सोमवार, 1 अप्रैल 2024

एससी-एसटी एक्ट का दुरुपयोग

मित्रों, यूं तो मैंने इन दिनों आलेख लिखना काफी कम कर दिया है. एक तो स्वास्थ्य साथ नहीं देता तो वहीँ दूसरी ओर निजी समस्याओं ने परेशान कर रखा है लेकिन पिछले दिनों घटी दो घटनाओं ने मुझे इस आलेख को लिखने के लिए बाध्य कर दिया है. पहली घटना १९ मार्च की है. मैं बता दूं कि मेरे घर के पीछे पहले महिला थाना था जो अब पुलिस लाइन, हाजीपुर के पास मुजफ्फरपुर रोड में चला गया है. जब तक मेरे पड़ोस में महिला थाना था तब तक मोहल्ले के दुसाधों की मौज रही. उनके ही बीच का एक दुसाध विनोद महिला थाने में दलाली जो करता था. तब भोर के ३-४ बजे से मोहल्ले के दुसाध थाना के शौचालय में शौच के लिए जाने लगते. दिनभर मोटर चलाते और ठंडा पानी से नहाते, कपडे धोते. कभी-कभी मोटर जल जाता तो विनोद बनवा देता, शौचालय भी साफ़ करवा देता. लेकिन हुआ यूं कि पिछले साल ५ सितम्बर को महिला थाना यहाँ से पुलिस लाईन में चला गया और यहाँ पहले साईबर थाना और बाद में जढुआ ओपी भी खुल गया. विनोद भी अब महिला थाना के नए परिसर में दलाली करने लगा. अब शुरू हुई परेशानी, नए पुलिसवाले दुसाधों को रोकने लगे जो स्वाभाविक भी था. क्योंकि दुसाधों को तो सिर्फ शौच करने से मतलब था साफ़ कौन करता या करवाता? मित्रों, १९ मार्च को जब कोई दुसाध थाना परिसर में शौच करने और कूड़ा फेंकने आया तो थानेदार धर्मेन्द्र ने उसे रोकने की कोशिश की. फिर क्या था एससी एक्ट की ऐंठन से ऐंठे युवक ने भाई के साथ मिलकर थानेदार को उठाकर पटक दिया. थानेदार जान बचाकर भागे क्योंकि उस समय थाना में मात्र २-३ पुलिसकर्मी ही थे जबकि कुछ ही मिनट में दुसाधों ने थाना को घेर लिया और पथराव करने लगे. साथ ही थाना के सामने की सड़क को जाम कर थानेदार को एससी-एसटी एक्ट में फंसा देने की धमकी देने के साथ-साथ भद्दी-भद्दी गालियाँ भी देने लगे. हंगामा बढ़ता देख नगर थाना को फोन किया गया. जब भारी संख्या में पुलिस फ़ोर्स जमा हो गई तब एक महिला सहित चार लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया जिनको बाद में जेल भेज दिया गया. विनोद पर लोगों को भड़काने का आरोप लगाया गया. इन दिनों वो फरार चल रहा है. साथ ही थानेदार का तबादला कर दिया गया. मित्रों, अब आते हैं दूसरी घटना पर जो होली के दिन की है. हुआ यूं कि वैशाली जिले के ही महनार थाना के जगरनाथपुर में गाँव के ही चमारों ने एक पीपल के पेड़ पर नीला झंडा लगा दिया और वहां लिखकर टांग दिया कि यहाँ राजपूतों का प्रवेश निषेध है. चूँकि पीपल का पेड़ राजपूतों की जमीन पर था इसलिए जब राजपूत विरोध करने के लिए पहुंचे तब योजनाबद्ध तरीके से उनके ऊपर लाठी और ईट-पत्थरों से हमला कर दिया गया जिससे कई राजपूत युवक लहू-लुहान हो गए. गजब तो तब हुआ कि जब वे लोग थाना पर केस करने पहुंचे तो उलटे उन चारों राजपूतों को एससी एक्ट के तहत गिरफ्तार कर लिया गया. मतलब कि मार भी उनको ही पड़ी और जेल भी उनको ही जाना पड़ा. साथ ही केस में नाम होने के चलते कई राजपूत बेवजह इन दिनों फरारी का जीवन जी रहे हैं जबकि किसानों के लिए यह समय काफी महत्वपूर्ण है. मित्रों, समझ में नहीं आता कि इस एससी-एसटी एक्ट को मोदी सरकार ने संशोधित क्यों किया जबकि सुप्रीम कोर्ट ने इसके भारी संख्या में दुरुपयोग को देखते हुए इस एक्ट के मामले में जांच से पहले गिरफ़्तारी पर रोक लगा दी थी? रोजाना उत्तर प्रदेश से इस एक्ट के दुरुपयोग की खबरें हम अब तक पढ़ते आ रहे थे लेकिन अब तो बिहार में भी इसका दुरुपयोग होने लगा और मेरी आँखों के आगे हो रहा है. यहाँ मैं पूछना चाहते हूँ कि अगर धर्मेन्द्र थानेदार नहीं होते तो इस समय जेल में कौन होता? उनके ऊपर हमला करनवाले दुसाध या खुद धर्मेन्द्र? इस तरह तो गैर अनुसूचित जाति के हिन्दुओं का खुद अपने ही गाँव में रहना मुश्किल हो जाएगा साथ ही नौकरी करने में भी समस्या आएगी. जब थानेदार को एक्ट के दम पर थाना में पीटा जा सकता है तो आम आदमी की क्या बिसात?

कोई टिप्पणी नहीं: