मित्रों, अगर हम कहें कि अपने भारत के रोम-रोम में, पल-प्रतिपल में, घाट-घाट और घट-घट में राम समाए हुए हैं तो ऐसा कहना कहीं से भी अतिशयोक्ति नहीं होगी. हमारी दिनचर्या की शुरुआत राम से होती है और समाप्ति भी राम से. हम किसी का अभिवादन करते हैं तो कहते हैं राम-राम जी. जब कोई पूछता है कि आगे क्या होनेवाला है तो हम कहते हैं कि राम जाने, जब हमें अपनी प्राप्ति या उपलब्धि बतानी होती है तो हम उसका श्री भी राम जी को यह कहकर देते हैं कि राम जी की देनी से या रामजी की ईच्छा से ऐसा संभव हुआ है. यहाँ तक कि जब हम परेशान या उदास होते हैं तब भी हमारे मुंह से हठात निकलता है हे राम. अर्थात भारत के जन-मन के हर कण में राम ही राम बसे हुए हैं. राम के बिना हम भारत की कल्पना तक नहीं कर सकते.
मित्रों, यह भारत का दुर्भाग्य है कि ऐसे राम को हमने न्यायालय में ले जाकर खड़ा कर दिया. इतना ही नहीं दुर्भाग्यवश ऐसे राम को कई दशकों तक न्याय के लिए प्रतीक्षा भी करनी पड़ी. हालांकि अब माननीय उच्चतम न्यायालय ने राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया है लेकिन सवाल उठता है कि क्या कोर्ट में मुकदमा जीतने मात्र से हमारे राम खुश हो जाएँगे और राम ने जिन मूल्यों और आदर्शों की हमारे समाज में स्थापना की थी उनकी स्थिति क्या है? हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि मेरे राम ने सोने की लंका को जीतने के बाद विभीषण को दे दिया था.
मित्रों, यह तो निश्चित है कि मेरे और हमारे राम ने जिन मूल्यों की स्थापना की और जिन आदर्शों को जिया आज समाज में उनका लगातार क्षरण हो रहा है. हम अपने बच्चों के नाम राम के नाम पर रख देते हैं लेकिन उनके भीतर, उनके अंतर्मन में राम के बदले रावण बसने लगता है और फिर वो इतने गिरे हुए कर्म करता है कि राम तो क्या रावण को भी उबकाई आने लगे. इस सन्दर्भ में हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि निर्भया के बलात्कारियों में से एक राम सिंह भी था जिसने बाद में तिहाड़ जेल में आत्महत्या कर ली.
मित्रों, यह अच्छी बात है कि राम जन्मभूमि पर अब राम का भव्य मंदिर फिर से बन जाएगा लेकिन मुझे नहीं लगता कि मेरे ऐसे राम इतने भर से प्रसन्न हो जाएँगे जिनके लिए पिता की आज्ञा और माता की ईच्छा के समक्ष अयोध्या का राज्यसिंहासन तृण के बराबर भी मूल्य नहीं रखता. हम देखते हैं कि आज के घनघोर पूंजीवादी समाज में अगर किसी चीज का मूल्य है तो वो सिर्फ पैसा. जिसको भी देखिए वो पैसे के पीछे भाग रहा है. सबको सुख और भोग चाहिए. भोगवाद ने हमारी अंतर्मन को इतना बीमार बना दिया है कि आज सारे पवित्र सामाजिक व पारिवारिक रिश्ते खतरे में पड़ गए हैं. राम के देश में रोजाना नए वृद्धाश्रम खुल रहे हैं, बालिका-गृहों में बालिकाओं से वेश्यावृत्ति करवाई जा रही है, भाई भाई की, पिता पुत्र की, पुत्र पिता की और पत्नी पति की हत्या कर और करवा रहे हैं, बाप स्वयं अपनी पुत्री की और भाई बहन की ईज्जत लूट रहा है, हर कोई अंधाधुंध पैसे के पीछे इस तरह भाग रहा है कि भगवान की मूर्तियाँ भी सुरक्षित नहीं हैं, ईमानदारों की कोई क़द्र नहीं है और हर चुनाव में चोर जीत रहे हैं और हम समझते हैं कि हमारा राम खुश है. वो कैसे खुश हो सकता है? असलीयत तो यह है कि हमारा राम रो रहा है और पछता रहा है कि उसने कैसे देश में जन्म लिया था. हमारा राम रो रहा है.....
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