सोमवार, 12 अक्तूबर 2020
अपनी जान की सुरक्षा स्वयं करें
मित्रों, जब भी आप किसी बस में चढ़ते होंगे तो वहां लिखी हुई एक पंक्ति पर आपकी नज़र जरूर जाती होगी कि अपने सामान की रक्षा स्वयं करें. और इस तरह बस के स्टाफ आपके सामान की सुरक्षा से अपने आपको अलग कर लेते हैं. अब अगर आपका सामान बस में चोरी हो जाता है तो आप समझिए बस के स्टाफ तो यही कहेंगे कि हमने तो यह एक पंक्ति की इबारत मोटे-मोटे अक्षरों में लिखकर आपको पहले ही सचेत कर दिया था. आपने सतर्कता नहीं बरती तो हम क्या करें?
मित्रों, इन दिनों पूरे देश में कानून-व्यवस्था की स्थिति भी कमोबेश ऐसी ही है. कहीं हत्या हो रही, कहीं बलात्कार हो रहे, कहीं डाका पड़ रहा तो कहीं चोरी और ठगी हो रही लेकिन हमारे देश की पुलिस लगभग कुछ नहीं कर रही. कई बार तो लोग पहले से ही पुलिस को अपनी जान को किसी खास व्यक्ति से खतरा होने का आवेदन भी देते हैं लेकिन हमारी पुलिस कुछ नहीं करती बस हाथ-पे-हाथ धरे बैठी रहती है. और आवेदक की हत्या हो जाने के बाद झूठ बोल जाती है कि हमारे पास तो ऐसा कोई आवेदन आया ही नहीं था. पूरे भारत में पुलिस का एकमात्र काम जैसे घूस खाकर मुकदमों का अनुसन्धान करना और झूठ को सच और सच को झूठ बनाना रह गया हैं. मैं पहले भी अपने कई आलेखों में पुलिस के रवैये और काम करने के तरीकों पर सवाल उठा चुका हूँ. मैंने अपने नाम बिहार पुलिस, काम रंगदारी,रिश्वतखोरी,कत्ल,…? शीर्षक आलेख में २९ मार्च २०१३ को पुलिस द्वारा रंगदारी और वर्दी के दुरुपयोग सम्बन्धी कई घटनाओं को उजागर किया था. मैंने कहा था कि पुलिस एफआईआर दर्ज नहीं करती और अगर दर्ज कर भी लिया तो चोरी होने के एक महीने बाद घटनास्थल पर पहुँचती है. क्या तब तक चोर वहीँ पर बैठे होंगे? एटीएम फ्रॉड के मामले में पुलिस बिना कुछ किए छह महीने बाद केस बंद कर देती है. कई बार तो बलात्कार पीडिता को महिला थाने से डांट-फटकारकर भगा दिया जाता है. कई बार हत्या के मामले में पुलिस गिरफ़्तारी तक नहीं करती है चुपके से मामले को बंद कर देती है. उधर पीड़ित परिवार के आंसू रोते-रोते सूख जाते हैं, आँखें पथरा जाती हैं. फिर चाहे तो बहुचर्चित सुशांत सिंह मामला हो या पालघर या राजस्थान में पुजारी को जिन्दा जला देने की वारदात.
मित्रों, ऐसा नहीं है कि सिर्फ राज्यों की पुलिस मनमाने तरीके से काम कर रही है बल्कि केंद्र सरकार के अधीन काम करनेवाली दिल्ली पुलिस भी इन दिनों स्वयं को जनता का सेवक नहीं बल्कि स्वामी समझने लगी है. तभी तो जब राहुल राजपूत की निर्मम पिटाई हो रही थी तब उसकी दोस्त द्वारा सूचित करने के बाद भी पुलिस घटनास्थल पर नहीं गई. बाद में पीडिता के मोबाईल का सिम तोड़ दिया क्योंकि उसने पुलिस के खिलाफ मीडिया में बयान दिया था. जब केंद्र सरकार की पुलिस का यह रवैया है तो जनता की रक्षा कौन करेगा?
मित्रों, मेरा दिल्ली समेत सभी राज्यों की पुलिस से एक करबद्ध प्रार्थना है कि वे थानों में क्या मैं आपकी सहायता कर सकता हूँ की जगह जनता अपनी जान की सुरक्षा स्वयं करें लिखवा दें. वो क्या है कि जो थानों में होता है वहां वही लिखा रहे तो अच्छा रहेगा. फिर जनता जाने कि अंधेर नगरी में उसकी जान कैसे बचेगी? वैसे नहीं लिखवाने पर भी स्थिति तो जस-की-तस रहेगी.
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