राघोपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,अपने गृह-प्रखंड राघोपुर (वैशाली) के
बारे में हम बचपन से ही पढ़ते आ रहे हैं कि यह एक नदी द्वीप है जिसके चारों
तरफ से गंगा बहती है। लेकिन अब राघोपुर को देखता हूँ तो पाता हूँ कि यह न
सिर्फ एक नदी द्वीप है बल्कि भ्रष्टाचार का टापू भी है। एक ऐसा टापू जहाँ
आकर केंद्र और राज्य सरकार की सारी योजनाएँ दम तोड़ जाती हैं या फिर
भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती हैं।
मित्रों,हरि अनंत हरि कथा अनंता अर्थात राघोपुर में व्याप्त अव्यवस्था के बारे में मैं तो क्या श्रीगणेशजी भी संपूर्णता से वर्णित नहीं कर सकते। हमारे प्रखंड में करीब एक-डेढ़ दशक पहले सामुदायिक शौचालय निर्माण की योजना आई। आज अगर आप प्रखंड में घूमेंगे तो पाएंगे कि कहीं भी सामुदायिक शौचालय बना ही नहीं। ठेकेदारों ने बदले में अपने-अपने घरों में शौचालय बनवा लिए। इसी तरह इस प्रखंड में उनलोगों को भी इंदिरा आवास योजना के तहत पूरी की पूरी राशि दे दी गई जिनके पहले से ही छतदार मकान थे।
मित्रों,इसी तरह आपको इस प्रखंड में कई ऐसे पंचायत मिल जाएंगे जहाँ कि पिछले कई सालों से वृद्धावस्था या विधवा पेंशन का वितरण ही नहीं हुआ है। पूछने पर अधिकारी बताते हैं कि लाभान्वितों का रिकार्ड ही नहीं मिल रहा। पिछले वर्षों में कई बीडीओ यहाँ आए और चले भी गए लेकिन यह गुत्थी आज भी अनसुलझी की अनसुलझी ही है।
मित्रों,अगर आप चकौसन घाट से नदी पार करने के बाद चकसिंगार की तरफ बढ़ेंगे तो देखेंगे कि चकसिंगार में एक पुलिया गिरी पड़ी है। यह एक ऐसी पुलिया है जो बनने के साथ ही धराशायी हो गई जाहिर है कि निर्माण में गुणवत्ता को ध्यान में रखा ही नहीं गया बल्कि पैसा निर्माण पर ज्यादा जोर दिया गया। पुलिया बनी और गिरी। कई साल बीत गए लेकिन न तो ठेकेदार के खिलाफ कोई कार्रवाई हुई और न ही संबंधित अभियंता के विरूद्ध ही।
मित्रों,चाहे नीतीश कुमार जितने भी दावे कर लें लेकिन सच्चाई तो यही है कि राघोपुर प्रखंड का एक बहुत बड़ा हिस्सा आज भी लालटेन युग में जीने को विवश है। रात होते ही राघोपुर के कई पंचायत अंधेरे में डूब जाते हैं। कहीं ट्रांसफॉर्मर नहीं है तो कहीं तार।
मित्रों,राघोपुर प्रखंड में अगर सबसे खराब स्थिति किसी चीज की है तो वह है सरकारी शिक्षा। बीआरसी यानि ब्लॉक रिसोर्स सेंटर और क्लस्टर रिसोर्स सेंटरों की मिलीभगत से यहाँ के विद्यालयों के अधिकतर शिक्षक सिर्फ वेतन लेने विद्यालय आते हैं। हर महीने सीआरसी के समन्वयक को निर्धारित राशि पहुँचाते रहिए और घर पर खेती कराईए या फिर दुकान चलाईए। हाँ,अगर आप महिला हैं या स्कूलवाले गांव के ही हैं तो फिर और भी सोने पर सुहागा। अब जब शिक्षक रहेगा ही नहीं तो पढ़ाएगा कौन? प्रखंड के कई गांवों के स्कूलों में तो इतना अधिक नामांकन है जितने कि गांव में बच्चे भी नहीं हैं। नहीं समझे क्या? ज्यादा नामांकन होगा तभी तो भ्रष्टाचार की खिचड़ी ज्यादा से ज्यादा मात्रा में पकाई जा सकेगी और हेडमास्टरों और सहायक शिक्षकों के वारे-न्यारे हो सकेंगे।
