश्चित रूप से CAB ऐसे दबे-कुचले सताए गए लोगों की जिंदगी में बहार बनकर आया है. सवाल यह भी है कि हिन्दू अपना धर्म बचाने के लिए भारत नहीं आएँगे तो जाएंगे कहाँ? क्या उनको भारत के १ अरब से भी ज्यादा हिन्दू उनके हाल पर छोड़कर तमाशा देखते रहेंगे? क्या ऐसा करना उचित होगा? मैं समझता हूँ कि ऐसा करना न तो १९४७ या १९७१ में उचित था और न अब उचित है.
मित्रों, जहाँ तक इस अधिनियम से मुसलमानों को बाहर रखने का प्रश्न है तो निस्संदेह उनकी स्थिति हिन्दुओं और अन्य शरणार्थियों से अलग है. वे पीड़ित नहीं है और न ही धर्म के आधार पर सताए गए हैं बल्कि वे भारत आए हैं और आते हैं रोजगार की अच्छी संभावनाओं के कारण. जबकि भारत खुद ही दुनिया के सबसे गरीब और बेरोजगार देशों में से एक है, भारत सरकार का यह कर्त्तव्य बनता है कि वो पहले अपने नागरिकों का ख्याल रखे. अगर मुसलमानों ने १९४७ में देश का बंटवारा नहीं करवाया होता तब स्थितियां निश्चित रूप से अलग होती लेकिन जो घटित हो चुका है उसे बदला तो नहीं जा सकता. इसलिए अच्छा होगा कि पाकिस्तान और बांग्लादेश के मुसलमान अपने देश में ही अपना भविष्य तलाशें.
मित्रों, कुछ लोग इस अधिनियम को भारतीय संविधान में प्रदत्त समानता के अधिकार का उल्लंघन मानते हैं. लेकिन ऐसा बताते हुए वे यह भूल जाते हैं कि पूरी दुनिया में सिर्फ भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहाँ कदम-कदम पर जाति आधारित आरक्षण है. अगर हम समानता केअधिकार की दृष्टि से देखें तो आरक्षण भी इसका सरासर उल्लंघन है लेकिन वह लागू है और लगातार उसकी मात्रा भी बढती जा रही है. कहने का तात्पर्य यह है कि भारत के संविधान में प्रदत्त समानता के अधिकार में ही ऐसा प्रावधान किया गया है कि औचित्यपूर्ण आधार पर इस अधिकार का उल्लंघन किया जा सकता है. दूसरी बात यह कि CAB का उन मुसलमानों से कुछ भी लेना -देना नहीं है जो १९४७ में देश के बंटवारे के समय पाकिस्तान या बांग्लादेश नहीं गए अथवा १९ जुलाई १९४८ से पहले पाकिस्तान से भारत आ गए थे.
मित्रों, दूसरी तरफ बेवजह इस कानून को लेकर पूर्वोत्तर में उबाल आया हुआ है जबकि यह कानून पूर्वोत्तर में लागू ही नहीं होने जा रहा. ये कौन लोग हैं जो पूर्वोत्तर के लोगों को उकसा कर अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं? ठीक ऐसी ही स्थिति तब हुई थी जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एससी-एसटी एक्ट के तहत केस प्रारंभिक जांच के बाद ही दर्ज हो. तब इन जातियों के लोगों में यह अफवाह फैला दी गयी थी कि सरकार आरक्षण समाप्त करना चाहती है. आज जो लोग असम में आग लगा रहे हैं उनको यह अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि देश उनकी गतिविधियों पर बारीकी से नजर रखे हुए हैं और आज नहीं तो कल उनको इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा.

4 टिप्‍पणियां:

Anita Laguri "Anu" ने कहा…

जी नमस्ते,

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (13 -12-2019 ) को " प्याज बिना स्वाद कहां रे ! "(चर्चा अंक-3548) पर भी होगी

चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का

महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।

आप भी सादर आमंत्रित है 
….
अनीता लागुरी"अनु"

Alaknanda Singh ने कहा…

ब्रजक‍िशोर जी बहुत खूब ल‍िखा है ... नागर‍िकता संशोधन व‍िधेयक के बारे में

Alaknanda Singh ने कहा…

ब्रजक‍िशोर जी बहुत खूब ल‍िखा है ... नागर‍िकता संशोधन व‍िधेयक के बारे में

Alaknanda Singh ने कहा…

ब्रजक‍िशोर जी बहुत खूब ल‍िखा है ... नागर‍िकता संशोधन व‍िधेयक के बारे में