शुक्रवार, 27 दिसंबर 2024

मनमोहन सिंह को श्रद्धांजलि

मित्रों, श्रद्धांजलि शब्द दो शब्दों के मिलने से बना है-श्रद्धा और अंजलि. तात्पर्य यह कि श्रद्धांजलि देने के लिए मन में श्रद्धा का होना जरूरी है. जहाँ तक कथित पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का सवाल है तो मेरे मन में उनके प्रति कोई श्रद्धा नहीं है. कुछ लोग कह सकते हैं कि मरे हुए लोगों की आलोचना नहीं करनी चाहिए. तो क्या हम तैमुर, खिलजी, बाबर, हिटलर और औरंगजेब की भी प्रशंसा करें? कम-से-कम हमसे तो ऐसा होने से रहा. हम तो हजारों साल पहले मरे रावण को भी नहीं बख्शते और आज भी हर साल उसका पुतला जलाते हैं. मित्रों, हमें बताया-पढ़ाया गया कि वे भारत के प्रधानमंत्री थे. मगर ऐसा था क्या? पहली बात तो यह कि मनमोहन दुर्घटनावश प्रधानमंत्री बने नहीं थे बनाये गये थे. दूसरी बात यह कि मनमोहन की जिम्मेदारी और वफ़ादारी देश के प्रति नहीं थी बल्कि सोनिया परिवार के प्रति थी. इसलिए मनमोहन भारत के नहीं सोनिया परिवार के प्रधानमंत्री थे. मनमोहन नाममात्र के प्रधानमंत्री थे वास्तविक सत्ता सोनिया गांधी एंड फेमिली के हाथों में थी. मनमोहन वास्तव में रिमोट संचालित प्रधानमंत्री थे जिसका रिमोट सोनिया परिवार के हाथों में था. मित्रों, मनमोहन देशप्रेमी के बजाए कुर्सी प्रेमी भी थे. चंद्रशेखर जब प्रधानमंत्री पद से हट रहे थे तब मनमोहन ने पैरवी करके यूजीसी के चेयरमैन के पद पर उनके हाथों खुद को नियुक्त करवाया था क्योंकि वो नहीं चाहते थे कि उनसे सरकारी सुविधाएँ छिन जाए. इतना ही नहीं मनमोहन स्टॉकहोम सिंड्रोम से ग्रस्त भी थे. जिन मुसलमानों के कारण भारतमाता के टुकड़े हुए और लाखों हिन्दुओं-सिखों की तरह मनमोहन को भी अपने ही देश में शरणार्थी बनना पड़ा उनको उन्हीं मुसलमानों से आश्चर्यजनक प्रेम था. उन्होंने लाल किले की प्राचीर से कहा था कि भारत के संसाधनों पर पहला अधिकार मुसलमानों का है. क्यों, जबकि मुसलमान पहले ही जबरन अलग मुल्क ले चुके थे? मित्रों, मनमोहन के कार्यकाल में भ्रष्टाचार ने नये कीर्तिमान प्राप्त किये, नयी ऊंचाइयों को छुआ. खुद भ्रष्टाचार किया भी नहीं मगर भ्रष्टाचार को रोका भी नहीं. उनके कई मंत्रियों के लिए जेल घर बन गए थे. मनमोहन के कार्यकाल में एकतरफ जहाँ आतंकी घटनाएँ रोजाना की बात हो गई थीं वहीँ दूसरी तरफ प्रधानमंत्री मनमोहन आतंकवादियों को अपने आतिथ्य में बुलाकर चाय-नाश्ता करवाते थे. इतना ही नहीं मनमोहन के कार्यकाल में कई निर्दोष हिन्दुओं को झूठे मुकदमों में फंसाकर फर्जी भगवा आतंकवाद का भूत खड़ा करने की कोशिशें भी की गयी. मित्रों, मनमोहन एक ऐसे सरदार थे जो बिल्कुल भी असरदार नहीं थे. जननेता भी नहीं थे हमेशा संसद में पिछले दरवाजे यानि राज्यसभा के माध्यम से आते रहे और लोकसभा चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाये या यूं कहें कि उनकी मालकिन ने कभी उनको इसकी ईजाजत नहीं दी. भारत को दुनिया की फैक्ट्री बनाने के बदले उन्होंने चीनम शरणम गच्छामि का मार्ग चुना और भारत की अर्थव्यवस्था को चीन के हवाले कर दिया. उनके समय भारत-चीन के मध्य तेजी से व्यापार घाटा बढ़ा और भारत एक तरह से चीन का आर्थिक उपनिवेश बन गया. हां, उनका वित्त मंत्री के रूप में कार्यकाल जरूर प्रशंसनीय था. कल उनका पार्थिव शरीर कांग्रेस पार्टी के मुख्यालय में रखा जाएगा जहाँ से उनकी अंतिम यात्रा निकलेगी. लेकिन यह सवाल भी उठता है कि जब कांग्रेस पार्टी के ही नेता रहे पूर्व प्रधानमंत्री पी वी नरसिंह राव की मृत्यु हुई थी तो क्यों उनके पार्थिव शरीर को कांग्रेस पार्टी मुख्यालय में ले जाने से रोक दिया गया था और क्यों उनका अंतिम संस्कार दिल्ली में नहीं होने दिया गया जबकि यह नरसिंह राव ही थे जिन्होंने मनमोहन को मनमोहन बनाया था. हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि जब नरसिंह राव के मृत शरीर के साथ यह अपमानजनक घटना हुई थी तब मनमोहन ही प्रधानमंत्री थे. रेनकोट पहनकर नहाने वाले गैरराजनैतिक राजनेता मनमोहन सिंह को उनके निधन पर नमन.

