मित्रों, आपने जागो ग्राहक जागो वाला प्रचार काफी बार टीवी,रेडियो और
समाचार-पत्रों में देखा होगा. पहले यह प्रचार पेट्रोल पम्पों पर भी लगा
रहता था पर अब वहां सिर्फ मोदी जी नजर आते हैं वो भी खिलंदड अंदाज में
हँसते-मुस्कुराते हुए. तो मैं कह रहा था कि आपको हमारे इस आलेख के शीर्षक
को लेकर कतई परेशान नहीं होना चाहिए. दरअसल सरकार देश की जनता को जगाती है
और हम बिगडैल पत्रकार सरकार को जगाते हैं. जब सरकार सो जाती है तब हमारी
ड्यूटी शुरू होती है.
मित्रों,दरअसल
हुआ यह कि पिछले दिनों मैंने फेसबुक पर फैक्ट्री सेल्स डॉट नेट नामक
वेबसाइट का एक प्रचार देखा. कहा गया था कि ११०० रूपये में एक सैमसंग का
२०५०० एमएएच का पॉवर बैंक और एक सैमसंग का ६४ जीबी का मेमोरी कार्ड प्राप्त
करें. जब कूरियर वाले को भुगतान करने के बाद मैंने पैकेट फाड़ा तो पाया कि
उसमें एमआई का १०००० एमएएच का पॉवरबैंक और सैमसंग का ६४ जीबी का मेमोरी
कार्ड पड़ा था और दोनों ही नकली थे. दिल्ली में दोनों दो-तीन सौ रूपये में
बिकते हुए देखे जा सकते हैं. खैर मैंने कंपनी के नंबर पर डायल किया तो वो
भी बंद. फिर उसके ईमेल पर मेल किया मगर हफ़्तों तक कोई जवाब नहीं आया. फिर
हमने नमो ऐप पर शिकायत कर दी. शिकायत करने के दो-तीन दिन के बाद एक नंबर से
फोन आया और मुझसे ठगी का पूरा ब्यौरा माँगा गया. ट्रू कॉलर के अनुसार फोन
जागो ग्राहक जागो से आया था. मुझे उन लोगों ने उपभोक्ता फोरम में जाने की
सलाह दी. तब तक मैंने पूरा वृतांत फेसबुक पर डाल दिया था. शिकायत करनेवालों
की लाईन लग गई कि मेरे साथ भी ऐसा हुआ है. मतलब कि लाइसेंस तो सरकार दे और
मुकदमा लड़ते रहें हम. मुकदमा करने पर एक मेरा पैसा मिल भी जाता है तो
बांकी लोग जो ठगे गए उनका क्या?
मित्रों, जाहिर है कि मैं अकेला नहीं ठगा गया था बल्कि मेरे जैसे हजारों थे और शायद ठगी करने वाली यह अकेली ऑनलाइन कंपनी भी नहीं है बल्कि कई सारी कंपनियां ऐसा कर रही होंगी. मैंने कहता हूँ कि ऑनलाइन ट्रेड को सरकार खूब बढ़ावा दे लेकिन ग्राहकों की सुरक्षा का भी इंतजाम करे. ऐसा नहीं होना चाहिए कि हम जब शिकायत करें तो उसकी जांच करने के बदले हमें अदालत जाने को कहा जाए. मैंने पूछता हूँ कि फिर सरकार की जरुरत ही क्या है? सब कुछ बाजार के हवाले कर दो बाज़ार चाहे तो लोगों को लूट ले, मार दे या छोड़ दे.
मित्रों, मोदी सरकार की एक और भी कमजोरी है और वो यह है कि मोदी सरकार से कोई गलती हो जाए तो वो अपनी गलती मानती ही नहीं जैसे मोदी और उनके साथी इंसान नहीं भगवान हों जिनसे कभी कोई गलती हो ही नहीं सकती. अब जब गलती मानेंगे ही नहीं तो उसे सुधारेंगे कैसे? उदाहरण के लिए नोटबंदी को ही लें तो सर्वेक्षणों के अनुसार इसके चलते हजारों लघु उद्योग बंद हो गए और १५ लाख लोग पूरी तरह से बेरोजगार हो गए. इतना ही नहीं करीब ५० लाख लोगों को इसके चलते रोजगार में घाटा उठाना पड़ा लेकिन सरकार ने आज तक नहीं माना कि नोटबंदी से कोई नुकसान भी हुआ जबकि इसका असर देश की जीडीपी पर भी पड़ा. मेरी समझ में आजतक यह नहीं आया कि ५०० और १००० के नोट तब क्यों प्रचालन से बाहर कर दिए गए जबकि नए नोट छापे ही नहीं गए थे और उनकी जगह नए नोट लाये भी गए क्यों २००० के नोट लाये गए? मतलब पहले से भी बड़े नोट. इतना ही नहीं नोटबंदी के चलते पडोसी मुल्क नेपाल से भारत के सम्बन्ध ख़राब हो गए लेकिन सरकार को जैसे कोई मतलब ही नहीं, कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा. इसी तरह से बेवजह और मूर्खतापूर्ण तरीके से जीएसटी की दरों को ऊँचा रखा गया जिसे अब कम किया जा रहा है.साथ ही नोटबंदी की तरह ही जीएसटी को भी बिना किसी पूर्व तैयारी के अचानक लागू कर दिया गया.
