गुरुवार, 24 अप्रैल 2025

हिंदुस्तान में खतरे में हिंदू

मित्रों, अगर हम यह कहें कि इन दिनों हिन्दूबहुल भारत में बहुसंख्यक हिन्दू खतरे में हैं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. पहले पश्चिम बंगाल और अब कश्मीर में जिस तरह मुसलमानों ने पिछले दिनों हिन्दुओं का नरसंहार किया है उससे पता चलता है कि स्थिति कितनी चिंताजनक हो चुकी है. बंगाल के मुर्शिदाबाद में बिना किसी उकसावे के न सिर्फ हिन्दुओ की बेरहमी से हत्या की गई बल्कि जमकर लूटपाट और इस तरह से आगजनी की गई कि हिन्दुओं के पास सिवाय पलायन करने के और कोई उपाय ही नहीं बच गया. मित्रों, अभी बंगाल की आग ठंडी भी नहीं पड़ी थी कि कश्मीर में घूमने गए २७ निर्दोष हिन्दू पर्यटकों को मुसलमानों ने सिर्फ इसलिए मार दिया क्योंकि वे हिन्दू थे. पहले तो उनको कलमा पढ़ने के लिए बोला गया फिर उनके कपडे उतार कर, नंगा करके इस बात की तस्दीक की गई कि उनका खतना नहीं हुआ है और वो हिन्दू हैं. इतना ही नहीं उन हिन्दू पर्यटकों की न सिर्फ बेरहमी से हत्या की गई बल्कि पत्नी और बच्चों की आँखों के सामने, उनके परिजनों के मन में इस्लाम का खौफ पैदा करने के लिए हत्या की गई. सबसे हृदयविदारक दृश्य तो वो था जिसने दो-तीन साल का बच्चा अपने मृतक पिता के शव के पास बैठा हुआ है और उसे जगा रहा है उसे यह भी नहीं पता कि इस्लाम ने उसके पिता को मार डाला है. मारे भी क्यों नहीं जबकि उसकी आसमानी किताब खुद उसे ऐसे करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है जैसा कि जाकिर नाईक सहित कई सारे इस्लामिक विद्वान् भी मान चुके हैं. मित्रों, सवाल उठता है कि हिंदुस्तान में हिंदुत्व की रक्षा कैसे की जाए? ईश्वर अल्लाह तेरो नाम गाने से तो नहीं होगी और न ही पुलिस और सेना के भरोसे बैठे रहने से होगी बल्कि हिन्दुओं को कम-से-कम इतनी ताकत जुटानी पड़ेगी कि उनकी रक्षा हो सके. वीर विनायक दामोदर सावरकर इस खतरे को १९५० के दशक में ही समझ गए थे. उन्होंने तभी कहा था कि इस्लाम एक घर्म नहीं सेना है जिसका उद्देश्य पूरी दुनिया से अन्य धर्मों का उन्मूलन कर इस्लाम की स्थापना करना है. हम कितना भी भाईचारा और शांति के मंत्र जपें हमें मार दिया जाएगा क्योंकि उनकी आसमानी पुस्तक के अनुसार अगर आपके माता-पिता भी इस्लाम को नहीं मानते तो वो भी आपके शत्रु हैं. इसलिए अम्बेदकर ने कहा था कि इस्लाम एक बंद निकाय है और उसके लिए राष्ट्र और राष्ट्रभक्ति का कोई मतलब नहीं है बल्कि उसके लिए सिर्फ उसका मजहब ही मायने रखता है. मैं हिन्दुओं को अवैध हथियार घरों में रखने को नहीं कहता लेकिन वो पारम्परिक हथियार तो रख ही सकते हैं और जितनी चाहे उतनी रख सकते