बुधवार, 11 दिसंबर 2024

बांग्लादेश से हिन्दुओं को लेना होगा सबक

मित्रों, कई साल पहले एनडीटीवी में एक पत्तलकार हुआ करते थे नाम था रवीश कुमार. श्रीमान भरमाते थे कि अगर भारत में मुसलमान बहुसंख्यक हो भी गए तो क्या होगा? तब भी हमने उनको जवाब देते हुए कहा था कि अगर ऐसा हुआ तो भारत में शरियत का शासन हो जाएगा और पंडित जी आपके साथ-साथ सारे हिन्दुओं को तलवार के बल पर मुसलमान बना दिया जाएगा. हमने यह भी कहा था कि आप तो खुद ही बुद्धिमंद हो देख लो कि पाकिस्तान में हिन्दुओं के साथ क्या हो रहा है और कश्मीर में क्या हो चुका है. मित्रों, भारत के बंटवारे से भी कई साल पहले बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर जी ने कांग्रेस और भारत के हिन्दुओं को सावधान करते हुए कहा था कि मुसलमान राष्ट्र और राष्ट्रवाद में विश्वास नहीं करते बल्कि उनके लिए उनका मजहब और मुस्लिम भ्रातृत्व सर्वोपरि है इसलिए अगर धर्म के आधार पर उनको अलग देश दिया जाता है तो भारत और पाकिस्तान के बीच जनसँख्या का सम्पूर्ण हस्तांतरण होना चाहिए अर्थात भारत में एक भी मुसलमान नहीं होना चाहिए. लेकिन कांग्रेस के मूर्ख और हिंदुविरोधी छद्मधर्मनिरपेक्षतावादी नेताओं ने उनकी एक न सुनी जिसका परिणाम यह है कि भारत आज गृहयुद्ध के मुहाने पर आकर खड़ा हो गया है. मित्रों, आज जो बांग्लादेश में हो रहा है क्या वह कल के भारत की बानगी नहीं है? कितना आश्चर्यजनक है कि बतौर बांग्ला लेखिका तसलीमा नसरीन "जिस भारत के 17,000 सैनिकों ने बांग्लादेश को उसके दुश्मन पाकिस्तान से बचाने के लिए अपनी जान गंवाई, वह अब दुश्मन माना जाता है. जिस भारत ने एक करोड़ शरणार्थियों को भोजन और कपड़े , रहने के लिए घर दिए, वह अब दुश्मन माना जाता है. जिस भारत ने देश को पाकिस्तानी सेना से बचाने के लिए हथियार और स्वतंत्रता सेनानियों को ट्रेनिंग दी, वह अब दुश्मन माना जाता है." और "जिस पाकिस्तान ने 30 लाख बांग्लादेशियों की हत्या की और 2 लाख महिलाओं का रेप किया, वह अब कथित तौर पर दोस्त है. आतंकवादियों को पैदा करने में नंबर एक पर रहने वाला पाकिस्तान अब कथित तौर पर बांग्लादेश का निकटतम मित्र है. जिस पाकिस्तान ने 1971 के अत्याचारों के लिए बांग्लादेशियों से अभी तक माफी तक नहीं मांगी है, वह अब कथित तौर पर एक मित्र राष्ट्र है." मित्रों, कहने का तात्पर्य यह कि दुनियाभर के मुसलमानों के लिए मजहब ही सबकुछ है मित्रता, त्याग, सहायता