रविवार, 12 अक्टूबर 2025

क्या बिहार में ७० हजार करोड़ का घोटाला हुआ है?

मित्रों, कई दशक पहले मेरी नानी श्रीमती धन्ना कुंवर की मृत्यु हो गई, सबकी एक-न-एक दिन होती है. मेरी माँ दो बहन थी. मेरी माँ ने अकेले नानी का श्राद्ध किया. मौसी ग्यारह साल पहले ही मर चुकी थी और मौसा ने नानी से सम्बन्ध तोड़ रखा था. पिताजी डॉ. विष्णुपद सिंह जो आरपीएस कॉलेज महनार में प्रोफेसर थे बड़े हिसाबी-किताबी थे. उनके पास लिखित में एक-एक पैसे का हिसाब रहता था. यह अलग बात थी कि उनसे किसी ने नानी के श्राद्ध का हिसाब नहीं माँगा अगर मांगता तो आसानी से एक-एक पैसे का हिसाब दे देते. मित्रों, कल्पना करिए कि पिताजी बिहार के प्रशासनिक कुनबे की तरह लापरवाह होते और लिखित हिसाब नहीं रखते तब क्या होता? तब पिताजी मुंहजुबानी कहते कि उन्होंने श्राद्ध में इतना पैसा खर्च किया है जो सच भी होता तो उनके ऊपर झूठे आरोप लग सकते थे कि उन्होंने या तो बिल्कुल भी खर्च नहीं किया है या फिर कम किया है और ज्यादा बता रहे हैं. यद्यपि पिताजी की ईमानदारी से पूरा महनार अनुमंडल परिचित था क्योंकि उन्होंने दो-दो बार कॉलेज का प्रधानाचार्य रहने के दौरान कभी एक पैसा घूस नहीं खाया या फिर विद्यार्थियों को भी फ्री में नोट्स और गेस देते रहे फिर भी वे निश्चित रूप से संदेह के घेरे में आ जाते. मित्रों, ठीक वही बात इन दिनों बिहार में भी हो रहा है. बिहार सरकार के विभिन्न विभागों ने पैसे खर्च किए लेकिन हिसाब नहीं दे रहे हैं या दे नहीं पा रहे हैं यद्यपि व्यय तो हुआ है और ठीक उसी तरह हुआ है जैसे पिताजी ने नानी के श्राद्ध में किया था. कहने का तात्पर्य यह है कि मामला घोटाले का नहीं है बल्कि प्रशासनिक लापरवाही का है जिसको राजनीति के ठेकेदार प्रशांत किशोर घोटाला साबित करने पर तुले हैं. मित्रों, सवाल यह भी है कि जब प्रशांत किशोर कहते हैं कि अशोक चौधरी भ्रष्ट हैं तो लोग उनपर तुरंत भरोसा कर लेते हैं। लेकिन जब वे कहेंगे कि आरसीपी सिंह भ्रष्ट नहीं हैं तो उनपर कौन भरोसा करेगा? कहना न होगा कि यह वही आरसीपी सिंह हैं जिन्हें एक दौर में नीतीश सरकार के समस्त भ्रष्टाचार का सरगना माना जाता रहा और कथित आरसीपी टैक्स के लिए वे कुख्यात भी रहे। खुद जेडीयू ने उन्हें भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर पार्टी से निकाला। इसके बाद भाजपा ने उन्हें अपनी वॉशिंग मशीन में धोने का प्रयास किया, लेकिन वे धुल नहीं पाए, जिसके फलस्वरूप पार्टी में शामिल करके भी उन्हें लॉन्च नहीं किया। सोचिए दाग कितने गहरे लगे होंगे भाजपा को कि उन्हें अहसास हुआ कि मेरी वॉशिंग मशीन में भी ये धुल नहीं पाए। उस वॉशिंग मशीन में, जिसमें देश के बड़े-बड़े भ्रष्टाचारी धुलकर पवित्र हो गए। मित्रों, जिस आरसीपी को भाजपा भी अपनी वॉशिंग मशीन में नहीं धो पाई, उन्हें प्रशांत किशोर ने अपनी पीके वॉशिंग मशीन में धो दिया है। अब आरसीपी टैक्स वाले आरसीपी सिंह पवित्र हैं और जनसुराज ने उनकी बेटी को विधानसभा चुनाव का टिकट भी दे दिया है। मजे की बात यह कि बेटी के टिकट का ऐलान भी बाप ने ही किया। अब प्रशांत किशोर कहते घूम रहे हैं कि आरसीपी की बेटी को टिकट उनकी योग्यता पर दिया। मतलब आप एक कथित भ्रष्ट नेता की बेटी को टिकट दे दें तो वह न तो परिवारवाद है, न टिकट बेचना है। केवल अशोक चौधरी द्वारा अपनी बेटी के लिए टिकट मैनेज कर लेना ही परिवारवाद और टिकट खरीदना है? मतलब तुम करो तो भ्रष्टाचार और हम करें तो शिष्टाचार? इसी राजनीतिक संस्कृति का अनुसरण करके प्रशांत किशोर दूसरों से बेहतर कैसे हुए? मित्रों, सवाल है कि आज आपने आरसीपी की बेटी को टिकट दिया। कर्पूरी ठाकुर की पोती को टिकट दिया। कल आप अन्य नेताओं और अपने बेटे बेटियों को भी टिकट देंगे? आज आपने कथित आरसीपी टैक्स वाले आरसीपी सिंह को अपनी वॉशिंग मशीन में धोया, कल अन्य भ्रष्टाचारियों को भी धोएंगे? और यह तो बस शुरुआत है। आप कह सकते हैं कि मेरे दाग देख रहे हो, विपक्षियों के दाग नहीं देखते. लेकिन यदि प्रशांत किशोर पांडे जो अब तक भाड़े के रणनीतिकार थे और सिर्फ पैसों के लिए काम करते थे,ये भी नहीं देखते थे कि किसके जीतने के देश को लाभ होगा और किसके जीतने से नुकसान, उम्मीद जगाकर उम्मीद को कुचलने का काम करेंगे, दूसरों के लिए बनाए सिद्धांत को खुद पर ही लागू नहीं करेंगे, तो फिर लोग आपको भी क्यों न कहें - केजरीवाल पार्ट टू?