मित्रों, अडोल्फ हिटलर का जन्म आस्ट्रिया के वॉन नामक स्थान पर 20 अप्रैल 1889 को हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा लिंज नामक स्थान पर हुई। पिता की मृत्यु के पश्चात् 17 वर्ष की अवस्था में वे वियना चले गए। कला विद्यालय में प्रविष्ट होने में असफल होकर वे पोस्टकार्डों पर चित्र बनाकर अपना निर्वाह करने लगे। इसी समय से वे साम्यवादियों और यहूदियों से घृणा करने लगे। जब प्रथम विश्वयुद्ध प्रारंभ हुआ तो वे सेना में भर्ती हो गए और फ्रांस में कई लड़ाइयों में उन्होंने भाग लिया। 1918 ई. में युद्ध में घायल होने के कारण वे अस्पताल में रहे। जर्मनी की पराजय का उनको बहुत दु:ख हुआ। 1918 ई. में उन्होंने नाजी दल की स्थापना की। इसका उद्देश्य साम्यवादियों और यहूदियों से सब अधिकार छीनना था। इसके सदस्यों में देशप्रेम कूट-कूटकर भरा था। इस दल ने यहूदियों को प्रथम विश्वयुद्ध की हार के लिए दोषी ठहराया। आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण जब नाजी दल के नेता हिटलर ने अपने ओजस्वी भाषणों में उसे ठीक करने का आश्वासन दिया तो अनेक जर्मन इस दल के सदस्य हो गए। हिटलर ने भूमिसुधार करने, वर्साय संधि को समाप्त करने और एक विशाल जर्मन साम्राज्य की स्थापना का लक्ष्य जनता के सामने रखा जिससे जर्मन लोग सुख से रह सकें। इस प्रकार १९२२ ई. में हिटलर एक प्रभावशाली व्यक्ति हो गए। उन्होंने स्वास्तिक को अपने दल का चिह्र बनाया जो कि हिन्दुओं का शुभ चिह्र है. समाचारपत्रों के द्वारा हिटलर ने अपने दल के सिद्धांतों का प्रचार जनता में किया। भूरे रंग की पोशाक पहने सैनिकों की टुकड़ी तैयार की गई। 1923 ई. में हिटलर ने जर्मन सरकार को उखाड़ फेंकने का प्रयत्न किया। इसमें वे असफल रहे और जेलखाने में डाल दिए गए। वहीं उन्होंने मीन कैम्फ ("मेरा संघर्ष") नामक अपनी आत्मकथा लिखी। इसमें नाजी दल के सिद्धांतों का विवेचन किया। उन्होंने लिखा कि आर्य जाति सभी जातियों से श्रेष्ठ है और जर्मन आर्य हैं। उन्हें विश्व का नेतृत्व करना चाहिए। यहूदी सदा से संस्कृति में रोड़ा अटकाते आए हैं। जर्मन लोगों को साम्राज्यविस्तार का पूर्ण अधिकार है। फ्रांस और रूस से लड़कर उन्हें जीवित रहने के लिए भूमि प्राप्ति करनी चाहिए। १९३०-३२ में जर्मनी में बेरोज़गारी बहुत बढ़ गई। संसद में नाजी दल के सदस्यों की संख्या २३० हो गई। १९३२ के चुनाव में हिटलर को राष्ट्रपति के चुनाव में सफलता नहीं मिली। जर्मनी की आर्थिक दशा बिगड़ती गई और विजयी देशों ने उसे सैनिक शक्ति बढ़ाने की अनुमति दी। १९३३ में हिटलर चांसलर बना और चांसलर बनते ही हिटलर ने जर्मन संसद को भंग कर दिया, साम्यवादी दल को गैरकानूनी घोषित कर दिया और राष्ट्र को स्वावलंबी बनाने के लिए ललकारा। हिटलर ने डॉ॰ जोज़ेफ गोयबल्स को अपना प्रचारमंत्री नियुक्त किया। नाज़ी दल के विरोधी व्यक्तियों को जेलखानों में डाल दिया गया। कार्यकारिणी और कानून