मित्रों,बिहार में एक नेता हुए हैं कर्पूरी ठाकुर.परसों-तरसों उनकी जयंती भी थी.श्रीमान जब चुनाव प्रचार में जाते तो लोगों से कहते कि वोट बेटी जात को.श्रीमान के बारे में कहा जाता था कि भारी ईमानदार थे.होंगे भी लेकिन उन्होंने यह नारा देकर बिहार प्रदेश और देश को जरूर भारी नुकसान पहुँचाया.उनका साध्य भले ही ठीक हो लेकिन साधन गलत था.
मित्रों,कर्पूरी जी को मरे हुए आज २९ साल बीत चुके हैं.१९९० से ही यूपी-बिहार पर उनके चेलों का शासन है.लेकिन आज यूपी-बिहार है कहाँ.चुनाव देश-प्रदेश को विकास के मार्ग पर ले जाने का साधन होता है न कि किसी खास जाति के व्यक्ति को एमएलए-एमपी या मुख्यमंत्री-प्रधानमंत्री बनाने का.जातिवादी नेता अपने परिवार की उन्नति के लिए काम करते हैं न कि जाति की. बिहार में लंबे समय तक लालू परिवार का शासन रहा है लेकिन मेरे शहर हाजीपुर में ही यादव लोग अगर एक दिन मजदूरी करने नहीं जाएँ तो शाम में चूल्हा ठंडा रह जाए.ऊपर आसमान नीचे पासवान का नारा देनेवाले रामविलास पासवान की जाति के लोग आज भी हाजीपुर में रिक्शा-ठेला खींच रहे हैं.स्वयं कर्पूरी की जाति के लोगों की दशा भिखारियों जैसी है. हालाँकि कर्पूरी के बेटे जरूर राज भोग रहे हैं और अरबपति हो गए हैं.इसी तरह राजपूतों ने १९८९ में जाति के नाम पर वीपी सिंह को एकतरफा वोट दिया था,क्या मिला?
मित्रों,कहने का मतलब यह है कि जो भी नेता जाति के नाम पर राजनीति कर रहे हैं वे हमें उल्लू बनाकर सिर्फ अपना उल्लू सीधा करते हैं.सवाल उठता है कि चुनावों में हम देश-प्रदेश चलाने के लिए शासक चुनते हैं या दामाद जो जाति को वोट दें? जब हम दामाद चुनेंगे तो फिर दामाद ही मिलेगा वो भी सिर्फ लूटनेवाला. आज भी जब कोई यूपी-बिहार का युवा मुम्बई-अहमदाबाद नौकरी करने जाता है तो उसे हिकारत की नजरों से देखा जाता है. आखिर हम क्यों जाते हैं मुम्बई-अहमदाबाद? क्यों हमारा प्रदेश आज भी उद्योग-विहीन है? क्या इसलिए नहीं क्योंकि हम लंबे समय से विकास की जगह जाति के नाम पर वोट डालते आ रहे हैं?
मित्रों,एक और बात.यूपी में सारी धर्मनिरपेक्ष पार्टियों ने मुस्लिम वोट बैंक को ध्यान में रखकर टिकट बांटे हैं. यह कैसी धर्मनिरपेक्षता है? कोई मुस्लिम तुष्टीकरण करे तो धर्मनिरपेक्षता और कोई सर्वधर्मसमभाव की बात करे तो साम्प्रदायिकता? मैं पहले भी ताल ठोंक के कह चुका हूँ कि देश की चिंता अगर कोई कौम करेगा तो वो हिन्दू होगा मुसलमानों के लिए कभी भी नेशन फर्स्ट नहीं रहा है इंडिया फर्स्ट की तो बात ही दूर है.मैं आज फिर से डंके की चोट पर कहता हूँ कि अगर हम यूपी-बिहार के हिन्दू ऐसे ही दामाद जी को वोट देते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब हर शहर हर बस्ती में धूलागढ़ और कैराना होगा.वैसे भी इन समाजवादियों की नज़रों में हमारी बेटियों की ईज़्ज़त की क्या कीमत है शरद यादव कर्पूरी जयंती के दिन अर्ज कर चुके हैं.आज पूरी दुनिया में भारत का झंडा फहरा रहा है और जनाब फरमाते हैं कि देश की ईज़्ज़त खतरे में है.