मित्रों, कुल मिलाकर देश के हालात ऐसे हैं कि इस समय जनता को जगाने की आवश्यकता कम खुद सरकार को जगाने की जरुरत ज्यादा है. गोया हमारे प्रधान सेवक अपने को २४ घंटे जागनेवाला चौकीदार बताते हैं मगर सरकार के काम-काज को देखकर लगता है कि सरकार कुम्भकर्णी निद्रा में सोयी पड़ी है. उसे अविलम्ब देश की सबसे बड़ी समस्या जनसँख्या-विस्फोट को रोकने के लिए कानून बनाना चाहिए था लेकिन नहीं बनाया गया, उसे भ्रष्टाचार पर प्रहार करना चाहिए था लेकिन वो खुद राफेल में उलझी पड़ी है, उसे न्यायिक प्रक्रिया में सुधार लाना चाहिए था जिससे लोगों के न्याय पाना संभव भी हो सके, उसे पुलिस के कामकाज में सुधार लाना चाहिए था, उसे न्यायाधीशों को जिम्मेदार बनाना चाहिए था, उसे राम मंदिर बनाने के लिए अध्यादेश लाना चाहिए था, उसे कृषि आधारित उद्योगों को बढ़ावा देना चाहिए था, उसे १०० रूपये से ज्यादा के सारे नोटों के प्रचलन पर रोक लगा देनी चाहिए, उसे सीबीआई को पूरी तरह से स्वायत्तता से काम करने देना चाहिए था, उसे लोकपाल के पद की स्थापना करनी चाहिए थी, उसे मुख्य सूचना आयुक्त के आदेशों का पालन करना चाहिए था, उसे शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के लिए कदम उठाने थे, उसे राजनैतिक दलों को मिलनेवाले चंदों को पूरी तरह से पारदर्शी बना देना चाहिए था, उसे एमपी फण्ड और सांसदों-विधायकों को मिलनेवाले पेंशनों को समाप्त कर देना चाहिए था,उसे सरकारी नौकरियों का खजाना खोल देना चाहिए था, उसे ऐसे काम करने चाहिए थे जिससे करोड़ों नए रोजगार पैदा होते,उसे योग्य लोगों को मंत्री बनाना चाहिए था इत्यादि. मैं नहीं जानता कि आगे मोदी सरकार क्या करने जा रही है. वो जागेगी भी या नहीं या फिर इसी तरह नीम बेहोशी की अवस्था में पड़ी-पड़ी रुखसत हो जाएगी. फिर पोस्टमार्टम,अफ़सोस और रोना-धोना. फिर, फिर से वही नाउम्मीदी और मायूसी का गहन और निरंतर गहन होते जानेवाला अंधकार.
नित बढ़ रही आत्ममुग्धता को घटाना है, अतिआत्मविश्वास को भगाना है, बहुत मेहनत करनी होगी हमें सरकार को जगाना है. रिक्त हो रहा भरोसा पवित्र फिर से गंगा को लाना है, निज अभिमान को भगाना है, बहुत मेहनत करनी होगी हमें सरकार को जगाना है. सरकार को जगाना है. ......
मित्रों, जाहिर है कि मैं अकेला नहीं ठगा गया था बल्कि मेरे जैसे हजारों थे और शायद ठगी करने वाली यह अकेली ऑनलाइन कंपनी भी नहीं है बल्कि कई सारी कंपनियां ऐसा कर रही होंगी. मैंने कहता हूँ कि ऑनलाइन ट्रेड को सरकार खूब बढ़ावा दे लेकिन ग्राहकों की सुरक्षा का भी इंतजाम करे. ऐसा नहीं होना चाहिए कि हम जब शिकायत करें तो उसकी जांच करने के बदले हमें अदालत जाने को कहा जाए. मैंने पूछता हूँ कि फिर सरकार की जरुरत ही क्या है? सब कुछ बाजार के हवाले कर दो बाज़ार चाहे तो लोगों को लूट ले, मार दे या छोड़ दे.