हैं. हिन्दुओं के लिए भागना समाधान नहीं है. हिंदुस्तान उनका एकमात्र और आखिरी ठिकाना है इसलिए भागना नहीं है बल्कि ईट का जवाब पत्थर से देना है, लोहे से देना है. घरों में महाराणा और छत्रपति की तस्वीरें लगाने से काम नहीं चलने वाला बल्कि प्रत्येक हिन्दू को स्वयं महाराणा सांगा और छत्रपति संभाजी बनना होगा तभी हिंदू भी बचेगा और हिंदुत्व भी। मित्रों, रही बात सरकार और विपक्ष की तो सरकार को जो भी करना चाहिए कर रही है लेकिन विपक्ष को देखकर तो लग ही नहीं रहा कि वो भारत के राजनैतिक दल हैं या पाकिस्तान के। अगर वे भारत के राजनैतिक दल हैं तो वो क्यों पाकिस्तान की भाषा बोल रहे हैं? ईधर हिंदुस्तान के मुसलमान हिंदुओं को मार-काट रहे हैं कभी बंगाल तो कभी महाराष्ट्र कभी कश्मीर और कभी राजधानी दिल्ली में और उधर सोनिया गांधी का दामाद कह रहा है कि हिंदुस्तान में मुसलमान डरे हुए हुए हैं‌‌। फिर तो हलाकू, तैमूर, चंगेजखान, गजनवी, हिटलर, नादिरशाह, औरंगजेब और जनरल डायर भी बहुत डरे हुए थे, बेचारे थे, पीड़ित थे। इतना ही नहीं दिल्ली में अनन्या के बलात्कारी भी बहुत लाचार, असहाय और डरे हुए थे। मित्रों, ऐसा क्यों होता है कि जब भी हिंदू मरता है और मारनेवाले मुसलमान होते हैं तब विपक्ष के मुंह में दही जम जाता है। अभी बंगाल और कश्मीर में मुसलमानों ने किसी भी हिंदू से उसकी जाति नहीं पूछी उनको मारने और लूटने के लिए सिर्फ इस बात की तसल्ली की कि वो हिंदू हैं, काफिर हैं इसलिए उनको जीने का अधिकार नहीं है। मित्रों, अनंतनाग के जवाब में भारत सरकार ने कल पाकिस्तान के साथ सिंधु जलसंधि को रद्द कर दिया है। यह समझ में नहीं आता कि आखिर यह संधि की क्यों गई थी जबकि पाकिस्तान हमारी हजारों वर्ग किलोमीटर जमीन पर १९४७ से ही कब्जा जमाकर बैठा हुआ है। समझ में तो यह भी नहीं आता कि जबकि पाकिस्तान से ज्यादा मुसलमानों को हिंदुस्तान में ही रखना था तो हिंदुस्तान का बंटवारा हुआ क्यों! समझ में यह भी नहीं आता कि १९७१ में पाकिस्तान से कश्मीर का आधा व बचा हुआ हिस्सा लिया क्यों नहीं गया जबकि पाकिस्तान ने आत्मसमर्पण कर दिया था? समझ में तो बस इतना आता है कि पाकिस्तान ही कांग्रेस थी और कांग्रेस ही पाकिस्तान है अन्यथा सोनिया का दामाद पाकिस्तान की भाषा नहीं बोलता। मित्रों, रही बात बंगाल और कश्मीर के स्थानीय लोगों की तो बंगाल में तो राष्ट्रपति शासन में चुनाव करवाना होगा और कश्मीर में स्थानीय आतंकवादियों को कड़ा सबक सिखाना होगा। पाकिस्तान के खिलाफ भी यथासंभव कठोरतम कदम उठाने पड़ेंगे ठीक वैसे ही जैसे इजरायल ने हमास के खिलाफ उठाए हैं भले सबसे बड़ा विपक्ष सुप्रीम कोर्ट कितने भी रोड़ा क्यों न अंटकाए।

