मित्रों, किसी महान लेटलतीफ भारतीय ने कभी अपनी लेटलतीफी के बचाव में शायद यह महान मुहावरा गढ़ा होगा-देर आयद दुरूस्त आयद। लेटलतीफी हम भारतीयों के खून में जो है। बाद में भारतीय रेल ने इसे किंचित संशोधन के साथ अपना लिया-दुर्घटना से देर भली। लेकिन कोई जरूरी नहीं कि विलंबित ताल में निबद्ध हरेक रचना महान ही हो। कभी-कभी ऐसा भी हो जाता है कि खिचड़ी बनने में काफी देर लग जाए और फिर भी खिचड़ी अधपकी हो या फिर जल गई हो। अब कांग्रेस पार्टी द्बारा केंद्रीय मंत्रीमंडल में किए गए बदलाव को ही लीजिए जिसके लिए काफी समय से लोगों की आँखें 10 जनपथ पर लगी हुई थीं। बदलाव हुआ जरूर है लेकिन वैसा नहीं जैसी कि उम्मीद की जा रही थी। बल्कि इस परिवर्तन के बहाने कुछ ऐसे भी कदम उठाए गए हैं जो जनता की आशाओं के नितांत विपरीत हैं। उदाहरण के लिए मलाईदार और अतिघोटाला संभावित मंत्रालय में काबिज होते हुए भी अब तक सीएजी की नजर में ईमानदार रहे जयपाल रेड्डी को पदावनत कर विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय में भेज दिया गया है। जिस तरह सोमवार को रेड्डी ने अपना नया कार्यभार नहीं संभाला उससे तो यही कयास लगाया जा रहा है कि इसके पीछे हो-न-हो उद्योगपति मुकेश अंबानी का हाथ है।
मित्रों, जहाँ एक तरफ जयपाल रेड्डी को उनकी ईमानदारी के लिए दंडित किया गया है वहीं "दाग अच्छे हैं" की अपनी पुरानी नीति पर चलते हुए असहाय विकलांगों का पैसा खा जानेवाले सलमान खुर्शीद को पुरस्कृत करते हुए अतिमहत्त्वपूर्ण विदेश मंत्रालय की बागडोर सौंप दी गई है। इतना ही नहीं आईपीएल की कालेधन की बहती गंगा में हाथ धोने के बदले जमकर स्नान करने के आरोपी शशि थरुर को भी फिर से मंत्री बना दिया गया है। अभी कुछ ही दिन पहले कांग्रेस पार्टी ने लोकसभा अध्यक्ष से मिलीभगत कर राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में अभूतपूर्व कौशल का प्रदर्शन करने के आरोपी सुरेश कलमाड़ी और 2-जी स्पेक्ट्रम के आवंटन में घोटालों का विश्व कीर्तिमान स्थापित करनेवाले ए. राजा को अतिमहत्त्वपूर्ण संसदीय समितियों का सदस्य बनवाकर भी कांग्रेस नेतृत्व ने यही संकेत दिया था कि उसका "दाग अच्छे हैं" की नीति में अभी भी अटूट निष्ठा है। अब जहाँ नेतृत्व की नीति ही उल्टी गंगा बहाने की हो वहाँ आसानी से यह समझा जा सकता है कि नए आनेवाले मंत्रियों से नेतृत्व की क्या अपेक्षाएं हैं और नेतृत्व ने उनको किस प्रकार से या किस प्रकार के काम करने के निर्देश दिए होंगे।
मित्रों, काफी समय पहले महनार में अजंता सर्कस लगा था। तभी एक नए हाथी को सर्कस में शामिल किया गया। जोर-शोर से लाउडस्पीकरों से प्रचार किया गया कि सर्कस में लाया गया हाथी कमाल का है इसलिए यह कमाल के करतब भी दिखाएगा, जैसे-यह फुटबॉल खेलेगा,सूंड से बल्ला पकड़कर क्रिकेट खेलेगा,गेंदबाजी भी करेगा,बाबा रामदेव की तरह योगासन भी करेगा इत्यादि। सर्कस देखने के लिए घोषित तिथि को लोगों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। बैठे हुए लोगों से कई गुणा ज्यादा संख्या ऐसे दर्शकों की थी जो खड़े थे। फिर बेकरारी भरा वह पल भी आया जब उक्त हाथी को प्रदर्शन के लिए उपस्थित किया गया। सामने एक फुटबॉल रखा गया जिसे हाथी को किक करना था। हाथी आया और चुपचाप खड़ा हो गया। प्रशिक्षक ने कई-कई बार बार-बार आवाज लगाई लेकिन हाथी अपनी जगह से हिला ही नहीं। ईधर दर्शकों का धैर्य भी जवाब देने लगा था। वे अपना गुस्सा बेजान कुर्सियों पर उतारने लगे। अंत में जब अंकुश से हाथी के मस्तक पर प्रहार किया गया तो उसने अपने पिछले पैरों को मोड़ लिया और पहले तो पटाखा छूटने की-सी धमाकेदार ध्वनि उत्पन्न करनेवाला गैस-विसर्जन किया और फिर बैठ गया। और तभी हमारे राज्य वैशाली जिले में एक नई कहावत ने जन्म लिया-हाथी अयलन (आया) हाथी,हाथी पदलक (पादा) पोएं। रविवार को कांग्रेसरूपी हाथी (बतौर खुर्शीद साहब) द्वारा केंद्र सरकार में किया गया विस्तार और हेर-फेर भी कुछ ऐसी ही घटना है। इस करतब के द्वारा सिर्फ वोट-बैंक को साधने और बेईमानों को प्रोत्साहित करने और ईमानदारों को दंडित करने की ईमानदार कोशिश की गई है। जहां तक युवाओं को ज्यादा संख्या में सरकार में शामिल करने और जिम्मेदारी का काम सौंपने का सवाल है तो सरकार और पार्टी की रसातल में जा चुकी साख को फिर से आसमान की बुलंदियों तक उठाने के लिए मंत्रियों का सिर्फ युवा होना ही काफी नहीं हो सकता बल्कि सबसे बड़ी शर्त तो ईमानदारी होती है जो कि नेतृत्व को चाहिए ही नहीं।