बुधवार, 23 जुलाई 2025
मार्गदर्शक मंडल में जगदीप धनखड़
मित्रों, पिछले कुछ दिनों से अंतर्राष्ट्रीय जगत में बहुत-कुछ अप्रत्याशित हो रहा था. ट्रम्प की गुलाटियों ने सारे कूटनीतिज्ञों और राजनैतिक विशेषज्ञों को पागल करके रखा हुआ था. ऐसे माहौल में अचानक भारतीय राट्रीय राजनैतिक परिदृश्य को लेकर अजब-गजब कयास लगाए जाने लगे. महान से लेकर महानतम की गिनती में आनेवाले राजनैतिक भविष्यवक्ता एक ऐसे व्यक्ति के भविष्य को लेकर चिंतित होने लगे जिसका राहू, केतु, शनि समेत सारे ग्रह मिलकर भी कुछ नहीं बिगाड सकते. आगे नाथ न पीछे पगहा. लोग कयास लगाने लगे कि योगी आदित्यनाथ आखिर बार-बार दिल्ली क्यों जा रहे हैं? मानो दिल्ली नोएडा हो गया जहाँ जो मुख्यमंत्री एक बार गया तो अपने पद से गया. लेकिन बिल्लियों के भाग्य से छींका तो कहीं और टूटनेवाला था.
मित्रों, मैं बात कर रहा हूँ भारतीय गणराज्य के महामहिम उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ जी द्वारा परसों दिए गए त्यागपत्र की. मैं चैलेंज करता हूँ कि किसी भी राजनैतिक विश्लेषक के पास इस घटना की कोई पूर्व सूचना नहीं थी. दिनभर राज्यसभा में सब कुछ सामान्य रूप से चल रहा था फिर शाम ढलते-ढलते ऐसा क्या हो गया कि जाट बलवान ने इतनी प्रतिष्ठित कुर्सी को लात मार दी. जाहिर है कि मामला पद की और साथ ही व्यक्तिगत प्रतिष्ठा से जुड़ा हुआ कुछ तो ऐसा रहा होगा जो उनको नागवार गुजरा। वैसे भी धनखड़ साब ठहरे जाट. जब जो जी में आया बोल दिया बिना लाग-लपेट के. उन्होंने उपराष्ट्रपति के रबर स्टाम्प पद को काफी सक्रिय बना दिया था जिसकी शीर्ष नेतृत्व को कतई उम्मीद नहीं थी.
मित्रों, धनखड़ साब कभी किसी को तो कभी किसी को कुछ-न-कुछ सुना जाते. कट्टर देशभक्त थे इसलिए विपक्ष का भारतविरोधी रवैया उनको बिलकुल भी नहीं सुहाता था. उनका ऐसा ही रवैया न्यायपालिका के साथ भी था. भ्रष्ट और निरंकुश न्यायपालिका के साथ उनका पूरा ३६ का आंकड़ा था. कई बार तो खुले मंच से योगी आदित्यनाथ की भी मुक्त कंठ से प्रशंसा कर डाली जिनको देश का बहुत बड़ा वर्ग पीएम मैटेरियल मानता है लेकिन मोदी-शाह की जोड़ी शायद ऐसा नहीं मानती. तभी तो पिछले लोकसभा चुनाव में यूपी में उनको शीर्ष नेतृत्व द्वारा ही कमजोर करने के प्रयास किए गए.
मित्रों, ऐसे हालात में उपराष्ट्रपति जी की तबियत तो खराब होनी ही थी सो हुई. वैसे भी बेचारे ७५ साल के होनेवाले थे और वर्तमान भाजपा नेतृत्व के अनुसार आप ७५ साल के होने के बाद राजनीति में सक्रिय नहीं रह सकते इसलिए भी उनके ऊपर मार्गदर्शक मंडल में शामिल होने का दबाव पड़ रहा होगा, शायद. सो बेचारे दस महीने पहले ही अभूतपूर्व से भूतपूर्व उपराष्ट्रपति हो लिए. आगे देखना है कि १७ सितम्बर के बाद मोदी जी क्या करते हैं? वैसे हमारे बिहार में तो कहावत है कि रास्ता दिखाओ तो आगे चलो. वैसे भी अब मोदी सरकार जड़ता की शिकार होती हुई दिख रही है।
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