गुरुवार, 29 जून 2023
भारत में क्यों जरुरी है समान नागरिक संहिता?
मित्रों, जब १९४७ में भारत को रक्तरंजित बंटवारे के बाद आजादी मिली तो भारत में दुर्भाग्यवश एक ऐसे व्यक्ति को जबरन प्रधानमंत्री बना दिया गया जो बस नाम का हिन्दू था और स्वयं कहता था कि By education I am an Englishman, by views an internationalist, by culture a Muslim and a Hindu only by accident of birth. उस व्यक्ति को मुस्लिम बहुल ईलाके में हिन्दुओं और सिखों के हो रहे नरसंहार की कोई चिंता नहीं थी बल्कि उसे हिन्दुबहुल ईलाके में रह रहे मुसलमानों की चिंता खाए जा रही थी. वह हिन्दू नामधारी मुसलमान जब अमेरिका की आधिकारिक यात्रा पर जाता तो अपनी बेटी के साथ बड़े ही चाव से गोमांस का भक्षण करता.
मित्रों, जब ऐसा व्यक्ति प्रधानमंत्री हो तो हम कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि वो हिन्दुओं के भले के बारे में सोंचेगा भी यही कारण है कि भारत के संविधान में बहुसंख्यकों की कोई चर्चा ही नहीं है जब अल्पसंख्यकों और उनके अधिकारों का बार-बार जिक्र है. यही कारण है कि धर्माधारित बंटवारे के बावजूद भारत में बड़ी संख्या में मुसलमान रह गए जो आज जनसँख्या जिहाद, जमीन जिहाद, लव जिहाद आदि जिहादों के माध्यम से देश की एकता-अखंडता और शांति-सद्भाव के लिए समस्या बन गए हैं. वह नेहरु ही थे जिनके चलते भारत में समान नागरिक संहिता लागू नहीं हो पाई जबकि तब ऐसा कर पाना आज की तुलना में काफी आसान था.
मित्रों, समान नागरिक संहिता या यूनिफॉर्म सिविल कोड का मतलब है कि हर धर्म, जाति, संप्रदाय, वर्ग के लिए पूरे देश में एक ही नियम. दूसरे शब्दों में कहें तो समान नागरिक संहिता का मतलब है कि पूरे देश के लिए एक समान कानून के साथ ही सभी धार्मिक समुदायों के लिये विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने के नियम एक ही होंगे. संविधान के अनुच्छेद-44 में सभी नागरिकों के लिए समान कानून लागू करने की बात कही गई है. अनुच्छेद-44 संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में शामिल है. इस अनुच्छेद का उद्देश्य संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य’ के सिद्धांत का पालन करना है. बता दें कि भारत में सभी नागरिकों के लिए एक समान ‘आपराधिक संहिता’ है, लेकिन समान नागरिक कानून नहीं है.
मित्रों, पिछले सालों में खुद भारत का सर्वोच्च न्यायालय कई बार भारत में समान नागरिक संहिता की जरुरत बता चुका है. ट्रिपल तलाक से जुड़े 1985 के चर्चित शाह बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अनुच्छेद 44 एक ‘मृत पत्र’ जैसा हो गया है. साथ ही कोर्ट ने देश में समान नागरिक संहिता लागू करने की जरुरत पर जोर दिया था. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि समान नागरिक संहिता विरोधी विचारधाराओं वाले कानून के प्रति असमान वफादारी को हटाकर राष्ट्रीय एकीकरण में मदद करेगी. इसी तरह बहुविवाह से जुड़े सरला मुद्गल बनाम भारत संघ मामले में शीर्ष अदालत ने कहा था कि पं. जवाहर लाल नेहरू ने 1954 में संसद में समान नागरिक संहिता के बजाय हिंदू कोड बिल पेश किया था. इस दौरान उन्होंने बचाव करते हुए कहा था कि यूसीसी को आगे बढ़ाने की कोशिश करने का यह सही समय नहीं है.
मित्रों, गोवा के लोगों से जुड़े 2019 के उत्तराधिकार मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, ‘राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों की चर्चा करने वाले भाग चार के अनुच्छेद-44 में संविधान के संस्थापकों ने अपेक्षा की थी कि राज्य भारत के सभी क्षेत्रों में नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू करने की कोशिश करेगा. लेकिन, आज तक इस पर कोई कदम नहीं उठाया गया.
