शुक्रवार, 28 मार्च 2025

ईश्वर जजों का सर्वनाश करे

अब नहीं डरेंगे.. लिखेंगे ✊✊ मेरी कलम चलेगी.. ✍️ चला दो मुझपर अवमानना का केस, भगतसिंह डरे होते फांसी के फंदे से तो क्या आजादी मिल पाती.?? कलंकित होने के बाद भी.... न्यायपालिका के जज नहीं सुधर सकते - ईश्वर सभी जजों का सर्वनाश करें - जजों की वजह से बलात्कार हो रहे हैं और वो जज ही दंगों के लिए दोषी हैं..!! जस्टिस यशवंत वर्मा के घपले ने न्यायपालिका और उसमे बैठे जजों के मुख पर कालिख पोत दी, न्यायपालिका को ऐसा हमाम साबित कर दिया जिसमें सब नंगे हैं.... पूरा लेख कमेंट में है, जरुर पढ़िए.. अब किसी पर विश्वास नहीं किया जा सकता.. -कलंकित होने के बाद भी जज अपने में कुछ सुधार लाने को तैयार नहीं लग रहे और इसलिए मैं तो ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि ऐसे सभी जजों का सर्वनाश करें। वर्तमान न्यायपालिका का पुनर्निर्माण करने की जरूरत है और वह तब ही हो सकता है जब इस व्यवस्था को ख़त्म कर दिया जाए... यानी नई सृष्टि का निर्माण करने के लिए वर्तमान सृष्टि को मिटाना जरूरी है। इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस राम मनोहर मिश्रा ने 19 मार्च, 2025 के फैसले में कहा था कि- “स्तनों को दबाना और लड़की के कपड़े उतारने की कोशिश करने से रेप की कोशिश साबित नहीं होती - ऐसा करना रेप की तैयारी करना है, रेप करना नहीं है।” मैंने अपने 20 मार्च के लेख में लिखा था “यानी जज साहब चाहते हैं कि रेप होना ही चाहिए था” परसों जस्टिस मिश्रा के फैसले के खिलाफ किसी वकील ने सुप्रीम कोर्ट में PIL दायर की थी जिस पर सुनवाई जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की... वकील ने अपनी दलील शुरू करते हुए “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” का जब जिक्र किया तो जस्टिस बेला त्रिवेदी ने कहा कि वकील की तरफ से कोर्ट में कोई “lecture baji” नहीं होनी चाहिए और यह कह कर याचिका को खारिज कर दिया। ये वही बेला त्रिवेदी हैं जिन्होंने मध्यप्रदेश की एक 4 साल की बच्ची के बलात्कारी और हत्यारे की फांसी की सजा उम्रकैद में बदलते हुए कहा था कि Every Sinner Has A Future... इसका मतलब था उन्हें बच्ची के जीवन से कोई मतलब नहीं था और परसों याचिका को खारिज करने का भी मतलब यही निकलता है कि वह भी जस्टिस मिश्रा की तरह बच्चियों के रेप को सही मानती हैं। और यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि न्यायपालिका में बैठे “कथित न्यायाधीश” ही बलात्कार के लिए जिम्मेदार हैं। ऐसे बेशर्मों को ऊपर वाले से कुछ तो डरना चाहिए और इसलिए मैं कहता हूं ऐसे जजों का ईश्वर सर्वनाश करें... परसों ही बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच के जस्टिस नितिन साम्ब्रे और जस्टिस वृषाली जोशी की पीठ ने नागपुर हिंसा के मुख्य आरोपी फहीम खान के घर पर बुलडोज़र चला कर गिराने को स्टे कर दिया... लेकिन यह आदेश होने तक उसका घर गिर चुका था, फिर भी बेंच ने दूसरे अन्य मुख्य आरोपी युसूफ शेख के घर के अवैध हिस्से को गिराने के काम पर रोक लगा दी। ये बेशर्म जज, मतलब दंगाइयों के साथ खड़े हो गए? उनके घर की रक्षा कर रहे हो कानूनी दावपेच से तो उन्होंने जो लोगों के घरों को और सरकार एवं निजी संपत्तियों को आग लगाई वह किस अधिकार से लगाई? पहले भी दंगाइयों को कई हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट बचाते रहे हैं.. और इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि न्यायपालिका में बैठे जज ही दंगों के लिए जिम्मेदार हैं। मतलब ये जज ही बलात्कार को बढ़ावा दे रहे हैं और दंगे भी करा रहे हैं। नागपुर बेंच के जजों को चाहिए कि जितने भी दंगाई पुलिस ने पकड़े हैं, उन सभी को छोड़ दें। पूरी न्यायपालिका का मुंह काला हुआ है लेकिन लगता है इन लोगों को काला मुंह बहुत पसंद है... दंगाइयों और बलात्कारियों को संरक्षण देने से पहले ऐसे जजों को जवाब देना चाहिए कि बलात्कारी और दंगाई किस मौलिक अधिकार से ऐसा कुकर्म करते हैं? आपने जाकर “दंगो” को स्टे क्यों नहीं किया?? “आदमी को चाहिए वक्त से डर कर रहे, कौन जाने किस घड़ी वक्त का बदले मिज़ाज” जब राम की लाठी पड़ती है तो आवाज़ नहीं होती, यह याद रहे..!!-साभार पंडित नेतन्याहू मिश्रा के एक्स ट्विट से

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