मित्रों,यह स्वाभाविक
था कि जब ८ नवम्बर को नोटबंदी की घोषणा की गयी तो हाजीपुर में भी पैसों के लिए
अफरातफरी का माहौल उत्पन्न हो गया.खुद हमारे पास भी तब हजार-१२०० से ज्यादा के
खुल्ले नहीं थे.मैं भी ९ तारीख को नोट बदलने पहले प्रधान डाकघर फिर एसबीआई की
मुख्य शाखा में गया लेकिन भारी भीड़ देखकर हिम्मत जवाब दे गयी.संयोगवश ८ नवम्बर को
ही पिताजी का पेंशन आया था और हमलोग वो पैसा भी घर बनाने के लिए बैंक से निकाल चुके थे पर उसमें
भी सिर्फ हजार और पांच सौ के नोट थे.सो मरता क्या न करता मैंने फिर से वो सारा पैसा
और साथ ही गाँव की जमीन को बेचने से आया पैसा अपने बैंक अकाउंट में डाल दिया.फिर
कसमकश शुरू हुई खाते से पैसा निकालने की.दुर्भाग्यवश शुरू के कई दिनों तक एसबीआई
की मुख्य शाखा,यूको बैंक के एटीएम को छोड़कर सारे-के-सारे एटीएम बंद और खाली थे.इस
दौरान मैंने यूको बैंक की गुदरी बाज़ार शाखा से कई बार पैसे निकाले.अभी तक मैंने
यूको बैंक से न तो चेकबुक और न ही डेबिट कार्ड ही लिया था सो आनन-फानन में आवेदन
दिया.दोनों ही चीजें मुझे तत्काल उपलब्ध भी करवा दी गईं.इस दौरान मैंने आईसीआईसीआई
की हाजीपुर शाखा से भी कई बार पैसे निकाले.यहाँ हालाँकि यूको बैंक के मुकाबले
ज्यादा भीड़ रहती थी लेकिन मुझे कभी खाली हाथ लौटना नहीं पड़ा.इस दौरान मैंने जमकर
कार्ड से खरीदारी की और चेक का भी भरपूर उपयोग किया.
मित्रों,जब २००० के
नोट बैंकों में आने लगे तो एक्सिस बैंक के एटीएम में भी नियमित रूप से पैसा निकलने
लगा.इस दौरान मैंने पाया कि नोटबंदी के तत्काल बाद इलाहाबाद बैंक की आरएन कॉलेज शाखा
में भीतर से ताला बंद कर दिया गया और ग्राहकों से लगातार कई हफ्ते तक कहा गया कि बैंक
में नकद आ ही नहीं रहा है.कदाचित इस दौरान मैनेजर अपने निकटतम लोगों को खुश करने में लगा
हुआ था.कई लोगों को मैंने देखा कि वे सुबह में ही आ जाते और फिर दिन ढलने के बाद
उदास मन से वापस चले जाते.इनमें से कई तो वयोवृद्ध पुरुष और महिलायें भी होते थे. लगभग सारे बैंकों
के ग्राहक सेवा केन्द्रों में जिन ग्राहकों के खाते थे वे और भी ज्यादा परेशान रहे.इस
दौरान स्टेट बैंक में काफी भीड़ रही लेकिन फिर भी उसका काम सराहनीय रहा.
मित्रों,बैंक किसी
भी अर्थव्यवस्था की धमनी होते हैं और भारत भी इसका अपवाद नहीं है.मैं पहले भी अर्ज
कर चुका हूँ कि बिहार के प्रति बैंकों का व्यवहार हमेशा से सौतेला रहा है.लेकिन
इसके लिए बैंकों के बिहारी स्टाफ भी कम जिम्मेदार नहीं हैं जो ग्राहकों के साथ
भिखारियों जैसा व्यवहार करते हैं और रिश्वत की उम्मीद करते हैं.
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