गुरुवार, 7 अप्रैल 2022
तेजस्वी सो रहे हैं कृपया हॉर्न न बजाएँ
मित्रों, कहते हैं कि लोकतंत्र में जनता मालिक होती है लेकिन बिहार में लोकतंत्र और जनता की दशा को देखकर तो ऐसा लगता है कि लोकतंत्र में जनता भिखारी होती है. फिर एक समय बिहार के मुख्यमंत्री रहे लालू जी ने मंच से यह कहा था कि अब राजा रानी के पेट से पैदा नहीं होगा लेकिन वास्तविकता यह है कि लालू जी ने खुद अपने बाद पहले अपनी पत्नी को बिहार की महारानी बना दिया और अब अपने बेटे को महाराजा बनाने की फ़िराक में हैं.
मित्रों, यह हमारे विधानसभा क्षेत्र राघोपुर का दुर्भाग्य है कि लालूजी के वही छोटे बेटे जिनको लालू जी बिहार का महाराजा बनाना चाहते हैं हमारे विधायक हैं लेकिन सिर्फ कहने को विधायक हैं. राघोपुर प्रखंड में सरकारी योजनाओं और सुविधाओं की स्थिति पूरे बिहार में सबसे ज्यादा ख़राब है लेकिन तेजस्वी यादव को इससे कोई मतलब नहीं. वो तो न जाने किस दुनिया में खोये हुए हैं. राघोपुर प्रखंड में शिक्षा की स्थिति इतनी ख़राब है कि रोजाना स्कूलों का ताला खुल जाए तो गनीमत समझिए. शिक्षक आते ही नहीं फिर ताला खोलेगा कौन? शिक्षा निजी शिक्षकों और ट्यूटरों के भरोसे किसी तरह अंतिम सांसें ले रही है. एक समय बिहार के तदनुसार राघोपुर प्रखंड के सरकारी विद्यालय पूरे भारत के लिए उदाहरण थे. आज वे बदहाली के प्रतीक बन गए हैं.
मित्रों, इसी तरह से स्वास्थ्य-सुविधाओं के क्षेत्र में भी राघोपुर प्रखंड की हालत काफी पतली है. यहाँ के अस्पतालों को अस्पताल कहना अस्पताल की परिभाषा को गाली देने के समान है. न बेड, न उपकरण और न ही डॉक्टरों का आगमन. जैसे विद्यालय कागज पर चल रहे वैसे ही अस्पताल भी कागज पर न सिर्फ चल रहे हैं बल्कि दौड़ रहे हैं. कई बार अधिकारी भटकते हुए अस्पताल में विशेष रूप से मोहनपुर रेफरल अस्पताल में पहुँच भी जाते हैं. बदहाली पर नाराजगी जताते हैं. सुधार लाने के निर्देश देते हैं और सो जाते हैं. एकाध बार तो तेजस्वी भी ऐसा कर चुके हैं.
मित्रों, इसी तरह राघोपुर प्रखंड में स्थापित ४० सरकारी नलकूपों में से एक भी चालू नहीं है लेकिन इससे तेजस्वी यादव का क्या सरोकार? उनको थोड़े ही राघोपुर में गेंहूँ-धनिया की खेती करनी है. वो तो वोटों की खेती करते हैं और इस नए तरह के राजतन्त्र में बिहार की सबसे बड़ी राजनैतिक रियासत के राजकुमार हैं.
मित्रों, अब हम आते हैं राघोपुर प्रखंड के किसानों की सबसे बड़ी समस्या पर. हुआ यह कि जब आजादी के बाद बिहार में भूमि-सर्वेक्षण चल रहा था तब राघोपुर के बहुत सारे किसानों की जमीन गंगा नदी में थी. सरकार ने उसे गंगशिकस्त घोषित कर अपने नाम कर लिया और किसानों से कहा कि जब जमीन पानी से बाहर निकलेगी तब किसानों को लौटा देंगे. मगर ऐसा हुआ नहीं. वो जमीन आज भी बिहार सरकार के पास है. अब कुछ समय के बाद जब राघोपुर प्रखंड में भूमि-सर्वेक्षण होगा तब अगर ये जमीन किसानों को लौटाई नहीं गई तो राघोपुर के किसानों की लाखों एकड़ जमीन छिन जाएगी, लुट जाएगी. लेकिन इससे भी कदाचित तेजस्वी जी की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा क्योंकि न तो वे राघोपुर के निवासी हैं और न ही राघोपुर में उनकी ऐसी कोई जमीन है जो गंगशिकस्त की श्रेणी में आती हो.
मित्रों, कुल मिलाकर राघोपुर की जनता के दोनों ही हाथ खाली हैं. सांसद पशुपति कुमार पारस भी गायब हैं और विधायक तेजस्वी तो गायब हैं ही. यह हमारा दुर्भाग्य है कि दोनों आधुनिक राजपरिवार से हैं. दोनों मानते हैं कि जनता जाति-पांति और विरासत के नाम पर उनको ही जिताएगी. जहाँ तक हम समझते हैं कि लोकतंत्र में नेता नेतृत्वकर्ता होता है इसलिए उसे सबसे आगे होना चाहिए. जनता जो मन ही मन सोंचे नेता को उसकी गर्जना करनी चाहिए, जहाँ जनता के कदम जाकर रूकें नेता को वहां से शुरुआत करनी चाहिए. नेता को जनता के आगे चलना चाहिए लेकिन यहाँ तो नेता सोया हुआ है. दुर्भाग्यवश हमारे विधायक बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता भी हैं. सवाल उठता है कि जो व्यक्ति अपनी विधानसभा तक का यानि कुछेक वर्ग किलोमीटर का ख्याल नहीं रख सकता हो वो भला कैसे पूरे बिहार का ख्याल रखेगा? फिलहाल तो हम आपसे यही कहेंगे कि जब भी आप तेजस्वीजी के आवास के पास से गुजरें तो कृपया हॉर्न न बजाएं क्योंकि तेजस्वी सो रहे हैं.
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