बनाने की सारी शक्तियाँ हिटलर ने अपने हाथों में ले ली। १९३४ में उन्होंने अपने को सर्वोच्च न्यायाधीश घोषित कर दिया। उसी वर्ष हिंडनबर्ग की मृत्यु के पश्चात् वे राष्ट्रपति भी बन बैठे। नाजी दल का आतंक जनजीवन के प्रत्येक क्षेत्र में छा गया। १९३३ से १९३८ तक लाखों यहूदियों की हत्या कर दी गई। नवयुवकों में राष्ट्रपति के आदेशों का पूर्ण रूप से पालन करने की भावना भर दी गई और जर्मन जाति का भाग्य सुधारने के लिए सारी शक्ति हिटलर ने अपने हाथ में ले ली। हिटलर ने १९३३ में राष्ट्रसंघ को छोड़ दिया और भावी युद्ध को ध्यान में रखकर जर्मनी की सैन्य शक्ति बढ़ाना प्रारंभ कर दिया। प्राय: सारी जर्मन जाति को सैनिक प्रशिक्षण दिया गया।
मित्रों, आप सोंच रहे होंगे कि मुझे हो क्या गया है? शीर्षक में तो हिटलर नहीं था फिर आलेख की शुरुआत हिटलर के जिक्र से क्यों. दरअसल कभी-कभी वर्तमान की जड़ें काफी गहरे तक भूतकाल तक गई हुई होती हैं इसलिए इतिहास के आईने में झांकना जरूरी हो जाता है. मैं नहीं जानता कि आपको याद है या नहीं लेकिन मुझे अच्छी तरह से याद है कि जब मोदी जी २०१४ में प्रधानमंत्री बने थे तब उनका व्यवहार कैसा था. उन्होंने खुद को प्रधानमंत्री की जगह प्रधानसेवक और चौकीदार बताया था. जब वे पहली बार संसद पहुंचे तो संसद को मंदिर का दर्जा देते हुए उसकी सीढियों पर मत्था टेका था. भाजपा के नवनिर्वाचित सांसदों की बैठक में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के चरण छुए थे और गले लगकर रोने लगे थे. लगा जैसे भारत की सत्ता एक संत के हाथों में आ गयी है. लेकिन धीरे-धीरे मोदी ने हिटलर की तरह वन मैन शो की तरफ बढ़ना शुरू किया. उम्र सीमा का बहाना बनाकर किसी भी बुजुर्ग को मंत्री नहीं बनाया. हर महीने के आखिरी रविवार को खुद ही देश के साथ सीधा संवाद करना शुरू कर दिया मानों उन्हें मीडिया की जरुरत ही नहीं. इसके साथ-साथ मीडिया पर अपना विरोधी होने का जमकर प्रचार भी किया. जब-जब चुनाव आया पाकिस्तान पर हमला करके देश में सैन्य राष्ट्रवाद की लहर पैदा कर दी. सारे आर्थिक-सामाजिक आंकड़ों को दबाने का प्रयास किया जिससे जनता को वास्तविकता का पता न चले. २०१९ के चुनाव में सारे बुजुर्गों के टिकट काट दिए गए. २०१९ के चुनावों के समय अपना टीवी चैनल नमो टीवी संचालित किया. जबसे प्रधानमंत्री बने कोई प्रेस वार्ता आयोजित नहीं की क्योंकि उनको बोलना और आदेश देना अच्छा लगता है सुनना और सवालों का उत्तर देना पसंद नहीं है. जब भी विदेश यात्रा पर गए अकेले हवाई जहाज में चढ़ते और उतरते हुए दिखे जैसे कि हवाई जहाज में वे अकेले थे और हवाई जहाज को स्वयं ही उड़ा रहे थे और जैसे कि भारत की विदेश नीति का सञ्चालन वे अकेले ही करते हैं. जब भी कोई मंत्री अच्छा काम करता हुआ दिखा या तो उसके पर क़तर दिए गए या फिर बाहर कर दिया गया. सर्वोच्च न्यायालय को अपने पक्ष में करने का भरसक प्रयास किया गया. राष्ट्रपति एक