रविवार, 25 मार्च 2018

न मैं सोऊंगा और न सोने दूंगा

मित्रों, यकीन मानिए मैं भी बाबा नागार्जुन की तरह एक कविता ही लिखना चाहता था मोदी जी सच-सच बताना........................। लेकिन क्या करूँ घंटों बीत गए शीर्षक से आगे नहीं बढ़ पाया. हाँ मेरी मेहनत में कोई कमी नहीं थी. ठीक उसी तरह से जैसे हमारे प्रधानमंत्री जी की मेहनत में कोई कमी नहीं है. बेचारे पता नहीं रात में सोते भी हैं या नहीं? पहरेदार का काम होता ही बड़ा कठिन है. दिन-रात जगे रहिए भले ही चोरी को नहीं रोकिए लेकिन इससे मेहनत तो कम नहीं हो जाती!
मित्रों, नाराज न होईए क्योंकि मैं तबसे मित्रों लिख रहा हूँ जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे. तो मैं कह रहा था कि मित्रों, अभी देश में हो क्या रहा है. अब कोई नहीं कह रहा कि मैं विकास हूँ, मैं मोदी हूँ या मैं भारत हूँ. बल्कि भावनात्मक मुद्दे उछाले जा रहे हैं. एक बार फिर से हमें मुसलमानों के नाम पर डराया जा रहा है कि मुसलमान ज्यादा हो गए तो ये होगा और वो होगा. मैं मोदी और योगी सरकार से पूछना चाहता हूँ कि क्या वो एक भी मुसलमान को भारत से बाहर भेज सकती है? भारतीय मुसलमानों की तो छोड़िए क्या वो एक भी बांग्लादेशी या हाल में भारत में घुस आए रोहिंग्या घुसपैठियों को अब तक भारत से निकाल-बाहर कर सकी है? अगर नहीं, तो फिर फालतू का शोर-शराबा क्यों? अरे भाई आप जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून बनाईए किसने रोका है? आप मदरसों पर नियंत्रण करिए किसने रोका है? लेकिन आप ये सब नहीं कर रहे. कोशिश तक नहीं कर रहे. इससे सम्बद्ध कोई विधेयक आपने पेश नहीं किया.
मित्रों, फिर आपने किया क्या? आपने देश को क्रॉनिक कैपिटलिज्म के और गरीबों को मौत के मुंह में धकेल दिया. सरकारी बैंकों की क्या दशा कर दी है आपने? बैंक नए खाते नहीं खोल रहे और कहते हैं कि सरकार ने रोक दिया है. फिर लोग पैसे रखेंगे कहाँ? मैंने नई नौकरी पकड़ी है मुझे कैसे वेतन मिलेगा? अगर आधार से लिंक्ड सिर्फ एक ही खाता होगा तब तो हजारों खाते बंद हो जाएंगे और सरकारी बैंकों का भट्ठा बैठ जाएगा. फिर आप उसका निजीकरण कर देंगे. इसी तरह से आपकी सरकार में पीएसयूज की हालत ख़राब है और जानबूझकर हालत ख़राब की गई है. बाँकी एयरलाइन्स मजे में हैं लेकिन एयर इंडिया क्रैश लैंडिंग की स्थिति में है क्यों? जिओ जी रहा है लेकिन बीएसएनएल मर रहा है क्यों?
मित्रों, क्या इसी को कहते हैं देश का बदलना? सचमुच बदल ही तो रहा है मेरा देश. क्रॉनिक कैपिटलिज्म की बदौलत अमेरिका बन रहा है मेरा देश. गरीब और गरीब और अमीर और अमीर हो रहे हैं. अब कुछ भी सरकारी नहीं रहेगा और हमारा जीवन अमीरों की रहमो करम पर होगा. हर चीज रेल, डाक, फोन, सड़क, बिजली, पानी, जंगल, हवा, बैंक, जमीन सब पर अमीरों का अधिकार होगा. तो फिर हम क्या करेंगे? पकौड़े तलेंगे और क्या? खैर, खुदा खैर करे. तो मैं कह रहा था कि मैं इस बार तो यह कविता नहीं लिख पाया लेकिन लिखूंगा जरूर. यकीन मानिए हमारे बैंक खातों में १५ लाख आने से पहले लिख लूँगा. चाहे इसके लिए मुझे मोदी जी की तरह २४ घंटे जागना क्यों न पड़े. तब तक आप भी जागते रहो और लोगों को भी जगाते रहो. ख़बरदार जो किसी ने सोने की हिम्मत की. न मैं सोऊंगा और न सोने दूंगा.

