मित्रों,एक बार फिर से कथित गांधीवादी अन्ना हजारे जंतर मंतर पर धरना पर
बैठे हुए हैं। उनका साथ महान धरनावादी नेता अरविंद केजरीवाल भी देने जा
रहे हैं। कहने को तो अन्ना हजारे भूमि अधिग्रहण बिल के विरोध में धरना कर
रहे हैं लेकिन वास्तव में धरने के पीछे की सच्चाई क्या है यह कोई नहीं
जानता। क्या अन्ना निःस्वार्थ व्यक्ति हैं या धरना करना उनका पेशा है
अर्थात् अन्ना पैसे लेकर धरना देते हैं? जिस तरह से अन्ना द्वारा पिछले
सालों में किए गए अनशनों में जमा पैसों को ठिकाने लगा दिया गया और जिस तरह
स्वामी अग्निवेश ने टीम अन्ना के अहम सदस्य अरविंद केजरीवाल पर आरोप लगाया
था कि उन्होंने आईएसी के नाम पर मिलने वाले 80 लाख रुपये को अपने निजी
ट्रस्ट में जमा कराया था को देखते हुए तो प्रथम दृष्ट्या यही प्रतीत हो रहा
है कि अन्ना हजारे न केवल एक पेशेवर धरनेबाज और अनशनकर्ता है बल्कि वंदे
मातरम् के नारे का दुरुपयोग करनेवाला देशद्रोही भी है,खद्दर की उजली धोती
पहननेवाला बगुला भगत है। आईएसी के संस्थापकों में से एक अग्निवेश के
मुताबिक केजरीवाल ने आईएसी के नाम से खाता खोलने में देरी की, जबकि कोर
कमिटी ने आईएसी के नाम से खाता खोलने के कई बार निर्देश दिए। उन्होंने कहा
कि केजरीवाल ने आईएसी के नाम से खाता खोलने की बजाय भ्रष्टाचार विरोधी
आंदोलन में प्राप्त दान को अपने निजी ट्रस्ट पब्लिस कॉज रिसर्च फाउंडेशन
में जमा कराया।
मित्रों,क्या यह आश्चर्यजनक नहीं है कि जो व्यक्ति एक मंदिर में रहता हो और अपने-आपको सादगी की प्रतिमूर्ति कहता हो वो विशेष विमान से यात्रा करे और बड़ी-बड़ी गाड़ियों के काफिलों के साथ चले। सवाल उठता है कि यह सादगी की प्रतिमूर्ति विमान-यात्रा और महंगे वाहनों से चलने के लिए पैसे कहाँ से लाता है? क्या इसके लिए उसको फोर्ड फाउंडेशन या फोर्ड फाउंडेशन से अनुदान प्राप्त (अ)लाभकारी संस्थाओं या फिर आम आदमी पार्टी से पैसे मिले हैं? अन्ना ने घोषणा की थी कि उनके मंच पर कोई नेता नहीं आएगा फिर आप पार्टी से चुनाव लड़ चुकी मेधा पाटेकर उनके मंच से भाषण कैसे दे रही है? अन्ना अगर शुरू से अंत तक पूरी तरह से गैर राजनैतिक व्यक्तित्व रहे हैं तो फिर अरविंद केजरीवाल उनसे मिलने महाराष्ट्र सदन क्यों गए थे? 22 फरवरी को अन्ना ने कहा कि केजरीवाल का मंच पर स्वागत है फिर कल कहा कि वे केजरीवाल को मंच पर नहीं आने देंगे जबकि मनीष सिसोदिया का दावा है कि केजरीवाल अन्ना के साथ मंच साझा करेंगे। आखिर यह कैसा गड़बड़झाला है? अन्ना और केजरीवाल के संबंधों पर तो यही कहा जा सकता है कि खुली पलक पर झूठा गुस्सा बंद पलक में प्यार?
