मंगलवार, 21 अक्तूबर 2014

अपने खिलाफ कब धरना पर बैठेंगे नीतीश?


21 अक्तूबर,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,अपने केजरीवाल जी बड़े भाग्यशाली हैं। पहले उनको पाकिस्तान में बड़ा भाई मिला और अब भारत में भी हमारे बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी केजरिया गए हैं। दोनों की शैली में फर्क बस इतना है कि केजरीवाल जी ने पहले धरना दिया फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी को यानि अपनी किस्मत को लात मारी और नीतीश जी ने इसके उलट पहले इस्तीफा दिया और अब धरने पर बैठ रहे हैं। श्री कुमार को शिकायत है कि पिछले 4 महीने में केंद्र सरकार ने बिहार की घनघोर उपेक्षा की है जैसी कि दस सालों में कांग्रेस पार्टी की सरकार ने भी नहीं की थी। तब तो सुशासन बाबू यह आरोप कांग्रेस पर लगा रहे थे और अब उसी के हाथ से उन्होंने हाथ मिला लिया है। अब इसे अवसरवाद न कहा जाए तो क्या कहा जाए?

मित्रों,पाकिस्तानी शायर मोहसिन नकवी ने क्या खूब कहा है कि बस एक ही गलती हम सारी ज़िन्दगी करते रहे मोहसिन, धूल चेहरे पर थी और हम आईना साफ़ करते रहे। बस नीतीश कुमार जी की भी इतनी-ही इतनी-सी ही समस्या है। जनता बार-बार उनको आईना दिखा रही है लेकिन श्री कुमार अपने चेहरे के बदले आईना को ही साफ करने में लगे हैं। पहले एक हवाई-परिकल्पित मुद्दे को लेकर 18 साल पुराना सुख-दुःख में जाँचा-परखा गठबंधन तोड़ा,फिर उसी लालू की गोद में छोटा भाई बनकर बैठ गए जिनके खिलाफ लड़ते हुए तमाम उम्र गुजरी थी। बिहार के शासन को जब 18 मंत्रालयों को एकसाथ देखते हुए संभाल नहीं सके और जनता ने जब गठबंधन तोड़ने और फिर से कुशासन और अराजकता फैलाने की सजा दी तो बजाए स्थिति को संभालने के रूठकर और मैदान छोड़कर ही भाग गए। जनाब चले थे प्रधानमंत्री बनने और त्यागपत्र दे दिया मुख्यमंत्री से भी। अभी हरियाणा विधानसभा चुनावों में दस जनविहीन जनसभाएँ करने के बाद भी पार्टी के एक उम्मीदवार को 114 और दूसरे को 38 वोट मिलते हैं लेकिन जनाब फिर भी अभी भी खुद को राष्ट्रीय नेता और प्रधानमंत्री पद का सबसे सुयोग्य उम्मीदवार मानते हैं। लोकसभा चुनावों में तो नीतीश जी के भाग्य ने उनका साथ दिया वरना तमाम विश्लेषक तो यह मान रहे थे कि जदयू भी बसपा की तरह ही शून्य पर आउट होने जा रही है।

मित्रों,वैसे सच्चाई यह भी है कि जब भाजपा सरकार में शामिल थी तब भी सरकार ने कई नीतिगत गलतियाँ कीं। एक के बाद एक पागलपन भरे कदमों से सरकारी शिक्षा का सर्वनाश कर दिया,गांव-गांव में शराब के ठेके खोल दिये और पूरे शासन-प्रशासन को अफसरों के हवाले कर दिया मगर ये विभाग शुरू से ही जदयू कोटे के मंत्रियों के पास थे। बाद में गठबंधन टूटने के बाद नीतीश जी को मंत्रिमंडल का विस्तार करना चाहिए था जो उन्होंने नहीं किया और 8-नौ महीनों तक एकसाथ वे 18 विभागों के मंत्री बने रहे जिसका दुष्परिणाम यह हुआ कि राज्य में सरकार नाम की चीज ही नहीं रही। बहुचर्चित दवा घोटाला भी उसी कालखंड की देन है।

मित्रों,मान लिया कि नीतीश जी को मुख्यमंत्री की कुर्सी के खटमल बहुत परेशान करने लगे थे लेकिन यह क्या कि उन्होंने एक बेदिमागी को अपने स्थान पर बैठा दिया जो मांझी नाम को निरर्थक साबित करते हुए पार्टी के साथ-साथ प्रदेश की नैया को भी डुबाने पर लगा हुआ है। कहने का तात्पर्य यह है कि अपनी हालत के लिए नीतीश कुमार जी खुद ही जिम्मेदार हैं लेकिन लगातार जबर्दस्ती यह साबित करने में लगे हैं कि इन्हीं लोगों ने छीना दुपट्टा मेरा (मुख्यमंत्री की कुर्सी)। जबतक जनता को उनका शासन अच्छा लगा,विकासवादी लगा जनता ने उनको सिर-आँखों पर बिठाया और जब जनता को लगने लगा कि नीतीश कुमार जी रावण की तरह अभिमानी और स्वेच्छाचारी होने लगे हैं तो बिहार की जनता ने उनको अपने सिर से आहिस्ते से उतारा नहीं बल्कि सीधे जमीन पर पटक दिया। इसलिए नीतीश जी को अगर धरना देना ही है तो उनको खुद के खिलाफ,अपनी भूतकाल की नीतिगत और अवसरवादी गलतियों के खिलाफ धरना देना चाहिए। वे कहेंगे तो हम भी उस धरने में उनका दिलो-जान से साथ देंगे।

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

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