मित्रों, जो लोग भी चाहते हैं कि राम मंदिर बने उन लोगों को कल भारी झटका लगा होगा जब भारत के प्रधान सेवक जी ने एक प्रवचन-सदृश साक्षात्कार में साफ़-साफ़ लफ्जों में कह दिया कि उनकी सरकार का राम मंदिर को लेकर अध्यादेश लाने का कोई ईरादा नहीं है. पता नहीं इस सरकार का ईरादा है क्या? वैसे भी जो व्यक्ति ५ साल में रामलला के दर्शन की हिम्मत नहीं जुटा पाया वो मंदिर क्या बनवाएगा.
मित्रों, अभी तक के मोदी सरकार के प्रदर्शन पर अगर हम नजर डालें तो घनघोर निराशा की अनुभूति होती है. पता नहीं ये गुजरात मॉडल होता क्या है जिसको लेकर २०१४ के चुनावों में जमकर ढिंढोरा पीटा गया था. तब तो हम भी उनके झांसे में आ गए थे. शायद मंत्रियों को किनारे कर अपने चापलूस अधिकारियों के बल पर मनमाना शासन करने और विकास के आंकड़े मन-माफिक प्राप्त नहीं होने पर आंकड़ों को ही बदल देने को ही गुजरात मॉडल कहा जाता होगा.
मित्रों, समझ में नहीं आता कि मोदी सरकार के इस निर्णय पर खुश हुआ जाए या रोया जाए. पहली बार भारत के इतिहास में किसी दक्षिणपंथी दल को पूर्ण बहुमत मिला और फिर भी ५ साल के समय को यूं ही बर्बाद कर दिया गया. न तो कालाधन ही वापस आया, न तो पुलिस, न्यायपालिका या नौकरशाही में ही कोई बदलाव हुआ, न तो भ्रष्टाचार घटा और न ही धारा ३७० ही हटा और न ही समान नागरिक संहिता ही लागू हुआ. साथ ही, न तो जनसँख्या-नियंत्रण कानून ही आया. हाँ, इतना जरूर हुआ कि इस दौरान भाजपा ने कांग्रेस बनने का प्रयास खूब किया. एक तरफ तो जमकर कांग्रेसियों को भाजपा में शामिल किया गया वो वहीँ दूसरी ओर अपने परंपरागत वोट-बैंक को अंगूठा दिखाते हुए दलितों, पिछड़ों और मुसलमानों को भाजपा के पक्ष में करने के मूर्खतापूर्ण प्रयास खूब किए गए जिसके दुष्परिणाम ५ राज्यों के चुनावों में सामने आ चुके हैं.
मित्रों, मैं बार-बार लिखता रहा हूँ कि जब भी भारत का इतिहास लिखा जाएगा तीन तलाक को लेकर भाजपा द्वारा किए जा रहे प्रयासों को मोदी की मूर्खता का स्मारक लिखा जाएगा जैसे कि दीने ईलाही को हम अकबर की मूर्खता का स्मारक बताते हैं. समझ में नहीं आता कि जो मुसलमान मोदी को क्षणभर के लिए भी प्रधानमंत्री के पद पर देखना नहीं चाहते उनकी महिलाएँ क्यों मोदी को वोट देंगी? फिर जबकि मोदी सरकार का राज्यसभा में बहुमत है ही नहीं तो कैसे वो इसको वहां से पारित करवाएगी? पता नहीं कि यह सरकार किन मूर्खों की दुनिया में जी रही है? हम देखते कि सरकार अगर राम मंदिर, धारा ३७०, जनसँख्या-नियंत्रण कानून और समान नागरिक संहिता से सम्बंधित विधेयक संसद में लाती तो उसको कौन माई का लाल रोकता? हम ठीक कह रहे हैं न शिवराज जी?
मित्रों, हम बचपन से ही कहानी पढ़ते आ रहे हैं कि एक चालाक कौए ने हंस की चाल चलने की कोशिश की और अपनी ही चाल भूल गया. लगता है कि मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने यह कहानी नहीं पढ़ी है. या हो सकता है कि गुजराती में यह कहानी होती ही नहीं होगी. हम तो अब तक एक ही कांग्रेस से परेशान थे लेकिन मोदी जी ने कांग्रेस-मुक्त भारत की बात करते-करते भाजपा को ही कांग्रेस बना दिया. न जाने क्यों जबसे राहुल गाँधी मंदिर जाने लगा है मोदी जी ने मंदिर जाना बंद कर दिया है तो क्या मोदी जी का मंदिर जाना भी महज दिखावा था राहुल तो दिखावा कर ही रहा है?