ऐसे व्यक्ति को बनाया जो कभी उनकी बात को टाल नहीं सके. सारे राज्यपाल आज मोदी के आदेशपाल बनकर रह गए हैं. देश में मोदी विरोध को देशद्रोह का पर्याय बना दिया गया मानों मोदी ही भारत हैं. एक ऐसी महिला को वित्त मंत्री बनाया जिसे इस विषय का कोई ज्ञान ही नहीं है. इस प्रकार देश की उडान भर रही अर्थव्यवस्था आज क्रैश लैंडिंग की स्थिति में पहुँच गयी है. पूरे मंत्रीमंडल में लगता है जैसे कोई मंत्री है ही नहीं सिर्फ मोदी हैं. सारे सरकारी निगमों, विश्वविद्यालयों को अपने भजनकर्ताओं से भर दिया. सारे पेट्रोलपम्पों और सार्वजनिक स्थानों पर सिर्फ अपनी तस्वीर लगवाई मानों एक अकेला व्यक्ति पूरे देश को चला रहा है और बांकी के लोग झक मार रहे हैं. हिन्दुओं के मन में श्रेष्ठता-भाव को उग्रता की हद तक ले जाने की कोशिश की गयी. देश में मुस्लिम-विरोधी माहौल उत्पन्न करने का यथासंभव प्रयास किया. यहाँ तक कि गाँधी-नेहरू का भी जमकर चरित्र-हनन किया गया. विपरीत और मध्यमार्गी विचारधाराओं के खिलाफ जमकर प्रचार किया गया. बार-बार देश में पहली बार वाक्य का प्रयोग किया गया जैसे २०१४ से पहले भारत था ही नहीं. अपनी और अपनी सरकार की सारी विफलताओं के लिए पिछली सरकार और पंडित नेहरु को दोषी ठहराया गया मानों इनको जनता ने बस इसी काम के लिए चुना था. मीडिया को अपने गुणगान करने के लिए येन-केन-प्रकारेन प्रभावित किया गया भले ही सरकार के कदम कितने ही मूर्खतापूर्ण क्यों न हों जैसे कि देश का अति तीव्र गति से निजीकरण, जीएसटी और पागलपन भरा नोटबंदी. अपने गठबंधन के सहयोगियों को समान मानने के बदले पिछलग्गू बनाकर रखने का प्रयास किया गया. वरिष्ठ नेता राजनाथ सिंह को गृह मंत्री से हटाकर अपने चहेते अमित शाह को गृह मंत्री बनाया. आज आकाशवाणी समाचार में सिर्फ नरेन्द्र मोदी के नाम के साथ भाजपा के वरिष्ठ नेता संबोधन बोला जाता है मानों वे भाजपा में अकेले वरिष्ठ नेता हैं. आज जिस भी पद पर नियुक्ति का अधिकार भारत सरकार को है हर जगह सिर्फ और सिर्फ मोदी की भजन मंडली के लोग बिठा दिए गए हैं और चूंकि साहेब को आलोचना से सख्त नफरत है इसलिए वे दिन-रात उनकी झूठी प्रशंसा करते रहते हैं.
मित्रों, कुल मिलाकर ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे इतिहास अपने को दोहरा रहा है. जो कुछ भी सौ साल पहले जर्मनी में हुआ था वैसा ही भारत में करने की कोशिश की जा रही है. मैं यह तो नहीं जानता कि इस दिशा में मोदी किस हद तक जाएंगे लेकिन इतना अवश्य जानता हूँ भारत जर्मनी नहीं है इसलिए बहुत जल्द उनका पराभव निश्चित है और कदाचित प्रारंभ हो भी चुका है. वैसे सत्ता आने पर अभिमान तो हर किसी में आ जाता है. गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस के बाल काण्ड में दक्ष प्रजापति प्रसंग में कहा है कि- नहिं कोउ अस जनमा जग माहीं। प्रभुता पाइ जाहि मद नाहीं॥4॥ तथापि सत्य तो यह भी है कि अहंकार भगवान का भोजन है.
