शनिवार, 2 अप्रैल 2022
नाथ अनाथन की सुध लीजै
मित्रों, मैं कई वर्षों से बराबर बिहार के अख़बारों में यह खबर पढता चला आ रहा था कि पोल पर करंट लगने से फलाने गाँव के फलाने बिजली मिस्त्री की मौत हो गयी. मेरी समझ में नहीं आता था कि ऐसा हो कैसे जाता है. लेकिन जब परसों मेरी ससुराल वैशाली जिले के देसरी थाने के भिखनपुरा में ऐसी ही घटना घट गई तब समझ में आया कि वास्तव में हो क्या रहा है और पोल पर करंट लगने से मरनेवाले हैं कौन.
मित्रों, हुआ यह कि परसों सुबह से ही पूरे भिखनपुरा पंचायत की बिजली गई हुई थी. सुबह से ही लोग बिजली आपूर्ति कंपनी के दफ्तर में फोन पर फोन किए जा रहे थे. दोपहर में जेई और सरकारी लाइन मैन चकमगोला के मुकेश सिंह के घर पहुंचे. मुकेश निजी तौर पर बिजली मिस्त्री का काम करता था. बिहार में बेरोजगारी इतनी ज्यादा है कि प्रत्येक सरकारी बिजली मिस्त्री कई सारे निजी बिजली मिस्त्रियों को अपने साथ रखते हैं और ज्यादातर मामलों में ये निजी मिस्त्री ही पोल पर चढ़कर यांत्रिक त्रुटि को दूर कर बिजली आपूर्ति की पुनर्बहाली को सुनिश्चित करते हैं.
मित्रों, पेट जो न कराए. मुकेश उन दोनों के साथ दौड़ा-दौड़ा भिखनपुरा आया. पोल पर चढ़ने से पहले उसने जेई और लाइन मैन से पूछा कि शट डाउन तो ले लिया है न? उनदोनों के हामी भरने के बाद वो जैसे ही पोल पर चढ़ा उसे करंट लग गया क्योंकि शट डाउन नहीं लिया गया था. बेचारा ऊंचाई से सर के बल पक्की सड़क पर आ गिरा. उसके गिरते ही जेई और लाइन मैन भाग गए. गांववालों ने उसे आनन-फानन में अस्पताल पहुँचाया लेकिन तब तक मुकेश दम तोड़ चुका था.
मित्रों, बिजली कम्पनी का सितम यहीं तक नहीं रूका. कंपनी ने उलटे मुकेश पर पोल पर चढ़कर तार चुराने का मुकदमा थाने में दर्ज करवा दिया. कल जब मुकेश के गाँववालों ने सड़क जाम कर दिया तब प्रशासन ने लाइन मैन कृष्ण कुमार सिंह और जेई के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज किया और मृतक मिस्त्री के परिजनों को ४ लाख रूपया मुआवजा देने का आश्वासन दिया.
मित्रों, सवाल उठता है कि क्या ४ लाख में मुकेश के परिवार की जिंदगी पार लग जाएगी? चार लाख का मुआवजा तो बिहार में उन आम आदमी के परिजनों को भी दिया जाता है जो करंट लगते से मरते हैं. फिर क्या अंतर है पोल पर चढ़नेवाले बिजली मिस्त्रियों और आम आदमी में? सवाल उठता है कि जिन निजी मिस्त्रियों से बिजली कंपनी काम ले रही है उनका रजिस्ट्रेशन कर उनका बीमा क्यों नहीं करवाती? आखिर कब तक मुकेश जैसे पेट के मारे निजी मिस्त्री बेमौत मरते रहेंगे और कब तक उनको आम आदमी की तरह ४ लाख का मुआवजा दिया जाता रहेगा? मेरा मानना है कि जो समाज के लिए, समाज के हित के लिए, समाज के सुख के लिए अपनी जान पर खेलता है और जान कुर्बान करता है वो शहीद है फिर चाहे वो सीमा पर खड़ा सैनिक हो या पोल पर चढ़नेवाला बिजली मिस्त्री. आखिर कब तक इन गुमनाम शहीदों के साथ, उनके मानवाधिकारों के साथ अन्याय होता रहेगा? क्या बिहार और भारत सरकार इन अनाथों की सुध लेगी या फिर जैसे चलता आ रहा है चलता रहेगा?
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