मित्रों, अगर मैं ये कहूं कि पिछले कुछ साल और खासकर कुछ महीने भारतीय कूटनीति के लिए स्वर्णिम रहे हैं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. वैसे अपने जीवन में लगातार अप्रत्याशित परिस्थितियों का सामना करनेवाला व्यक्ति अतिरंजनापूर्ण बातें कर भी नहीं सकता.
मित्रों, आप समझ गए होंगे कि मैं भारत-चीन संबंध के सम्बन्ध में बात कर रहा हूँ. इसमें कोई संदेह नहीं पिछले ३ दशकों में चीन अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में हमसे काफी आगे निकल चुका है. लेकिन मैं हमेशा से ऐसा मानता रहा हूँ कि भारत ने इस दौरान जो अवसर खोया चीन ने उसी को लपक लिया. वरना जिस तरह आज भारत एफडीआई के क्षेत्र में दुनिया में नंबर एक है ३ दशक पहले भी हो सकता था, २ दशक पहले भी हो सकता था. सबसे बड़ी बात तो यह है कि भारत में लोकतंत्र था, कायदा था, कानून था बस नहीं थी तो व्यवस्था. वहीँ चीन में तानाशाही थी, एकदलीय शासन था,कानून नहीं था परन्तु व्यवस्था थी.
मित्रों, नरेन्द्र मोदी ने शासन में आने के साथ ही बस इतना किया कि पुराने फिजूल कानूनों को समाप्त कर कानून को कम कर दिया और व्यवस्था को स्थापित किया. डीबीटीएल, प्रत्येक सेवा को ऑनलाइन करना, नोटबंदी, जीएसटी इत्यादि कदम इस दिशा में उठाए गए.
मित्रों, वैदेशिक कूटनीति के क्षेत्र में भी कई बदलाव किए गए. कथित आदर्शवादी नेहरु सिद्धांत जिस पर चल कर भारत को अपनी लाखों वर्ग किलोमीटर जमीन पिद्दी जैसे देशो के हाथों खोना पड़ा था को टाटा बाई-बाई कर दिया गया और एक साथ दुनिया के सारे गुटों के देशो के साथ संबंधों में सुधार पर जोड़ दिया गया. इसी बदलाव का नतीजा है कि चीन को भारत के खिलाफ पहली बार डोकलाम में मुंह की खानी पड़ी और अपनी सेना वापस हटानी पड़ी. इतना ही नहीं चीन को मन मारकर ब्रिक्स के घोषणापत्र में पाकिस्तान से संचालित हो रहे भारत-विरोधी आतंकी संगठनों के खिलाफ प्रस्ताव को मंजूरी देनी पड़ी. आज से ४ साल पहले सोनिया-शासन में क्या हम इस बात की कल्पना भी कर सकते थे?
मित्रों, कुछ लोग जिनको रतौंधी की बीमारी है और जिनका पूर्णकालिक कार्य मोदी सरकार के प्रत्येक अच्छे-बुरे काम की बुराई करना है वे इन दिनों नोटबंदी, जीडीपी और जीएसटी को लेकर रुदाली-रूदन करने में लगे हैं. नोटबंदी और बेनामी संपत्ति पर कार्रवाई से चाहे अर्थव्यवस्था को जो भी तात्कालिक नुकसान हुआ हो लोगों में ईमानदारी की प्रवृत्ति बढ़ी है इसमें कोई संदेह नहीं और मैं समझता हूँ कि यही एक अकेली उपलब्धि बहुत बड़ी है. आज लगभग सारी सरकारी सेवाएँ मोबाइल पर उपलब्ध हैं. आयकर ढांचे में सुधार लाने से आयकरदाताओं की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है तो वहीँ जीएसटी लागू करने से पूरा-का पूरा व्यापार सुनियोजित हुआ है जिसका लाभ कर-वसूली के क्षेत्र में दिखने भी लगा है और भविष्य में आधारभूत संरचना के क्षेत्र में भी दिखेगा इसमें संदेह नहीं.
मित्रों, सबसे अच्छी बात यह है कि विरोधियों के तमाम विधवा-विलाप के बावजूद अभी भी आम जनता का मोदी सरकार के प्रति विश्वास बना हुआ है. तमाम सर्वेक्षण भी इसकी पुष्टि करते हैं. ऐसे में मोदी सरकार चाहे तो भविष्य में और भी कड़े कदम उठा सकती है हालाँकि अब २०१९ भी ज्यादा दूर नहीं रह गया है.