मित्रों,जिस तरह अन्ना ने आंदोलन शुरू किया था और जिस तरह यह आंदोलन आगे बढ़ा और जिस तरह से आंदोलन के दौरान किरण बेदी को बदनाम कर केजरीवाल को महिमामंडित किया गया इस पूरे घटनाक्रम को देखकर बहुत ही आसानी से यह समझा जा सकता है कि अन्ना+टीम केजरीवाल का आंदोलन शुरू से ही एक राजनैतिक आंदोलन था और छिपे हुए राजनैतिक और भारत-विरोधी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आयोजित किया गया था जिसकी डोर कहीं दूर सात समंदर पार फोर्ड फाउंडेशन के हाथों में थी। ओबामा द्वारा सोनिया गांधी से मुलाकात और उसके बाद उनका धार्मिक सद्भाव पर प्रवचन देना कहीं-न-कहीं इस बात का इशारा कर रहा है कि अमेरिका भीतर-ही-भीतर मोदी सरकार से खुश नहीं है और नरेंद्र मोदी से उनकी नजदीकी स्वाभाविक नहीं बल्कि मजबूरी है।
मित्रों,सवाल उठता है कि धरना पर बैठे अन्ना के ईर्द-गिर्द कौन-से लोग हैं? क्या ये लोग भारत का विकास चाहते हैं,या ये लोग चाहते हैं कि भारत की ऊर्जा जरुरतों को पूरा किया जाए,क्या ये लोग चाहते हैं कि भारत विकास के मामले में दुनिया का सिरमौर बने,क्या ये लोग चाहते हैं कि भारत की सैन्य ताकत के मामले में इतना आत्मनिर्भर हो जाए कि दुनिया का कोई भी देश उसको आँखें न दिखाए,क्या ये लोग चाहते हैं कि भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था में चीन का स्थान ले ले और दुनिया की फैक्ट्री बने,क्या ये लोग चाहते हैं कि भारत की युवाशक्ति को अभिशाप से वरदान में बदल दिया जाए और दुनिया के दूसरे देशों के लोग उसी तरह भारत आने को लालायित हों जिस तरह आज भारतीय अमेरिका जाने का सपना देखते हैं,क्या ये लोग चाहते हैं कि सारी सरकारी सुविधा लोगों को मोबाईल पर ही प्राप्त हो जाए,क्या ये लोग चाहते हैं कि पूरे भारत में विश्वस्तरीय सड़कों का जाल बिछे,क्या ये लोग चाहते हैं कि भारत के हर खेत को पानी मिले,क्या ये लोग चाहते हैं कि भारतीय रेल लेटलतीफी के लिए कुख्यात होने के बजाए अपनी रफ्तार के लिए जानी जाए,क्या ये लोग चाहते हैं कि भारत में सरकारी शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का स्तर दुनिया में सर्वश्रेष्ठ हो,क्या ये लोग चाहते हैं कि भारत की जीडीपी 2 ट्रिलियन डॉलर के बजाए 20 ट्रिलियन डॉलर हो जाए? इन सारे सवालों का बस एक ही उत्तर है नहीं,बिल्कुल भी नहीं। बल्कि अन्ना और उनके साथ धरना देने वाले संगठन और संगठनों के लोग यह चाहते हैं कि भारत हमेशा साँपों और सँपेरों का देश ही बना रहे,भारत का बिजली-उत्पादन इसी तरह जरुरत से काफी कम पर बना रहे,युवाशक्ति के हाथों में कलम या कंप्यूटर का माऊस नहीं हो बल्कि बंदूकें हों,भारत दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक बनने के बदले सबसे बड़ा आयातक बना रहे।
मित्रों,जहाँ तक भूमि अधिग्रहण अध्यादेश का प्रश्न है तो अभी तक यह सिर्फ एक अध्यादेश है। इस पर विधेय़क आएगा,उस पर संसद में विचार होगा और तब तमाम संशोधनों के बाद वह कानून का रूप लेगा। मतलब कि अभी तो उबलते हुए पानी में चावल डाला तक नहीं गया है और अन्ना भात जल गया,भात जल गया चिल्लाने लगे हैं। फिर केंद्र सरकार बार-बार यह कह रही है कि वो इस मामले पर सदन में खुले दिमाग से चर्चा करवाएगी फिर अन्ना को धरने पर बैठने की जल्दी क्यों थी? केंद्र सरकार न तो भूमि अधिग्रहण को इतना आसान बनाना चाहती है कि कोई सरकार जब चाहे तब किसी किसान की जमीन छीन ले और न ही इतना कठिन कि विकास के कार्यों के लिए जमीन प्राप्त करना सर्वथा असंभव ही हो जाए फिर अन्ना को परेशानी क्या है? विदेशों से जो कंपनियाँ भारत में कारखाना खोलने के लिए आएंगी क्या वो हवा में कारखाने खोलेगी? केजरीवाल सरकार जब विद्युत तापघर स्थापित करेगी तो क्या वो जमीन के बदले आसमान में स्थापित करेगी? नए स्कूलों और नए महाविद्यालयों को हवा में बनाया जाएगा? केंद्र सरकार तो खुद ही कह रही है कि किसानों का हित उसकी सर्वोच्च प्राथमिकता है और इस दिशा में भूमि स्वास्थ्य कार्ड,प्रधानमंत्री सिंचाई योजना जैसे तरह-तरह के इंतजाम भी कर रही है फिर अन्ना हजारों को धरना पर बैठने की जल्दीबाजी क्यों थी या है? जब केजरीवाल सरकार को वादों को पूरा करने के लिए पूरा 5 साल चाहिए तो मोदी सरकार को 5 साल क्यों नहीं दिया जाना चाहिए? मोदी सरकार ने कोयले की लगभग पूरी रायल्टी राज्य सरकारों को दे दी,कोयला खानों की पारदर्शी नीलामी करवाई,2 जी स्पेक्ट्रमों की पारदर्शी नीलामी करवाने जा रही है,सारी सब्सिडियों को सीधे गरीबों के खातों तक पहुँचाने की व्यवस्था करने जा रही है,केंद्रीय मंत्रालयों में रोजाना कारपोरेट चूहों की धरपकड़ हो रही है,अंबानी पर जुर्माना हो रहा है,बंगाल से लेकर केरल तक के घोटालेबाज-हत्यारे राजनेताओं को जेल भेजा जा रहा है,सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में सांसदों और विधायकों पर चल रहे आपराधिक कांडों का स्पीडी ट्रायल करवाया जा रहा है। ऐसे में क्या अन्ना अंधे हैं या फिर उनका मोदी विरोध विपक्षी दलों की तरह सिर्फ विरोध के लिए विरोध नहीं है?