भगवान किसी का अहंकार रहने नहीं देते। उसे नष्ट कर देते हैं जब उनकी इच्छा हो जाती है। जग छूट जाता है, बड़े-बड़ों का घमंड टूट जाता है। एक समय हिटलर का अहंकार भी टूटा था.
मित्रों, आप सोंच रहे होंगे कि मुझे हो क्या गया है? शीर्षक में तो हिटलर नहीं था फिर आलेख की शुरुआत हिटलर के जिक्र से क्यों. दरअसल कभी-कभी वर्तमान की जड़ें काफी गहरे तक भूतकाल तक गई हुई होती हैं इसलिए इतिहास के आईने में झांकना जरूरी हो जाता है. मैं नहीं जानता कि आपको याद है या नहीं लेकिन मुझे अच्छी तरह से याद है कि जब मोदी जी २०१४ में प्रधानमंत्री बने थे तब उनका व्यवहार कैसा था. उन्होंने खुद को प्रधानमंत्री की जगह प्रधानसेवक और चौकीदार बताया था. जब वे पहली बार संसद पहुंचे तो संसद को मंदिर का दर्जा देते हुए उसकी सीढियों पर मत्था टेका था. भाजपा के नवनिर्वाचित सांसदों की बैठक में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के चरण छुए थे और गले लगकर रोने लगे थे. लगा जैसे भारत की सत्ता एक संत के हाथों में आ गयी है. लेकिन धीरे-धीरे मोदी ने हिटलर की तरह वन मैन शो की तरफ बढ़ना शुरू किया. उम्र सीमा का बहाना बनाकर किसी भी बुजुर्ग को मंत्री नहीं बनाया. हर महीने के आखिरी रविवार को खुद ही देश के साथ सीधा संवाद करना शुरू कर दिया मानों उन्हें मीडिया की जरुरत ही नहीं. इसके साथ-साथ मीडिया पर अपना विरोधी होने का जमकर प्रचार भी किया. जब-जब चुनाव आया पाकिस्तान पर हमला करके देश में सैन्य राष्ट्रवाद की लहर पैदा कर दी. सारे आर्थिक-सामाजिक आंकड़ों को दबाने का प्रयास किया जिससे जनता को वास्तविकता का पता न चले. २०१९ के चुनाव में सारे बुजुर्गों के टिकट काट दिए गए. २०१९ के चुनावों के समय अपना टीवी चैनल नमो टीवी संचालित किया. जबसे प्रधानमंत्री बने कोई प्रेस वार्ता आयोजित नहीं की क्योंकि उनको बोलना और आदेश देना अच्छा लगता है सुनना और सवालों का उत्तर देना पसंद नहीं है. जब भी विदेश यात्रा पर गए अकेले हवाई जहाज में चढ़ते और उतरते हुए दिखे जैसे कि हवाई जहाज में वे अकेले थे और हवाई जहाज को स्वयं ही उड़ा रहे थे और जैसे कि भारत की विदेश नीति का सञ्चालन वे अकेले ही करते हैं. जब भी कोई मंत्री अच्छा काम करता हुआ दिखा या तो उसके पर क़तर दिए गए या फिर बाहर कर दिया गया. सर्वोच्च न्यायालय को अपने पक्ष में करने का भरसक प्रयास किया गया. राष्ट्रपति एक ऐसे व्यक्ति को बनाया जो कभी उनकी बात को टाल नहीं सके. सारे राज्यपाल आज मोदी के आदेशपाल बनकर रह गए हैं. देश में मोदी विरोध को देशद्रोह का पर्याय बना दिया गया मानों मोदी ही भारत हैं. एक ऐसी महिला को वित्त मंत्री बनाया जिसे इस विषय का कोई ज्ञान ही नहीं है. इस प्रकार देश की उडान भर रही अर्थव्यवस्था आज क्रैश लैंडिंग की स्थिति में पहुँच