मित्रों,संभवतः पूरे वैशाली जिले में राघोपुर प्रखंड ही ऐसा इकलौता प्रखंड है जहाँ कि पुलिस पब्लिक के रहमोकरम पर जीती है। कभी थाने में घुसकर कोई दारोगा को मार जाता है और प्रशासन उसका बाल बाँका भी नहीं कर पाता तो कभी कोई बाजाप्ता फोन करके दारोगा को जान से मारने की धमकी देता है और दारोगा उसका कुछ भी नहीं उखाड़ पाता।
मित्रों,जहाँ हाजीपुर शहर की जनवितरण प्रणाली की दुकानों में हर महीने सामानों का वितरण किया जाता है वहीं राघोपुर में साल में दो बार भी अगर वितरण हो जाए तो लोग भगवान का शुक्रिया अदा करते हैं। प्रखंड के आंगनबाड़ियों का तो कहना ही क्या? कई स्थानों पर तो आंगनबाड़ी का धरातल पर अस्तित्व ही नहीं है और हर महीनों हजारों बच्चे लाभान्वित भी हो जा रहे हैं। कुपोषण को तो आंगनबाड़ियों ने प्रखंड से निकाल बाहर ही कर दिया है।
मित्रों,यूँ तो वैशाली प्रशासन के लिए राघोपुर हमेशा से टेढ़ी खीर रहा है लेकिन मैं नहीं मानता कि राघोपुर को चुस्त-दुरूस्त नहीं किया जा सकता। इसकी भौगोलिक स्थिति इस दिशा में उतनी बड़ी बाधा नहीं है जितनी बड़ी बाधा बिहार सरकार और उसके अधिकारियों की ईच्छा-शक्ति की कमजोरी है। माना कि साल के 6 महीने तक इस क्षेत्र में सिर्फ नावों के जरिए ही पहुँचा जा सकता है लेकिन बाँकी के 6 महीनों तक तो दो-दो पीपा पुलों की मदद से कभी भी कहीं भी अधिकारी आ-जा सकते हैं। इन 6 महीनों में तो प्रखंड में बहुत-कुछ सुधार लाया जा सकता है। एक और बात,जब तक राघोपुर से होकर पक्के पुल का निर्माण नहीं हो जाता तब तक गंगा के उत्तर पार से भी कम-से-कम एक पीपा पुल का निर्माण तो होना ही चाहिए क्योंकि वैशाली पुलिस-प्रशासन को पीपा पुल चालू होने की स्थिति में भी पटना होकर राघोपुर जाना पड़ता है जो कि गंगा सेतु पर महाजाम लगा होने पर लगभग असंभव-सा हो जाता है।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
मित्रों,हरि अनंत हरि कथा अनंता अर्थात राघोपुर में व्याप्त अव्यवस्था के बारे में मैं तो क्या श्रीगणेशजी भी संपूर्णता से वर्णित नहीं कर सकते। हमारे प्रखंड में करीब एक-डेढ़ दशक पहले सामुदायिक शौचालय निर्माण की योजना आई। आज अगर आप प्रखंड में घूमेंगे तो पाएंगे कि कहीं भी सामुदायिक शौचालय बना ही नहीं। ठेकेदारों ने बदले में अपने-अपने घरों में शौचालय बनवा लिए। इसी तरह इस प्रखंड में उनलोगों को भी इंदिरा आवास योजना के तहत पूरी की पूरी राशि दे दी गई जिनके पहले से ही छतदार मकान थे।
मित्रों,इसी तरह आपको इस प्रखंड में कई ऐसे पंचायत मिल जाएंगे जहाँ कि पिछले कई सालों से वृद्धावस्था या विधवा पेंशन का वितरण ही नहीं हुआ है। पूछने पर अधिकारी बताते हैं कि लाभान्वितों का रिकार्ड ही नहीं मिल रहा। पिछले वर्षों में कई बीडीओ यहाँ आए और चले भी गए लेकिन यह गुत्थी आज भी अनसुलझी की अनसुलझी ही है।
मित्रों,अगर आप चकौसन घाट से नदी पार करने के बाद चकसिंगार की तरफ बढ़ेंगे तो देखेंगे कि चकसिंगार में एक पुलिया गिरी पड़ी है। यह एक ऐसी पुलिया है जो बनने के साथ ही धराशायी हो गई जाहिर है कि निर्माण में गुणवत्ता को ध्यान में रखा ही नहीं गया बल्कि पैसा निर्माण पर ज्यादा जोर दिया गया। पुलिया बनी और गिरी। कई साल बीत गए लेकिन न तो ठेकेदार के खिलाफ कोई कार्रवाई हुई और न ही संबंधित अभियंता के विरूद्ध ही।