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
मित्रों,क्या यह आश्चर्यजनक नहीं है कि जो व्यक्ति एक मंदिर में रहता हो और अपने-आपको सादगी की प्रतिमूर्ति कहता हो वो विशेष विमान से यात्रा करे और बड़ी-बड़ी गाड़ियों के काफिलों के साथ चले। सवाल उठता है कि यह सादगी की प्रतिमूर्ति विमान-यात्रा और महंगे वाहनों से चलने के लिए पैसे कहाँ से लाता है? क्या इसके लिए उसको फोर्ड फाउंडेशन या फोर्ड फाउंडेशन से अनुदान प्राप्त (अ)लाभकारी संस्थाओं या फिर आम आदमी पार्टी से पैसे मिले हैं? अन्ना ने घोषणा की थी कि उनके मंच पर कोई नेता नहीं आएगा फिर आप पार्टी से चुनाव लड़ चुकी मेधा पाटेकर उनके मंच से भाषण कैसे दे रही है? अन्ना अगर शुरू से अंत तक पूरी तरह से गैर राजनैतिक व्यक्तित्व रहे हैं तो फिर अरविंद केजरीवाल उनसे मिलने महाराष्ट्र सदन क्यों गए थे? 22 फरवरी को अन्ना ने कहा कि केजरीवाल का मंच पर स्वागत है फिर कल कहा कि वे केजरीवाल को मंच पर नहीं आने देंगे जबकि मनीष सिसोदिया का दावा है कि केजरीवाल अन्ना के साथ मंच साझा करेंगे। आखिर यह कैसा गड़बड़झाला है? अन्ना और केजरीवाल के संबंधों पर तो यही कहा जा सकता है कि खुली पलक पर झूठा गुस्सा बंद पलक में प्यार?
मित्रों,जिस तरह अन्ना ने आंदोलन शुरू किया था और जिस तरह यह आंदोलन आगे बढ़ा और जिस तरह से आंदोलन के दौरान किरण बेदी को बदनाम कर केजरीवाल को महिमामंडित किया गया इस पूरे घटनाक्रम को देखकर बहुत ही आसानी से यह समझा जा सकता है कि अन्ना+टीम केजरीवाल का आंदोलन शुरू से ही एक राजनैतिक आंदोलन था और छिपे हुए राजनैतिक और भारत-विरोधी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आयोजित किया गया था जिसकी डोर कहीं दूर सात समंदर पार फोर्ड फाउंडेशन के हाथों में थी। ओबामा द्वारा सोनिया गांधी से मुलाकात और उसके बाद उनका धार्मिक सद्भाव पर प्रवचन देना कहीं-न-कहीं इस बात का इशारा कर रहा है कि अमेरिका भीतर-ही-भीतर मोदी सरकार से खुश नहीं है और नरेंद्र मोदी से उनकी नजदीकी स्वाभाविक नहीं बल्कि मजबूरी है।
मित्रों,सवाल उठता है कि धरना पर बैठे अन्ना के ईर्द-गिर्द कौन-से लोग हैं? क्या ये लोग भारत का विकास चाहते हैं,या ये लोग चाहते हैं कि भारत की ऊर्जा जरुरतों को पूरा किया जाए,क्या ये लोग चाहते हैं कि भारत विकास के मामले में दुनिया का सिरमौर बने,क्या ये लोग चाहते हैं कि भारत की सैन्य ताकत के मामले में इतना आत्मनिर्भर हो जाए कि दुनिया का कोई भी देश उसको आँखें न दिखाए,क्या ये लोग चाहते हैं कि भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था में चीन का स्थान ले ले और दुनिया की फैक्ट्री बने,क्या ये लोग चाहते हैं कि भारत की युवाशक्ति को अभिशाप से वरदान में बदल दिया जाए और दुनिया के दूसरे देशों के लोग उसी तरह भारत आने को लालायित हों जिस तरह आज भारतीय अमेरिका जाने का सपना देखते हैं,क्या ये लोग चाहते हैं कि सारी सरकारी सुविधा लोगों को मोबाईल पर ही प्राप्त हो जाए,क्या ये लोग चाहते हैं कि पूरे भारत में विश्वस्तरीय सड़कों का जाल बिछे,क्या ये लोग चाहते हैं कि भारत के हर खेत को पानी मिले,क्या ये लोग चाहते हैं कि