मित्रों,कर्पूरी जी को मरे हुए आज २९ साल बीत चुके हैं.१९९० से ही यूपी-बिहार पर उनके चेलों का शासन है.लेकिन आज यूपी-बिहार है कहाँ.चुनाव देश-प्रदेश को विकास के मार्ग पर ले जाने का साधन होता है न कि किसी खास जाति के व्यक्ति को एमएलए-एमपी या मुख्यमंत्री-प्रधानमंत्री बनाने का.जातिवादी नेता अपने परिवार की उन्नति के लिए काम करते हैं न कि जाति की. बिहार में लंबे समय तक लालू परिवार का शासन रहा है लेकिन मेरे शहर हाजीपुर में ही यादव लोग अगर एक दिन मजदूरी करने नहीं जाएँ तो शाम में चूल्हा ठंडा रह जाए.ऊपर आसमान नीचे पासवान का नारा देनेवाले रामविलास पासवान की जाति के लोग आज भी हाजीपुर में रिक्शा-ठेला खींच रहे हैं.स्वयं कर्पूरी की जाति के लोगों की दशा भिखारियों जैसी है. हालाँकि कर्पूरी के बेटे जरूर राज भोग रहे हैं और अरबपति हो गए हैं.इसी तरह राजपूतों ने १९८९ में जाति के नाम पर वीपी सिंह को एकतरफा वोट दिया था,क्या मिला?
मित्रों,कहने का मतलब यह है कि जो भी नेता जाति के नाम पर राजनीति कर रहे हैं वे हमें उल्लू बनाकर सिर्फ अपना उल्लू सीधा करते हैं.सवाल उठता है कि चुनावों में हम देश-प्रदेश चलाने के लिए शासक चुनते हैं या दामाद जो जाति को वोट दें? जब हम दामाद चुनेंगे तो फिर दामाद ही मिलेगा वो भी सिर्फ लूटनेवाला. आज भी जब कोई यूपी-बिहार का युवा मुम्बई-अहमदाबाद नौकरी करने जाता है तो उसे हिकारत की नजरों से देखा जाता है. आखिर हम क्यों जाते हैं मुम्बई-अहमदाबाद? क्यों हमारा प्रदेश आज भी उद्योग-विहीन है? क्या इसलिए नहीं क्योंकि हम लंबे समय से विकास की जगह जाति के नाम पर वोट डालते आ रहे हैं?
मित्रों,एक और बात.यूपी में सारी धर्मनिरपेक्ष पार्टियों ने मुस्लिम वोट बैंक को ध्यान में रखकर टिकट बांटे हैं. यह कैसी धर्मनिरपेक्षता है? कोई मुस्लिम तुष्टीकरण करे तो धर्मनिरपेक्षता और कोई सर्वधर्मसमभाव की बात करे तो साम्प्रदायिकता? मैं पहले भी ताल ठोंक के कह चुका हूँ कि देश की चिंता अगर कोई कौम करेगा तो वो हिन्दू होगा मुसलमानों के लिए कभी भी नेशन फर्स्ट नहीं रहा है इंडिया फर्स्ट की तो बात ही दूर है.मैं आज फिर से डंके की चोट पर कहता हूँ कि अगर हम यूपी-बिहार के हिन्दू ऐसे ही दामाद जी को वोट देते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब हर शहर हर बस्ती में धूलागढ़ और कैराना होगा.वैसे भी इन समाजवादियों की नज़रों में हमारी बेटियों की ईज़्ज़त की क्या कीमत है शरद यादव कर्पूरी जयंती के दिन अर्ज कर चुके हैं.आज पूरी दुनिया में भारत का झंडा फहरा रहा है और जनाब फरमाते हैं कि देश की ईज़्ज़त खतरे में है.
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