रविवार, 11 मार्च 2018

मोदी की कथनी और करनी

मित्रों,पिछले ४ सालों से भारत में नरेंद्र मोदी की सरकार है. सत्ता संभालने से पहले और संभालने के बाद नरेंद्र मोदी ने खूब बोला है-हम यह करेंगे और वह करेंगे. मोदी जी से ज्यादा शायद ही कोई इंसान ने इस दौरान बोला हो रेडियो ने बोला हो तो बोला हो. मगर सवाल उठता है कि क्या मोदी ने इस दौरान वही किया है जो उन्होंने बोला है? पहले कुछ मुद्दों पर उनकी कथनी और करनी का विश्लेषण कर लेते हैं.

१. मित्रों,मोदीजी ने कहा था कि उनकी सरकार हर साल २ करोड़ रोजगार पैदा करेगी। लेकिन हुआ इसका उल्टा। आज रोजगार-निर्माण की हालत पूर्ववर्ती मनमोहन सरकार से भी ख़राब है और मोदी लोगों से पकौड़ा तलने को बोल रहे हैं.
२. मोदी जी कहते हैं कि वे कोई भी काम चुनाव को ध्यान में रखकर नहीं करते लेकिन वास्तविकता तो यह है कि उनका प्रत्येक काम सिर्फ और सिर्फ चुनाव को ध्यान में रखकर किया जा रहा है. आज उन्होंने महिला दिवस राजस्थान में मनाया क्योंकि वहां चुनाव होना है.
३. मोदी जी ने नारा दिया था नेशन फर्स्ट। आश्चर्य है कि आजकल वे इस नारे का जिक्र तक नहीं करते। असलियत तो यह है कि अब उनके लिए चुनाव फर्स्ट और लास्ट हो गया है. सरकार ने जानबूझकर एयर इंडिया को बर्बाद करके रख दिया है और शायद अगली बारी बीएसएनएल की है. इसके साथ ही सरकारी बैंकों को बर्बाद किया जा रहा है. आज रेलवे की साख भी रसातल में है. यह सरकार ट्रेनों को चला काम रही है रद्द ज्यादा कर रही है.
४. मोदी जी ने २०१४ में कहा था कि उनकी पार्टी अपने गठबंधन सहयोगियों के प्रति अच्छा व्यवहार करेगी लेकिन उनका रवैया यूज एंड थ्रो का है.
५. मोदी सरकार ने पत्रकारों की पीएमओ में नियुक्ति के लिए विज्ञापन निकाला था जिसको अब कई साल बीत गए हैं लेकिन आज तक हुआ कुछ नहीं है.
६. मोदी जी ने भ्रष्टाचार के ऊपर मरणांतक प्रहार करने का वादा किया था लेकिन आज तक उसने लोकपाल की नियुक्ति नहीं की और रोज इससे बचने के लिए नए-नए बहाने बना रही है. यह सरकार भी सीबीआई का इस्तेमाल अपने लोगों को बचाने और विपक्षियों को डराने के लिए कर रही है.
७. मोदी जी ने कहा था कि गरीबों का पैसा सीधे उसके खाते में जाएगा लेकिन आज वही खाता उनके लिए गले की फ़ांस बन चुका है क्योंकि बैंक न्यूनतम शेष राशि के नाम पर उनके सारे पैसे चट कर जा रहा है.
८. मोदी जी ने कहा था कि वे १०० दिनों में विदेशों से कालाधन वापस लाएंगे लेकिन एक पैसा वापस नहीं आया. हाँ, कोशिश करने का नाटक जरूर किया गया.
९. मोदी जी ने कहा था कि वे पाकिस्तान से बातचीत नहीं करेंगे और चीन से भी उसी की भाषा में बात करेंगे लेकिन इस समय गुपचुप तरीके से पाकिस्तान से एनएसए स्तर की बातचीत चल रही है और चीन को खुश करने के लिए दलाई लामा पर प्रतिबन्ध लगाना शुरू कर दिया है.
१०. मोदी जी को कभी गंगा माँ ने बुलाया था लेकिन गंगा आज भी उतनी ही मैली है जितनी २०१४ में थी.
११. मोदी जी ने वादा किया था कि वो सालभर में दागी सांसदों और विधायकों पर मुकदमा चलाकर सजा दिलवाएंगे लेकिन किया इसका उल्टा। दूसरे दलों से दागियों को धड़ल्ले से भाजपा में आयातित किया गया और किया जा रहा है.
१२. मोदी जी कहते हैं कि उनकी सरकार ने पद्म पुरस्कारों की गरिमा पुनस्थापित की लेकिन सवाल उठता है कि शरद पवार को पुरस्कार क्यों किया? इसी तरह से सारे सरकारी पद ठीक मंत्री पद की तरह अयोग्य लोगों के बीच बाँट दिया गया. इनके राज्यपाल भी पिछली सरकार की तरह यौनापराधों में संलिप्त पाए जा रहे हैं.
१३. मोदी जी ने कहा था कि वे भारत से वीआईपी संस्कृति को समाप्त कर देंगे लेकिन हालत यह है कि बीएसएफ के एक जवान का वेतन सिर्फ इसलिए काट लिया गया क्योंकि उसने मोदी के नाम में श्री नहीं लगाया था.
१४. चुनावों के समय मोदी हर राज्य को या तो विशेष दर्जा या विशेष पैकेज देने का वादा कर देते हैं और बाद में भूल जाते हैं. अभी ऐसे ही वादे के लिए उनका चंद्रबाबू नायडू से विवाद चल रह है.
कहने का तात्पर्य यह है कि जहाँ राउडी राठौर फिल्म में अक्षय कुमार ने कहा था कि मैं जो बोलता हूँ वो मैं करता हूँ और मैं जो नहीं बोलता, वो मैं डेफिनेटली करता हूँ वहीँ मोदी के बारे यह कहा जा सकता है कि वे जो बोलते हैं डेफिनेटली उसका उल्टा करते हैं.

नरेंद्र मोदी की कृत्रिम बुद्धि


मित्रों,आपको याद होगा कि पिछले साल राहुल गाँधी जी ने अमेरिका जाकर अपना पहले भाषण दिया था. यह उनका अमेरिका में पहला भाषण था. तब मुझे बड़ी हंसी आई थी क्योंकि उनकी वक्तृता का विषय था कृत्रिम बुद्धि. लेकिन आज २५ फरवरी, २०१८ को मैं फिर से हँसते-२ रोने को विवश हूँ. आज हमारे कथित प्रधान सेवक जी ने अपने मन की बात में कृत्रिम बुद्धि के महत्व पर बोला है. इससे पहले भी वे कुछ दिन पहले किसी कार्यक्रम में कृत्रिम बुद्धि का महिमामंडन कर चुके हैं.

मित्रों,यह विडंबना है कि हमारे लगभग सारे राजनेता भारत को अमेरिका बनाने की बात करते हैं. क्यों करते हैं पता नहीं जबकि अमेरिका और भारत के हालात में कोई तुलना ही नहीं है. जहाँ अमेरिका में बेरोजगारों की कमी है वहीँ भारत में रोजगारों की कमी है. अमेरिका में इंसानों की कमी को कृत्रिम बुद्धि से युक्त मशीनों से पूरी करना मजबूरी है लेकिन जिस भारत में जहाँ आज भी एक किलोग्राम चावल चुराने पर एक भूखे को पीट-२ कर मार डाला जाता हो उस भारत में कृत्रिम बुद्धि के प्रति प्रधानमंत्री के प्रेम को सिर्फ दीवानगी ही कहा जा सकता है.


मित्रों,क्या योजना बनाई है भारत प्राइवेट लिमिटेड के वर्तमान सीईओ नरेन्द्र मोदी जी ने? जबरदस्त, मुंहतोड़. इन्सान पकौड़े तलेंगे और देश चलाएंगी मशीनें. स्टेशनों पर टिकट मशीन काटेगी मशीन, मशीन बुलेट ट्रेन चलाएगी और मशीन ही उसमें यात्रा करेगी, मशीन ही हवाई जहाज उड़ाएगी और मशीन ही हवाई चप्पल पहन कर उनमें उड़ान भरेंगी, होटलों में खाना मशीन पहुंचाएगी, खेती करेगी और कराएगी मशीनें, सीमा पर गोली मशीन चलाएगी, इंडियन रेलवे और मेट्रो निगमों की ट्रेनें मशीन चलाएगी, मशीन बताएगी कि मंदी कैसे दूर होगी, मशीन बताएगी कि नीरव मोदी कैसे भारत वापस आएगा और मशीन ही उसे वापस भी लाएगी. भविष्य में मोदी मंत्रिमंडल में सिर्फ प्रधानमंत्री इन्सान होंगे बांकी सारे विभाग मशीनें संभालेंगी आखिर वे खुद में स्वतः सुधार करना जो सीख गई हैं, सेल्फ इंटेलिजेंस का गुण आ गया है उनमें.


मित्रों,इस तरह भारत सरकार जो पैसे बचाएगी उसको बराबर-बराबर जनता के खाते में डाल दिया जाएगा. पहले १५ पैसा से शुरू करके अंत में १५ लाख. जैसे कि अभी-अभी सिंगापुर की सरकार ने अपने देशवासियों के खातों में डाला है. लेकिन तब तक हमको-आपको पकौड़े बेचकर, खाकर, खरीदकर जिंदा रहना पड़ेगा.


मित्रों,अच्छा हुआ कि नेहरु-शास्त्री ने भारत को अमेरिका बनाने का सपना नहीं देखा और भारत की भुखमरी-गरीबी और बेरोजगारी को ध्यान में रखा नहीं तो हम भारतवासी नहीं होते भारत की नागरिक होती सिर्फ मशीनें. सऊदी अरब ने तो एक रोबोट को अपने देश की नागरिकता दे भी दी है. वैसे हमें इस बात की ख़ुशी है कि कम-से-कम इस एक मुद्दे पर तो भारत के पक्ष-विपक्ष के बीच आम सहमति है. अंत में हम आपको बता दें कि बोला तो पीएम ने गोबर पर भी है लेकिन उस पर आम सहमति नहीं है गोबर विशेषतया गाय का गोबर सांप्रदायिक पदार्थ जो है.

शुक्रवार, 9 मार्च 2018

कर्नाटक का अलग झंडा और मूर्तिभंजन की घटनाएं

मित्रों, यह बात किसी से छिपी हुई नहीं है कि हमारे देश की राजनीतिक पार्टियां सत्ता के लिए क्या कुछ नहीं कर सकती. दुर्भाग्यवश इस मामले में हमारे देश में कोई भी पार्टी विथ डिफरेंस नहीं है. चूँकि कुछ ही दिन बाद कर्नाटक में विधानसभा चुनाव होनेवाला है इसलिए वहां के दल एक से एक गन्दा खेल खेलने में लगे हुए हैं.
मित्रों, सारी हदों को तोड़ते हुए कल कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने राज्य के लिए एक अलग झंडे की घोषणा कर दी है. यहाँ हम आपको बता दें पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने भी अपने समय में राज्य के लिए एक अलग झंडे की घोषणा की थी लेकिन आलोचना होने के बाद उसे वापस ले लिया था.
मित्रों, सवाल उठता है कि जब देश एक है, एक संविधान है और राष्ट्रीय ध्वज भी एक है फिर कर्नाटक को अलग क्षेत्रीय झंडा क्यों चाहिए? सवाल यह भी उठता है कि यदि राज्य का झंडा अलग होगा तो क्या यह हमारे राष्ट्रिय ध्वज के महत्त्व को कम नहीं करेगा?  क्या ऐसा होने पर लोगों में प्रांतवाद की भावना नहीं बढ़ेगी?  प्रश्न यह भी उठता है कि राज्य सरकार यह सुनिश्चित कैसे करेगी कि अलग क्षेत्रीय झंडे के बावजूद वहां के नागरिकों की आस्था राष्ट्रीय ध्वज के प्रति पूर्ववत बनी रहे?
मित्रों, हालाँकि इन सवालों का जवाब जानना जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी यह समझना है कि क्षेत्रीय झंडे को महत्त्व देने का मतलब राष्ट्रीय झंडे को अस्वीकृति देना कतई नहीं होता. अमेरिका, जर्मनी तथा ऑस्ट्रेलिया जैसे संघीय व्यवस्था वाले अनेक देशों में राष्ट्रीय अस्मिता के साथ राज्यों को अलग क्षेत्रीय पहचान बनाए रखने की छूट दी गई है. म्यांमार में तो हर क्षेत्र के अलग झंडे हैं.
मित्रों, इस आधार पर है देखते हैं तो कर्नाटक मांग जायज लगती है लेकिन दूसरी तरफ प्रश्न यह भी उठेंगे कि एक राष्ट्रीय झंडे से राज्य सरकार को परेशानी क्या है? झंडे के प्रति प्रेम और आदर का भाव होना जरूरी है जब, तिरंगे के प्रति सम्मान की भावना नहीं रह पा रही है तो, उस लाल-पीले झंडे के प्रति कैसे रहेगी, जिसे अपनाने के लिए कर्नाटक सरकार संविधान का हवाला तक दे रही है. कर्नाटक के बाद अन्य राज्य भी ऐसी मांग करेंगे. इस तरह देश में क्षेत्रीयता की भावना हावी होती जाएगी और राष्ट्र के तौर पर हम भीतर से खोखले होते जाएंगे.
कहना न होगा इस तरह की विभाजनकारी राजनीति राष्ट्रीय एकता और प्रगति में बाधक साबित होगी.
मित्रों, प्रत्येक स्वतंत्र राष्ट्र का अपना एक चिन्ह या प्रतीक होता है,जिससे उसकी पहचान बनती है.  राष्ट्रीय ध्वज हर राष्ट्र के गौरव तथा देश की एकता, अखंडता और सम्प्रभुता का प्रतीक भी होता है. राष्ट्रीय ध्वज एक ही तो और उनके प्रति आस्था बनी रहनी चाहिए. वैसे हमें यह भी देखना होगा कि भारत के एकमात्र राज्य जम्मू और कश्मीर जिसका अलग झंडा है में तिरंगे के प्रति प्रेम और आस्था का क्या हाल है.
मित्रों, अंत में मैं भाजपा को पूर्वोत्तर में मिली ऐतिहासिक जीत के लिए बधाई देते हुए देशभर में महापुरुषों के मूर्तिभंजन की घटनाओं की घोर निंदा करता हूँ चाहे वो लेलिन ही क्यों न हो हालाँकि सत्य यह भी है उसके नेतृत्व में रूस में बड़े पैमाने पर नरसंहार की घटनाओं को अंजाम दिया गया था. 

सोमवार, 5 मार्च 2018

भाजपा में कौन ला रहा है कांग्रेस संस्कृति?