और अहसान कुछ भी नहीं. जिस देश का जन्म भारत के कारण हुआ उस देश के मुसलमान भी भारत के अहसान को भूल गए और अत्याचारी पाकिस्तान से सिर्फ इसलिए गले मिल रहे हैं क्योंकि वह एक मुस्लिम देश है. बांग्लादेश के मुसलमान तो इस कदर नमकहराम निकले कि वे उस इस्कॉन को समाप्त करने पर तुले हुए हैं जिसने कुछ महीने पहले की बरसात में भयंकर बाढ़ के समय उनके प्राणों की रक्षा की थी. भारत के मुसलमानों का रूख भी कोई अलग नहीं है. अब हिन्दू मुसलमानबहुल ईलाकों में न तो धार्मिक जुलूस निकाल सकता है, न तो मंदिर बनाकर पूजा कर सकता है और न ही शवयात्रा निकाल सकता है. रोजाना कोई-न-कोई मुसलमान हमारे प्रधानमंत्री को भी जान से मारने की धमकी दे रहा है. मुस्लिम ईलाकों में पुलिस और अन्य अधिकारी भी जाने से डरने लगे हैं न जाने कब पत्थरबाजी होने लगे. भारत की राजधानी दिल्ली तक में हिंदूविरोधी दंगे हो चुके हैं . अभी २० प्रतिशत होने पर ही मुसलमान भारत के कानून और संविधान को नहीं मान रहे. मित्रों, तात्पर्य यह कि भारत के मुसलमान आजादी से पहले भी खुद को अलग राष्ट्र मानते थे और आज भी मानते हैं. ऊपर से कांग्रेस पार्टी ने उनको मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, अनुच्छेद ३१ ए और अल्पसंख्यक आयोग देकर उनके अलगाववाद को भड़काया है. उस पर उनके वक्फ बोर्ड को किसी भी भारतीय संपत्ति पर अधिकार कर लेने के कानूनी अधिकार कांग्रेस पार्टी ने दे रखी है. आज मुसलमानों में जनसँख्या विस्फोट की स्थिति है जबकि हम दो हमारे दो के झांसे में आए हिन्दुओं की जनसँख्यावृद्धि दर शून्य होने की तरफ अग्रसर है. भारत के बंटवारे के समय भारत में मात्र ५ प्रतिशत मुसलमान थे जो आज २० प्रतिशत हो चुके है. जिस दिन उनकी संख्या हिन्दुओं के बराबर हो जाएगी हिन्दुओं को देश छोड़कर जाना होगा लेकिन वे जाएँगे कहाँ? मित्रों, तात्पर्य यह कि अब हिन्दुओं के लिए जागने का समय हो चुका है. हिन्दुओं को अपनी जनसँख्या बढानी होगी और इसके लिए भारत के हिन्दू अरबपतियों और हिन्दू संगठनों को सहायता देने के लिए आगे आना होगा क्योंकि सबका साथ, सबका विकास की मारी सरकार तो जो भी करेगी उसका फायदा मुसलमानों को ही ज्यादा होगा. मुसलमानों के मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, वक्फ बोर्ड को समाप्त करना होगा और मुसलमानों को सारी विशेष सुविधाओं को समाप्त करते हुए समान नागरिक संहिता लागू करना होगा.