भारतीय रेल लेटलतीफी के लिए कुख्यात होने के बजाए अपनी रफ्तार के लिए जानी जाए,क्या ये लोग चाहते हैं कि भारत में सरकारी शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का स्तर दुनिया में सर्वश्रेष्ठ हो,क्या ये लोग चाहते हैं कि भारत की जीडीपी 2 ट्रिलियन डॉलर के बजाए 20 ट्रिलियन डॉलर हो जाए? इन सारे सवालों का बस एक ही उत्तर है नहीं,बिल्कुल भी नहीं। बल्कि अन्ना और उनके साथ धरना देने वाले संगठन और संगठनों के लोग यह चाहते हैं कि भारत हमेशा साँपों और सँपेरों का देश ही बना रहे,भारत का बिजली-उत्पादन इसी तरह जरुरत से काफी कम पर बना रहे,युवाशक्ति के हाथों में कलम या कंप्यूटर का माऊस नहीं हो बल्कि बंदूकें हों,भारत दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक बनने के बदले सबसे बड़ा आयातक बना रहे।
मित्रों,जहाँ तक भूमि अधिग्रहण अध्यादेश का प्रश्न है तो अभी तक यह सिर्फ एक अध्यादेश है। इस पर विधेय़क आएगा,उस पर संसद में विचार होगा और तब तमाम संशोधनों के बाद वह कानून का रूप लेगा। मतलब कि अभी तो उबलते हुए पानी में चावल डाला तक नहीं गया है और अन्ना भात जल गया,भात जल गया चिल्लाने लगे हैं। फिर केंद्र सरकार बार-बार यह कह रही है कि वो इस मामले पर सदन में खुले दिमाग से चर्चा करवाएगी फिर अन्ना को धरने पर बैठने की जल्दी क्यों थी? केंद्र सरकार न तो भूमि अधिग्रहण को इतना आसान बनाना चाहती है कि कोई सरकार जब चाहे तब किसी किसान की जमीन छीन ले और न ही इतना कठिन कि विकास के कार्यों के लिए जमीन प्राप्त करना सर्वथा असंभव ही हो जाए फिर अन्ना को परेशानी क्या है? विदेशों से जो कंपनियाँ भारत में कारखाना खोलने के लिए आएंगी क्या वो हवा में कारखाने खोलेगी? केजरीवाल सरकार जब विद्युत तापघर स्थापित करेगी तो क्या वो जमीन के बदले आसमान में स्थापित करेगी? नए स्कूलों और नए महाविद्यालयों को हवा में बनाया जाएगा? केंद्र सरकार तो खुद ही कह रही है कि किसानों का हित उसकी सर्वोच्च प्राथमिकता है और इस दिशा में भूमि स्वास्थ्य कार्ड,प्रधानमंत्री सिंचाई योजना जैसे तरह-तरह के इंतजाम भी कर रही है फिर अन्ना हजारों को धरना पर बैठने की जल्दीबाजी क्यों थी या है? जब केजरीवाल सरकार को वादों को पूरा करने के लिए पूरा 5 साल चाहिए तो मोदी सरकार को 5 साल क्यों नहीं दिया जाना चाहिए? मोदी सरकार ने कोयले की लगभग पूरी रायल्टी राज्य सरकारों को दे दी,कोयला खानों की पारदर्शी नीलामी करवाई,2 जी स्पेक्ट्रमों की पारदर्शी नीलामी करवाने जा रही है,सारी सब्सिडियों को सीधे गरीबों के खातों तक पहुँचाने की व्यवस्था करने जा रही है,केंद्रीय मंत्रालयों में रोजाना कारपोरेट चूहों की धरपकड़ हो रही है,अंबानी पर जुर्माना हो रहा है,बंगाल से लेकर केरल तक के घोटालेबाज-हत्यारे राजनेताओं को जेल भेजा जा रहा है,सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में सांसदों और विधायकों पर चल रहे आपराधिक कांडों का स्पीडी ट्रायल करवाया जा रहा है। ऐसे में क्या अन्ना अंधे हैं या फिर उनका मोदी विरोध विपक्षी दलों की तरह सिर्फ विरोध के लिए विरोध नहीं है?
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)