गुरुवार, 10 अप्रैल 2025

ट्रंप की गुगली में फंसा चीन

मित्रों, जबसे डोनाल्ड ट्रंप वैश्विक महाशक्ति संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति बने हैं तभी से पूरे विश्व में हडकंप मचा हुआ है. दरअसल ट्रंप ने अमेरिका के लगातार बढ़ते व्यापार घाटे को कम करने के लिए पूरी दुनिया के देशों के खिलाफ नौ अप्रैल से पारस्परिक कर लगाने का फैसला किया. देखते-देखते पूरी दुनिया में शेयर बाजार में कत्लेआम होने लगा. सबसे ज्यादा नुकसान खुद अमेरिका के निवेशकों को हुआ. जहाँ ट्रंप ने भारत 10 प्रतिशत बेस टैक्स के अतिरिक्त 26 प्रतिशत टैक्स लगाया वहीँ भारत पर 26% का अतिरिक्त टैरिफ होगा. चीन पर 34%, वियतनाम पर 46% और बांग्लादेश पर 37% अतिरिक्त टैरिफ लगाया. इसके अलावा इंडोनेशिया पर 32%, यूरोपीय संघ पर 20% और जापान पर 25% टैरिफ लगाया. इससे टैरिफ के बावजूद भारत का निर्यात ज्यादातर देशों के मुकाबले अमेरिका में सस्ता रहेगा, क्योंकि एक तो मुकाबले वाले देशों से भारत के सामानों पर कम टैक्स लगेगा और दूसरा जिन देशों के सामानों पर भारत से कम टैरिफ लिया जा रहा है उनकी तुलना में भारत के सामान सस्ते होते है. मित्रों, जहाँ भारत ने इस पर वार्ता का रास्ता अपनाया वहीँ चीन ने ताव खाकर बदले में अमेरिकी सामानों पर 84 प्रतिशत का टैक्स लगा दिया. इस बीच चीन से अमेरिका को होनेवाला निर्यात लगभग शून्य हो गया. साउथ चाइना पोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, चीन में लिस्टेड एक एक्सपोर्ट कंपनी के कर्मचारी ने कहा कि ट्रंप सरकार के नए टैरिफ के बाद उनकी अमेरिका को होने वाली डेली शिपमेंट 40-50 कंटेनर से गिरकर सिर्फ 3-6 कंटेनर रह गई है. मित्रों, इस बीच अचानक यू टर्न लेते हुए ट्रंप ने कल भारत सहित 75 देशों पर लगाए अपने अतिरिक्त टैरिफ को 90 दिन के लिए रोक दिया है. वहीं दूसरी तरफ टैरिफ का जवाब टैरिफ से देने वाले चीन पर पलटवार करते हुए 125 प्रतिशत का भारी टैरिफ लगा दिया. मित्रों, शांत दिमाग से काम करो और खुश रहो. लगता है भारत के लिए बड़े-बुजुर्गों की कही यह बात काम आ गई है. अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते के लिए बातचीत शुरू करने की रणनीति और साथ ही अमेरिकी टैरिफ के खिलाफ जवाबी कार्रवाई न करने के अपने संयम, दोनों का फायदा भारत मिलता दिख रहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार, 9 अप्रैल को भारत सहित 75 देशों पर लगाए अपने अतिरिक्त टैरिफ को 90 दिन के लिए रोक दिया. उन्हें जुलाई तक केवल 10 प्रतिशत का बेसिक टैरिफ देना होगा. वहीं दूसरी तरफ अमेरिका के टैरिफ का जवाब टैरिफ से देने वाले चीन पर पलटवार करते हुए उसपर 125 प्रतिशत का भारी टैरिफ लगा दिया. सवाल है कि डोनाल्ड ट्रंप ने भारत समेत 75 देशों पर यूटर्न क्यों लिया? ट्रंप का माइंडगेम क्या है? यह पूछे जाने पर कि उन्होंने 75 देशों को टैरिफ से राहत देने का आदेश क्यों दिया है, अमेरिकी राष्ट्रपति ने रिपोर्टरों से कहा: "लोग लाइन से थोड़ा बाहर जा रहे थे. वे चिड़चिड़े हो रहे थे." मित्रों, दरअसल टैरिफ पर यह रोक सिर्फ दूसरे देशों की जरूरत नहीं थी बल्कि खुद अमेरिका इसके प्रेशर में दबा जा रहा है. जिस तरह से अमेरिका का स्टॉक मार्केट 90 दिन की रोक की घोषणा के बाद 10 प्रतिशत तक उछला है, यह बता रहा कि अमेरिका का मार्केट ट्रंप के टैरिफ नीति का दवाब साफ महसूस कर रहा है. यहां यह भी बात गौर करने वाली है कि ट्रंप ने इन 75 देशों पर अपने टैरिफ को खत्म नहीं किया है बल्कि उसपर केवल रोक लगाई है. यानी उनके पास अगले 90 दिन का वक्त है कि वह इन 75 देशों के साथ कैसे व्यापार करना है, उसपर कोई डील कर सकें. तो दूसरी तरफ ट्रंप और चीन दोनों अब ऐसे चिकन गेम में उलझ गए हैं कि दोनों ही पीछे नहीं हटना चाहते. यह दोनों में से जो पहले पीछे हटेगा, वह हारा हुआ दिखेगा, हारा हुआ माना जाएगा. चीन के पक्ष में सबसे बड़ा फैक्टर यह है कि चीन अमेरिका पर जितना निर्भर है, उससे कहीं अधिक अमेरिका चीनी आयात पर निर्भर है. ऐसे में देखना होगा कि अमेरिका और चीन के बीच का टैरिफ युद्ध कितने दिनों तक चलता है और उसमें जीत किसकी होती है फ़िलहाल तो चीन को ज्यादा नुकसान होता हुआ साफ़ देखा जा सकता है.

