सोमवार, 25 नवंबर 2019

लोकतंत्र का चीरहरण करते उसके बेटे


मित्रों, हम भारत की जनता बहुत बड़े वाले अभागे हैं. हम चाहे जिस भी नेता पर दांव लगाएं आगे चलकर वो धोखेबाज ही निकलता है. अब नरेन्द्र मोदी को ही ले लें. हमने देखा था और गौरवान्वित हुए थे कि यह आदमी पहली बार जब संसद पहुंचा तो इसने उसकी सीढियों पर मत्था टेका जैसे वो संसद नहीं सचमुच का मंदिर हो. लेकिन आदमी जैसा दिखता है वैसा होता कहाँ है. बहुत जल्द परिदृश्य बदल गया और वही व्यक्ति लोकतंत्र का चीरहरण करता हुआ दिखने लगा. लगा जैसे लोकतंत्र द्रौपदी बन गई है और भरी सभा में विलाप कर रही है कि मुझे मेरे बेटों से बचाओ अन्यथा ये मेरी ईज्जत तार-तार कर देंगे. वह आर्तनाद कर रही है, बार-बार उनको याद दिला रही है कि तुमने मेरे ही गर्भ से जन्म लिया है लेकिन सत्ता के मद में चूर उनके बेटे उसकी एक नहीं सुन रहे. द्वापर होता तो योगेश्वर कृष्ण जरुर आते उसकी ईज्जत बचाने लेकिन कलियुग का भगवान तो कोई और है और वो है पैसा और पैसा सत्ता से आता है. अगर कलियुग में भगवान भगवान होते तो हमारे अख़बार रोजाना रंगे नहीं होते बलात्कार की खबरों से. भगवान ने चमत्कार करके बलात्कारियों के सर के सौ टुकड़े नहीं कर दिए होते? इसलिए वही प्रश्न शेष है कि ऐसे में कौन बचाएगा इस अबला नारी की ईज्जत? कैसे शेष बचेगा भारत में लोकतंत्र का अस्तित्व? हमने तो सोंचा था, इस देश की बहुसंख्य जनता ने सोंचा था, निराश-हताश मन में उम्मीद बाँधी थी कि ये लोग भारत को सचमुच विश्वगुरु बनाने के लिए आए हैं लेकिन इनके मन में कुछ और था और जुबान पर कुछ और. हम भारतीय इतने भोले और भावुक हैं कि हम एकल चेहरा नहीं पढ़ पाते फिर लोकतंत्र के इन बेटों के तो अनगिनत चेहरे थे और उनका अभिनय इतना उच्चस्तरीय था कि उनके समक्ष शायद भगवान भी होते तो धोखा खा जाते फिर आदम जात की क्या बिसात!

मित्रों, एक वो नारायण थे जिन्होंने धर्म की स्थापना के लिए बार-बार अवतार लिया और एक यह नारायण राणे है जो कहता है कि उसने लोकतंत्र को मंडी में, बाज़ार में बदल दिया है और इस बाज़ार में बिकने के लिए बहुत-सारे विधायक सज-धज कर तैयार बैठे हैं. ऐसे में आप ही बताईये कि कैसे बचेगी लोकतंत्र की जान और अगर जान बच भी गई तो ईज्जत खो चुकी यह आधुनिक द्रौपदी कैसे कर पाएगी दुनिया के प्रश्नवाचक-शरारत भरी नज़रों का सामना? इस बेचारी का जो अपमान बूथ लूट से शुरू हुआ था अब वो चरम पर पहुँच चुका है. अब सीधे सांसदों-विधायकों की लूट होने लगी है, सरकार की लूट होने लगी है. खुद बहुत-सारे सांसद-विधायक बिकने को तैयार बैठे हैं. नीलामी शुरू है,लोग बोलियाँ लगा रहे हैं, २० करोड़-३० करोड़-५० करोड़. जैसे दुनिया को शून्य देनेवाले देश में १ के बाद शून्य का कोई महत्त्व ही नहीं रह गया हो. पार्टियाँ विधायकों को जानवरों के बाड़े की तरह होटल में बंद करके रख रही हैं ताकि उनको बिकने से बचाया जा सके. संविधान और विधान बेमतलब हो गए हैं. लोकतंत्र का आधुनिक मंदिर संसद के स्थान पर होटल बन गए हैं और यह सब उनके इशारों पर हो रहा है जिन्होंने कभी संसद की सीढियों पर मत्था टेका था. इतना बड़ा धोखा! इस इंसान को क्या समझा था और क्या निकला! हा दैव, अब हम किसे पुकारें, कौन करेगा हमारी रक्षा जब सारे रक्षक ही भक्षक बन गए हैं. उल्लू तो फिर भी ठीक थे तुमने तो हर डाल पे गिद्ध बैठा दिए हैं प्रभु.

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