मित्रों, मोदी सरकार की एक और भी कमजोरी है और वो यह है कि मोदी सरकार से कोई गलती हो जाए तो वो अपनी गलती मानती ही नहीं जैसे मोदी और उनके साथी इंसान नहीं भगवान हों जिनसे कभी कोई गलती हो ही नहीं सकती. अब जब गलती मानेंगे ही नहीं तो उसे सुधारेंगे कैसे? उदाहरण के लिए नोटबंदी को ही लें तो सर्वेक्षणों के अनुसार इसके चलते हजारों लघु उद्योग बंद हो गए और १५ लाख लोग पूरी तरह से बेरोजगार हो गए. इतना ही नहीं करीब ५० लाख लोगों को इसके चलते रोजगार में घाटा उठाना पड़ा लेकिन सरकार ने आज तक नहीं माना कि नोटबंदी से कोई नुकसान भी हुआ जबकि इसका असर देश की जीडीपी पर भी पड़ा. मेरी समझ में आजतक यह नहीं आया कि ५०० और १००० के नोट तब क्यों प्रचालन से बाहर कर दिए गए जबकि नए नोट छापे ही नहीं गए थे और उनकी जगह नए नोट लाये भी गए क्यों २००० के नोट लाये गए? मतलब पहले से भी बड़े नोट. इतना ही नहीं नोटबंदी के चलते पडोसी मुल्क नेपाल से भारत के सम्बन्ध ख़राब हो गए लेकिन सरकार को जैसे कोई मतलब ही नहीं, कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा. इसी तरह से बेवजह और मूर्खतापूर्ण तरीके से जीएसटी की दरों को ऊँचा रखा गया जिसे अब कम किया जा रहा है.साथ ही नोटबंदी की तरह ही जीएसटी को भी बिना किसी पूर्व तैयारी के अचानक लागू कर दिया गया.
मित्रों, कुल मिलाकर देश के हालात ऐसे हैं कि इस समय जनता को जगाने की आवश्यकता कम खुद सरकार को जगाने की जरुरत ज्यादा है. गोया हमारे प्रधान सेवक अपने को २४ घंटे जागनेवाला चौकीदार बताते हैं मगर सरकार के काम-काज को देखकर लगता है कि सरकार कुम्भकर्णी निद्रा में सोयी पड़ी है. उसे अविलम्ब देश की सबसे बड़ी समस्या जनसँख्या-विस्फोट को रोकने के लिए कानून बनाना चाहिए था लेकिन नहीं बनाया गया, उसे भ्रष्टाचार पर प्रहार करना चाहिए था लेकिन वो खुद राफेल में उलझी पड़ी है, उसे न्यायिक प्रक्रिया में सुधार लाना चाहिए था जिससे लोगों के न्याय पाना संभव भी हो सके, उसे पुलिस के कामकाज में सुधार लाना चाहिए था, उसे न्यायाधीशों को जिम्मेदार बनाना चाहिए था, उसे राम मंदिर बनाने के लिए अध्यादेश लाना चाहिए था, उसे कृषि आधारित उद्योगों को बढ़ावा देना चाहिए था, उसे १०० रूपये से ज्यादा के सारे नोटों के प्रचलन पर रोक लगा देनी चाहिए, उसे सीबीआई को पूरी तरह से स्वायत्तता से काम करने देना चाहिए था, उसे लोकपाल के पद की स्थापना करनी चाहिए थी, उसे मुख्य सूचना आयुक्त के आदेशों का पालन करना चाहिए था, उसे शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के लिए कदम उठाने थे, उसे राजनैतिक दलों को मिलनेवाले चंदों को पूरी तरह से पारदर्शी बना देना चाहिए था, उसे एमपी फण्ड और सांसदों-विधायकों को मिलनेवाले पेंशनों को समाप्त कर देना चाहिए था,उसे सरकारी नौकरियों का खजाना खोल देना चाहिए था, उसे ऐसे काम करने चाहिए थे जिससे करोड़ों नए रोजगार पैदा होते,उसे योग्य लोगों को मंत्री बनाना चाहिए था इत्यादि. मैं नहीं जानता कि आगे मोदी सरकार क्या करने जा रही है. वो जागेगी भी या नहीं या फिर इसी तरह नीम बेहोशी की अवस्था में पड़ी-पड़ी रुखसत हो जाएगी. फिर पोस्टमार्टम,अफ़सोस और रोना-धोना. फिर, फिर से वही नाउम्मीदी और मायूसी का गहन और निरंतर गहन होते जानेवाला अंधकार.
नित बढ़ रही आत्ममुग्धता को घटाना है, अतिआत्मविश्वास को भगाना है, बहुत मेहनत करनी होगी हमें सरकार को जगाना है. रिक्त हो रहा भरोसा पवित्र फिर से गंगा को लाना है, निज अभिमान को भगाना है, बहुत मेहनत करनी होगी हमें सरकार को जगाना है. सरकार को जगाना है. ......
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें