मित्रों, पिछले कई सालों से मैं देख रहा हूँ कि हमारे देश में दशकों पहले स्वर्ग सिधार चुके महापुरुषों के चरित्रहनन का अभियान-सा चल पड़ा है. कभी गाँधी, कभी नेहरू, कभी अकबर तो कभी चिश्ती हद तो यह है कि छिद्रान्वेषियों ने साई बाबा तक को नहीं छोड़ा है.
मित्रों, मैं दिन-रात सिर्फ विषवमन करनेवाले नितांत नकारात्मक सोंच रखनेवाले लोगों से पूछना चाहता हूँ कि साई बाबा की पूजा हो रही है तो इससे हिंदुत्व और मानवता को क्या नुकसान हो रहा है? क्या साई भक्त देश में कहीं भी किसी अनैतिक गतिविधि में संलिप्त पाए गए हैं? क्या वे जेहादियों की तरह आतंक फैला रहे हैं?
मित्रों, इसके उलट मैं देखता हूँ कि साई भक्त हर जगह मानवता की सेवा में लगे हैं. कहीं भंडारा हो रहा है तो कहीं अस्पताल चल रहा है कहीं रक्तदान शिविर का आयोजन हो रहा है फिर साई का विरोध क्यों?
मित्रों, मैं नहीं जानता और जानना भी नहीं चाहता कि साई जन्मना हिन्दू थे या मुसलमान। मैं तो बस यह जानना चाहता हूँ और इसे ही पर्याप्त समझता हूँ कि साई के उपदेश क्या थे और सबसे बढ़कर कि साई के कर्म क्या थे?
मित्रों, सदियों पहले तुलसी बाबा कह गए हैं कि कर्म प्रधान विश्व करि राखा फिर जन्म की बात कहाँ से उठने लगी और वो भी २१वीं सदी में. मैं समझता हूँ कि इस तरह के सवाल हमारे विवेक पर सवाल उठाते हैं. और सवाल उठाते हैं हमारी आधुनिकता पर.
मित्रों, जहाँ तक मेरा मानना है और मैं मानता हूँ कि आपका भी यही मानना होगा कि जन्म और जाति का आज के ज़माने में कोई महत्व नहीं होना चाहिए। हजारों सालों से रावण ब्राह्मण होकर भी निंदनीय है और हनुमान बन्दर होकर भी परम पूज्य। आखिर क्यों? मैं यह भी मानता हूँ कि हमें अकबर, गाँधी या नेहरू की सिर्फ कमियों को नहीं देखना चाहिए बल्कि उनकी अच्छाइयों को भी मद्देनजर रखना चाहिए. इसी तरह से जो लोग वीर सावरकर और आरएसएस को दिन-रात गालियाँ देते रहते हैं और यही जिनका पुश्तैनी धंधा बन चुका है मैं उनसे भी अपेक्षा रखता हूँ कि सावरकर के योगदान की भी कभी चर्चा कर लें. इसी तरह मैंने देखा है कि कहीं भी कोई दुर्घटना हो जाए या प्राकृतिक आपदा आ जाए तो आपदा विभाग के सक्रिय होने से काफी पहले और सबसे पहले आरएसएस वाले ही वहाँ पहुँचते हैं. क्यों कांग्रेस सेवा दल वाले उन स्थलों पर दिखाई नहीं देते?
मित्रों, बहुत से महापुरुषों में कुछ मानवोचित कमियाँ थीं लेकिन साई में तो कोई कमी थी ही नहीं इसलिए मैं समझता हूँ कि इस तरह के प्रयास तत्काल बंद होने चाहिए. इस तरह के प्रयासों की जितनी भी निंदा की जाए कम है. वैसे सूरज पर थूकने से जिन लोगों को संतोष मिलता है उनको मैं दूर से ही नमस्कार करना चाहूंगा क्योंकि
उपदेशो हि मूर्खाणां प्रकोपाय न शान्तये, पयःपानः हि भुजङ्गानाम केवलं विषवर्द्धनं।
मित्रों, मैं दिन-रात सिर्फ विषवमन करनेवाले नितांत नकारात्मक सोंच रखनेवाले लोगों से पूछना चाहता हूँ कि साई बाबा की पूजा हो रही है तो इससे हिंदुत्व और मानवता को क्या नुकसान हो रहा है? क्या साई भक्त देश में कहीं भी किसी अनैतिक गतिविधि में संलिप्त पाए गए हैं? क्या वे जेहादियों की तरह आतंक फैला रहे हैं?
मित्रों, इसके उलट मैं देखता हूँ कि साई भक्त हर जगह मानवता की सेवा में लगे हैं. कहीं भंडारा हो रहा है तो कहीं अस्पताल चल रहा है कहीं रक्तदान शिविर का आयोजन हो रहा है फिर साई का विरोध क्यों?
मित्रों, मैं नहीं जानता और जानना भी नहीं चाहता कि साई जन्मना हिन्दू थे या मुसलमान। मैं तो बस यह जानना चाहता हूँ और इसे ही पर्याप्त समझता हूँ कि साई के उपदेश क्या थे और सबसे बढ़कर कि साई के कर्म क्या थे?
मित्रों, सदियों पहले तुलसी बाबा कह गए हैं कि कर्म प्रधान विश्व करि राखा फिर जन्म की बात कहाँ से उठने लगी और वो भी २१वीं सदी में. मैं समझता हूँ कि इस तरह के सवाल हमारे विवेक पर सवाल उठाते हैं. और सवाल उठाते हैं हमारी आधुनिकता पर.
मित्रों, जहाँ तक मेरा मानना है और मैं मानता हूँ कि आपका भी यही मानना होगा कि जन्म और जाति का आज के ज़माने में कोई महत्व नहीं होना चाहिए। हजारों सालों से रावण ब्राह्मण होकर भी निंदनीय है और हनुमान बन्दर होकर भी परम पूज्य। आखिर क्यों? मैं यह भी मानता हूँ कि हमें अकबर, गाँधी या नेहरू की सिर्फ कमियों को नहीं देखना चाहिए बल्कि उनकी अच्छाइयों को भी मद्देनजर रखना चाहिए. इसी तरह से जो लोग वीर सावरकर और आरएसएस को दिन-रात गालियाँ देते रहते हैं और यही जिनका पुश्तैनी धंधा बन चुका है मैं उनसे भी अपेक्षा रखता हूँ कि सावरकर के योगदान की भी कभी चर्चा कर लें. इसी तरह मैंने देखा है कि कहीं भी कोई दुर्घटना हो जाए या प्राकृतिक आपदा आ जाए तो आपदा विभाग के सक्रिय होने से काफी पहले और सबसे पहले आरएसएस वाले ही वहाँ पहुँचते हैं. क्यों कांग्रेस सेवा दल वाले उन स्थलों पर दिखाई नहीं देते?
मित्रों, बहुत से महापुरुषों में कुछ मानवोचित कमियाँ थीं लेकिन साई में तो कोई कमी थी ही नहीं इसलिए मैं समझता हूँ कि इस तरह के प्रयास तत्काल बंद होने चाहिए. इस तरह के प्रयासों की जितनी भी निंदा की जाए कम है. वैसे सूरज पर थूकने से जिन लोगों को संतोष मिलता है उनको मैं दूर से ही नमस्कार करना चाहूंगा क्योंकि
उपदेशो हि मूर्खाणां प्रकोपाय न शान्तये, पयःपानः हि भुजङ्गानाम केवलं विषवर्द्धनं।