शनिवार, 5 अप्रैल 2025

वक्फ बोर्ड में संशोधन का अभिनन्दन

मित्रों, बहुप्रतीक्षित वक्फ बोर्ड संशोधन अधिनियम लोकसभा और राज्यसभा दोनों से पारित हो चुका है. अब जैसे-ही भारत की माननीय राष्ट्रपति इस विधेयक पर हस्ताक्षर करेंगी विधेयक कानून बन जाएगा. कितने आश्चर्य की बात है कि पीवी नरसिंह राव और मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व काल में इतने सारे हिंदुविरोधी क़ानून बनाए गए और हिन्दुओं को पता तक नहीं चला जबकि अभी जब वक्फ बोर्ड कानून में बदलाव किया जा रहा है तब किस तरह मुसलमानों ने आसमान को सर पर उठा रखा है. मित्रों, मुसलमान कितने जागरूक हैं और हम कितने लापरवाह इस बात का इससे बड़ा उदाहरण हो ही नहीं सकता. क्या कोई संस्था या कानून देश की न्यायपालिका और संविधान से ऊपर हो सकता है? लेकिन वक्फ बोर्ड को भारत की न्यायपालिका और संविधान से ऊपर बना दिया गया. एक बाबरी ढांचा नामक खंडहर के बदले कांग्रेस ने मुसलमानों को पूरा भारत दे दिया. मानों जमीन न हुई बस और ट्रेन की सीट हो गई. जिस पर भी वक्फ बोर्ड ने हाथ डाल दिया वही उसकी हो गई. उसके बाद आप कोर्ट भी नहीं जा सकते बल्कि आपको वक्फ बोर्ड के न्यायाधिकरण में ही जाना होगा. न सिर्फ मुसलमानों की जमीनें बल्कि हिन्दुओं, ईसाईयों सहित अन्य धर्मावलम्बियों के उपासना स्थलों और गांवों को हड़प लिया गया. यहाँ तक कि मात्र एक सूचना देकर सरकारी जमीनों पर भी दावा ठोंक दिया गया और सरकारी अधिकारी मजबूरन मुंह देखते रहे क्योंकि संसद द्वारा कानून बनाकर ऐसे प्रावधान ही कर दिए गए थे. मित्रों, उससे भी ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण तो यह रहा कि यथास्थिति बनाए रखने को 20 मुस्लिम सांसदों से भी ज्यादा बेचैन 210 कथित धर्मनिरपेक्ष हिन्दू सांसद देखे गए. क्या इन हिन्दू सांसदों को पता नहीं है कि धार्मिक आधार पर 1947 में हिंसा के बल पर बनवाए गए पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिन्दुओं के साथ क्या-क्या हो रहा है और कैसे इन देशों में हिन्दुओं को विलुप्ति के कगार पर पहुंचा दिया गया? सबकुछ जानते हुए ये लोग कैसे भारत में जिहादी ताकतों को मजबूत करने में लगे हैं? हद तो यह है वही लोग हिन्दू धर्म और राष्ट्र की रक्षा में अपने रक्त की एक-एक बूँद न्योछावर कर देनेवाले अनमोल वीरों को उल्टे गद्दार साबित करने में लगे हैं. कोई भय नहीं कि हिन्दू नाराज हो जाएँगे! भय हो भी कैसे जबकि हिन्दू खुद बंटे हुए हैं, जाति में, पांति में. यहाँ तक कि हिन्दू परिवारों तक में एकता नहीं है. पति-पत्नी, भाई-भाई में विवाद बढ़ते ही जा रहे हैं फिर कोई उनसे क्यों डरे? मित्रों, इतना ही नहीं हिन्दू धर्म का संगठन भी काफी असंगठित है. चारों शंकराचार्यों तक में मतैक्य नहीं है. वक्फ बोर्ड में संशोधन से तो सिर्फ लैंड जिहाद रूकेगा अन्य जिहादों में सबसे खतरनाक जनसँख्या जिहाद कैसे रूकेगा? जो धर्माचार्य सोने के सिंहासनों पर बैठकर हिन्दुओं से ज्यादा बच्चे पैदा करने का आह्वान करते रहते हैं क्या वो उन बच्चों का खर्च उठाएंगे?