बुधवार, 17 अप्रैल 2024

केके पाठक का बढ़ता पागलपन

मित्रों, दुनिया में कुछ लोग काम के पीछे पागल होते हैं तो कुछ नाम के पीछे। बिहार में एक आईएएस अधिकारी ऐसे ही हैं जो दिखावा तो काम का करते हैं लेकिन दरअसल उनका लक्ष्य सिर्फ नाम बटोरना है। मित्रों, बिहार के उस पागल अधिकारी का नाम है केके पाठक। श्रीमान अपनी मर्जी के मालिक हैं। मंत्री यहां तक कि मुख्यमंत्री विधानसभा में कुछ भी बोलें इनको कोई मतलब नहीं। श्रीमान को हम नौकरशाही की पराकाष्ठा भी कह सकते हैं और निरंकुशता की चरम सीमा भी। मित्रों, आपने माता दुर्गा की प्रतिमा को देखा होगा। माता की सवारी सिंह है जो शक्ति का प्रतीक है लेकिन लोक जन रंजन पद पंकज रूपी माता के पैरों तले है। लोकतंत्र में भी शक्ति यानि नौकरशाही को जनप्रतिनिधियों के पैरों तले होना चाहिए लेकिन केके पाठक जी ने तो हद ही कर रखी है। ये तो मुख्यमंत्री तक की नहीं मानते। मित्रों, शिक्षा विभाग से पहले श्रीमान उत्पाद विभाग के सर्वेसर्वा थे। वहां भी इन्होंने हजारों ड्रोन खरीद डाले। कहा कि आसमान से शराब तस्करों की निगरानी करेंगे। मगर जब परिणाम शून्य बटा सन्नाटा रहा तब श्रीमान अधिकारियों के साथ गाली-गलौज करने लगे। शिक्षा विभाग में भी इन्होंने इन दिनों खूब बंदरकूद मचा रखी है लेकिन परिणाम अबतक शून्य बटा सन्नाटा ही है। सरकारी स्कूलों में शिक्षा के स्तर में कोई सुधार नहीं हुआ है। अलबत्ता इन्होंने नाकारा शिक्षकों को बिहार सरकार का कर्मचारी जरूर बना दिया है। मित्रों, जब श्रीमान सरकारी स्कूलों में कुछ खास सुधार नहीं कर पाए तो विश्वविद्यालय शिक्षकों और शिक्षकेतर कर्मचारियों को तंग करने लगे और उनका वेतन-पेंशन रोक दिया। इतना ही नहीं सीधे राज्यपाल से उलझ भी गए जबकि कानूनन विश्वविद्यालय स्वायत्त संस्था होते हैं और राज्यपाल उनके कुलाधिपति होते हैं। न जाने कब बिहार के भूखे-प्यासे विश्वविद्यालय शिक्षकों और शिक्षकेतर कर्मचारियों को वेतन-पेंशन मिलेगा तीन महीनों से तो नहीं मिला है। मित्रों, इतना ही नहीं अब तो श्रीमान ने चुनाव आयोग के खिलाफ भी मोर्चा खोल दिया है जबकि पूरे देश में आचार-संहिता लागू है। मल्लब श्रीमान खुद को सबसे ऊपर समझते हैं. क्या पता कब सर्वोच्च न्यायालय और प्रधानमंत्री जी को भी कोई निर्देश दे डालें महामहिम राज्यपाल महोदय तक तो पहुँच ही गए हैं.

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