गयी है. पूरे मंत्रीमंडल में लगता है जैसे कोई मंत्री है ही नहीं सिर्फ मोदी हैं. सारे सरकारी निगमों, विश्वविद्यालयों को अपने भजनकर्ताओं से भर दिया. सारे पेट्रोलपम्पों और सार्वजनिक स्थानों पर सिर्फ अपनी तस्वीर लगवाई मानों एक अकेला व्यक्ति पूरे देश को चला रहा है और बांकी के लोग झक मार रहे हैं. हिन्दुओं के मन में श्रेष्ठता-भाव को उग्रता की हद तक ले जाने की कोशिश की गयी. देश में मुस्लिम-विरोधी माहौल उत्पन्न करने का यथासंभव प्रयास किया. यहाँ तक कि गाँधी-नेहरू का भी जमकर चरित्र-हनन किया गया. विपरीत और मध्यमार्गी विचारधाराओं के खिलाफ जमकर प्रचार किया गया. बार-बार देश में पहली बार वाक्य का प्रयोग किया गया जैसे २०१४ से पहले भारत था ही नहीं. अपनी और अपनी सरकार की सारी विफलताओं के लिए पिछली सरकार और पंडित नेहरु को दोषी ठहराया गया मानों इनको जनता ने बस इसी काम के लिए चुना था. मीडिया को अपने गुणगान करने के लिए येन-केन-प्रकारेन प्रभावित किया गया भले ही सरकार के कदम कितने ही मूर्खतापूर्ण क्यों न हों जैसे कि देश का अति तीव्र गति से निजीकरण, जीएसटी और पागलपन भरा नोटबंदी. अपने गठबंधन के सहयोगियों को समान मानने के बदले पिछलग्गू बनाकर रखने का प्रयास किया गया. वरिष्ठ नेता राजनाथ सिंह को गृह मंत्री से हटाकर अपने चहेते अमित शाह को गृह मंत्री बनाया. आज आकाशवाणी समाचार में सिर्फ नरेन्द्र मोदी के नाम के साथ भाजपा के वरिष्ठ नेता संबोधन बोला जाता है मानों वे भाजपा में अकेले वरिष्ठ नेता हैं. आज जिस भी पद पर नियुक्ति का अधिकार भारत सरकार को है हर जगह सिर्फ और सिर्फ मोदी की भजन मंडली के लोग बिठा दिए गए हैं और चूंकि साहेब को आलोचना से सख्त नफरत है इसलिए वे दिन-रात उनकी झूठी प्रशंसा करते रहते हैं.
मित्रों, कुल मिलाकर ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे इतिहास अपने को दोहरा रहा है. जो कुछ भी सौ साल पहले जर्मनी में हुआ था वैसा ही भारत में करने की कोशिश की जा रही है. मैं यह तो नहीं जानता कि इस दिशा में मोदी किस हद तक जाएंगे लेकिन इतना अवश्य जानता हूँ भारत जर्मनी नहीं है इसलिए बहुत जल्द उनका पराभव निश्चित है और कदाचित प्रारंभ हो भी चुका है. वैसे सत्ता आने पर अभिमान तो हर किसी में आ जाता है. गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस के बाल काण्ड में दक्ष प्रजापति प्रसंग में कहा है कि- नहिं कोउ अस जनमा जग माहीं। प्रभुता पाइ जाहि मद नाहीं॥4॥ तथापि सत्य तो यह भी है कि अहंकार भगवान का भोजन है.
भगवान किसी का अहंकार रहने नहीं देते। उसे नष्ट कर देते हैं जब उनकी इच्छा हो जाती है। जग छूट जाता है, बड़े-बड़ों का घमंड टूट जाता है। एक समय हिटलर का अहंकार भी टूटा था.
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