मित्रों, अभी तक के मोदी सरकार के प्रदर्शन पर अगर हम नजर डालें तो घनघोर निराशा की अनुभूति होती है. पता नहीं ये गुजरात मॉडल होता क्या है जिसको लेकर २०१४ के चुनावों में जमकर ढिंढोरा पीटा गया था. तब तो हम भी उनके झांसे में आ गए थे. शायद मंत्रियों को किनारे कर अपने चापलूस अधिकारियों के बल पर मनमाना शासन करने और विकास के आंकड़े मन-माफिक प्राप्त नहीं होने पर आंकड़ों को ही बदल देने को ही गुजरात मॉडल कहा जाता होगा.
मित्रों, समझ में नहीं आता कि मोदी सरकार के इस निर्णय पर खुश हुआ जाए या रोया जाए. पहली बार भारत के इतिहास में किसी दक्षिणपंथी दल को पूर्ण बहुमत मिला और फिर भी ५ साल के समय को यूं ही बर्बाद कर दिया गया. न तो कालाधन ही वापस आया, न तो पुलिस, न्यायपालिका या नौकरशाही में ही कोई बदलाव हुआ, न तो भ्रष्टाचार घटा और न ही धारा ३७० ही हटा और न ही समान नागरिक संहिता ही लागू हुआ. साथ ही, न तो जनसँख्या-नियंत्रण कानून ही आया. हाँ, इतना जरूर हुआ कि इस दौरान भाजपा ने कांग्रेस बनने का प्रयास खूब किया. एक तरफ तो जमकर कांग्रेसियों को भाजपा में शामिल किया गया वो वहीँ दूसरी ओर अपने परंपरागत वोट-बैंक को अंगूठा दिखाते हुए दलितों, पिछड़ों और मुसलमानों को भाजपा के पक्ष में करने के मूर्खतापूर्ण प्रयास खूब किए गए जिसके दुष्परिणाम ५ राज्यों के चुनावों में सामने आ चुके हैं.
मित्रों, मैं बार-बार लिखता रहा हूँ कि जब भी भारत का इतिहास लिखा जाएगा तीन तलाक को लेकर भाजपा द्वारा किए जा रहे प्रयासों को मोदी की मूर्खता का स्मारक लिखा जाएगा जैसे कि दीने ईलाही को हम अकबर की मूर्खता का स्मारक बताते हैं. समझ में नहीं आता कि जो मुसलमान मोदी को क्षणभर के लिए भी प्रधानमंत्री के पद पर देखना नहीं चाहते उनकी महिलाएँ क्यों मोदी को वोट देंगी? फिर जबकि मोदी सरकार का राज्यसभा में बहुमत है ही नहीं तो कैसे वो इसको वहां से पारित करवाएगी? पता नहीं कि यह सरकार किन मूर्खों की दुनिया में जी रही है? हम देखते कि सरकार अगर राम मंदिर, धारा ३७०, जनसँख्या-नियंत्रण कानून और समान नागरिक संहिता से सम्बंधित विधेयक संसद में लाती तो उसको कौन माई का लाल रोकता? हम ठीक कह रहे हैं न शिवराज जी?
मित्रों, हम बचपन से ही कहानी पढ़ते आ रहे हैं कि एक चालाक कौए ने हंस की चाल चलने की कोशिश की और अपनी ही चाल भूल गया. लगता है कि मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने यह कहानी नहीं पढ़ी है. या हो सकता है कि गुजराती में यह कहानी होती ही नहीं होगी. हम तो अब तक एक ही कांग्रेस से परेशान थे लेकिन मोदी जी ने कांग्रेस-मुक्त भारत की बात करते-करते भाजपा को ही कांग्रेस बना दिया. न जाने क्यों जबसे राहुल गाँधी मंदिर जाने लगा है मोदी जी ने मंदिर जाना बंद कर दिया है तो क्या मोदी जी का मंदिर जाना भी महज दिखावा था राहुल तो दिखावा कर ही रहा है?
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