शनिवार, 4 फ़रवरी 2017

शुभस्य शीघ्रम मोदी जी.


मित्रों,दूरदर्शी सरकार का दूरंदेशी बजट आ चुका है.बजट में एक तर खेती-किसानी को फिर से लाभकारी व्यवसाय बनाने पर जोर दिया गया है तो वहीँ दूसरी ओर देश की आधारभूत संरचना के विकास के साथ-साथ रोजगार-सृजन पर भी पर्याप्त बल दिया गया है.लेकिन अगर आम बजट की सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है तो वो एक खास प्रावधान के लिए जो इस सरकार को निश्चित रूप से पूर्ववर्ती सरकारों से अलग करता है और वह प्रावधान यह है कि अब देश के राजनैतिक दलों को २००० रु. से ज्यादा चंदा लेने पर उसका हिसाब देना होगा.यहाँ मैं यह स्पष्ट कर दूं कि अब तक यह सीमा २०००० रु. की थी और हमारे देश में राजनैतिक दलों को मिलनेवाले चंदे में से ८५ प्रतिशत २०००० रु. से कम होते हैं.यहाँ मैं आपको यह भी बता दूं कि बहुजन समाज पार्टी तो शत-प्रतिशत चंदा २०००० रु. से कम की राशि में प्राप्त करती है अर्थात हिसाब देने की जरुरत ही नहीं.
मित्रों,लेकिन सवाल उठता है कि राजनैतिक दलों को २००० रु. तक का चंदा नकद में और बिना हिसाब-किताब के लेने की छूट दी ही क्यों जाए जबकि सरकार पूरे आर्थिक कारोबार को यथासंभव कैशलेस बनाना चाहती है?रास्ता बतानेवाले को आगे तो चलना पड़ेगा.भ्रष्टाचार की गंगा को अगर सुखाना है तो पहले गंगोत्री को भ्रष्टाचारविहीन करना होगा और वह गंगोत्री हैं राजनैतिक दल.पहले ही केंद्र सरकार की सिफारिश पर चुनाव आयोग ऐसे सैंकड़ों पंजीकृत राजनैतिक दलों की मान्यता रद्द कर चुका है जिन्होंने कभी चुनाव ही नहीं लड़ा और जिनका धंधा ही चंदा लेकर कालेधन को सफ़ेद बनाना था.
मित्रों,अगर दिल पर हाथ रखकर कहें तो आज से चार-पांच साल पहले हम भ्रष्टाचार को लेकर पूरी तरह से निराश हो चुके थे और ऐसा मानने लगे थे कि चंदा प्राप्त करने के मामले में सारे राजनैतिक दल एक-से हैं.हमने मान लिया था कि इस मामले में कभी पारदर्शिता आ ही नहीं सकती क्योंकि ऐसा भी कहीं होता है कि बिल्ली खुद ही अपने गले में घंटी बांध ले.लेकिन सौभाग्यवश वर्तमान केंद्र सरकार ने इस दिशा में प्रचलित मान्यता को विखंडित करने का साहस किया है.लेकिन क्या २०००० की सीमा को २००० में बदल देना काफी होगा?क्या ऐसा कर देने से सारी पार्टियाँ ईमानदार हो जाएंगी? नहीं ऐसा लगता तो नहीं है.फिर क्यों नहीं राजनैतिक दलों के चंदों को पूरी तरह से कैशलेस कर दिया जाए?सौभाग्यवश कमोबेश बांकी के सारे दल भी इस मामले में सरकार का समर्थन कर रहे हैं.तो फिर देरी किस बात की है?शुभस्य शीघ्रम.पता नहीं फिर ऐसा अवसर आए न आए.
मित्रों,इतना ही नहीं सरकार को चाहिए कि राजनैतिक दलों के लिए न सिर्फ आय का शत-प्रतिशत ब्यौरा देना अनिवार्य कर दे बल्कि व्यय का हिसाब देना भी जरूरी कर दिया जाए.जनता को पता तो चले कि राजनैतिक दल चंदे में प्राप्त भारी-भरकम राशि का करते क्या हैं.

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