मित्रों, आप समझ गए होंगे कि मैं भारत-चीन संबंध के सम्बन्ध में बात कर रहा हूँ. इसमें कोई संदेह नहीं पिछले ३ दशकों में चीन अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में हमसे काफी आगे निकल चुका है. लेकिन मैं हमेशा से ऐसा मानता रहा हूँ कि भारत ने इस दौरान जो अवसर खोया चीन ने उसी को लपक लिया. वरना जिस तरह आज भारत एफडीआई के क्षेत्र में दुनिया में नंबर एक है ३ दशक पहले भी हो सकता था, २ दशक पहले भी हो सकता था. सबसे बड़ी बात तो यह है कि भारत में लोकतंत्र था, कायदा था, कानून था बस नहीं थी तो व्यवस्था. वहीँ चीन में तानाशाही थी, एकदलीय शासन था,कानून नहीं था परन्तु व्यवस्था थी.
मित्रों, नरेन्द्र मोदी ने शासन में आने के साथ ही बस इतना किया कि पुराने फिजूल कानूनों को समाप्त कर कानून को कम कर दिया और व्यवस्था को स्थापित किया. डीबीटीएल, प्रत्येक सेवा को ऑनलाइन करना, नोटबंदी, जीएसटी इत्यादि कदम इस दिशा में उठाए गए.
मित्रों, वैदेशिक कूटनीति के क्षेत्र में भी कई बदलाव किए गए. कथित आदर्शवादी नेहरु सिद्धांत जिस पर चल कर भारत को अपनी लाखों वर्ग किलोमीटर जमीन पिद्दी जैसे देशो के हाथों खोना पड़ा था को टाटा बाई-बाई कर दिया गया और एक साथ दुनिया के सारे गुटों के देशो के साथ संबंधों में सुधार पर जोड़ दिया गया. इसी बदलाव का नतीजा है कि चीन को भारत के खिलाफ पहली बार डोकलाम में मुंह की खानी पड़ी और अपनी सेना वापस हटानी पड़ी. इतना ही नहीं चीन को मन मारकर ब्रिक्स के घोषणापत्र में पाकिस्तान से संचालित हो रहे भारत-विरोधी आतंकी संगठनों के खिलाफ प्रस्ताव को मंजूरी देनी पड़ी. आज से ४ साल पहले सोनिया-शासन में क्या हम इस बात की कल्पना भी कर सकते थे?
मित्रों, कुछ लोग जिनको रतौंधी की बीमारी है और जिनका पूर्णकालिक कार्य मोदी सरकार के प्रत्येक अच्छे-बुरे काम की बुराई करना है वे इन दिनों नोटबंदी, जीडीपी और जीएसटी को लेकर रुदाली-रूदन करने में लगे हैं. नोटबंदी और बेनामी संपत्ति पर कार्रवाई से चाहे अर्थव्यवस्था को जो भी तात्कालिक नुकसान हुआ हो लोगों में ईमानदारी की प्रवृत्ति बढ़ी है इसमें कोई संदेह नहीं और मैं समझता हूँ कि यही एक अकेली उपलब्धि बहुत बड़ी है. आज लगभग सारी सरकारी सेवाएँ मोबाइल पर उपलब्ध हैं. आयकर ढांचे में सुधार लाने से आयकरदाताओं की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है तो वहीँ जीएसटी लागू करने से पूरा-का पूरा व्यापार सुनियोजित हुआ है जिसका लाभ कर-वसूली के क्षेत्र में दिखने भी लगा है और भविष्य में आधारभूत संरचना के क्षेत्र में भी दिखेगा इसमें संदेह नहीं.
मित्रों, सबसे अच्छी बात यह है कि विरोधियों के तमाम विधवा-विलाप के बावजूद अभी भी आम जनता का मोदी सरकार के प्रति विश्वास बना हुआ है. तमाम सर्वेक्षण भी इसकी पुष्टि करते हैं. ऐसे में मोदी सरकार चाहे तो भविष्य में और भी कड़े कदम उठा सकती है हालाँकि अब २०१९ भी ज्यादा दूर नहीं रह गया है.
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