मित्रों, समान नागरिक संहिता के मामले में गोवा अपवाद है. गोवा में यूसीसी पहले से ही लागू है. बता दें कि संविधान में गोवा को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया है. वहीं, गोवा को पुर्तगाली सिविल कोड लागू करने का अधिकार भी मिला हुआ है. राज्य में सभी धर्म और जातियों के लिए फैमिली लॉ लागू है. इसके मुताबिक, सभी धर्म, जाति, संप्रदाय और वर्ग से जुड़े लोगों के लिए शादी, तलाक, उत्तराधिकार के कानून समान हैं. गोवा में कोई भी ट्रिपल तलाक नहीं दे सकता है. रजिस्ट्रेशन कराए बिना शादी कानूनी तौर पर मान्य नहीं होगी. संपत्ति पर पति-पत्नी का समान अधिकार है. जहां मुस्लिमों को गोवा में चार शादी का अधिकार नहीं है. वहीं, हिंदुओं को दो शादी करने की छूट है.
मित्रों, दुनिया के कई देशों में समान नागरिक संहिता लागू है. इनमें हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान और बांग्लादेश भी शामिल हैं. इन दोनों देशों में सभी धर्म और संप्रदाय के लोगों पर शरिया पर आधारित एक समान कानून लागू होता है. इनके अलावा इजरायल, जापान, फ्रांस और रूस में भी समान नागरिक संहिता लागू है. हालांकि, कुछ मामलों के लिए समान दीवानी या आपराधिक कानून भी लागू हैं. यूरोपीय देशों और अमेरिका में धर्मनिरपेक्ष कानून है, जो सभी धर्म के लोगों पर समान रूप से लागू होता है. दुनिया के ज्यादातर इस्लामिक देशों में शरिया पर आधारित एक समान कानून है, जो वहां रहने वाले सभी धर्म के लोगों को समान रूप से लागू होता है.
मित्रों, भारत में अगर यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होता है तो लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ा दी जाएगी. इससे वे कम से कम ग्रेजुएट तक की पढ़ाई पूरी कर सकेंगी. वहीं, गांव स्तर तक शादी के पंजीकरण की सुविधा पहुंचाई जाएगी. अगर किसी की शादी पंजीकृत नहीं होगी तो दंपति को सरकारी सुविधाओं का लाभ नहीं मिलेगा. पति और पत्नी को तलाक के समान अधिकार मिलेंगे. एक से ज्यादा शादी करने पर पूरी तरह से रोक लग जाएगी. नौकरीपेशा बेटे की मौत होने पर पत्नी को मिले मुआवजे में माता-पिता के भरण पोषण की जिम्मेदारी भी शामिल होगी. उत्तराधिकार में बेटा और बेटी को बराबर का हक होगा. पत्नी की मौत के बाद उसके अकेले माता-पिता की देखभाल की जिम्मेदारी पति की होगी. वहीं, मुस्लिम महिलाओं को बच्चे गोद लेने का अधिकार मिल जाएगा. उन्हें हलाला और इद्दत से पूरी तरह से छुटकारा मिल जाएगा. लिव-इन रिलेशन में रहने वाले सभी लोगों को डिक्लेरेशन देना पड़ेगा. पति और पत्नी में अनबन होने पर उनके बच्चे की कस्टडी दादा-दादी या नाना-नानी में से किसी को दी जाएगी. बच्चे के अनाथ होने पर अभिभावक बनने की प्रक्रिया आसान हो जाएगी.
मित्रों, भाजपा की विचारधारा से जुड़े राम मंदिर और अनुच्छेद 370 की राह में कई कानूनी अड़चनें थी, मगर समान नागरिक संहिता मामले में ऐसा नहीं है। सुप्रीम कोर्ट से लेकर कई राज्यों के हाईकोर्ट ने कई बार इसकी जरूरत बताई है। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार के खिलाफ दायर याचिका खारिज कर दी। इस संदर्भ में केंद्र सरकार ने भी शीर्ष अदालत में कहा था कि वह समान कानून के पक्ष में है।
मित्रों, ये तो हुई समान नागरिक संहिता का कानूनी पक्ष मगर सच्चाई तो यह है कि अगर भविष्य में भारत को विभाजित होने से बचाना है तो यही समय है जब देश में समान नागरिक संहिता लागू कर देना चाहिए और अविलंब कर देना चाहिए. कोई बच्चा भी बता देगा कि भारत का अगर फिर से विभाजन होता है तो फिर से मुसलमानों के कारण ही होगा. समान नागरिक संहिता के आने से वक्फ बोर्ड कानून जो जमीन जिहाद को बढ़ावा देता है तो समाप्त होगा ही जनसँख्या जिहाद और लव जिहाद पर भी रोक लगेगी साथ ही मस्जिदों और चर्चों की तरह हिन्दुओं के मंदिर भी सरकारी नियंत्रण से मुक्त हो जाएँगे.
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