मित्रों, जब
कोई नेता मरता है तो कसम से समझ में नहीं आता कि उसको किस रूप में याद करूँ। जयललिता
को ही लीजिए। उनका नाम जेहन में आते ही मुझे सबसे पहले याद आता है कि कभी आय से ज्यादा
धन रखने के अपराध में जेल गई थीं। आज से 20 साल पहले उनके पास से कई क्विंटल सोना-जवाहरात
बरामद हुए थे। बाद में जयललिता ने इसका बदला भी लिया करूणानिधि को जेल भेजकर।
मित्रों, फिर
हमारे जेहन में आता है तमिल राष्ट्रवाद। भुलाए नहीं भूलता कि जयललिता के लिए तमिलनाडु
पहली प्राथमिकता था और अंतिम भी। जयललिता ने चुनाव जीतने के लिए हर पैंतरे का भरपुर
उपयोग किया। लगभग हर चीज जनता को मुफ्त में दिया। खासकर तमिलनाडु की सार्वजनिक स्वास्थ्य
व्यवस्था आज भी देश में सर्वोत्तम है। इन सबके बावजूद गरीबों को गरीब बनाकर रखा। चुनाव
जीतने के लिए जयललिता भूल गई कि वो जन्मना ब्राह्मण है। वो भूल गई कि उनका भी कोई अपना
है,अपना परिवार है। अस्पताल में उनके परिजनों को उनका दूर से
दर्शन तक नहीं होने दिया गया। सबसे आश्चर्य की बात तो यह है मृत्योपरांत उनका अंतिम
संस्कार भी इस डर से नहीं किया गया कि कहीं ऐसा करने से द्रविड़ वोटबैंक नाराज न हो
जाए या फिर लोग जान न जाएँ कि जयललिता का कोई परिवार भी है।
मित्रों, फिर
याद आता है हमें कि किस तरह जयललिता ने स्व. एमजी रामचंद्रन की पत्नी को अपदस्थ कर
मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कब्जा किया था। फिर किस तरह वो शशिकला के संपर्क में आई जो
महत्त्वाकांक्षा में कहीं-न-कहीं उनसे भी बढ़कर थी। उसने उनको जहर देना शुरू कर दिया।
फिर पोल खुलने के बाद दोनों अलग हो गए। बाद में न जाने क्यों जयललिता ने उसको फिर से
अपने साथ कर लिया।
मित्रों, फिर
याद आता है कि किस तरह उसने अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार को बिना वजह गिरा दिया था।
मित्रों, आज
जयललिता जीवित नहीं है। पनीर सेल्वम एक बार फिर से मुख्यमंत्री बन चुके हैं लेकिन क्या
वे सचमुच पार्टी में सर्वोच्च हैं? नहीं पहले जो
जगह जयललिता की थी आज उस जगह पर शशिकला विराजमान हो चुकी हैं। कदाचित् जयललिता सरीखी
वैसे नेताओं का अंत इसी तरह विधि ने लिखा होता है जो अपने परिवार से दूर रहकर राजनीति
करते हैं। पहले कांशीराम के साथ भी लगभग ऐसा ही कुछ हुआ था। एनटी रामाराव के मामले
में स्थिति जरूर उल्टी रही।
मित्रों, आप
चाहे देवता बनकर जीयें या दानव बनकर उनको एक-न-एक दिन मरना तो होता ही है। जयललिता
भी मरी,हम सब भी मरेंगे। खाली हाथ आए थे,खाली
हाथ चले जाएंगे। रह जाएगी बस यादें और करनी।
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