मित्रों,चाहे नीतीश कुमार जितने भी दावे कर लें लेकिन सच्चाई तो यही है कि राघोपुर प्रखंड का एक बहुत बड़ा हिस्सा आज भी लालटेन युग में जीने को विवश है। रात होते ही राघोपुर के कई पंचायत अंधेरे में डूब जाते हैं। कहीं ट्रांसफॉर्मर नहीं है तो कहीं तार।
मित्रों,राघोपुर प्रखंड में अगर सबसे खराब स्थिति किसी चीज की है तो वह है सरकारी शिक्षा। बीआरसी यानि ब्लॉक रिसोर्स सेंटर और क्लस्टर रिसोर्स सेंटरों की मिलीभगत से यहाँ के विद्यालयों के अधिकतर शिक्षक सिर्फ वेतन लेने विद्यालय आते हैं। हर महीने सीआरसी के समन्वयक को निर्धारित राशि पहुँचाते रहिए और घर पर खेती कराईए या फिर दुकान चलाईए। हाँ,अगर आप महिला हैं या स्कूलवाले गांव के ही हैं तो फिर और भी सोने पर सुहागा। अब जब शिक्षक रहेगा ही नहीं तो पढ़ाएगा कौन? प्रखंड के कई गांवों के स्कूलों में तो इतना अधिक नामांकन है जितने कि गांव में बच्चे भी नहीं हैं। नहीं समझे क्या? ज्यादा नामांकन होगा तभी तो भ्रष्टाचार की खिचड़ी ज्यादा से ज्यादा मात्रा में पकाई जा सकेगी और हेडमास्टरों और सहायक शिक्षकों के वारे-न्यारे हो सकेंगे।
मित्रों,संभवतः पूरे वैशाली जिले में राघोपुर प्रखंड ही ऐसा इकलौता प्रखंड है जहाँ कि पुलिस पब्लिक के रहमोकरम पर जीती है। कभी थाने में घुसकर कोई दारोगा को मार जाता है और प्रशासन उसका बाल बाँका भी नहीं कर पाता तो कभी कोई बाजाप्ता फोन करके दारोगा को जान से मारने की धमकी देता है और दारोगा उसका कुछ भी नहीं उखाड़ पाता।
मित्रों,जहाँ हाजीपुर शहर की जनवितरण प्रणाली की दुकानों में हर महीने सामानों का वितरण किया जाता है वहीं राघोपुर में साल में दो बार भी अगर वितरण हो जाए तो लोग भगवान का शुक्रिया अदा करते हैं। प्रखंड के आंगनबाड़ियों का तो कहना ही क्या? कई स्थानों पर तो आंगनबाड़ी का धरातल पर अस्तित्व ही नहीं है और हर महीनों हजारों बच्चे लाभान्वित भी हो जा रहे हैं। कुपोषण को तो आंगनबाड़ियों ने प्रखंड से निकाल बाहर ही कर दिया है।
मित्रों,यूँ तो वैशाली प्रशासन के लिए राघोपुर हमेशा से टेढ़ी खीर रहा है लेकिन मैं नहीं मानता कि राघोपुर को चुस्त-दुरूस्त नहीं किया जा सकता। इसकी भौगोलिक स्थिति इस दिशा में उतनी बड़ी बाधा नहीं है जितनी बड़ी बाधा बिहार सरकार और उसके अधिकारियों की ईच्छा-शक्ति की कमजोरी है। माना कि साल के 6 महीने तक इस क्षेत्र में सिर्फ नावों के जरिए ही पहुँचा जा सकता है लेकिन बाँकी के 6 महीनों तक तो दो-दो पीपा पुलों की मदद से कभी भी कहीं भी अधिकारी आ-जा सकते हैं। इन 6 महीनों में तो प्रखंड में बहुत-कुछ सुधार लाया जा सकता है। एक और बात,जब तक राघोपुर से होकर पक्के पुल का निर्माण नहीं हो जाता तब तक गंगा के उत्तर पार से भी कम-से-कम एक पीपा पुल का निर्माण तो होना ही चाहिए क्योंकि वैशाली पुलिस-प्रशासन को पीपा पुल चालू होने की स्थिति में भी पटना होकर राघोपुर जाना पड़ता है जो कि गंगा सेतु पर महाजाम लगा होने पर लगभग असंभव-सा हो जाता है।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)