मित्रों, अपने देश में पहेली पूछने और बूझने
की लम्बी परंपरा रही है. मगर वास्तविकता तो यह है आदमी खुद ही बहुत बड़ी पहेली है.
मसलन हम किसी को समझते कुछ और हैं और वो निकलता कुछ और ही है. कई बार तो एक ही
इंसान के इतने सारे रूप सामने आते हैं कि देखनेवाला हतप्रभ हो जाता है कि इनमें से
कौन-सा रूप सही है और कौन-सा गलत.
मित्रों, अपने बाबा रामदेव को ही लीजिये.
पहले पता चला कि वे एक योगी-संन्यासी हैं. फिर पता चला कि आयुर्वेदिक दवाओं के
निर्माता और व्यापारी हैं. फिर पता चला कि राजनीतिज्ञ हैं. फिर पता चला कि वे चैनल
के मालिक हैं. फिर पता चला कि वे बहुत बड़े देशभक्त हैं और कालेधन के प्रबल विरोधी
भी. फिर पता चला कि बहुत बड़े धनकुबेर हैं. और अब पता चल रहा है कि वे कालेधन और
भ्रष्टाचार के प्रतीक लालू प्रसाद यादव के समधी बनने जा रहे हैं. पता नहीं आगे
बाबाजी और क्या-क्या बनेंगे?
मित्रों, हमारी नजर में संन्यासी रामकृष्ण परमहंस थे
जो कंचन और कामिनी को हाथ तक नहीं लगाते थे. हमने तो यहाँ तक सुना है कि पैसे को
हाथ लगाते हुए उनकी कलाई ही मुड़ जाती थी. संन्यास के मतलब ही होता है पूर्ण
वैराग्य. फिर बाबा रामदेव किस तरह के सन्यासी हैं. गेरुआ वस्त्र पहन लिया लेकिन
उनको अकूत पैसा चाहिए. उनके परिवार के लोग आज भी उनके साथ रहते हैं और उनकी कई
कम्पनियों में साझीदार हैं. उनको रथयात्रा तक पसंद नहीं पैदल चलना तो दूर की बात
है. हमेशा पुष्पक विमान में उड़ते रहते हैं. कहने का तात्पर्य यह कि या तो बाबा
विशुद्ध गृहस्थ हैं और उनको संन्यासी कहना कदाचित संन्यास
आश्रम का ही अपमान है. बाबा खुद को कालाधन का सबसे बड़ा विरोधी बताते हैं और लालू
से गुप्त मुलाकात करने निजी विमान से जाते हैं तो कभी लालू के गाल पर मक्खन लगाते
हैं.
बाबा रे बाबा, इतना कन्फ्यूजन. दिमाग का फ्यूज न उड़ जाए. हमारी समझ
में तो बिलकुल भी नहीं आ रहा कि ये बाबा जी हैं क्या जो न
केवल पूरे भारत को बाबा जी समझ रहे हैं बल्कि बाबाजी बना भी रहे हैं. अगर आप की
समझ में ये निर्गुण, निराकार आ रहे हैं तो कृपया हमें भी समझाईए अन्यथा हमारे साथ
मिलकर कुरुक्षेत्र निवासी बाबाजी से यह बतलाने की कृपा करने के लिए प्रार्थना करिए
कि हे माधव, हे सखे, हे केशव आप चीज क्या हो?
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