मित्रों, यह बहुत अच्छी बात है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भाजपा के कांग्रेसीकरण की चिंता है. अब बिना आग के धुआँ तो उठता नहीं है इसलिए प्रधानमंत्री जी को कुछ तो जरूर ऐसा दिखा होगा जिसने उनको चिंतित कर दिया.
मित्रों, आपने भी इतिहास पढ़ा है और जानते हैं कि पृथ्वीराज ने मोहम्मद गोरी को हराने के बाद उच्चादर्शों का पालन करते हुए जीवनदान दे दिया था लेकिन जब गोरी ने पृथ्वीराज को हराया तब उसने आदर्शवाद का प्रदर्शन नहीं किया बल्कि कमीनापंथी की. पृथ्वीराज को अँधा कर दिया और उसके अन्तःपुर की स्त्रियों के साथ घनघोर अमानुषिक अत्याचार किया जैसा कि पिछले दिनों आईएसआईएस ने यजीदी महिलाओं के साथ किया है.
मित्रों, इसके बाद भी हिन्दू राजे-महाराजे लम्बे समय तक आदर्शवादी बने रहे जिसका लाभ मुस्लिम हमलावरों ने जमकर उठाया. पहली बार महाराणा प्रताप ने इस सच्चाई को समझा और गोरिल्ला या छापामार विधि से युद्ध की शुरुआत की. बाद में शिवाजी, छत्रसाल और गुरु गोविन्द सिंह ने भी इसे अपनाया और मुग़ल साम्राज्य की जड़ें हिला दीं.
मित्रों, कहने का तात्पर्य यह है कि जब आपका सामना निहायत कमीनों से हो तब आप आदर्शवादी नहीं बने रह सकते. कहना न होगा युद्धिष्ठिर को भी धर्म की जीत के लिए छल का सहारा लेना पड़ा था. लेकिन इसके बावजूद वे युद्धिष्ठिर ही बने रहे थे दुर्योधन नहीं बने थे.
मित्रों, हम जानते हैं कि भाजपा का सामना भी दुष्टों से है जिसकी अगुवाई कांग्रेस कर रही है. आज कांग्रेस भ्रष्टाचार, अहंकार, वंशवाद, तुष्टिकरण, चापलूसी का पर्याय बनकर रह गयी है. बहुत-से कांग्रेसी इनदिनों स्वाभाविक तौर पर भाजपा में आ रहे हैं. जाहिर है कि उनके साथ कांग्रेस संस्कृति जिसके लक्षणों का वर्णन हमने पिछली पंक्ति में किया है भी भाजपा में आ रही है. इसके अलावा सत्ता में रहने पर हर दल में स्वतः कई तरह के दोष उत्पन्न हो जाते हैं.
मित्रों, सवाल उठता है कि भाजपा को कांग्रेसीकरण से बचाने की जिम्मेदारी किसके ऊपर है? जाहिर है कि खुद मोदी और शाह पर. बनाना-बिगाड़ना सबकुछ तो उनके हाथों में ही है फिर मोदी जी किससे इस बीमारी से बचने की अपील कर रहे हैं और क्यों?
मित्रों, अभी भारी संख्या में केंद्र सरकार ने रिक्तियों की घोषणा की है. उनमें से लगभग हर विभाग के बारे में पैसे लेकर सीट बेचने की शिकायतें आ रही हैं. एसएससी के खिलाफ तो बच्चों को अनशन तक करना पड़ा है. यही तो है कांग्रेस संस्कृति जिसको समाप्त करने का वादा मोदी जी ने किया था. मोदी जी को यह देखना होगा कि इस तरह के और हर तरह से भ्रष्टाचार का अंत कैसे हो. उनको ऐसा होना चाहिए की भाषा बंद करनी होगी और ऐसा ही होगा की भाषा अपनानी होगी. ऐसी भाषा तो मनमोहन सिंह बोला करते थे और उनको शोभा भी देती थी क्योंकि उनके पास सीमित शक्ति थी और वे कठपुतली मात्र थे लेकिन मोदी जी के साथ तो ऐसा नहीं है फिर वही भाषा क्यों?